शहरी लंड की प्यास गांव की भाभी ने बुझायी
दोस्तो नमस्कार! मैं राज शर्मा चंडीगढ़ से! एक बार फिर आप सभी के सामने अपनी एक नई कहानी को लेकर हाजिर हूं। आप सभी ने मेरी पिछली कहानियां पढ़ कर मुझे बहुत मेल व सुझाव दिए, उसके लिए आप सभी का धन्यवाद।
मुझसे जुड़ने वाले दोस्तों सभी गर्म आंटियों व भाभियों के द्वारा इतना प्यार देने के लिए दिल से शुक्रिया। दोस्तो, जिन्होंने मेरी पिछली कहानियों को नहीं पढ़ा वो अंतर्वासना सेक्स स्टोरीज पर मेरी पिछली कहानियां जरूर पढ़ें।
मैं सेक्सी कहानियां लिखने का व सेक्स करने का बहुत ज्यादा शौकीन हूँ। एक रात भी मेरी ऐसी नहीं होती जब मैं बिना लण्ड का पानी निकाले सोता हूं. चाहे मुझे अपने हाथों से ही मुट्ठ ही क्यों न मारनी पड़े। लण्ड तो मेरा हर समय, हर जगह खड़ा ही रहता है। मगर अपने लंड की प्यास तो रात को ही बुझा पाता हूं।
बहुत दिनों से मेरे लण्ड को चूत के दर्शन नहीं हुए थे, तो मैंने सोचा कि चंडीगढ़ में तो किसी भी लड़की, आंटी और भाभियों की चूतों को मेरी जरूरत ही नहीं है। शायद सबकी चूतें शांत होंगी. खाली यहां एक मेरा ही लण्ड फड़क रहा है। क्यों न गांव घूम कर आया जाए? शायद कोई भाभी ही गांव में अपनी चूत की सैर करवा दे। यह सोच कर मैं पांच दिन की छुट्टी लेकर गांव के लिए निकल गया।
मेरा पहला दिन तो आराम करने में ही बीता. सफर की थकान जो निकालनी थी। दूसरे दिन जब सुबह उठा तो जल्दी से नहा-धो कर आस पास के घरों में मिलने जा पहुँचा। कुछ घरों में गांव वालों से मिलने के बाद एक घर मे पहुंचा. वहां एक भैया-भाभी अपने बच्चों के साथ रहते थे।
आंगन में पहुंचने के बाद मैंने भाई को आवाज लगाई तो भाभी ने जवाब दिया- देवर जी अभी घर में कोई नहीं है इस वक्त. मैं यहां हूं गुसलखाने में।
मुझे अंदाजा हो गया कि भाभी वहां कपड़े धो रही थी। गुसलखाने से फट-फट कपड़े जमीन पर लगने की आवाज आ रही थी.
मैंने कहा- भाभी वहीं आ जाऊं क्या मिलने?
“हां जी, आ जाओ.” भाभी ने पलट कर जवाब दिया.
मैं वहां पहुँचा, मैंने भाभी को नमस्ते की तो देखा भाभी दरवाजा खोल कर कपड़े धो रही थी। उनका पल्लू नीचे खिसक गया था औऱ उनकी चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ अच्छी लग रही थीं। मेरी नजर तो वहां से हट ही नहीं रही थी। भाभी बड़ी मस्त माल लग रही थी।
उनके हाथ कपड़ों पर ऊपर नीचे चलने के कारण उनकी चूचियाँ भी ऊपर नीचे हो रही थी। मेरी नजर तो वहां से हिलने का नाम ही नहीं ले रही थी। भाभी ने मुझे उनकी चूचियाँ घूरते देख लिया।
“देवर जी ध्यान कहाँ है, क्या देख रहे हो”? भाभी ने मेरे मन को टटोलने के इरादे से पूछा.
