शादी में चूत चुदवा कर आई मैं-1
मेरे प्यारे दोस्तो, मेरा नाम सविता सिंह है, मेरी कहानी
साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर
जो अन्तर्वासना के जाने माने लेखक वरिन्द्र सिंह
ने सम्पादित करके अपने ही नाम से भेजी थी,
को आपने खूब प्यार दिया। आपके इसी प्यार ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं आपके सामने अपने जीवन के और भी किस्से ले कर आऊँ।
तो कल दोपहर बाद मैं खाना खाकर अपने कमरे में बैठी, टीवी देख रही थी। चाचा जी अपने किसी दोस्त से मिलने गए थे, नहीं तो हो सकता है कि मैं उनके साथ सेक्स कर रही होती। मगर घर में अकेली थी तो टीवी देखने लगी।
उसमें मैंने एक चेनल पर एक राजस्थानी शादी देखी। शादी देखते देखते मुझे एक पुरानी बात याद आई जब मैं अपने पति के साथ उनके ताऊ जी की लड़की की शादी में राजस्थान गई थी। वहीं मुझे वो मिला, जिसने मुझे संभोग का भरपूर सुख दिया और मैंने उसे सेक्स के बहुत से नए नए कारनामें करके दिखाये। उसका नाम शेर सिंह था, और वो मुझे वहीं शादी में मिला था। तो लीजिये आपके लिए मैं अपना एक और किस्सा लिख कर पेश कर रही हूँ, पढ़िये और मज़े करिये।
मेरे पति के पिताजी के एक बहुत पुराने दोस्त थे, मैं उन्हें पहले तो नहीं जानती थी, पता उस दिन लगा जब हमारे घर एक शादी का कार्ड आया। मैंने वो कार्ड अपने पति को दिखाया तो वो कार्ड देख कर बड़े खुश हुये- अरे आरती की शादी है, कमाल है इतनी बड़ी हो गई वो!
मैंने पूछा- कौन आरती?
वो बोले- अरे पिताजी के बहुत ही गहरे दोस्त हुआ करते थे रावत अंकल; हम उन्हें ताऊ जी ही कहते थे। पापा के साथ ही जॉब करते थे, फिर रिटाइरमेंट के बाद वो अपने गाँव चले गए, उनकी ही छोटी बेटी है। मुझे राखी बांधती थी। अंकल से सिर्फ तीन बेटियाँ ही थी, तो वो मुझे ही अपना बेटा मानते थे। बहुत प्यार था हमारे घरों में!
मैंने पूछा- क्या प्रोग्राम है फिर?
पति बोले- ऑफिस में छुट्टी की अर्जी दे देता हूँ, सारा काम काज मुझे ही देखना पड़ेगा जाकर; तो हफ्ता दस दिन तो लग ही जाएंगे। तुम भी बहुत एंजॉय करोगी, बहुत ही मिलनसार और प्यार करने वाले लोग हैं।
मैंने पूछा- चाचाजी भी जाएंगे साथ में?
पति बोले- चाचाजी उन्हें जानते तो हैं, पर ज़्यादा प्यार हमारे ही घर से था। पूछ लेता हूँ चाचाजी से अगर चलना हुआ तो चल पड़ेंगे।
मैं यह सोच रही थी कि अगर चाचाजी साथ चलें तो क्या पता वहाँ भी चाचाजी से कुछ प्रेमालाप कर सकूँ। पति तो अब काम काज में बिज़ी होंगे, तो इनके पास तो टाइम होगा नहीं। मगर चाचाजी ने मना कर दिया।
बाद में अकेले में मैंने भी चाचाजी से पूछा- अरे चाचू, चलते न यार, वहाँ पे भी अपना मस्ती करते!
