मैं और ठरकी ट्रक ड्राईवर
मेरे प्रिय मित्रो, मैं आपकी सहेली रूपा! मेरी पिछली कहानियाँ पढ़ कर आपको मेरी कामुकता था भली भांति अंदाज़ा तो हो गया होगा। आपको पता चल ही गया होगा कि मैं कितनी चुदक्कड़ औरत हूँ।
मगर आज आपको मैं उस वक्त की बात बताती हूँ, जब मैं बहुत सीधी और डरपोक किस्म की थी।
दरअसल यह जो फुद्दी लगाई है न भगवान ने औरतों की दोनों टाँगों के बीच में … सच में दुनिया की सबसे घटिया चीज़ है। यह फुद्दी औरत को इतना मजबूर कर देती है कि अगर औरत इसके आगे थोड़ी से भी ढीली पड़ी, तो ये उसकी सलवार में नाड़े की जगह इलास्टिक डलवा देती है।
शादी के बाद तक, मेरे बेटे के पैदा होने के बाद तक मैंने हमेशा इसे अपने काबू में रखा। मगर एक बार जो इसने मुझे काबू किया तो मैं बस इसकी ही गुलाम हो कर रह गई। अब मैं जो चाहती हूँ, वो ये नहीं करती, बल्कि जो मेरी कमीनी फुद्दी कहती है, मैं वो करती हूँ।
जैसे ही मुझे कोई शानदार मर्द दिखता है, चाहे उसकी उम्र 20 साल की हो या 60 साल की, इसके मुंह में पानी आ जाता है।
पहले मुझे गंदे शब्दों से बड़ा परहेज था, मैं अपने पति को भी गाली निकालने से मना करती थी. मगर आज हालात ये हैं कि आप भी अगर मुझे, कुतिया, छिनाल, रंडी, गश्ती, चुदक्कड़ या कुछ भी कहो, मुझे बुरा नहीं लगता, अच्छा लगता है। शादी ब्याह या किसी पार्टी में कोई मर्द मौके का फायदा उठा कर मेरी गांड को सहला जाता है तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है।
मगर मैं हमेशा से ऐसी नहीं थी। यह जो कहानी मैं आज आपको बताने जा रही हूँ, यह मेरे छिनाल बनने से पहले की है।
बात यूं हुई कि मेरे भाई का मेरठ से थोड़ी दूर हमारे पैतृक गाँव में ही सीमेंट और लोहे का बिज़नस है। काफी अच्छा बिज़नस है, शहर से बाहर होने की वजह से जगह भी सस्ती मिल गई और चुंगी से भी बचत हो गई।
एक बार गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने गाँव गई हुई थी, मेरा छोटा सा बेटा भी मेरे साथ ही था। कुछ दिन रहने के बाद मैंने माँ बाबूजी से वापिस जाने को कहा। फिर अपने भाई से भी कहा कि अब मुझे वापिस जाना है तो मुझे बस बैठा आए।
मगर वो बोला- अरे दीदी तुमको मेरठ ही तो जाना है, मेरे दोस्त हैं परविंदर भाः जी, वो आज आये हुये हैं, मेरा बहुत अच्छा और भरोसेमंद दोस्त है, वो तुम्हें मेरठ छोड़ आएगा।
मुझे पहले तो बड़ा अजीब सा लगा कि क्या मैं ट्रक में जाऊँगी। मगर भाई ने अपने के ट्रक वाले दोस्त से बात की और वो मुझे घर तक छोड़ने को तैयार हो गया।
जब जाना था तो मैं अपने मायके घर से अपने भाई की दुकान पर आ गई। वहाँ पर एक कोई 50-52 साल के एक सरदारजी बैठे थे। लंबा चौड़ा शरीर। सांवला सा रंग, चेहरे पर भरी दाढ़ी मूंछ, कुर्ता और लुंगी पहने, सर पर पगड़ी बांधे, वो मुझे देखने से बड़ा भयावह सा लगा।
मगर मेरा भाई बोला- ये अपने परविंदर भाई साहब हैं, मेरठ ही जा रहे हैं, तुम्हें घर के पास छोड़ देंगे।
मैं क्या कहती। भाई ने भेज दिया।
साथ में एक क्लीनर भी था, सुकड़ा सा था। वो मुझे अपने ट्रक तक ले गया और पहले मुझे ट्रक में चढ़ाया, फिर मेरे बेटे को और फिर खुद भी खिड़की के पास बैठ गया।
2 मिनट बाद परविन्दर सिंह भी आ गए। जब वो ड्राईवर वाली साइड से आकर अंदर बैठे तो बिल्कुल मेरे साथ सट कर बैठे। मुझे बड़ा डर सा लगा। मैं थोड़ा सा सरक कर अपने बेटे की तरफ हुई। वो बोले- ओ कुड़ीये, तू ठीक से बैठी है न?
