विज्ञान से चूत चुदाई ज्ञान तक-33
दीपक- अरे मेरी जानेमन तेरे लिए तो मैंने ये सब खेल खेला है.. अपनी बहन तक को चोद दिया.. तू क्यों तड़फ रही है.. आ जा ले तू ही चूस कर खड़ा कर दे इसे।
दीपाली- नहीं पहले जाकर इसे धोकर आओ.. इस पर खून लगा है।
दीपक जल्दी से बाथरूम गया और लौड़े को धोकर वापस आ गया।
प्रिया अब वैसे ही पड़ी दर्द के मारे सिसक रही थी.. दरअसल दर्द से ज़्यादा वो दीपक की बातों से दुखी थी।
दीपाली- आजा मेरे राजा.. जल्दी से लौड़ा मेरे मुँह में दे दे.. अब देर मत कर.. मुझे वापस घर भी जाना है और प्रिया को भी एक बार और चोदना है तुझे.. तभी इसका दर्द कम होगा.. देख कैसे चुपचाप पड़ी है।
प्रिया- नहीं दीपाली.. आहह… मुझे अब इससे नहीं चुदना.. मैंने बहुत बड़ी ग़लती की.. जो इस बेदर्द से प्यार कर बैठी।
दीपक- ओह्ह.. मेरी बहना इतनी उदास क्यों हो गई तू.. सॉरी यार मैंने बस ऐसे ही गुस्से में कह दिया था.. सॉरी कान पकड़ता हूँ यार…
प्रिया- नहीं भाई आपको कान पकड़ने की कोई जरूरत नहीं.. ग़लती मेरी है जो आपके बारे में ऐसा सोच बैठी।
दीपाली- अरे यार बात बाद में कर लेना.. पहले मुझे तो चोद ले।
दीपक- नहीं दीपाली तुझे देर हो रही है ना.. तू जा आज मैं अपनी प्यारी बहन को दिल खोल कर चोदूँगा और तुझे भी बड़े आराम से फ़ुर्सत से चोदना चाहता हूँ.. जो आज होगा नहीं.. कल रविवार है कल आराम से तेरी चूत और गाण्ड मारूँगा.. आज मेरी बहन को खुश कर दूँ.. मैंने बड़ी ज़्यादती की है इसके साथ.. अब इसको भरपूर प्यार देना चाहता हूँ।
दीपाली- ओह.. रियली.. मैं बहुत खुश हूँ कि तुमने प्रिया के बारे में कुछ तो सोचा.. मगर अफ़सोस भी है कि तुम रात-दिन मुझे चोदने के लिए बेताब थे.. अब ना कह रहे हो.. ये बात समझ में नहीं आई…
दीपक- मैंने आज तक चूत का सपना देखा था.. आज जब मिली भी तो मेरी बहन की मिली और मैंने उसको क्या से क्या बोल दिया.. अब जब पानी निकला है तो दिमाग़ सुकून में आया.. अब सोचता हूँ.. तुमको तो बाद में चोद लूँगा.. अभी प्रिया को इसके हिस्से की ख़ुशी दे दूँ।
दीपाली- बहुत अच्छी सोच है.. ओके.. अब मैं जाती हूँ लेकिन प्लीज़ अपने दोस्तों को अभी मत बताना कि आज क्या हुआ.. इसमें प्रिया की भी बदनामी होगी।
दीपक- नहीं.. मैं किसी को नहीं बताऊँगा.. प्लीज़ तुम भी इस राज़ को राज़ ही रखना वरना मेरा क्या है.. प्रिया का जीना मुश्किल हो जाएगा।
दीपाली- मैं किसी को नहीं बताऊँगी ओके.. एंजाय करो और हाँ याद से घर लॉक कर देना और आधी रात के करीब इसका मलिक वापस आ जाएगा तो अच्छे से सब ठीक करके जाना.. चाबी प्रिया को दे देना.. मैं इससे कल ले लूँगी।
प्रिया- ओके दीपाली.. थैंक्स तुमने आज जो किया उसको मैं जिन्दगी में नहीं भूल पाऊँगी और भाई अब आपसे भी कोई शिकायत नहीं.. आपने मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखा ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
दीपाली अपने कपड़े पहन कर चली जाती है। हाँ जाने के पहले वो दीपक के लौड़े को चूम कर जाती है। दीपक बड़ा खुश हो जाता है। उसके जाने के बाद दीपक बिस्तर पर प्रिया के पास लेट जाता है और उसके चूचे सहलाने लगता है।
दीपक- प्रिया वाकयी तू लाजवाब है.. तेरे चूचे बहुत मस्त हैं सच.. बता तूने उस रात और क्या-क्या किया था.. मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा तूने मेरा लौड़ा चूस कर पानी निकाला था।
प्रिया- हाँ भाई सब सच है, मैं तो नंगी होकर आपके पास सोने वाली थी.. मगर माँ उठ गई थीं और मुझे वहाँ से भागना पड़ा।
दीपक- अच्छा ये बात है.. उस दिन ना सही.. आज तो नंगी मेरे पास है ना…
प्रिया- हाँ भाई.. आप सही कह रहे हो।
दीपक- अच्छा ये तो बता ये दीपाली किस के पास चुदने जाती है? कौन है वो जिसने इसको पहली बार चोदा था?