चाचाजी बोले- अरे नहीं यार, तू जा … मैं इतना लंबा सफर नहीं कर सकता, और बहुत दिन हो गए, रजनी भी अब गिला करती है कि मैं उस से कम मिलता हूँ। तो तुम लोग जाओगे, तो रजनी का भी मन भर दूँगा।
मैंने कहा- अच्छा जी तो आप पीछे से पूरी मस्ती करेंगे, और मैं वहाँ गाँव तड़पती रहूँगी आपके बिना!
चाचाजी बोले- कोई बात नहीं, जब वापिस आएगी तो प्यार और भी ज़बरदस्त होगा.
और चाचाजी ने मेरे माथे पे एक हल्का सा चुम्बन दिया।
मैंने कहा- मगर जाने से पहले मुझे एक धुआँदार बैटिंग चाहिए।
चाचाजी बोले- चिंता मत कर बहू … सभी चौके छक्के मारूँगा।
उसके बाद मैंने अपनी तैयारी शुरू कर दी। अब गाँव में जा रही थी तो ज़ाहिर था कि वहाँ जीन्स तो नहीं चलेंगी तो पति के कहने पर सारी साड़ियाँ ही रख ली। तीन बढ़िया साड़ी नई खरीदी। सारी तैयारी करके हम अपनी ही गाड़ी में चल पड़े।
शादी से 4 दिन पहले जाना था और शादी के चार दिन बाद आना था, पूरा दस दिन का प्रोग्राम था। मगर मेरी चिंता यह थी कि अब रोज़ दो तीन बार सेक्स करने वाली, 10 दिन बिना सेक्स के कैसे रहेगी।
मुझे चाचाजी की बहुत याद आ रही थी।
मैंने उस दिन हल्के फिरोजी रंग की साड़ी पहनी थी; साथ में स्लीवलेस ब्लाउज़ था। बेशक मेरे ब्लाउज़ का गला गहरा था, मगर मैंने आँचल को कंधे के ब्रोच से संभाल रखा था। साड़ी को मैंने थोड़ा नीचे करके बांधा, ताकि नाभि मेरी साड़ी से बाहर रहे।
एक चीज़ और मैंने देखी के साड़ी नीचे बांधने से मैं ज़्यादा आरामदायक महसूस करती थी, बड़ा खुला खुला सा लगता था।
सारा दिन सफर करके हम रावत अंकल के गाँव पहुंचे, एक बहुत ही सुंदर राजस्थानी गाँव था वो! हम लोग शाम के करीब 7 बजे पहुंचे, तो घर के बाहर है बहुत बड़ा शामियाना लगा था, बिजली की रोशनी, रंग बिरंगी झंडियाँ। खूब चहल पहल वाला माहौल था। गंदे मंदे बच्चे हमारी गाड़ी के आस पास जमा हो गए।
हम दोनों गाड़ी से निकले और सीधे अंदर गए। अंदर शामियाने में रावत अंकल बैठे मिले, उनके साथ और भी बहुत से लोग बैठे थे, कुछ खड़े थे।
मेरे पति को देखते ही रावत अंकल खड़े हो गए- अरे आ गया, मेरा बेटा आ गया, आ हा हा!
और मेरे पति ने पहले उनके पाँव छूए और फिर गले लगे।
उनके बाद मैंने भी झुक कर रावत अंकल के पाँव छूये। मगर जब मैं पाँव छूने के लिए झुकी तो मैंने आसपास नज़र मारी, सब मर्दों की निगाह मेरे जिस्म पर थी। जो पीछे खड़े थे, उन्होंने मेरी भरी हुई गांड का नज़ारा लिया होगा और जो सामने थे, उनकी निगाह मेरे सीने पर थे।
बेशक मैंने ब्रोच लगा कर अपने आँचल को गिरने से रोक रखा था, मगर जब भी औरत झुकती है, तो उसके बूब्स नीचे को लटक जाते हैं, और अगर मेरी साड़ी के पल्लू ने मेरे क्लीवेज को छुपा लिया था, मगर फिर भी मेरे झुकने से जो मेरे मम्मों की गोलाई थोड़ी सी बाहर को दिखी, उसे देख कर सब मर्दों की आँखों में चमक आ गई। देखने में तो सारे गाँव वाले ही लगते थे, सबके ज़्यादातर सफ़ेद लुंगी कुर्ते और रंग बिरंगी पगड़ियाँ बंधी थी। सबके सब बड़ी बड़ी मूँछों और दाढ़ी वाले थे।
मैं उठ कर सीधी हुई तो ताऊ जी ने मेरे सर पे हाथ रखा और वहीं पर खेल रहे एक लड़के को आवाज़ लगाई- ओ रामजस, जा भाभी को अम्मा के पास छोड़ कर आ!