मैंने कहा- हां जी!
तो वो बड़े प्यार से मुझे देख कर बोले- हां जी, चलिये?
मैंने डरते हुये कहा- हां जी।
वो बोले- चलो जी फेर … वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह!
और उन्होंने ट्रक स्टार्ट किया, और हम चल पड़े।
मगर जब उन्होंने गिअर बदला तो गिअर रोड मेरी टांग पर ज़ोर से लगी, मेरे मुंह से ‘हाय…’ निकल गई।
वो बोले- ओए पुत्तर, लगी क्या?
मैंने अपनी टांग अपने हाथ से मलते हुये कहा- हां जी।
तो वो बोले- ऐसा कर … तू न अपनी टांग गिअर बॉक्स के इस तरफ और दूसरी टांग उस तरफ रख ले।
मैंने जब उनके कहे अनुसार अपनी दोनों टाँगें गिअर बॉक्स के अगल बगल फैला कर रखी तो मुझे बड़ा अजीब लगा, मेरी टाँगें तो पूरी तरह से खुली थी।
तभी जो सुकड़ा सा क्लीनर था, उसने मेरे बेटे को उठाया और खिड़की के पास बैठा कर बोला- अरे मेरा राजा बेटा, बाहर देखो, कैसे सब पीछे को भागा जा रहा है।
मेरा मासूम बेटा बाहर तेज़ी सब कुछ पीछे जाता देखने लगा और खुश होने लगा। मगर इस बार जब भाः जी ने गिअर बदला तो उनका हाथ मेरी दोनों जांघों में बीच में आ गया, और गिअर की रॉड तो बिल्कुल मेरी फुद्दी के पास थी।
मुझे तो एक बार बड़ी सिहरन सी हुई कि ‘हाय, भाई ने मुझे किन लोगों के बीच में फंसा दिया, मुझे तो इन दोनों की नियत ठीक नहीं लगती।’
मगर अब मैं कर भी क्या सकती थी।
दोनों के दोनों चोर नज़रों से मेरी ओर ही देख रहे थे।
इस बार जब भाः जी ने गिअर बदला तो अपनी कोहनी से एक तो मेरे मम्मों को मसल दिया और दूसरा अपने हाथ की दो उँगलियों से मेरी जांघ को सहलाया।
अपने पति से मिले मुझे करीब हफ्ता भर हो चला था क्योंकि मैं अपने मायके आई हुई थी. यह तो मैंने सोचा ही हुआ था कि अपने घर जाते ही सबसे पहले मैं अपनी फुद्दी की प्यास अपने पति के लंड बुझाऊँगी। मगर यहाँ तो घर पहुँचने से पहले ही मुझ पर हमला हो रहा था।
मैं चुपचाप बैठी रही।
एक दो बार भाः जी ने और गिअर बदलते वक्त मेरे मम्मों से अपनी कोहनी लगाई और मेरी जांघ पर हाथ फेरा। फिर अपने क्लीनर से बोले- ओए खोतेया, तू कल से सोया नहीं है, बहुत काम करा है तूने, अगर सोना है तो सो जा … नहीं तो थोड़ी देर लेट जा।
ट्रक की सीट के पीछे एक और सीट थी, वो उस पर लेट गया, मगर वो मेरे पीछे मेरे बहुत करीब लेटा जबकि उसके पास काफी जगह थी।
भाः जी ट्रक काफी आराम से चला रहे थे, जैसे उनको जाने की कोई जल्दी न हो. और ज़रा सा कुछ सामने आ जाता तो तभी ब्रेक लगा लेते, गिअर बदलते, और जब भी गिअर बदलते मेरी जांघों को सहलाते, मेरे मम्मों को अपनी कोहनी से मसलते।
पहले मुझे बड़ा अजीब सा लगा था मगर जब उन्होंने कई बार ऐसा किया तो मुझे भी अब बुरा नहीं लग रहा था, बुरा क्या … मुझे तो मज़ा आने लगा था, मुझ पर मस्ती छाने लगी थी।
उन्होंने मुझसे एक दो बातें करी तो मैंने भी हंस हंस कर जवाब दिये, वो भी जान गए कि मैं मस्ती में आ गई हूँ।
इस बार जब उन्होंने गिअर बदला तो अपने हाथ उंगलियाँ इतनी पीछे तक ले गए कि मेरी दोनों टाँगों के बीच मेरी फुद्दी को छू लिया। मुझे बहुत सनसनी सी हुई कि एक बिल्कुल अंजान आदमी मेरी फुद्दी को छू रहा था। अब मैं तो रेगुलर वीट लगा कर अपनी फुद्दी एकदम चिकनी रखती हूँ, तो छूने से भाः जी को पता चल गया कि मेरी फुद्दी पर कोई बाल नहीं है।
वो बोले- देखो जी, मैं तो कहता हूँ कि सफाई में रब्ब बसदा है.