प्रिया- व्व..वो भाई मुझे उसका नाम नहीं पता ब..बस इतना दीपाली ने बताया कि उसका फ्रेंड है।
दीपक- देख सच-सच बता.. मैं किसी को नहीं बताऊँगा.. मुझे पता है तू जानती है कि वो कौन है?
इस बार दीपक की आँखों में गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था.. मगर प्रिया भी पक्की खिलाड़ी निकली उसने बड़ी सफ़ाई से उसको झूठ बोल दिया कि दीपाली ने खुद उसे बताया था कि कोई लड़का है.. नाम नहीं बताया.. उसने कसम खाली तो दीपक को यकीन हो गया।
दीपक- चल होगा कोई भी.. हम क्यों अपना वक्त खराब करें.. ला तेरी चूत दिखा.. मैंने बहुत ठोका ना.. सूज गई होगी.. अब जीभ से चाट कर आराम देता हूँ.. तू भी मेरे लौड़े को चूस कर मज़ा ले।
दोनों 69 के आसन में आ गए और एक-दूसरे को मज़ा देने लगे।
दोस्तों इनको थोड़ा चटम-चटाई करने दो… तब तक हम दीपाली के पास चलते हैं। वो कहाँ गई आख़िर इस कहानी की मेन किरदार वही है.. उसके बारे में जानना ज़रूरी है।
दीपाली वहाँ से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी। रास्ते में एक भिखारी भीख माँग रहा था.. उसकी उम्र कोई लगभग 35 साल के आस-पास होगी।
वो हट्टा-कट्टा 6 फुट का था.. मगर वो अँधा था..
मित्रों.. अपनी दीपाली को क्या अब भिखारी से भी चुदाना था..? अब आप कहोगे अँधा था ये कैसे पता तो आप खुद देख लो।
भिखारी- कोई इस अंधे गरीब की मदद कर दो है.. कोई देने वाला अंधे को देगा.. दुआ मिलेगी।
वो बस ऐसे ही बोलता हुआ आगे जा रहा था.. उसने एक फटा पुराना कच्छा और बनियान पहन रखी थी और उस फटे कच्छे में से उस भिखारी के लौड़े की टोपी बाहर को निकल रही थी।
दीपाली की नज़र जब उस पर गई उसकी आँखें फट गईं क्योंकि वो टोपी बहुत चौड़ी थी.. हालांकि उस भिखारी का लौड़ा सोया हुआ था मगर कच्छे में ऐसे लटका हुआ था जैसे कोई खंजर लटका हो।
दीपाली कुछ देर तक उसको देखती रही वो कुछ सोचने लगी और वो बन्दा माँगते-माँगते आगे बढ़ गया।
दीपाली भी अपने घर चली गई।
अपने कमरे में जाकर उसने कपड़े बदले और एक नाईटी पहन ली तभी उसकी माँ ने उसे आवाज़ दी।
दीपाली बाहर गई और अपनी माँ से पूछा- क्या बात है?
दोस्तो, आप सोच रहे होंगे कि कहानी इतनी आगे बढ़ गई मगर अब तक मैंने दीपाली की माँ और उसके पापा के बारे में आपको नहीं बताया तो आज बताती हूँ.. वैसे इन दोनों का कहानी में कोई रोल नहीं है इसलिए मैंने इनके बारे में नहीं लिखा.. मगर कुछ दोस्त जानना चाहते हैं तो उनके लिए बता देती हूँ।
दीपाली के पापा अनिल सिंह सरकारी ठेके लेते हैं.. जैसे कोई सरकारी बिल्डिंग बनानी हो या कोई सड़क वगैरह.. तो बस इन कामों में वो बहुत बिज़ी रहते हैं, रात को देर से घर आते हैं कई बार तो रात को आते ही नहीं हैं।
दीपाली की शिकायत होती है कि कई-कई दिनों तक वो पापा से बात भी नहीं कर पाती और उसकी माँ सुशीला एक सीधी-साधी घरेलू औरत हैं घर-परिवार में बिज़ी रहती हैं। एक ही बेटी होने के कारण दीपाली को कोई कुछ नहीं कहता है।
सुशीला- बेटी तूने कपड़े क्यों बदल लिए.. हमें बाहर जाना था।
दीपाली- इस वक़्त कहाँ जाना है?
