लौंडे की गांड और उसकी मॉम की चूत
मेरा नाम जगदीश प्रशाद है, मगर सब यार दोस्त मुझे जोगी कहते हैं। नाम जोगी है पर हूँ मैं भोगी। घर से ठीक ठाक हूँ, 24 साल उम्र है, कद काठी से ठीक हूँ, रंग सांवला है। नयन नक्श भी ठीक ठाक हैं। मतलब मेरे में कुछ भी खास नहीं है। स्कूल टाइम में ही गलत संगत में पड़ गया, सब साले लुच्चे लफंगे मेरे दोस्त थे।
चढ़ती जवानी की हरकतें
मुझे याद है, पहली बार 12वीं क्लास में था, जब यार दोस्तों के साथ गर्मी में ही स्कूल के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे थे। सामने से एक आंटी साड़ी पहने आ रही थी, गोरी चिट्टी, बहुत ही सुंदर, और भरपूर बदन।
वैसे ही दोस्तों में शर्त लग गई कि इसके चूचे कौन दबाएगा।
मैंने जोश में आकर कह दिया- मैं दबाऊँगा!
बस मैं अपने दोस्तों से परे हट कर अलग से सड़क पर चल पड़ा, वो सब दूर बैठे मुझे देख रहे थे।
जब आंटी मेरे करीब से गुजरने लगी, बिना एक पल भी गंवाए, मैंने अपने दोनों हाथ उसकी तरफ बढ़ाए और उसके दोनों चूचे अपने हाथों में पकड़ के एकदम ज़ोर से दबाये और बस भाग गया।
वो पीछे से चीखती रही, गालियां देती रही, मगर सच बड़ा मज़ा आया। पहली बार दो मोटे मोटे गोल मस्त चूचे दबाये और थोड़ी देर बाद वापिस अपने दोस्तों के साथ आ बैठा, सबने मेरी हिम्मत की बहुत तारीफ की। मुझे भी बड़ा मज़ा आया।
सगी बहन से छेड़छाड़
मगर यह काम रोज़ रोज़ तो हो नहीं सकता था तो अपनी ठर्क मिटाने के लिए मुझे और कुछ सोचना पड़ा और कौन सा आसान शिकार मिल सकता था।
सब तरफ नज़र घुमाई तो अपनी ही बहन नज़र आई, रात को सोते हुये उसके चूचे दबा लेता, उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी पतली पतली टाँगों को सहला लेता।
मगर सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मैं हाथ से नहीं करता था, मुट्ठ मारना मुझे पसंद नहीं है, शुरू से। तो जब लंड अकड़ जाता तो उसको सुलाना बहुत मुश्किल हो जाता।
फिर यार दोस्तों से सलाह की, सबने कहा ‘तू कोई लड़की पटा’ मगर मेरी साधारण शक्ल सूरत पर कोई भी लड़की नज़र नहीं डालती थी।
जब पहली बार कॉलेज गया, तब यार दोस्त भी बदल गए, अब हम पूरे जवान थे, सो एक बार पैसे इकट्ठे कर कर के एक सस्ती सी काल गर्ल ले कर आए, एक औरत को 5 लड़कों ने बारी बारी चोदा।
पहली बार सेक्स किया, भरपूर आनन्द उठाया।
मेरी तो अभी और एक बार करने की इच्छा थी, मगर उसने दोबारा करने के पैसे मांगे, वो मेरे पास थे नहीं, सो मन मार कर रह गया।
छोटी बहन अब और बड़ी हो गई थी, कभी कभी उसके बदन को भी सहला लेता था, मगर अब उसकी नींद पहले जैसी गहरी नहीं थी। ज़्यादा छेड़छाड़ करने पे उठ जाती थी।
पता उसको था कि कभी कभी मैं रात को उसके साथ गंदी हरकतें करता हूँ, मगर उसने कभी मुझे कुछ कहा नहीं!
पता नहीं डरती थी, या खुद भी चाहती थी, मगर कभी भी हमने एक दूसरे के सामने ये बात नहीं की।
एक दिन मैं अपने कॉलेज से वापिस आ रहा था कि रास्ते में एक लड़के ने मुझे हाथ का इशारा दे कर रोका। मैंने अपनी बाईक रोकी, तो वो बोला- मुझे आगे बस स्टॉप तक छोड़ दोगे भाई?