और उन्होंने अपनी उंगली से मेरी फुद्दी के होंठों को बड़े इत्मीनान से सहलाया और मुझे बता दिया कि वो किस सफाई की बात कर रहे हैं।
“मैं तो जी … खुद सफाई का बहुत शौकीन हूँ, मैं तो कभी भी गंदगी के पास नहीं फटकता, हमेशा एकदम साफ रखता हूँ, और दूसरी से भी यही चाहता हूँ कि वो भी साफ सुथरी हो.” और उन्होंने फिर से मेरी फुद्दी को छुआ।
इस बार तो जब छुआ मेरी तो फुद्दी में करंट सा लगा। शायद मैं भी चुदासी हो चली थी, मेरा भी दिल कर रहा था कि मैं भी भाः जी की लुंगी के अंदर हाथ डाल कर देखूँ कि उनकी झांट है या जैसे वो कह रहे हैं, वहाँ भी मैदान सफाचट है।
मगर मैं इतनी हिम्मत नहीं कर पाई, बस चुपचाप बैठी रही।
लेकिन मेरी कमीनी फुद्दी चुपचाप नहीं बैठी, उसके मुंह में यह सोच कर ही पानी आ गया कि इस लुंगी के अंदर एक शानदार, मोटा तगड़ा लंड होगा। मैं सोचने लगी कि मान लो अगर इन भाः जी ने मुझे पूछा, चुदाई के बारे में … या पूछा ही नहीं, बस सीधा मुझ पर चढ़ ही गए, तो क्या मैं इन्हें रोकूँ कि ‘नहीं नहीं … मेरा बेटा है, सब कुछ देख रहा है।’
बेशक वो छोटा है, सिर्फ दो साल का है, पर देख तो रहा है।
या फिर ये भी हो सकता है कि पहले ये भाः जी मेरे साथ चुदाई का खेल खेलें, और ये क्लीनर मेरे बेटे को बाहर घुमा लाये. और जब ये क्लीनर मुझे चोदे तो भाः जी मेरे बेटे को कहीं बाहर घुमा लाएँ।
हाँ ऐसे तो हो सकता है।
मगर फिर मैंने सोचा ‘धत्त, क्या बकवास सोच रही है।’
भाः जी ने अपनी कोहनी पक्के तौर पर ही मेरे दोनों मम्मों के बीच में ही रख ली, बड़े आराम से वो मेरे मम्मों को अपनी कोहनी से सहला रहे थे. और जब गिअर नहीं भी बदल रहे होते, तो भी अपना हाथ वो मेरी जांघ पर ही रखे रहते। मैं भी उन्हें कुछ नहीं कह रही थी।
वो पता नहीं यहाँ वहाँ कहाँ की बातें करते जा रहे थे बिना इस बात की परवाह किए कि मैं कोई ‘हाँ हूँ …’ भी कर रही हूँ, या नहीं।
थोड़ी देर बाद मुझे कुछ और महसूस हुआ। वो जो क्लीनर मेरे पीछे लेटा था, उसने भी अपनी लुल्ली खड़ी करके पीछे से मेरी कमर से लगा दी थी। मैं थोड़ा सा आगे को सरकी, तो मेरी फुद्दी पूरी तरह से गिअर रोड को लग गई और भाः जी की कोहनी और मेरे मम्मों में धंस गई।
शायद भाः जी ने इसे अपने लिए ग्रीन सिग्नल समझा कि अब तो ये खुद ही अपने मम्मे मेरी कोहनी से रगड़ रही है. तो भाः जी ने अपना हाथ गिअर बदलने के बहाने मेरी फुद्दी पर ही रख लिया। सख्त हाथ।
अब क्योंकि मैंने सलवार के नीचे से कोई पेंटी नहीं पहनी थी, तो मेरी फुद्दी के दोनों होंठ भाः जी ने अपने हाथ में ही पकड़ लिए। और पीछे से उस हरामज़ादे क्लीनर ने फिर से अपना लंड मेरी गांड से सटा दिया। मैं भी फिर आराम से बैठ गई कि मार ले यार, तू भी मेरी गांड के घस्से मार ले।