मैंने कहा- भाभी आज बहुत दिनों बाद नींबू देखे हैं, उन्हें चूसने का दिल कर रहा है।
भाभी मुस्कुराने लगी। भाभी भी मुझ से मजे लेने लगी।
बोली- देवर जी, नींबू का पेड़ भाई साहब का है। उन से पूछ लो और नींबू चूस लो।
मैं- ना जी, हम तो पेड़ से ही पूछेंगे। वो अपने नींबू चुसवायेगी या नहीं।
जब मैं छोटा था तो उन भाभी के घर पर ही रहता था। बहुत बार मैंने उन्हें किस भी किया था और उनके मम्में भी दबाये थे. लेकिन ये सब बहुत पहले की बात थी। आज तो मैं एक लण्ड धारी, चूत का पुजारी बन चुका था।
थोड़ी देर के हँसी मजाक के बाद उनके कपड़े धुल गए।
वो बोली- आपके भाई साहब तो बाजार गए हैं और अभी बच्चे भी स्कूल चले गए हैं। सभी से बाद में आकर मिल लेना। चलो अब मैं नहाने जा रही हूँ।
मैंने कहा- भाभी मैं नहला दूं क्या? आप भी क्या याद रखोगी, देवर ने नहलाया है।
वो बोली- नहीं, तुम बड़े बेशरम हो गए हो; अभी जाओ यहाँ से।
मैंने कहा- अच्छा चलो तुम नहा लो, फिर बातें करेंगे। अभी सभी लोग व्यस्त हैं, कोई भी घर पर नहीं है। बोर हो जाऊंगा मैं. आप से ही बातें कर लेंगे।
भाभी ने कहा- ठीक है, फिर तुम बैठो. मैं नहाकर आती हूं।
मैं बाथरूम के सामने ही कुर्सी लगा कर बैठ गया।
भाभी- अरे यहां क्यों बैठे हो? बरामदे में बैठो न?
मैंने कहा- भाभी आप नहा लो न। नहलाने तो आप दे नहीं रही हो। तुम्हें नहाते हुए ही देख लूं।
“हट बेशर्म!” भाभी ने झेंपते हुए जवाब दिया।
मैं- भाभी प्लीज़, बहुत दिन हो गए हैं किसी को नहाते हुए नहीं देखा। तुमसे दूर तो बैठा हूँ. प्लीज मजे लेने दो न मुझे।
भाभी- अरे जाओ … कोई देख लेगा तो मेरी बड़ी बदनामी होगी।
मैं- अरे भाभी जी अभी कौन सा कोई है घर में या आस-पास? भाई भी 3 घंटे बाद ही आएंगे। बच्चे तो शाम से पहले आते नहीं। आप नहाओ न, कोई नहीं आता।
थोड़ी देर मनाने के बाद भाभी मान गयी। उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू किए। साड़ी और ब्लाऊज उतार कर अलग किया. फिर ब्रा-पेंटी भी उतार दी. लेकिन उससे पहले उन्होंने अपने पेटीकोट को अपनी चूचियों पर ले जाकर बांध लिया। ये सब करते समय उनकी पीठ मेरी तरफ थी. फिर भाभी नहाने लगी।
मैंने कहा- भाभी मेरी तरफ देख कर नहाओ, ऐसे तो बिल्कुल भी देखने में मजा नहीं आ रहा है।
वो मुस्कराते हुए मेरी तरफ मुड़ गयी और अपने जिस्म पर साबुन लगाने लगी।
मैंने कहा- भाभी मैं लगा दूँ क्या?
वो बोली- नहीं बस सामने से देखते रहो. मैं खुद लगा लूंगी।
उन्होंने अपने ऊपर पानी डालते हुए कहा।
मैंने कहा- भाभी सामने से कुछ भी दिख कहां रहा है? सब तो पेटिकोट में छिपा है।
वो बोली- हट बेशर्म, ऐसे ही देखना है तो देखो, वरना जाओ।
वो फिर नहाने लगी। मुझे उन्हें देखने में मजा आ रहा था। अब तो उनका पेटिकोट भी पूरा भीग चुका था। उनकी चूचियों व चूतड़ों की शेप साफ नजर आ रही थी। धीरे-धीरे मेरा लण्ड खड़ा होने लगा। मैं उसे पाजामे के ऊपर से ही सहलाने लगा।
मैं- भाभी सभी जगह साबुन लगा कर खूब रगड़ो, नहीं तो कुछ जगह गंदी रह जायेगी।
भाभी- क्या मतलब है तुम्हारा?
मैंने कहा- भाभी जहां पेटिकोट बांधा है उन नींबुओं पर और पेटिकोट के अंदर भी हाथ मार लो। अगर तुमसे नहीं हो रहा है तो मैं आ जाता हूँ।
भाभी ने नजरें नीचे किये हुए मेरी तरफ देखा. मेरा हाथ मेरे लंड पर चल रहा था. मैं देख रहा था कि उन्होंने मुझे लण्ड सहलाते हुए देख लिया।
वो बोली- नहीं मैं खुद कर लूंगी. ज्यादा होशियारी न दिखाओ।
अब भाभी दूसरी तरफ घूम कर पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर साबुन लगाने लगी। अब मेरी तरफ उनकी गांड आ गयी। गीले कपड़े में भीगी हुई भाभी की मोटी गांड साफ-साफ दिख रही थी। क्या मस्त गांड थी उनकी. अब मुझ से सहन नहीं हो पा रहा था.