मैंने उसे बैठा लिया और बाईक चलाने लगा।
लौंडे ने लिफ़्ट मांगी
मगर मुझे लगा जैसे वो मेरी गांड पे अपना लंड घिसा रहा हो।
मैंने उससे पूछा- अरे लिफ्ट ले रहा है, या लिफ्ट कर रहा है?
वो बोला- क्या हुआ भाई?
मैंने कहा- अरे भाई बोल कर भाई की गांड मारने की सोच रहा है क्या, मैं ऐसे शौक नहीं रखता भाई!
वो बोला- मरवाने का शौक नहीं, पर मारने का शौक तो होगा?
मैंने कहा- हाँ, मारने का तो बहुत शौक है, बस कोई ढंग की चीज़ मिलनी चाहिए।
वो बोला- चीज़ तो मेरे पास भी है अगर तुम्हें पसंद आए तो!
मुझे क्या ऐतराज हो सकता था, मैंने भी बोल दिया- चल दिखा, अगर अच्छी लगी तो ज़रूर लूँगा।
वो बोला- फिर मेरे घर चलना होगा।
मैंने कहा ‘ले चलो’ और हम उसके घर की ओर चल पड़े।
मुझे एक रूम में बैठा कर वो पानी लेने चला गया, मैंने देखा कि वहाँ पे एक औरत बाहर बैठी कपड़े धो रही थी। कोई 40- 42 साल की होगी, गोरा रंग, भरा हुआ बदन, नयन- नक्श भी ठीक थे।
मैंने सोचा अगर यह लड़का मुझे इस औरत की दिलवाएगा, तो मुझे कोई ऐतराज नहीं, मैंने मन ही मन उस औरत को पसंद कर लिया।
इतने में वो पानी ले कर आ गया।
मैंने पानी पिया और उससे पूछा- चल बता अब माल कहाँ है?
वो मुस्कुरा कर बोला- तुम्हारे सामने!
मैंने कहा- सामने तो तू है, मुझे तो कोई औरत या लड़की चाहिए।
वो बोला- कोई औरत या लड़की नहीं, बस मैं ही हूँ, मुझसे ही कर लो जो करना है।
मैंने कहा- साले तू लौंडा है क्या?
वो बोला- हाँ हूँ, और एकदम पर्फेक्ट लौंडा हूँ, चूसता हूँ, मरवाता हूँ और माल भी खा जाता हूँ।
मैंने सोचा, हो न हो यह बाहर बैठी औरत इसकी माँ या बहन हो सकती है, अगर उसकी लेनी है तो पहले इसकी भी लेनी पड़ेगी।
मैंने कभी किसी लौंडे को नहीं चोदा था, मुझे बड़ा अजीब लग रहा था।
लौंडे की गांड मारनी पड़ी
मैंने उस औरत के बारे में बात अपने मन में रखी और उससे बोला- देख यार, मैंने कभी किसी लौंडे को चोदा नहीं है, सिर्फ रंडियों की चूत मारी है।
वो बोला- आप कुछ नहीं करोगे, सब कुछ मैं खुद कर लूँगा।
मैंने पूछा- पैसे लेगा, मेरे पास है नहीं।
वो बोला- अरे नहीं यार, फ्री सेवा है, मुझे तो अपनी खुजली मिटानी है।
मैंने कहा- ओ के, चल हो जा शुरू, देखें क्या करते हो?
वो मुझे अपने साथ ऊपर वाले कमरे में ले गया। ऊपर जाकर मैंने खिड़की से नीचे देखा, वो औरत अब भी कपड़े धो रही थी, मगर ऊपर से अब उसकी ब्लाउज़ में से उसके मोटे मोटे गोरे चूचों के अच्छे दर्शन हो रहे थे।
वो लड़का मुझे खिड़की से बेड पर ले गया और मुझे लेटा दिया। उसके बाद उसने मेरे सामने बड़ा मटकते हुये अपने सारे कपड़े उतार दिये और बिल्कुल नंगा हो गया, अब जवान था, उसका अपना लंड भी अच्छा था, मगर वो बार बार मुझे अपनी गांड मटका मटका के दिखा रहा था और अपने चूचे दबा रहा था, मगर चूचे उसके थे नहीं, पर फिर भी ऐसे कर रहा था, जैसे उसके भी चूचे लगे हों।
थोड़ा सा मटका तो मेरे लंड में भी सुरसुराहट सी होने लगी।
वो मेरे पाँव के पास आ बैठा, मेरे जूते उतारे, जुराबें उतारी, मेरी बेल्ट खोल कर मेरी जींस भी उतार दी। चड्डी के अंदर मेरा लंड भी थोड़ा होश में आ चुका था।
उस लड़के ने मेरी टी शर्ट उतारी और मेरी सीने पर हाथ फेरा ‘हाय ज़ालिम बहुत चौड़ा सीना है तेरा तो!’ कह कर उसने कई बार मेरे सीने पे चूमा और चूचों को ऐसे चूसा, जैसे इनमें से दूध आता हो।
मुझे गुदगुदी हुई तो मैंने कहा- अरे साले ये क्या कर रहा है?