मैं जैसे ही पलटी मेरी निगाह वहीं पे खड़े एक मर्द से टकराई। सिर्फ एक सेकंड की इस नजर मिलने में ही न जाने क्यों उसे देख कर मेरी आँखों में चमक आई, और मेरी आँखों की चमक देख कर उसके चेहरे का भी रंग सा बदला।
कोई बात कोई इशारा नहीं हुआ, मगर फिर जैसे कोई पैगाम एक दूसरे तक पहुँच गया।
मैं उनके बड़े सारे घर के अंदर गई। अंदर जनानखाना अलग से बना हुआ था। वहाँ पर सारी औरतें और लड़कियां थी। मेरे पीछे मेरे पति भी आ गए और वो भी मेरे साथ ही जनानखाने में गए, क्योंकि वो तो घर के ही बेटे थे तो वो बहुत से औरतों, लड़कियों से मिले, ताईजी से भी मुझे मिलवाया, और फिर जिस लड़की की शादी थी, उससे भी मिलवाया।
मेरी मुलाक़ात सबसे करवा कर वो चले गए।
जिस लड़की की शादी थी, चन्दा वो तो मेरे साथ ही चिपक गई। भाभी भाभी करती बस मुझे अपने साथ ही रखा उसने। चाय नाश्ता, खाना पीना, सब चलता रहा। ताई जी ने मुझे बिल्कुल अपनी बहू की तरह रखा, मुझे सारा दहेज का समान और बाकी सब रस्मों में शामिल किया।
रात को करीब 12 बजे हम सोये। अब जनानखाने में ही सोना था, तो मैंने एक पतली सी टी शर्ट और एक कैप्री पहन ली। ब्रा पेंटी की क्या ज़रूरत थी।
चंदा भी मेरे साथ ही लेटी।
शादी के बाद सुहागरात को लेकर उसके मन में बहुत सी शंकाएँ थी; उसने मुझसे पूछा- भाभी, मुझे न शादी के बाद वो सुहागरात से बहुत डर लगता है, सुनते हैं बहुत दर्द होता है।
मैंने पूछा- क्यों, तुमने पहले कभी कुछ नहीं किया?
वो बोली- भाभी यहाँ गाँव में … यहाँ तो सब से डर डर के चलना पड़ता है, हम तो किसी लड़के से बात भी नहीं करती।
मैंने कहा- तो तुझे क्या लगता है, सुहागरात को क्या होता है?
वो पहले तो शर्मा गई, फिर हंसी, और मुस्कुरा कर बोली- भाभी, आपकी तो शादी हो चुकी है, आपको तो सब पता है, आप तो रोज़ करती भी होंगी भैया से। अब मुझे क्या पता कि क्या होता है सुहाग रात को!
मैंने पूछा- फिर भी बता तो, तेरी सहेलियों की जिनकी शादी हो चुकी है, वो भी बताती होंगी कुछ?