लण्ड अब मेरे कंट्रोल में नहीं था। वो झुक कर अपनी चूत में साबुन लगाने में मस्त थी। मैं चुपके से अंदर घुस गया। साथ में पाजामा और अंडरवियर भी उतार लिए। वो तो झुकी हुई थी और पीछे से मैंने अपना लण्ड उनकी उभरी गांड पर टिका दिया।
वो अचानक से हुई मेरी इस हरकत से घबरा गई और मेरी तरफ घूमी. मुझे अंदर पाकर बोली- अंदर क्यों आ गए! जल्दी निकलो बाहर। अगर किसी को पता चल गया तो बड़ी बदनामी हो जाएगी। मेरी ही गलती थी जो मैंने तुम्हारे सामने नहाने को हां कह दी थी।
मैं- भाभी आपकी इतनी मस्त गांड देखकर रहा नहीं गया। देखो मेरा ये औजार कैसे खड़ा हो गया है। वैसे भी अभी किसी के आने का डर नहीं है। कोई नहीं आएगा। बस मजे लो और मुझे भी जरा मजा लेने दो।
वो बोली- नहीं-नहीं, निकलो यहां से.
मगर भाभी की नजर मेरे लण्ड पर ही थी। मैंने उन्हें चूमना शुरू कर दिया। अपना लण्ड जबरदस्ती उनके हाथों में दे दिया और खुद उनकी चूचियाँ दबाने लगा। थोड़ी सी ना नुकर के बाद वो ढीली पड़ गयीं और मेरे चूमने का मजा लेने लगी। मैंने भी मौका देख कर पेटिकोट का नाड़ा खींच डाला। उनका पेटिकोट एक ही झटके में नीचे गिर गया।
उन्होंने उसे गिरने से रोकने की एक असफल कोशिश की पर नाकाम रहीं। अब वो नंगी मेरे सामने खड़ी थी। मैंने फटाफट गुसलखाने का दरवाजा बन्द किया और लाइट जला ली।
भाभी का नग्न जिस्म देखते ही लण्ड का और बुरा हाल हो गया। मैं उनके होंठ चूसते हुए चूचियाँ सहलाने लगा। वो मेरे लण्ड पर हाथ चला रही थी।
मैंने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उनकी चूत सहलानी शुरु की। अब चूत पानी छोड़ने लगी तो मैं उसमे उंगली करने लगा। चूत तो गीली थी ही. मेरे उंगली करने से भाभी का भी बुरा हाल हो गया।
उन्होंने मुझे कस कर पकड़ लिया औऱ बोली- देवर जी, तुमने मुझे बहका दिया अब और मत तड़पाओ और डाल दो अपना ये गर्म हथियार मेरी चूत में। अब सहन नहीं होता।
मैंने भाभी को घुमा कर झुका लिया. वो कुतिया बन कर मेरे सामने झुकी थी। मैं भी ज्यादा ही उत्तेजित था तो लण्ड उनकी चूत पर रगड़ने लगा। जैसे ही वो उनके ही पानी से गीला हुआ भाभी ने खुद लण्ड पकड़कर अपनी चूत के मुंह पर रख दिया और कमर को पीछे की ओर लाने लगी ताकि लण्ड उनकी चूत के अंदर घुस सके।
अब दोनों का एक जैसा हाल था। मैंने भी उनकी कमर को पकड़ा और एक ही झटके में उनकी चूत में अपने लण्ड को पूरा उतार दिया। उनकी उम्म्ह… अहह… हय… याह… निकल गयी।
बस फिर अब क्या था. मैंने दोनों हाथों से उनकी चूचियाँ मसलनी शुरू की और दनादन धक्के देने लगा। बहुत दिनों बाद चूत में लण्ड जा रहा था तो बड़ा मजा आ रहा था। चंडीगढ़ जाने के बाद तो मेरे लिए जैसे चूत का अकाल ही पड़ गया था। वहां की सारी कसर मैं अभी भाभी की चूत में निकाल रहा था।
भाभी की चूचियों को पकड़ पर भींचते हुए मैं अपने लंड को भीगी हुई गीली भाभी की चूत में पेलने लगा. मेरे मुंह से कामुक सीत्कार फूटने लगे. बहुत दिनों के बाद ऐसी देसी चूत की चुदाई करने का मौका मिला था. गांव की चूतों को चोदने का मजा ही कुछ और होता है दोस्तो.