वो बोला- तुमको गर्म कर रहा हूँ, ताकि गर्म हो कर तुम अपने मस्त लंड से मेरी गांड मार सको।
फिर उसने मेरी चड्डी भी हटा थी।
आज पहली बार था, जब मैंने लड़का होते हुये किसी लड़के सामने नंगा हुआ था। मुझे थोड़ा अजीब सा तो लगा, मगर कोई शर्म नहीं आई।
मेरे नंगा होते ही वो मेरे पांव के पास आ बैठा और मेरे तने हुये लंड को अपने हाथों से पकड़ कर खेलने लगा, चूमने लगा और फिर अपने मुंह में लेकर चूसने लगा।
इस से पहले एक दो रंडियों से अपना लंड चुसवाया था और मज़ा भी खूब आया था, मगर ये साला लड़का हो कर भी बहुत शानदार चूस रहा था।
मैंने भी उसके लंड को छेड़ा, सहलाया, वो भी तन गया, मगर मेरे मन में उसका लंड चूमने या चूसने जैसा कोई विचार नहीं आया।
3-4 मिनट उसने बहुत अच्छे से मेरा लंड चूसा, और फिर उठ कर ड्रॉअर खोला और उसमें से कोंडोम का पैकेट निकाल लाया।
खुद मेरे लंड पर उसने कोंडोम चढ़ाया और उसके बाद बेड पे उल्टा लेट गया।
‘आओ मेरे स्वामी…’ उसने कहा, तो मैं उसके ऊपर जा बैठा, उसकी गांड पे थूका और अपने लंड का टोपा उसकी गांड पे रख कर अंदर को धकेला।
शायद तगड़ा लौंडा था, एक बार में ही मेरे लंड का टोपा उसकी गांड में घुस गया, ‘सी’ करके उसने लंबी सी सिसकारी भरी, ‘हाय उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैं मर गई, कितना मोटा है!’ वो बोला जैसे कोई रंडी हो।
मैंने कहा- भोंसड़ी के लेने से पहले नहीं पता था कि गांड में लंड लेगा तो गांड तो फटेगी ही!
मगर वो अपने ही आनन्द में डूबा ‘आह, हाय मार डाला’ और पता नहीं क्या क्या बोलता रहा।
मैंने भी ज़ोर लगा कर अपना पूरा लंड उसकी गांड में पेल दिया और उसके बाद उसे अपनी पूरी मर्दानगी दिखाई, अगले 12 मिनट तक मैंने उसे लगातार और जम कर पेला, जान बूझ कर ऐसे चोदा कि उसे और दर्द हो, सच में उसे दर्द देने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। खूब गालियां दी उसको- साले रंडी की औलाद, मादरचोद लौंडे, ले अपने यार का लंड, तेरी माँ को चोदूँ साले कुत्ते, हरामी, अगर तेरी बहन है तो उसको भी ला, साली की चूत फाड़ कर न रख दूँ, तो कहना। साले कुत्ते की औलाद, तेरी माँ की चूत मार लूँ, साले बहनचोद, ला किसको लाता है, सबकी ऐसे ही गांड मार लूँगा!
मैंने अपने दिल से हर एक गाली उसको दी, मगर उसने कोई बुरा नहीं माना बल्कि नीचे लेटे लेटे बस मेरी चुदाई की तारीफ ही करता रहा।
और आखिर मेरा भी माल झड़ गया।
मैं उसके पास ही लेट गया, उसने मेरे लंड से कोंडोम उतार दिया और मेरा लंड अपने मुंह में लेकर चूसने लगा और चाट चाट कर सारा लंड साफ कर दिया, कोंडोम को पास ही पड़े एक कागज में लपेट कर डस्ट्बिन में फेंक दिया।
मैंने उस से पूछा- कैसा लगा?
