वासना के पंख-10 – Bhai Bahan Sex Kahani
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे संध्या ने अपने काम जीवन में नए रंग भरने के लिए पहले अपनी सास के साथ समलैंगिक समबन्ध बनाए और फिर मोहन को उसके बचपन की चाहत उसकी माँ की चूत दिलवा दी। आखिर मोहन मादरचोद बन गया।
अब आगे…
शेर एक बार आदमखोर हो गया तो बस हो गया; फिर वो वापस साधारण शेर नहीं बन सकता। मोहन को भी अपनी माँ की चूत की ऐसी चाहत लगी कि अगले कई दिनों तक उसने संध्या के साथ मिल कर अपनी माँ को बजा बजा के पेला लेकिन माँ की उमर जवाब दे चुकी थी।
माँ ने एक दिन बोल ही दिया कि अब वो केवल कभी कभी चुदवाया करेंगी लेकिन मोहन ने भी चालाकी दिखा दी- देख माँ! बाक़ी तेरा जब मन करे चुदवा, ना चुदवा… तेरी मर्ज़ी! लेकिन संध्या की माहवारी के दिनों में मेरी मर्ज़ी चलेगी। बोलो मंज़ूर है?
माँ- हओ बेटा, तेरे लाने इत्तो तो करई सकत हूँ। अबे इत्ति बुड्ढी बी नईं भई हूँ के मइना में 3-4 बखत जा ओखल में तुहार मूसल की कुटाई ना झेल सकूँ।
उसके बाद माँ अपने तरफ का दर्पण हमेशा खुला रखतीं थीं और रोज़ बेटे बहु की चुदाई देखती थीं। कभी अगर देर से नींद खुलती तो नहाने के लिए बेटा-बहू के साथ ही चली जातीं थीं। तीनो फव्वारे के नीचे एक साथ नहाते, एक दूसरे को साबुन लगते और नहाते नहाते माँ की चुदाई तो ज़रूर होती ही थी।
इसके अलावा जब भी मन करता तो कभी कभी रात को बेटे के बेडरूम में जाकर खुद भी बेटे से चुदवा आतीं थीं; नहीं तो महीने के उन दिनों में तो मोहन खुद आ जाता और पटक पटक के अपनी माँ की चूत चोदता था। कभी कभी माँ-बेटे की चुदाई देख कर, संध्या माहवारी के टाइम पर भी इतनी गर्म हो जाती कि वो भी आ कर अपनी गांड मरवा लेती थी।
कभी संध्या को बोल दिया जाता कि पंकज का ध्यान रखे और फिर दिन दिहाड़े किचन या बाहर के कमरे में माँ बेटा की चुदाई हो जाती। यह सुविधा संध्या को भी मिलती थी; बस इतना बोलने की ज़रूरत होती थी कि माँ जी ज़रा पंकज का ध्यान रखना, मैं रसोई में चुदा रही हूँ।
जब सब मज़े में चल रहा होता है तो समय भी जैसे पंख लगा कर उड़ने लगता है। पंकज छह साल का हो गया था और प्रमोद और शारदा की बेटी सोनाली दो से ऊपर की थी जब खबर मिली कि शारदा एक बार फिर गर्भवती हो गई है। पिछली बार उसके पेट से होने पर प्रमोद ने संध्या को चोद कर ना केवल खुद बहुत मज़े किये थे बल्कि संध्या ने भी अपनी दो लंडों से चुदाने की इच्छा पूरी कर ली थी।
इसी सबको याद करते करते एक रात मोहन और संध्या पुरानी यादों में खोए हुए थे।
मोहन- उस बार तुमने प्रमोद से माँ के कमरे में जा के चुदाया था ना? तब तो तुमने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन तुम माँ के इतने करीब आ जाओगी।
संध्या- हाँ, तब तो उनके कमरे में चुदवाना ही मुझे बड़े जोखिम का काम लगा था तब क्या पता था कि एक दिन मैं उनको उनके बेटे से ही चुदवा दूँगी और फिर उनके साथ मिल कर चुदाई किया करुँगी।
मोहन- अरे हाँ इस बात से याद आया। तुमको वादा किया था कि अगर तुमने मुझे माँ की चूत दिलवा दी तो जो तू मांगेगी वो दिलवाऊंगा।
संध्या- हाँ कहा तो था लेकिन…
मोहन- लेकिन क्या? तू बोल के तो देख?
