मोटे लम्बे लंड से चूत चुदाई का डर
हमारे मकान के बाजू में मेरे पति के दोस्त हैं वरूण जी.. वो मेरे पति के साथ बिल्कुल परिवार के सदस्य के समान रहते हैं।
वे जब गांव गए तो हमें अपना मकान सुपुर्द करके चले गए और पूरे एक माह बाद वापस आए। इस बार वो अपनी पत्नी के साथ वापस आए थे, आते ही उन्होंने अपनी पत्नी से परिचय कराया और बहुत सी बातें होने लगीं।
हम दोनों मतलब उनकी पत्नी और मैं भी पक्की सहेलियां होने लगीं। उनके मकान ओर हमारे मकान में सिर्फ एक दीवार का फासला था। हम दोनों के आगे वाले कमरे में एक छोटा सा छेद भी था जिससे हम दोनों एक-दूसरे की तरफ की बातों को सुन लेते थे।
एक रात मैंने रोने की आवाज सुनी तो दंग रह गई। मैंने सुबह अपने पति के काम पर जाते ही वरुण जी की पत्नी के पास अपनी सब्जियों की डलिया लेकर गई और उससे पूछा तो वो रोते हुए बताने लगी- मेरे पति पूरे जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं।
‘वो कैसे..?’
‘जब वो रात को बिस्तर में आते हैं तो मेरे सभी अंगों को मसल डालते हैं और दीदी उनका लंड देखकर तो मैं डर जाती हूँ। इसलिए आज तक मैं कुंवारी की कुंवारी ही हूँ।’
‘क्या कह रही हो?’
‘हाँ.. दीदी.. मैं सच कह रही हूँ.. उनका लंड आज तक मेरी चूत में गया ही नहीं.. उन्होंने पहली बार आते ही मुझे नंगा करके अपने लंड को सीधे मेरी चूत में घुसा दिया था.. जिससे दर्द के मारे मैं रोने लगी थी।
‘फिर..?’
‘तब भी उन्हें दया नहीं आई और उन्होंने अपने लंड से करारा धक्का मारने के लिए प्रयास किया तो मैंने उन्हें जोर का धक्का मार कर पलंग के नीचे गिरा दिया था। उसके बाद मैंने उनसे एक बार भी चुदाई नहीं कराई।’
‘यह तो गलत बात है.. देखो पति-पत्नी में ये बातें तो होती ही रहती हैं.. प्यार से चुदाई कराओ और मजे लेकर जिदगी का लुत्फ़ उठाओ।’
‘नहीं दीदी.. मेरे पति का लंड आप देखोगी तब आप भी मना कर दोगी।’
‘अच्छा.. तब तो सच में एक बार देखना ही पड़ेगा.. वैसे उनका हथियार कितना बड़ा और कितना ताकतवर है?’
‘बहुत..’
‘अच्छा चल.. अभी मेरे काम में हाथ बंटा.. ये सब्जियां काट दे।’
वो मजे से मेरे साथ काम में लग गई। जब वो लम्बे वाले भंटे (लम्बा बैंगन) काटने लगी तो मैंने पूछा- अच्छा बता.. क्या इससे भी बड़ा है?’
‘हाँ दीदी.. इससे भी बड़ा और मोटा है।’
‘हम्म..’
‘अच्छा दीदी, आप अपने पति का बताओ..’
‘ये छोटा और पतला वाला भंटा है न.. ठीक वैसा ही है..’
‘बस इतना सा..?’
‘हाँ.. मगर मजा बहुत देता है.. मैं जैसा कहती हूँ.. ये वैसा ही करते हैं।
‘सच..?’
‘हाँ कभी तो हम कई मिनट तक एक-दूसरे का चूसते रहते हैं। मजा तो तब और दुगना हो जाता है.. जब वो मेरे पीछे डाल कर चुदाई करते हैं।’
‘दीदी दर्द नहीं होता क्या?’