वो किसी औरत की तरह शर्मा कर बोला- बस जी पूछो मत, मज़ा आ गया।
लौंडे की मॉम
मैं उठ कर फिर से खिड़की के पास खड़ा हो गया बिल्कुल नंगा… मैंने एक सिगरेट सुलगाई और पीने लगा।
नीचे वो औरत कपड़े सूखने के लिए डाल रही थी, मैंने पूछा- अरे सुन तेरा नाम क्या है?
वो बोला- राहुल!
मैंने फिर पूछा- राहुल, ये औरत कौन है जो नीचे कपड़े सुखा रही है?
वो बोला- मेरी मम्मी है।
मैंने कहा- यार, तेरी माँ पसंद आ गई है मुझे, इसकी दिलवा दे?
वो बोला- देखो, मैं अपना कह सकता हूँ, माँ के बारे में बात मत करो, मैं कुछ नहीं कह सकता।
जब उसने कहा न के मैं कुछ नहीं कह सकता, उसकी आवाज़ से मुझे लगा या तो ये इसलिए नहीं कहता कि कहीं इसका अपना धन्धा बंद न हो जाए, या फिर इसकी माँ भी चालू है। मगर जो भी हो मुझे वो औरत पसंद आ गई थी और मुझे उसकी लेनी थी हर हाल में।
मैंने राहुल से कहा- देख यार, जो तू कहेगा, मैं कर दूँगा, तेरी गांड लंडों से भर दूँगा, मगर मुझे तेरी माँ की लेनी है, जैसे मर्ज़ी कर, मुझे उसकी दिलवा!
वो बोला- ठीक है, देखता हूँ, अगर कुछ हो सकता है तो!
मैंने पूछा- तू अपनी माँ से ऐसी बात कर लेगा?
वो बोला- हाँ, माँ को पता है, मेरे क्या शौक हैं, इसी लिए तुम्हें घर ले आया। चलो अगली बार जब आओगे, तो माँ को भी बुला लूँगा। मैंने कहा- मैं अगली बार ही आया हूँ, तू बुला उसे!
हम दोनों कपड़े पहन कर नीचे चले गए, थोड़ी देर में वो औरत अंदर आई, मुझे देख कर पहले उसने बड़ा अजीब सा मुंह बनाया। मगर राहुल ने उसको बोला- मॉम, यह मेरा दोस्त है।
उसने बड़ी बेरुखी से कहा- तो?
‘मॉम जोगी मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और यह तुमसे भी दोस्ती करना चाहता है।’
उसकी माँ ने मेरी तरफ देखा और मुंह बिचका कर चली गई।
‘हाय, क्या अदा है!’ कह कर मैंने पूरा लोफ़र स्टाइल में उसको छेड़ा और वो भी अपने चूतड़ मटकाती चली गई।
मैंने राहुल की ओर देखा, उसने मुझे इशारा किया, ‘जाओ’ वो धीरे से बोला।
मैं राहुल की माँ के पीछे पीछे चला गया, वो बाथरूम में थी, मगर दरवाजा खुला था।
मैंने पहले दरवाजे में से झांक कर देखा, अरे वो साली तो बाथरूम के शीशे में देख कर लिपस्टिक लगा रही थी, फिर उसने बाल सेट किए।
मैं बाहर ही खड़ा रहा।
जब उसने बाथरूम का दरवाजा खोला तो एकदम सामने मुझे पाया, चौंक कर बोली- अरे तुम, यहाँ कहाँ घुसे चले आ रहे हो?
मैंने आव देखा न ताव, उसे अपनी बाहों में भर लिया।
‘अरे, यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे!’ वो बोली मगर उसकी आवाज़ में ही विरोध था।
मैंने उसे कस कर पकड़ा और सीधा उसके गाल पर चूम लिया- अब सब्र नहीं होता मेरी जान, तुम्हें देखते ही मुझे तुमसे प्यार हो गया था, अब मत तरसाओ अपने यार, बस अब तो मेरी हो जाओ, सौंप दो अपने आप को मुझे!
मैंने कहा और इस बार उसके होंठों पे ही चूम लिया।
उसने मेरे कंधे पे तो दो तीन बार मारा, मगर अपना चेहरा नहीं घुमाया, बल्कि आराम से चुम्बन दिया।
जब मैंने उसे चूम लिया तो वो बोली- प्यार से घर नहीं चलता मिस्टर!
मैं उसकी बात समझ गया- तो बोलो, क्या सेवा करनी पड़ेगी? मैंने पूछा।
‘दो हज़ार लूँगी, एक ट्रिप के!’