संध्या- मेरा तो फिर से दो लौड़ों से एक साथ चुदाने का मन कर रहा है।
मोहन- अरे, इसमें मांगने जैसा क्या है ये तो बिना मांगे मिला था ना जब प्रमोद आया था। हाँ लेकिन अब तो वो आएगा नहीं… देख संध्या, मैं तो बिल्कुल राजी हूँ। तू कहे तो एक बार जा के प्रमोद को मना के लाने की कोशिश भी कर सकता हूँ लेकिन उसका आना मुश्किल है। और तेरे ही भले के लिए मैं नहीं चाहता कि अपन किसी ऐरे-गैरे को अपनी चुदाई में शामिल करें। अब तू ही बता कैसे करना है? तू जो कहेगी मुझे मंज़ूर है।
संध्या- आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी किसी गैर से चुदाना नहीं चाहती। एक अपना है अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो लेकिन उसके पहले मुझे एक राज़ की बात बतानी पड़ेगी।
मोहन- राज़ की बात? मुझे तो लगा तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। सुहागरात पर ही सब सच सच बता दिया था। फिर कौन सी राज़ की बात?
संध्या- सुहागरात पर जो बताया वो सब सच ही था। एक शब्द भी आज तक आपसे झूठ नहीं बोला लेकिन एक बात थी जो बस बताई नहीं थी। आप पहले ही गुस्से में थे और मुझे डर था कि अगर ये बात बता दी तो कहीं आप मुझे छोड़ ही ना दो।
मोहन- तो फिर अब क्यों बता रही हो? अब डर नहीं है? मन भर गया क्या मेरे से?
संध्या- अरे नहीं, अब डर नहीं अब भरोसा है। अब हमारे बीच प्यार इतना गहरा है कि मुझे पता है कुछ नहीं होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि अब मुझे पता है कि आपको यह बात शायद इतनी बुरी ना लगे जितना मैंने सोचा था।
मोहन- अब पहेलियाँ ना बुझाओ! बता भी दो!
संध्या- ठीक है बताती हूँ। जैसा मैंने आपको बताया था कि कामदार को मार-पीट कर भगाने के बाद भैया मुझे समझा रहे थे कि कैसे ये सब ऐसे काम वालों के साथ करने से नाम तो हमारा ही ख़राब होगा ना। मुझे उनकी बात भी समझ आ रही थी लेकिन इस सारे टाइम ना तो मैंने अपने कपड़े वापस पहने थे और ना उन्होंने मुझे पहनने को कहा था।
मुझे भैया की बात से लग रहा था कि उनको मेरी फिकर है और वो मुझे प्यार करते हैं इसलिए नहीं चाहते कि मेरे साथ कुछ गलत हो। इन सब से शायद मन ही मन उनके लिए मेरा विश्वास बढ़ गया और मेरे जो हाथ अब तक मेरी गोलाइयों और इस मुनिया को छिपाने की कोशिश कर रहे थे वो साधारण रूप में आ गए और मैं उनके सामने वैसे ही नंगी बैठी थी।
अचानक मेरा ध्यान गया कि भैया के पजामे में तम्बू बन रहा है। आखिर पप्पू है तो नंगी लड़की देख कर खड़ा तो होगा ही, फिर वो लड़की बहन हो या माँ ही क्यों ना हो? सही बोल रही हूँ ना?
मोहन- हम्म्म… बात तो सही है। मुझे समझ भी आ रहा है कि तुम्हारी कहानी किस तरफ जा रही है लेकिन अब मेरा पप्पू बोल रहा है कि सुन ही लेते हैं पूरी कहानी। आगे सुनाओ!