वो बोली- भाभी, उनकी बताई बातों की वजह से ही तो मैं डरी हुई हूँ। वो तो सब बताती हैं कि सुहागरात को पति आता है और अपना वो बड़ा सा, पूरा ज़ोर लगा कर यहाँ अंदर डाल देता हैं। बहुत दर्द होता है, मगर पति कुछ नहीं सुनता और उसी दर्द में अंदर बाहर करता रहता है। मेरी एक सहेली तो डर और दर्द के मारे बेहोश ही हो गई थी। क्या सच में इतना दर्द होता है?
मुझे उस बेचारी भोली भाली कन्या के सेक्स ज्ञान पर बहुत तरस आया कि क्यों हमारे स्कूलों में बच्चियों को सेक्स का ज्ञान नहीं दिया जाता। क्यों नहीं उन्हें समझाया जाता कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। क्यों आज भी बच्चियाँ कम ज्ञान की वजह से इन सब चीजों से डरती हैं।
मैंने उसे समझाया- देख चंदा, डरने की कोई वजह नहीं है। कोई भी काम जब पहली बार होता है, तो उसमें मुश्किल आती है, थोड़ी सी। मगर उस मुश्किल से घबराना नहीं चाहिए। अब तुमने आज तक अपनी उस में (कहते हुये मैंने उसकी चूत पर तो नहीं, पर जांघ पर हाथ लगाया) कोई चीज़ नहीं डाली। उसका सुराख छोटा है। और जो तेरा पति होगा, उसका वो जो होता है, वो इस सुराख से थोड़ा सा मोटा होता है.
कह कर मैंने अपनी उंगली और अंगूठे से एक गोल आकार बनाया, फिर मैंने कहा- अब अपनी उंगली इस में डालो!
जब चंदा ने शर्माते हुये अपनी उंगली उस में डाली, तो पहले तो थोड़ी से उंगली टाइट गई, मगर बाद में मैंने अपनी उंगली और अंगूठे को ढील छोड़ दिया और उसकी उंगली बड़े आराम से मेरी उंगली और अंगूठे के गोल आकार से अंदर बाहर होने लगी।
मैंने कहा- देखा, पहले थोड़ा सा टाईट जाता है, मगर बाद में बड़े आराम से जाता है। मुझे भी पहली बार दर्द हुआ था, मगर अब शादी के 3 साल बाद मैं चाहती हूँ, मुझे फिर से वो दर्द हो। मुझे और मोटा और लंबा मिले।
मेरी बात सुन कर उसने अपने हाथों से अपना मुँह छुपा लिया, और हम दोनों हंसने लगी। पता नहीं कितनी रात तक मैं उसे सेक्स के किस्से सुनाती रही, क्या क्या बताती रही। इतना ज़रूर है कि मेरी बातें सुन कर उसकी चूत ज़रूर गीली हो गई होगी।
अगली सुबह मैं नहा धोकर तैयार हो गई, चंदा भी मेरे साथ ही चिपकी रही। शादी के जो भी रस्म रिवाज थे, वो चल रहे थे। मेरे पति एक बेटे के पूरे फर्ज़ निभा रहे थे और सब काम को अपनी निगरानी में करवा रहे थे; मुझसे तो मिलने का टाइम ही नहीं था उनके पास।
दोपहर के खाने के समय ताऊ जी ने मुझे बुलाया और मेरे साथ बहुत सी बातें करी। थोड़ी देर बाद वो आदमी भी वहाँ आया जिससे कल मेरा नैन मटक्का हुआ था।
ताऊ जी ने बताया- अरे लो बहू, इनसे मिलो; ये हैं शेर सिंह। मेरे बहुत ही अच्छे दोस्त, यूं कहो मेरा छोटा भाई।
मैंने उन्हें नमस्ते कही, उन्होंने भी हाथ जोड़ कर “खम्मा घनी” कहा और हमारे पास ही बैठ गए।
शेर सिंह करीब 6 फुट कद, चौड़े कंधे, कसरती जिस्म … देखने से कोई पुराना फौजी टाइप लगता था।
जोरदार चुदाई कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: शादी में चूत चुदवा कर आई मैं-2
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