मतलब वो तो प्रॉफेश्नल रंडी थी।
मैंने कहा- आज तो मेरे पास सिर्फ 1 हज़ार हैं, अगर इससे काम चला सकती हो तो?’
कह कर मैंने अपनी जेब से 500 के दो नोट निकाल कर उसे दिखाये।
उसने नोट पकड़े और अपने ब्लाउज़ में ठूंस लिए और बोली- जब बाकी के हो जाएँ तो आ जाना!
और वो अपना बिस्तर ठीक करने लगी।
मैंने एक पल सोचा कि यार हज़ार भी गए और मिली भी नहीं।
मैंने सोचा लिए बिना तो जाऊंगा नहीं, एक ट्राई और करके देखता हूँ, मैंने उसे पीछे से ही पकड़ लिया, उसके दोनों मोटे मोटे बोबे अपने हाथों में पकड़ लिए और अपनी कमर उसकी गांड पे घिसाने लगा।
‘अरे अरे, यह क्या करते हो?’ वो बोली मगर अपने काम में ही लगी रही।
मैंने कहा- जानेमन, आज तो 1000 में ही दे दो, अगली बार पूरे पैसे लाऊँगा।
कह कर मैंने उसकी साड़ी का पल्लू जो उसने अपनी कमर में ठूंस रखा था, निकाल दिया और उसके सीने से उसका आँचल हटा दिया।
वो मेरी तरफ घूम गई।
गहरे हरे रंग के ब्लाउज़ में से उसकी गोरी गोरी छातियाँ बहुत सुंदर लग रही थी।
मैंने उसको प्यार से अपनी आगोश में लिया और उसका चेहरे अपनी तरफ करके उसके होंटों को चूसने लगा, अब वो भी मेरा साथ देने लगी, मतलब मेरा मामला फिट बैठ गया था।
बस अगले ही पल मैंने उसके होंठ चूसते चूसते उसकी साड़ी खोल दी, उसका ब्लाउज़, ब्रा सब खोल दिये और पेटीकोट का नाड़ा उसने खुद ही खोल दिया और मैंने अपने कपड़े भी उतार दिये, दोनों जन नंगे हो गए।
अब जब प्रॉफेश्नल गश्ती को चोदना तो काहे की मोहब्बत, मैंने उससे कहा- तेरे 1000 तो संभाल ले, उड़े जाते हैं।
वो बेड पे लेट गई और उसने आवाज़ लगाई- अरे राहुल, सुन तो!
राहुल अंदर आया, उसने हम दोनों को नंगा देखा और चुपचाप पैसे उठा कर चला गया।
मैंने उसको नीचे लेटा कर खुद उसके सीने के ऊपर बैठ गया और अपना लंड उसके मुंह के पास किया, उसने हाथ में पकड़ा और चूसने लगी।
मैंने उससे पूछा- तेरा नाम क्या है?
वो बोली- सरोज!
‘कब से यह काम कर रही हो?’ मैंने पूछा।
वो बोली- बस जब से ज़िम्मेवारी मेरे सर पे आन पड़ी!
‘और राहुल के पापा?’ मैंने पूछा।
वो बोली- अरे वो कमीना छोड़ गया, तभी तो ये सब करना पड़ा।
मैंने फिर पूछा- और राहुल को ये शौक कब से पड़ा?वो थोड़ा चिढ़ कर बोली- आया था कोई तुम्हारे जैसे, खुद भी दारू पी, मुझे भी पिलाई, और इसे भी पिला दी। बस आधी रात को मेरी
गांड मारने को बोला, मैंने मना कर दिया, तो चुपके से इसकी मार गया, और इस कमीने ने अपने दोस्तों को बता दिया, तो उन्होंने इसे लत ही लगवा दी।
सच कहूँ, तो उसकी कहानी सुन कर मेरा दिल पिघल गया, मगर मैं वहाँ उसके दुख के किस्से सुनने नहीं आया था, मैंने अपना लंड फिर से उसके मुंह में ठूंस दिया, और वो चूसने लगी।
अच्छा चूस रही थी, मगर राहुल ने ज़्यादा अच्छे से चूसा था।
खैर थोड़ा सा चुसवाने के बाद मैंने उससे कोंडोम मांगा, तो उसने बिस्तर के नीचे से पैकेट निकाल कर दिया।
मैंने एक कोंडोम अपने लंड पर चढ़ा लिया, वो भी सेट सी हो कर लेट गई, जब मैंने नीचे को झुका तो उसने खुद मेरा लंड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी चूत पर रख लिया, मैंने धक्का मार कर अपना लंड उसके अंदर ठेल दिया और लगा चुदाई करने।
पर एक बात रह रह कर मेरे दिमाग में आ रही थी कि वक़्त वक़्त की बात है, जब मैंने पहले इस औरत को देखा था तो मुझे ये कितनी खूबसूरत लगी, कितनी अच्छी लगी, मैं इसको चोदने को मारा जा रहा था।
मगर अब वही औरत मेरे नीचे पड़ी थी, और मैं उसे चोद भी रहा था, मगर मुझे वो मज़ा नहीं आ रहा था। शायद ये जान कर के वो एक गश्ती है, या उसकी दुख भरी कहानी सुन कर, पता नहीं क्यों, मगर मेरा मूड सा ऑफ हो गया था। मैं सिर्फ पैसा वसूल करने के लिए उसे चोद रहा था।
वो बोली- क्या हुआ, मज़ा नहीं आ रहा क्या?