संध्या- मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने आखिर बोल ही दिया…
संध्या और उसके भाई की कहानी:
संध्या- भैया! मैं कोई उस कामदार से प्यार नहीं करती, मुझे तो ये बाबा की किताबों में जो फोटो हैं ये सब करने का मन किया इसलिए मैंने उसको डरा धमका के बुलाया था। बहुत दिनों से ये सब देख रही हूँ और ये कहानियां पढ़ के काफी कुछ सीखा है। जब अपनी बुर का दाना रगड़ती हूँ तो बड़ा मज़ा आता है। सोचा अगर इसमें इतना मज़ा आता है तो इसके आगे जो करते हैं उसमे कितना मज़ा आता होगा।
सुधीर भैया- ठीक है, तुम्हारी बात भी सही है। मैंने भी ये किताबें पढ़ी हैं और मैं भी ये सब फोटो देख-देख कर मुठ मार चुका हूँ और चाहता तो मैं भी बाबा की तरह किसी काम वाली को चोद सकता था लेकिन मैंने सुना है बहार लोग बाबा के बारे में क्या क्या बातें करते हैं। उनकी तो ज़मीदारी में बात चल गई। लोग राजा समझते हैं तो कम से कम सामने तो सब इज्ज़त करते हैं लेकिन अब हमारी पीढ़ी में ये सब नहीं चलेगा। वो ज़माने गए अब ये सब करेंगे तो कोई हमारी इज्ज़त नहीं करेगा।
संध्या- बात तो भैया आप सही कह रहे हो। लेकिन…
सुधीर- मैं समझ रहा हूँ तू क्या कहना चाह रही है। तुझे ऐतराज़ ना हो तो हम एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
संध्या- आप चोदोगे मुझे?
सुधीर- अरे नहीं ऐसे नहीं। कल को तेरी शादी होगी तो दूल्हा समझ जाएगा कि तू कुंवारी नहीं है। गलती से भी शादी के पहले चुदाई ना कर लेना।
संध्या- फिर कैसे हम एक दूसरे की ठरक ठंडी करेंगे?
सुधीर- हाँ… ठरकी बाप की ठरकी औलादें हैं कुछ तो करना पड़ेगा। मैंने एक फोटो में देखा था लड़के ने लड़की की गुदा में अपना लिङ्ग डाला हुआ था। लड़कियों को शायद वहां भी मज़ा आता होगा। तूने कभी कोशिश की है क्या वहां उंगली करने की?
संध्या- नहीं की… अभी करके देखूं?
सुधीर- रुक, तू पलट के लेट जा मैं करता हूँ।
संध्या पेट के बल लेट गई और सुधीर ने अपनी छोटी बहन के दोनों पुन्दे अलग करके गुदा का छेद चौड़ा किया फिर उसके बीच में अपने मुँह की थोड़ी लार टपका दी। फिर धीरे से नितम्बों वो वापस ढीला छोड़ दिया और उनके साथ दोनों हाथों से खेलने लगा। वो पहले दोनों तरफ से उनको दबाता फिर छोड़ देता और उन्हें खुद-ब-खुद हिलते हुए देखता। थोड़ी देर बाद उसने फिर दोनों नितम्बों को अलग करके पीछे वाले छेद में थोड़ी लार टपकाई और फिर धीरे से बंद करके खेलने लगा।
संध्या- ये क्या कर रहे हो भैया? डालो ना उंगली!
सुधीर- अरी मेरी भोली बहन! चूत तो तेरी इतनी गीली हो रही है। अब गांड तो अपने आप गीली नहीं होगी ना। उसको अन्दर तक गीली करने के लिए ये सब किया है। अब डालता हूँ उंगली।
सुधीर ने अपनी उंगली अपने मुख में डाल कर अच्छी तरह से लार में भीगा कर गीली की और जैसे ही अपनी बहन की गांड के छेद पर रखी, गांड सिकुड़ के कस गई। सुधीर ने अपने दूसरे हाथ से संध्या के नितम्बों से पीठ तक सहलाया और उसे अपनी गांड ढीली छोड़ने को कहा। जब वो ढीली हुई तो सुधीर ने उंगली घुसाई लेकिन अभी बस नाखून जितनी उंगली अन्दर गई थी कि गांड फिर सिकुड़ गई। सुधीर ने धीरज से फिर इंतज़ार किया और आखिर 2-3 बार कोशिश करने के बाद पूरी उंगली अन्दर गई। फिर ऐसे ही धीरे धीरे करके उसने उसे अन्दर बाहर करना शुरू किया और साथ में अपनी बहन के पुन्दे मसलता रहा।
सुधीर- मज़ा आ रहा है क्या?