‘होता है.. शुरू-शुरू में.. जब लंड जगह बना लेता है.. तो चूत से ज्यादा मजा गांड मराने में मजा आता है।’
इस तरह की बातें सुनते-सुनाते मैं विचलित होने लगी। मुझे लगा कि ज्यादा और बातें हुईं.. तो मैं झड़ने लगूंगी।
अब मैंने अपने पैर फैला दिए.. तभी उसने मेरी साड़ी को खिसका दिया, अब वो मेरी जाँघों में अपने हाथ फेरने लगी। धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पास उंगली को लगा दिया।
मैं मस्त होकर उसको रोक ही नहीं पाई और वो मेरी चूत में अपनी उंगली डाल कर हिलाने लगी।
मैंने अपनी आँखें बन्द कर लीं, वो मेरी चूत में अपनी दो उंगलियां घुसा चुकी थी।
कुछ ही देर में हम दोनों के कपड़े उतर गए थे। अब मैं भी उसके मम्मों को दबाने लगी। मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि खड़ी हो गई और उसने भी.. जो बड़ा वाला बैंगन था.. उसे वो धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करते हुए मेरी चूत में डालने लगी, इससे मजा और तेज होने लगा।
मैंने देखा वो बड़ा सा बैंगन पूरा मेरी चूत में घुस चुका था ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ मैं समझ चुकी थी कि जब ये मोटा बैंगन घुस चुका है तो इतना बड़ा लंड भी जा सकता है।
अब मैं निश्चिन्त होकर चूत में बैंगन की रगड़ाई के मजे लेने लगी। थोड़ी देर में मेरा ढेर सारा माल नीचे गिरने लगा और मैं शांत होने लगी।
कुछ देर बाद मैं कपड़े पहन कर सब्जियों की डलिया लेकर अपने घर चली आई। मैं नहाई और फिर कुछ समय बाद फिर से उसके यहाँ आ गई।
वो मुझे देख कर बोली- क्यों मजा आया या नहीं?
मैंने कहा- बहुत अच्छा लगा.. सच में मजा आ गया।
फिर बातों के दौरान उसने कहा- अपने पति से कहो न लो मेरे उनको समझाएं।
‘वो मैं पूछ लूंगी.. तू उसकी चिंता मत कर.. और हाँ तू कहे तो तेरा एक बार का इंतजाम करवा देती हूँ।’
‘वो कैसे?’
‘वो दूध वाला आता है ना.. उससे।’
‘न बाबा न.. कल को बदनामी हुई तो?’
‘तू फिक्र मत कर.. मैं तेरी दीदी हूँ ना..’
वो मुस्कराने लगी।
मैंने एक दिन दूध वाले से अपनी चूत की रगड़ाई करवाई तो उसको राजी कर लिया था कि वो मेरी पड़ोसन की चूत का बजा भी बजा देगा।
हफ्ते भर बाद एक दिन जब मैं उसके घर जाने को हुई.. तो मैंने देखा कि उसके दरवाजे पर दूध वाले की बाईक खड़ी है और दरवाजा बंद है।
मैं यह देख कर वापस घर आ गई.. मैं समझ तो गई थी कि दूधवाले ने दूध दबाने में सफलता हासिल कर ली है। मगर तब भी मैंने उसके घर की दीवार से कान लगा कर ध्यान से सुना तो अलग किस्म की आवाजें कमरे से आना शुरू हो गई थीं।
‘पियो रानी.. पियो.. आज पूरी क्रीम तू ही निकाल दे..’
कोई चीज चूसने की आवाज तेजी से आने लगी। कामुक आवाजें भी आ रही थीं। ‘उउहह.. आहह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… अअ.. मजा आ रहा है.. और पी.. न..’
‘नहीं.. अब बहुत हो गया.. अब डाल दे.. और मजा ले।
‘ले.. साली अब तू मजा ले..’
‘उउउउमर गई साले.. आराम से डाल ना.. भोसड़ी के भाग थोड़ी ना रही हूँ.. और ना ही मेरे पति खड़े हैं चूत चोदने की लाईन में.. चल.. लगा.. कोई बात नहीं.. चल लगा जोर..’
‘ले..’
‘ओह.. उउउ.. मजा आ गया.. तेजी से कर.. साले.. जल्दी जल्दी.. चोद.. गया गया.. मजा आ गया साले.. अपने पत्नी को भी ऐसे ही चोदता है क्या..?’
‘नन..नहीं.. वो तो साली छूने भी नहीं देती.. और ना लंड पीती है.. आपसे अच्छा आनन्द कहाँ मिलेगा.. हाँ तेरी पड़ोस वाली जरूर मेरा चूसती है।
‘हाँ दीदी ने ही तो तेरे लिए कहा था.. अब छोड़ और उठ..’
कुछ देर में शांति हो गई और फिर आवाज आई- चल अब ज्यादा हो रहा है.. देख के निकलना कहीं कोई देख ना ले.. नहीं तू रूक.. पहले मैं देखती हूँ.. फिर निकलना।
फिर थोड़ी देर के बाद बाईक चालू होने की आवाज आ जाने के बाद मैं अपने घर से बाहर निकल आई।
मैंने देखा कि पड़ोसन अपने कमरे में लस्त सी पड़ी थी। मैं अन्दर गई और पूछा- क्यों मैडम तबियत ठीक नहीं लग रही है क्या?
‘नहीं.. वैसी कोई बात नहीं।’
‘वो वही दूध वाला था ना?’
वो हड़बड़ा कर उठ बैठी- आपको किसने बताया?
