यहाँ भी चुदी और वहाँ भी-2
यशोदा पाठक
जिंदगी में पहली बार रात भर इतना मजा किया। सवेरे मैंने अपना बदन खुला-खुला सा महसूस किया। चूत में एक शान्ति सी महसूस हुई।
सवेरे उठते ही मैं नहा धोकर ट्यूशन के लिये राजीव के घर आ गई। रास्ते भर यही सोचती रही कि राजीव को मैं क्या जवाब दूंगी। जाने अब मेरे साथ क्या करेगा। उंह ! मुझे चोदने की कोशिश करेगा तो चुदवा लूंगी ! और क्या? एक से भले दो। पर अगर कहीं मुझे डांट पड़ी तो…?
कमरे में घुसने पहले मेरी गाण्ड फ़ट रही थी कि जाने वो क्या कहेगा।
पर कमरे में घुसते ही राजीव बहुत ही प्यार से बोला,”यशोदा, मेरी पेन ड्राईव लाई हो?”
उसकी प्यार भरी आवाज से मेरा डर निकल सा गया। मैंने सर हिला कर हाँ कह दी।
वो मुस्करा कर बोला,”कितनी फ़िल्में देखी?”
“जी… जी … बस दो … नहीं नहीं एक भी नहीं !” मैं हकला सी गई।
“आ जाओ, यहाँ बैठो, मजा आया था?”
राजीव ने जब मुझे नहीं डांटा तो मेरी हिम्मत खुलने लगी, अब मैंने धीरे से नीचे देखते हुये मुस्करा कर कहा,”सर, अच्छी फ़िल्में थी, बहुत आनन्द आया देख कर !”
उसने धीरे से मेरे गले में हाथ डाल दिया और प्यार से बोला,”अब सजा तो इसकी मिलेगी ही, बोलो तैयार हो?”
“जी, मैं समझी नहीं, पर प्लीज मुझे डांटना मत, डांट से मुझे बहुत डर लगता है !” मैं समझते हुये भी मुस्करा कर बोली।
“कोई बात नहीं, पहले यह डर अपने अन्दर से निकाल दो कि मैं तुझे डाँटूंगा !” उसने मेरे उरोजों पर नजर गड़ाते हुए कहा।
आह ! अब आयेगा मजा तो ! मैं पलक झपकते ही समझ गई कि अब यहाँ भी चुदने वाली हूँ।
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरी किस्मत खुल गई है। कहाँ तो एक के भी सपने देखना मुहाल था और एकदम से दो दो मिल रहे हैं।
राजीव ने अपने हाथ मेरे वक्ष पर रख दिए।
“देखो सर, गुदगुदी नहीं करना मेरे दुद्धू पर !” मैंने अपना टाईट बनियाननुमा टॉप उतार दिया।
अरे यह क्यों उतार रही हो? राजीव बोला, लेकिन मेरे छोटे छोटे नींबू जैसे उरोजों को देख कर वो मचल सा गया। उसके हाथ मेरे नर्म पेट और उरोजों पर फ़िसलने लगे। मेरे तन में फिर से तरंगें उठने लगी। मेरी फ़ुद्दी फ़ड़क उठी थी। बीच-बीच में मैं उसका हाथ रोकने की नाकाम कोशिश भी कर रही थी। पर दिल से चाह रही थी कि आज इसे चक्कर में ले लूँ तो आगे मजे ही मजे हैं।
उसके हाथ मेरे निम्बुओं को घुमा घुमा कर सहला रहे थे। सरकते सरकते उसका एक हाथ मेरी फ़ुद्दी पर आ गया।
“यह तो गीली है यशोदा, तुम्हारी फ़ुद्दी तो चू रही है?”