संध्या- मज़ा तो आ रहा है। थोड़ा अलग तरह का है लेकिन कुछ कुछ चूत में उंगली करने जैसा भी लग रहा है।
सुधीर- ठीक है फिर हम यही किया करेंगे। लेकिन अभी तो इसमें उंगली ही बड़ी मुश्किल से जा रही है लंड कैसे जाएगा? कुछ सोचना पड़ेगा। आज इसे छोड़ के बाकी तू जो चाहे सब कर लेते हैं।
संध्या- बाकी सब बाद में कर लेंगे कोई बात नहीं लेकिन अभी कपड़े उतार के नंगे तो हो। शर्म नहीं आती नंगी बहन के सामने पूरे कपड़े पहन कर खड़े हो! जल्दी उतारो मुझे बड़ा प्यार आ रहा है आप पर, अपने नंगे भाई को गले लगाने का मन कर रहा है।
फिर जैसे ही सुधीर नंगा हुआ संध्या उस से ऐसे चिपक गई जैसे बन्दर का बच्चा बंदरिया को कस के पकड़कर चिपका रहता है। उस दिन पहले तो दोनों भाई बहन ने बहुत साड़ी नंगी मस्ती की फिर अलग अलग तरह के चुम्बन और आलिंगन जो उन किताबों में बताए थे वो सब करके देखे। आखिरी में भाई ने बहन की चूत और बहन ने भाई का लंड चूस कर एक दूसरे को झड़ाया। अगले दिन सुधीर गाँव के बढ़ई से एक कंगूरे जैसा कुछ बनवा लाया।
बढ़ई को तो उसने यही कहा था कि पलंग का कंगूरा टूट गया है तो बना दो लेकिन सच तो कुछ और ही था। शहर जा कर वो एनिमा लगाने का सामान भी ले आया था।
उस रात सुधीर ने वो लकड़ी का कंगूरा एक घी के डब्बे में डुबो कर रख दिया। उस रात दोनों भाई बहन साथ ही सोये और उन्होंने नंगे-पुंगे काफी मस्ती की चुदाई नहीं की। अभी घर वालों को शादी से वापस आने में 2-3 दिन और बाकी थे।
अगली सुबह संध्या जब संडास से वापस आई तो सुधीर ने उसे एनिमा लगाया और जब उसका मलाशय पूरा साफ़ हो गया तो उसी एनिमा की नली से उसकी गुदा में ४-६ बड़े चम्मच घी अन्दर डाल दिया और फिर घी में रात भर से डूबा हुआ वो लकड़ी का कंगूरा उसके गुदाद्वार पर रख कर दबाया तो फिर वही सिकुड़ने वाली समस्या सामने आई लेकिन ये सुधीर ने लकड़ी का खिलौना बनवाया था इसमें ३ कंगूरे थे सबसे छोटा, मंझोला और फिर सबसे बड़ा और उसके बाद चपटा था जो अन्दर नहीं जा सकता था। धीरे धीरे करके सुधीर ने तीनों कंगूरे संध्या की गांड में डाल दिए। पर्याप्त मात्रा में घी होने की वजह से ज्यादा दर्द नहीं हुआ।
उसके बाद संध्या अपने रसोई के काम में लग गई। शुरू शुरू में खिनचाव के कारण पिछाड़ी में थोड़ा दर्द था लेकिन धीरे धीरे वो काम काज में सब भूल गई और दो तीन घंटे में दर्द ख़त्म भी हो गया।
दोपहर में दोनों ने हल्का फुल्का ही खाना खाया और उसके बाद बेडरूम का दरवाज़ा बंद करके दोनों भाई-बहन अपनी उस अवस्था में आ गए जैसा ऊपर वाले ने उन्हें इस दुनिया में भेजा था।
नंगी संध्या बिस्तर पर पलटी मार के लेट सुधीर उसकी जाँघों के दोनों और अपने पैर घुटनों के बल टिका कर बैठ गया। उसका लंड उसकी नंगी बहन की खूबसूरती को सलाम ठोक रहा था। सुधीर ने उस लकड़ी के चपटे हिस्से को पकड़ कर धीरे धीरे खींचना शुरू किया। पहला कंगूरा निकलने में थोड़ी मुश्किल हुई क्योंकि ये सबसे बड़ा था। थोड़ा दर्द भी हुआ लेकिन बीच वाला कंगूरा बिना किसी दर्द के निकल गया और छोटा वाला तो पता ही नहीं चला कि कब निकल गया।