मैंने उसे अपने दिल की बात बताई।
वो बोली- अरे यार, ये मत सोचो कि अगर कोई पैसे के लिए जिस्म बेचती है, तो वो गंदी है, मैं गंदी नहीं हूँ, मैं तो तुम्हारे मन की गंदगी धोती हूँ। अब तुम संतुष्ट हो कर जाओगे, तो बाहर किसी औरत लड़की से बदतमीजी नहीं करोगे। भूखे होगे तो हर एक को खा जाने की कोशिश करोगे, गंदी निगाह से देखोगे। इस लिए इन सब बातों को छोड़ो और जो काम कर रहे हो उसको एंजॉय करो।
मुझे उसकी बातें बहुत अच्छी लगी, मैंने उसके होंटों को चूम लिया। उसने भी मुझे अपने सीने से भींच लिया, उसका गोरा गदराया बदन मेरे चिपक गया और वो लगातार मेरे होंठों को चूसे जा रही थी।
सच में एक आग सी जला दी थी, उसने मेरे अंदर!
नर्म नर्म बदन पर मैंने कई जगह काट लिया, उसने भी मेरे बदन को बहुत काटा।
खूब मस्त हो कर चुदवाया उसने!
थोड़ी देर बाद खुद ही घोड़ी बन गई, फिर मैंने उसे घोड़ी बना कर चोदा, बहुत मज़ा आया।
ज़्यादा शोर भी नहीं मचाया उसने मगर चुदाई में अपनी कमर हिला हिला कर मेरा साथ दिया।
यह आधा घंटा जो मैंने उसके साथ बिताया, मेरे दिल में बस गया। उसके बाद मैंने उसको एक गश्ती की तरह नहीं, अपनी प्रेमिका की तरह चोदा, बड़े प्यार से।
और जब मैंने झड़ा तो उसने मेरी पीठ थपथपाई ‘शाबाश, मज़ा आ गया!’ वो बोली।
मैंने कहा- मगर तुम्हारा तो हुआ नहीं?
वो बोली- मैं अपना मज़ा ले चुकी, मगर तुम मुझे अच्छे लगे!
मैंने कहा- तो फिर मैं आता जाता रहूँ?
वो बोली- ज़रूर चाहे रोज़ आओ!
‘अरे नहीं, रोज़ आने के लिए पैसे नहीं मेरे पास!’ मैंने अपनी सच्ची बात बताई।
वो हंस कर बोली- चल कोई बात नहीं, जब पैसे हों, तब आ जाया करना।
उसके बाद मैंने अपने बहुत से दोस्तों को भी उससे मिलवाया, ताकि मेरे दोस्त भी मज़े ले सकें और उसका खर्चा पानी भी चल सके। आज 2 साल से ऊपर हो चुके हैं, और आज भी हम अच्छे दोस्त हैं।
अभी मेरी शादी नहीं हुई है, जॉब नहीं लगी, इसलिए जब भी मौका और पैसे मिलते हैं, मैं उसी के पास जाता हूँ। क्यों, क्या और गश्तियाँ नहीं मिली मुझे? मिली, मगर कोई दिल से नहीं लगी।
बस एक सरोज ही दिल से लगी और मैं उसे एक सेक्स वर्कर नहीं, अपनी एक दोस्त, और बहुत अच्छी इंसान मानता हूँ, इस लिए किस और के पास नहीं जाता।
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