भाः जी ने अपनी बीच वाली उंगली से मेरी फुद्दी के दोनों होंटों के बीच में घुमा कर मेरी रही सही शर्म भी उतार दी। वो ट्रक बड़े धीरे चला रहे थे क्योंकि उनका ज़्यादा ध्यान तो मेरी फुद्दी में उंगली करने में था। उनकी उंगली हिल रही थी और मेरी फुद्दी, पानी पानी हो रही थी। उनकी उंगली भीग गई मेरी सलवार के ऊपर से।
एक बार उन्होंने अपनी उंगली अपने नाक के पास लेजाकर सूंघी, मैं उन्हे ही देख रही थी, उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुये उस उंगली को चाट भी लिया। और उंगली चाट कर ऐसे सर हिलाया जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट पकवान खाया हो।
मैं मुस्कुरा दी … खुल कर मुस्कुरा दी। यह मैंने उनको साफ इशारा दिया था कि अगर आप अब कुछ आगे भी करते हो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं।
मगर वो पहले की तरह मेरी फुद्दी को अपनी उंगली से सहलाते रहे। उनका क्लीनर भी अपने लंड को अपने हाथ में पकड़ कर मेरी गांड पर घिसा रहा था। मैंने देखा भाः जी की लुंगी भी ऊपर को उठी हुई थी, मतलब काम वहाँ भी पूरा टाइट था।
ट्रक जितना धीरे चल रहा था, भाः जी की उंगली उतनी ही तेज़ चल रही थी। और करीब 5 मिनट के इस चूहा बिल्ली के खेल में मैं हार गई। मेरी फुद्दी ने भर भर के पानी छोड़ा। मेरी सांस तेज़ हो गई, मेरी आँखें बंद थी, मेरा सीना आगे को उठा हुआ। बस अपने मुंह से निकलने वाली हर सिसकारी को मैं अपने अंदर ही दबा गई।
भाः जी की उंगली पूरी तेज़ी से चल रही थी. फिर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।
उन्होंने पूछा- क्या हुआ कुड़िये?
मैंने कहा- कुछ नहीं हुआ, बस अब और नहीं।
मेरे कहने का मतलब था कि मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती।
भाः जी बोले- पानी पिएगी?
मैंने हाँ में सर हिलाया।
तो उन्होंने अपना ट्रक रोका और क्लीनर को सामने खेत में चल रहे ट्यूबवेल से पानी लाने को भेजा। वो बोतल भर लाया, मैंने बोतल से गटागट बहुत सा पानी पी लिया। उसका बाद हम फिर चल पड़े।
मगर इस बार मैं अपनी फुद्दी का पानी गिरा कर ठंडी हो चुकी थी। मैंने अपने बेटे को अपनी गोद में बैठाया और उन दोनों से दूर होकर, खिड़की के पास बैठ गई। उसके बाद मैंने पलट कर भी उन दोनों को नहीं देखा।
थोड़ी ही देर में मेरठ आ गया और मैं शहर से बाहर ही उतर गई और ऑटो करके घर आ गई।
घर आई तो पति देव घर पर नहीं थे, मुझे बड़ा अजीब सा लगा, मैं तो सोच रही थी, घर जाते ही मुझे पति का लंड मिलेगा। पति नहीं मिले तो मैं रसोई में गई और एक मोटी सी मूली उठा कर लाई।
अपनी सलवार खोली और टाँगें चौड़ी कर के बेड पर लेट गई और मूली डाली अपनी फुद्दी में … दबा कर मूली फेरी और फुद्दी के पानी से झाग उठा दी।
जब दूसरी बार मेरी फुद्दी का पानी गिरा, तब मेरे मन को तसल्ली हुई कि चलो अब रात तक मुझे किसी चीज़ की कोई ज़रूरत नहीं।
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