सुधीर ने बिना समय गंवाए अपने लंड पर थूक लगाया और संध्या की गांड में डाल दिया। पर ये क्या उसके लंड का मुंड ही अन्दर गया था और संध्या की गांड ने उसे कस कर पकड़ लिया। दरअसल अभी जो कंगूरे निकाले थे उनके निकलने की अनुभूति अलग थी और कोई भी गांड किसी वास्तु को निकालने में तो अभ्यस्थ होती है लेकिन अन्दर लेने के लिए नहीं … इसलिए ऐसा हुआ था।
खैर सुधीर भी अपने नाम को सार्थक करने वाला व्यक्ति था उसने धीरज रखी और थोड़ी देर बाद जब गांड ढीली पड़ी तब धीरे धीरे लंड अन्दर डाला।
हालाँकि घी ने संध्या की गांड काफी नरम और चिकनी कर दी थी और इतनी देर उस लकड़ी के डुच्चे की वजह से भी कुछ फर्क पड़ा था। आखिर लंड पूरा अन्दर गया और फिर सुधीर ने अपनी बहन की गांड मारनी शुरू की। कुछ देर तक लेटे-लेटे गांड मराने के बाद संध्या घोड़ी बन गई और फिर सुधीर ने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों से मसलते हुए पकड़ा और संध्या को ऊपर खींच लिया अब संध्या भी घुटनों के बल खड़ी थी और सुधीर पीछे से उसके उरोजों को मसलते हुए उसके साथ गुदा-मैथुन कर रहा था।
संध्या के हाथ ऊपर उठे हुए थे और वो अपने पीछे खड़े अपने भाई के सर को अपनी ओर खींच रहे थे। इस अवस्था ने दोनों होंठों से होंठ जोड़ का चुम्बन भी कर रहे थे।
तभी सुधीर ने अपना एक हाथ संध्या के स्तन से हटा कर उसकी योनि की तरफ बढ़ाया। जैसे ही सुधीर ने अपनी बहन की चूत का दाना छुआ, संध्या ऊह-आह की आवाजें निकालने लगी। और जब सुधीर ने उसे मसलना और रगड़ना शुरू किया तो संध्या पगला गई और कुछ तो भी बड़बड़ाने लगी।
संध्या- ऊऽऽऽह… आऽऽऽह… सुधीर… सुधीर… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मज़ा आ रहा है सुधीर… और करो… मस्त चोद रहे हो यार…
यह पहली बार था जब उसने अपने भाई को नाम से बुलाया था लेकिन वो अपने आपे में नहीं थी।
जल्दी ही दोनों भाई बहन झड़ने लगे। सुधीर ने अपना सारा वीर्य संध्या की गांड में ही छोड़ दिया जो इतनी कस गई थी कि सुधीर का ढीला पड़ा लंड भी आसानी से नहीं निकल पाया। उसने कोशिश भी नहीं की और दोनों एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े और काफी समय तक वैसे ही पड़े रहे।
इस तरह संध्या ने पहली बार अपने ही भाई से गांड मराई। उसके बाद वो अक्सर अपने भाई के साथ कामक्रीड़ा करती लेकिन हमेशा गुदा या मुख मैथुन ही होता था। कभी उसके भाई ने उसे चोदा नहीं था। गांड मराई के अवसर भी परिवार के साथ होने के कारण कम ही मिल पाते थे लेकिन लंड चूसने का काम तो हर एक दो दिन में हो ही जाता था। घर का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जिसमें उसने अपने भाई का लंड नहीं चूसा हो।
मोहन ने सपने भी नहीं सोचा था कि संध्या ने इतना बड़ा राज़ उस से छिपाया था। क्या मोहन संध्या से खफा हो जाएगा या उसे उसके भाई से पहली बार चुदवाने के लिए इजाज़त दे देगा? ये हम देखेंगे अगले भाग में।
दोस्तो, भाई बहन के सेक्स आनन्द से भरपूर मेरी कहानी का यह भाग आपको कैसी लगा? बताने के लिए मुझे यहाँ मेल करें!
[email protected]
आपके प्रोत्साहन से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है।
#वसन #क #पख10 #Bhai #Bahan #Sex #Kahani