“आह्ह्ह, अरे हटो … गुदगुदी हो रही है।” मैंने खड़े खड़े ही कहा।
अब कोई फ़ुद्दी पर गुदगुदी करेगा तो उसमे से रस तो निकलेगा ही ना। मेरी स्लेक्स में उभरे गाण्ड के मस्त गोल गोल उभार और बीच में एक जान लेने वाली दरार जो राजीव को घायल कर देती थी, उस पर उसका आक्रमण वाजिब भी था और उसके दिल को ठण्डा करने वाला भी था। उसकी अंगुलियाँ मेरी चूत को सहला रही थी और दाने को हिला देने से मेरे शरीर में बिजलियाँ तड़पने लगी।
मेरा हाथ अपने आप ही उसके लौड़े पर आ गया और उसका कड़ा लण्ड दब गया।
उसने भी भाव विभोर होते हुये मेरी स्लेक्स नीचे करके सरका दी दी और धीरे से अपना लण्ड मेरे खिले हुये चूतड़ों के बीच दबा दिया। मुझे दोनों गोलों के बीच उसके लण्ड की मोटाई महसूस होने लगी थी। मैं झुकती चली गई और उसका लण्ड मेरी गाण्ड में घुसता चला गया। गाण्ड की मस्त गहराई में जाकर उसके लण्ड ने मेरी गाण्ड का छेद खिला दिया। मैं जैसे मस्ती से निहाल हो गई। लण्ड छेद को चीर कर अन्दर घुसता चला गया और अब उसका लण्ड मेरी गाण्ड को पेल रहा था।
मुझे धीमी धीमी मीठी सी सिरहन होने लगी थी। मुझे गाण्ड मराने का अनुभव नहीं था, पर जैसा कि लोग कहते थे कि इसमें लण्ड खाने से बहुत तकलीफ़ होती है, मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा। बल्कि एक मधुर सी गाण्ड में आग लग गई।
कुछ देर तो वो मेरी गाण्ड मारता रहा फिर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल कर मेरी चूत में पीछे से ही घुसेड़ दिया।
मुझे एक तेज मीठी सी उत्तेजना हुई और मुख से निकल पड़ा,”चोद दो मेरे राजा, बहुत मजा आ रहा है।”
“भोसड़ी की, चुदक्कड़ रांड, अब तक कहाँ थी रे तू, साली को अब तक तो चोद चोद कर रण्डी बना देता।”
“तो अब चोद दे राजा !” उसकी भाषा आम लड़कों की तरह की भाषा थी। उसकी गालियाँ मुझे अच्छी लगी। मुझे आज तक ऐसा सम्बोधन किसी ने नहीं किया था।
उसकी स्पीड बढ़ती गई और मैं झुकती गई। यहाँ तक कि मैंने मेज़ पर अपने दोनों हाथ रख दिए और टांगें चौड़ा दी।
भला कौन कहेगा कि ये गुरू और शिष्या हैं। तब मेरी चूत का रस निकलने को होने लगा। मेरा हाल बुरा हो रहा था। मुझे लगा कि बस अब झड़ने ही वाली हूँ, मैं बेचैनी से तड़प उठी। फिर मेरी चूत को मैंने झड़ने से रोकने की भी कोशिश की, पर हाय राम, इस पर किसका जोर चलता है। मैं जोर से झड़ने लगी।
“आह्… आह … बस , बस … राजीव सर ! मैं तो गई… आह !”
मैं झड़ती जा रही थी, मेरा रस छूटता ही जा रहा था। तभी राजीव के लण्ड ने भी फ़ुहार छोड़ दी। उसका लण्ड हवा में लहराता हुआ, वीर्य की वर्षा कर रहा था। उसका अधिकतर मेरी पीठ पर गिर रहा था।
उसने अपने मन की कर ली थी। फिर उसने रुमाल से मेरी पीठ को पोंछ डाला और मेरी स्लेक्स वापिस ऊपर सरका दी।
“बिना बात ही चोद दिया ना मुझ गरीब को !” मैंने यूँ ही बनावटी नखरे दिखाये।
“चोरी की सजा थी यह ! फिर तुम्हारी इस स्लेक्स ने तो मेरी जान निकाल रखी थी।”
“सर जी, फिर तो चोरी रोज करनी पड़ेगी?”
“क्या जरूरत है? अब तो बिना चोरी किये ही तुम्हें चोद दूँगा, बस यह स्लेक्स जरूर पहनना, इससे मेरा लण्ड टन्न से खड़ा हो जाता है।”
“धत्त सर जी ! आप कैसा बोलते हैं !” कह कर मैं राजीव से लिपट गई और उसे चूमने लगी।
देखा आपने, उस छोटी सी, पिद्दी सी, मूंगफ़ली जैसी चीज पेन ड्राईव के खातिर मुझे ये दो इंच मोटे और सात आठ इंच लम्बे लम्बे लौड़ो से चुदना पड़ा। रात को भैया फ़ोड़ता है तो दिन को राजीव बजा देता है। अपने भाई से भी चुदना पड़ा और यहाँ मास्टर जी की तो जैसे लॉटरी ही लग गई। यहाँ भी चुदी और वहाँ भी चुद गई मैं तो। और तो और ! अब तो रोज ही चुद रही हूँ।
आपकी यशोदा
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