‘उसका बहुत सुन्दर है ना..?’
‘हाँ दीदी.. मस्त था..’
‘तू तो कह रही थी कि तू कुंवारी थी?’
‘वो.. दीदी अपने पति से नहीं चुदी थी न.. इसलिए ऐसा कहा था।’
‘ओके मतलब पहले से कोई और भी है?’
‘अब छोड़िये न दीदी..’
‘ठीक है यार.. जब पति बाहर मुँह मारते हैं.. तो इतना तो हक बनता है ना अपने को भी की अपनी मन पंसद से चुदाई करवा सकें।’
अब वो और मैं दोनों हँसने लगीं।
‘और सुना अपने उनका..’
‘नहीं बाबा उनका तो देख कर ही डर लगता है..’
‘तू उनके सामान की बहुत तारीफ़ करती है.. कभी दिखा ना बे..’
‘मगर कैसे..?’
‘अपने मोबाईल में ही देखा दे।’
‘अभी नहीं है।’
‘तो ले देख मेरा मोबाईल ले.. मैं दिखाती हूँ अपने पति का भी.. और उस दूध वाले का भी।’
‘दिखा।’
मोबाइल में लौड़ा देखते ही मेरी चूत में खुजली होने लगी।
वो- आह्ह.. दीदी.. आपके उनका कितना प्यारा सामान है।’
‘तू हिम्मत तो कर.. दोनों का एक साथ इंतजाम न करूँ तो कहना।’
‘नहीं.. अभी तो एक-एक करके ही ठीक रहेगा।
‘फिर तू मेरे लिए समझा सके तो अपने पति को समझा दे.. मेरे लिए भी वही अकेला काफी रहेगा।’
‘ठीक है रिस्क ज्यादा है.. कल को मत कहना कि तूने ये क्या किया।’
‘नहीं कहूँगी बाबा नहीं.. एकदम नहीं कहूँगी।’
‘ठीक है मैं अपने पति से बात करती हूँ.. देखते हैं वो समझ पाएगा कि नहीं।’
कुछ दिनो मैं उसकी माँ का बुलावा आया और उसने मुझसे कहा- आप इनका ध्यान रखना.. मैं अपनी माँ से मिलकर आ जाती हूँ।’
‘कितने दिन का प्रोग्राम है?’
‘बस हफ्ता-पन्द्रह दिन का है.. फिर ढेर सारी बातें करेंगे और मौज-मस्ती भी।’
‘अपने उधर वाले का लेने का प्रोग्राम है?
उसने आँख मारते हुए कहा- ठीक समझी दीदी।
मैंने उससे जाते-जाते कहा- मेरे पति के बारे में बात जरूर कर लेना।
वो बोली- देखती हूँ।
वो चली गई। इसके बाद एक दिन मेरे पति के साथ उसका पति वरुण मेरे घर में दारू पीने बैठ गया।
मैंने मना किया मगर मेरे वो नहीं माने।
मैं उनके लिए पकौड़े बनाने लगी। वो दोनों मजे से दारू पीते हुए बातें करने लगे।
‘और सुना कैसी चल रही है गाड़ी?’
‘क्या बताऊँ यार.. मत पूछ.. मैं तो शादी करके पछता रहा हूँ।’
‘क्यों क्या हुआ?’
वरुण पूरा वाकिया बताने लगे। मैं खड़ी होकर सुन रही थी कि वो मुझसे बोले- एक प्लेट और लाना।
‘बस बस बहुत हो गया.. अब रहने दे।’
‘क्या यार.. मेरा साथ दे न.. आज से तेरा दु:ख मेरा.. बस दोनों ऐश करेंगे।’
मैं प्लेट देने आई तो पति मुझे रोक लिया और वरुण से कहा- इसको देख.. बता कैसी है.. चलेगी?
मैंने कहा- छोड़ो जी.. ये चलेगी-वलेगी क्या बोल रहे हो मुझे छोड़ दीजिए..
‘अबे यार.. जब एक बोतल दारू हम बाँट कर पी सकते हैं तो तुझे क्यों नहीं?’
मैं अवाक खड़ी होकर सब सुन रही थी। मैंने सोचा चलो आज वरुण के लौड़े का भी टेस्ट हो ही जाएगा।
मेरे पति ने मुझे पकड़ कर अपनी गोद में बिठा लिया और दारु का गिलास मेरे मुँह से लगा दिया।
कुछ ही देर में हम तीनों दारु के नशे में टुन्न थे।
फिर वरुण ने मुझे नंगा कर दिया और खुद अपना मूसल बाहर निकाला तो एक बार को मेरी घिग्घी बंध गई।
आगे क्या हुआ आप सभी जानते हैं.. तब भी इस रसीली कहानी को जरूर लिखने का मन है। आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।
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