सुशीला- अरे वो अनिता की कल बहुत तबीयत बिगड़ गई थी उसको रात अस्पताल ले गए हैं.. वहाँ उसको भर्ती कर लिया गया है.. अब मेरी इतनी खास दोस्त है वो..
अगर मैं नहीं जाऊँगी तो बुरा लगेगा ना…
दीपाली- ओह.. आंटी के पास आप का जाना जरूरी है.. मगर मैं वहाँ क्या करूँगी.. दो दिन बाद इम्तिहान हैं.. मैं यही रहकर पढ़ाई करती हूँ।
सुशीला- अरे नहीं बेटी तेरे पापा का फ़ोन आया था.. वो आज नहीं आने वाले हैं और हॉस्पिटल भी काफ़ी दूर है.. आने-जाने में ही एक घंटा लग जाएगा.. अब उसके पास जाऊँगी तो एकाध घंटा वहाँ बैठना भी पड़ेगा ना.. तू इतनी देर अकेली क्या करेगी यहाँ.. तुझे अकेली छोड़ कर जाने का मेरा मन नहीं मान रहा है।
दीपाली- नहीं माँ.. प्लीज़ आप जाओ ना…
सुशीला- अरे आते समय बाजार से सामान भी लेते आएँगे.. खाना मैंने बना दिया है.. आकर सीधे खा कर सो जाएँगे चल ना…
दीपाली- माँ आप बेफिकर होकर जाओ और आराम से आओ मुझे कुछ नहीं होगा.. आप बिना वजह डरती हैं।
सुशीला- बड़ी ज़िद्दी है.. अच्छा तुझे भूख लगे तो खाना खा लेना.. मुझे आने में देर हो जाएगी.. दरवाजा बन्द रखना.. ठीक है।
दीपाली ने अपनी माँ को समझा कर भेज दिया और खुद कमरे में जाकर बिस्तर पर बैठ कर दीपक के लौड़े के बारे में सोचने लगी।
अरे.. अरे.. दोस्तों आप भी ना याद ही नहीं दिलाते कि दीपाली के चक्कर में हम दीपक और प्रिया को तो भूल ही गए।
चलो वापस पीछे चलते हैं..
दीपाली के घर से निकलने के बाद उन दोनों ने क्या किया.. वो तो देख लिया जाए।
वो दोनों एक-दूसरे की चूत और लौड़े के मज़े ले रहे थे कोई दस मिनट बाद दोनों गर्म हो गए।
प्रिया ने लौड़ा मुँह से निकाल दिया।
प्रिया- आ आहह.. भाई चाटो.. मज़ा आ रहा है.. उई आराम से भाई.. अपने अपने मोटे मूसल से मेरी छोटी सी चूत का हाल बिगाड़ दिया है.. सूज गई है आहह.. आई.. आराम से…
दीपक- बस बहना अब लौड़ा आग उगलने लगा है.. चल अब तेरी चूत को दोबारा चोदता हूँ मगर अबकी बार प्यार से चोदूँगा। तू ऐसा कर कुतिया बन जा.. मज़ा आएगा।
प्रिया- हा हा हा भाई कुतिया नहीं घोड़ी बनती हूँ।
दीपक- अब मैं कुत्ता हूँ तो तुझे कुतिया ही बनाऊँगा ना.. अब भला कुत्ता घोड़ी कैसे चोदेगा..
प्रिया- भाई आप अपने आप को कुत्ता क्यों बोल रहे हो?
दीपक- अरे यार बन जा ना.. क्या फरक पड़ता है.. घोड़ी बोल या कुतिया.. बनना तो जानवर ही है ना.. समझी…
प्रिया कुतिया बन जाती है.. पैरों को ज़्यादा चौड़ा कर लेती है जिससे उसकी चूत का मुँह खुल जाता है।
दीपक लौड़े पर थूक लगा कर टोपी चूत पर टीका देता है और आराम से अन्दर डालने लगता है।
प्रिया- आहह.. उ भाई आहह.. हाँ ऐसे ही धीरे आहह.. धीरे.. पूरा आ आहह.. घुसा दो आहह.. मेरी चूत कब से तड़फ रही है आहह..
दीपक- डर मत मेरी बहना.. अबकी बार बड़ी शालीनता से लौड़ा घुसाऊँगा.. तुझे पता भी नहीं चलेगा.. आज तेरी चूत को चोद-चोद कर ढीला कर दूँगा। उसके बाद तो रोज तुझे चोदूँगा.. आहह.. क्या कसी हुई चूत है तेरी आहह.. बहना.. चुदवाओगी क्या रोज मुझसे.. आहह.. मज़ा आ गया।
बस दोस्तो, आज के लिए इतना काफ़ी है। अब आप जल्दी से मेल करके बताओ कि मज़ा आ रहा है या नहीं.! क्या आप जानना नहीं चाहते कि आगे क्या हुआ ..?
तो पढ़ते रहिए और आनन्द लेते रहिए..
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