मैं भीगी हुई सेक्सी भाभी की चूत में पेलम-पेल कर रहा था. गीली चूत होने के कारण फच्च-फच्च की आवाज निकल रही थी जो मेरी वासना को और ज्यादा बढ़ा रही थी.
इतनी मस्त भाभी की गीली चूत की चुदाई करने के कारण मैं भी भला कब तक अपने लंड पर काबू रख पाता. मन तो कर रहा था कि भाभी को काफी देर तक जम कर चोदूँ मगर चूत इतने दिन बाद मिली थी तो ज्यादा देर मैं रुक नहीं पाया. मगर अभी मैं किसी भी हाल में झड़ना नहीं चाह रहा था. इसलिए सोच रहा था कि लंड को बाहर निकाल लूं.
किस्मत ने मेरा साथ भी दिया. मैंने देखा कि भाभी की चूत मेरे लंड को ऐसे लेने लगी थी जैसे बस वो झड़ने ही वाली है. उन्होंने मेरी गांड को पकड़ कर अपनी चूत में धक्के लगवाना शुरू कर दिया. मैं समझ गया कि भाभी की प्यास मुझसे ज्यादा बढ़ गई है.
जो हाल चंडीगढ़ में मेरा था, कुछ ऐसा ही हाल शायद भाभी का भी हो रहा था.
थोड़ी देर की रगड़ाई के बाद ही उनका पानी गिर गया. वो मेरे सामने से हट गई। उनके आगे होते ही लण्ड फच्च की आवाज के साथ चूत से बाहर निकल गया।
मैंने फिर उन्हें अपनी तरफ घुमाया और चूमना शुरू किया। मेरा लण्ड अब भी उनकी चूत पर रगड़ खा रहा था। थोड़ी देर बाद ही वो फिर गर्म हो गयी। मैंने उन्हें अपनी गोदी में उठा लिया और उनकी टांगें अपनी कमर में लपेट ली.
उन्होंने भी अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं और मेरे बदन पर झूल गयी. मैंने उनके चूतड़ों को उठा कर, अपने लण्ड को उनकी चूत के मुंह पर टिकाया. एक हल्के से झटके में ही एक फच्च की आवाज के साथ लण्ड उनकी चूत में उतर गया।
अब वो मेरे लण्ड पर झूला झूल रही थी। वो ऊपर से उछल-उछल कर कर लण्ड को पूरा अपनी चूत में अंदर तक ले रही थी। मैं नीचे से धक्के मार कर चुदाई का मजा ले रहा था।
वो भी पूरे मजे ले रही थी. इस आसन में पूरा लण्ड अंदर तक उनकी चूत में जा रहा था। मेरे हर झटके में उनकी आह निकल रही थी। मैं अब जोर-जोर से उन्हें चोदने लगा। कुछ देर बाद ही वो फिर अपना पानी छोड़ गई। अब मेरा पानी भी निकलने को बिल्कुल तैयार था।
जोरदार आठ-दस धक्कों के बाद ही मेरे लण्ड ने उनकी चूत में पिचकारी मारनी शुरू कर दी और अपने वीर्य से उनकी चूत लबालब भर दी। अब जाकर मेरे लण्ड को थोड़ा सा सुकून मिला था।
मैंने थोड़ी देर उन्हें अपने आप से चिपटाये रखा और उनके होंठों पर एक किस दे दी।
भाभी- अब तो छोड़ दो मुझे? अब तो कर ली ना तुमने अपने मन की। सारा रस भी मेरी चूत में ही भर दिया। अब इस उम्र में मुझे फिर से माँ बनाने का विचार है क्या तुम्हारा?
मैं- अरे भाभी, चिंता क्यों करती हो. मैं दवाई ला दूंगा. चुदाई का मजा तो माल अंदर डालने में ही आता है। आजकल के जमाने में सब जुगाड़ है। जम कर चुदाई के मजे भी लो और बच्चा होने का कोई डर भी नहीं होता।
मैंने उन्हें नीचे उतार दिया। उनकी चूत से मेरा औऱ उनका वीर्य बाहर निलकने लगा।
मैंने कहा- लो भाभी … चूत की सफाई तो मैंने अपने लण्ड से घिस-घिस कर कर दी. अब आप बोलो तो आपकी गांड भी इसी तरह साफ कर दूं?
भाभी फटाफट मुझसे अलग हुई, बोली- चलो अब बाहर जाओ जल्दी से, कोई आ जायेगा तो अनर्थ हो जाएगा। वैसे ही तुमने मेरी चूत की हालत खराब कर दी है। कहां मैं हफ्ते में एक बार तुम्हारे भाई से चुदती थी, तुमने तो अभी मुझे दो बार झड़वा दिया। अपने मूसल को अंदर तक पेल कर मेरी चूत को कहीं का नहीं छोड़ा।
मैंने भी बाहर निकलने में ही भलाई समझी। फटाफट अपने कपड़े पहने और बाहर निकल कर बरामदे में कुर्सी डाल कर बैठ गया। भाभी भी नहाने लगी। थोड़ी देर बाद भाभी भी कपड़े बदल कर मेरे करीब ही बैठ गयी।
मैंने कहा- चलो भाभी, पहले चाय बना कर लाओ, फिर बातें करते हैं। दोनों थक जो गए हैं इतनी मेहनत करके। चाय से कुछ तो फुर्ती जागेगी।
भाभी चाय बनाकर ले आयी। मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा- तो भाभी मजा आया कि नहीं मेरे लण्ड से चुदवाने में?
वो बोली- हां, मजा तो बहुत आया। मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि कभी तुम्हारे भाई के अलावा किसी और से भी चुदूंगी। लेकिन अब डर भी बहुत लग रहा है।
“किस बात का डर भाभी जी?” मैंने पूछा।
वो कहने लगी- ये बात अगर किसी को पता चल गई तो?
मैंने कहा- अरे किसी को पता नहीं चलेगा. जब तक हम ही किसी और को न बात दें। मैं तो किसी को बताने से रहा … आप भी नहीं बताएंगी। बात हमारे ही बीच में रहेगी। फिर आप ही बताओ कि किसी और को क्या पता लगेगा कि हमारे बीच में कुछ ऐसा हुआ भी है?
भाभी मेरी बात से सहमत हो गई.
मैंने पूछा- अच्छा, अब कब मेरे लण्ड की सवारी करोगी? कल फिर आऊं क्या?
भाभी बोली- ना बाबा ना … अब तो एक हफ्ते तक मैं किसी से भी नहीं चुदवाऊंगी। मेरा अब मन नहीं है।
मैंने कहा- अच्छा जब भी मैं गांव आऊंगा तो मुझे अपनी चूत चोदने का मौका तो दोगी न?
वो बोली- हां क्यों नही … अगर मौका मिला तो जरूर दूंगी। चलो अब जाओ यहां से, मैं बहुत थक गई हूं. तुमने मुझे पूरा निचोड़ लिया है। अब थोड़ा मैं भी आराम कर लेती हूं।
मैंने भी उन्हें एक किस की और वापस अपने घर आ गया।
शाम को मैं मेडिकल स्टोर से उनके लिए दवाई ले आया और उन्हें इसे रात में ले लेने को बोलकर दे दी। थोड़ी देर के बाद भाभी के बच्चों से व भाई से बात-चीत करके मैं वापस अपने घर लौट आया।
मेरा वापस जाने का मन तो नहीं था मगर वापस तो जाना ही था. साथ ही इस बात की खुशी भी थी कि गांव की भाभी को मैंने पटा लिया था. अब कम से कम इतना जुगाड़ तो हो गया था कि जब भी मन करे मैं अपने लौड़े की प्यास को चूत चोद कर बुझा सकूं. मैं अपनी सफलता पर खुश था.
इस तरह गांव जाकर मेरी चूत मारने की इच्छा पूरी हो गयी। अभी मैं फिर चंडीगढ़ वापस आ गया हूँ। देखो, अब कब तक कोई मस्त माल मुझे अपनी प्यास बुझाने को अपने पास बुलाती है। मेरा लण्ड तो इसी आस-उम्मीद में है।
मुझे ज्यादा अच्छा उनकी सेवा करने में लगता है जो महिलाएं घर में अकेली रहती हैं या जिन्होंने तलाक ले लिया है. मैं समझ सकता हूँ कि ऐसी औरतों की चूत को लंड नहीं मिल पाता है.
इसीलिए मैं अपनी प्यास बुझाने के साथ-साथ उनकी चूत सेवा करके भी पुण्य का कमाता रहता हूँ.
अब अगली बार जब किसी की सेवा करने का मौका मिलेगा तो मैं आप सब के साथ भी उन हसीन पलों को जरूर साझा करने की कोशिश करूंगा.
आपको मेरी लिखी कहानियां कैसी लगती हैं इसके बारे में आप मुझे इसी आईडी पर जवाब दे सकते हैं। आपके जवाब और कीमती सुझाव के इंतजार में आपका अपना- राज शर्मा।
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