संतान के लिए परपुरुष सहवास -1
लेखिका: अमृता सोनी
संपादिका एवं प्रेषिका: तृष्णा प्रताप लूथरा
अनातार्वसना की पाठिकाओं एव पाठकों को टी पी एल की ओर से नमस्कार!
मेरे द्वारा पिछली प्रकाशित रचना
जीजा साली का पारस्परिक हस्त-मैथुन
को पढ़ कर अपने विचार भेजने वाले सभी पाठिकाओं एव पाठकों को मेरा धन्यवाद।
उपरोक्त रचना के प्रकाशन हो जाने के बाद मुझे छतीसगढ़ प्रदेश की रहने वाली एक महिला अमृता सोनी का सन्देश मिला था। उस सन्देश में उस महिला ने अपने जीवन के इतिहास में से कुछ पृष्ठों को आप लोगों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की है।
उस महिला के साथ कुछ सप्ताह के महत्पूर्ण पत्राचार के बाद जो विवरण मुझे प्राप्त हुआ मैंने उसे सम्पादित तथा व्याकरण एवं भाषा सुधार कर के आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ।
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अन्तर्वासना की पाठिकाओं एव पाठकों को मेरा अभिनन्दन।
मेरा नाम अमृता सोनी है और मैं पिछले पच्चीस वर्षों से अपने पति अमित सोनी के साथ छतीसगढ़ के एक महत्वपूर्ण उद्योगिक शहर में ही रह रही हूँ।
मेरे पति यहाँ के एक बहुत बड़े बिजली उत्पादक संयंत्र में ऊँचे पद पर कार्य करते है तथा हमें रहने के लिए उसी संयंत्र की आवास परियोजना में ही एक घर मिला हुआ है।
हमारे घर के बिल्कुल साथ वाले घर में उस संयंत्र के एक अन्य उच्च अधिकारी संजीव खन्ना तथा उनकी पत्नी अनीता रहते हैं।
पिछले वर्ष मेरी इक्कीस वर्षीय पुत्री वैशाली की शादी के अवसर पर अनीता और उसके पति संजीव ने हमारी बहुत सहायता की थी।
शादी के सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के बाद जब वैशाली की डोली जा रही थी तब वातावरण बहुत ही भावुक हो गया था और सभी की आँखें नम थी।
लेकिन उन नम आँखों के झुण्ड में सिर्फ एक ही इंसान ऐसा था जिसकी आँखों में से लगातार गंगा-यमुना बह रही थी।
वह ना तो मैं थी, ना मेरे पति थे, ना कोई करीबी सम्बन्धी था और ना ही कोई दोस्त एवं सखी-सहेली थे, बल्कि वह इंसान था संजीव सोनी।
संजीव फूट-फूट कर क्यों रो रहा था इसका कारण किसी को भी समझ नहीं आ रहा था।
कुछ अड़ोसी-पड़ोसी जो आपस में खुस-पुसा कर एक कारण बता रहे थे वह था कि वैशाली का बचपन से ही संजीव के साथ बहुत लगाव था इसीलिए शायद वह अधिक दुखी था।
लेकिन जो वास्तविक कारण था वह सिर्फ संजीव को चुप कराने की अनथक चेष्टा करती हुई अनीता और मुझे ही विदित था।
अन्तर्वासना की पाठिकाओं एवं पाठकों अगर आप उस कारण के बारे में जानना चाहते है तो आप सब को मेरे साथ पच्चीस वर्ष अतीत में चलना पड़ेगा।
पच्चीस वर्ष पहले जब मेरी शादी हुई थी तब मेरे पति इसी संयंत्र के बहुत नीचे के स्तर के अधिकारी थे तथा तब हमें इसी संयंत्र की आवास परियोजना में कंपनी की ओर से एक बैडरूम वाला एक छोटा सा फ्लैट मिला हुआ था।
उन्हीं दिनों में अनीता और उसके पति कंपनी के दूसरे बिजली उत्पादक संयंत्र से स्थानांतरित हो कर आये थे और उन्हें भी हमारी ही इमारत में बिल्कुल हमारे साथ वाला फ्लैट ही रहने को मिला था।
शहर में नई होने के कारण अनीता दो दिनों के बाद घर के ज़रूरत की वस्तुओं के मिलने के स्थान आदि के बारे में पूछने के लिए मेरे पास आई, जिसके बारे में मैंने उसे बता दिया।
इसके बाद रोज़, पतियों के काम पर जाने के समय या फिर सब्जी वाले से खरीदारी के समय हमारी छोटी छोटी मुलाकातें हो जाती थीं।
एक दिन मेरे घर पर किट्टी-पार्टी थी तब आस-पास की पड़ोसियों एवं अन्य महिलाओं के साथ उसका परिचय कराने के इरादे से मैंने अनीता को भी उस पार्टी में बुला लिया।
उस पार्टी के बाद से अनीता का मेरे घर और मेरा उसके घर आना-जाना शुरू हो गया और हमारी जान पहचान बढ़ कर घनिष्ट मित्रता में बदल गई।
यहाँ तक कि अगर कभी मैं सुबह का चाय-नाश्ता उसके घर करती थी तो दोपहर का खाना वह मेरे घर करती थी या फिर इसके विपरीत होता था।
बाज़ार या फिर कहीं भी जाना होता था तो हम दोनों साथ साथ ही जाती थी, जिसके कारण हमारी पड़ोसन हमें बहनें कहने लगी थी।
इस तरह जब एक माह बीत गया तब एक दिन अनीता के घर चाय पीते हुए मैंने उससे पूछा– अनीता, तुमने बताया था कि तुम्हारी शादी छह माह पहले हुई थी, तो अभी तक संतान की नींव क्यों नहीं रखी?
अनीता ने उत्तर में कहा– नहीं अमृता, अभी कोई नींव नहीं रखी है और अगले दो वर्ष तक तो उसके रखने की कोई सम्भावना ही नहीं है।
मैंने उससे तुरंत पूछा– क्यों, ऐसी क्या बात है? क्या कोई समस्या है या फिर कोई और वजह है?
अनीता बोली– नहीं कोई समस्या नहीं है। हम दोनों ने निर्णय किया है कि अगले दो वर्ष तक हम अपने वैवाहिक जीवन का आनन्द लेना चाहेंगे और उसके बाद ही परिवार बढ़ौती के बारे में सोचेंगे।
इससे पहले कि मैं उससे कुछ और पूछती अनीता ने प्रश्न किया– अमृता, तुमने तो बताया था कि तुम्हारी शादी को तीन वर्ष हो चुके हैं। तुम तो अपने वैवाहिक जीवन का बहुत आनन्द ले चुकी हो, फिर तुमने अभी तक अपने परिवार को बढ़ाने के बारे में क्यों नहीं सोचा?
अनीता के इस प्रश्न ने मेरे अंतर्मन को झिंझोड़ दिया और मेरे चेहरे का रंग उड़ गया तथा उदासी के काले बादल छा गए।
जब उसने मेरे चेहरे के उड़ते रंग और उदासी को देखा तब वह बोली- अमृता, क्या बात है तुम्हें यह अचानक क्या हो गया है? तुम अचानक ही उदास क्यों हो गई हो, क्या मैंने कोई गलत बात पूछ ली?
उसकी बात पूरी होने से पहले मेरी आँखों से आंसू टपक पड़े यह देख अनीता ने मुझे अपनी बाहों में ले कर सांत्वना देने लगी।
उसकी सांत्वना से मेरे धैर्य का बाँध टूट गया और मैं उसके कंधे पर सिर रख कर फूंट फूंट कर रोने लगी।
कुछ देर तक खुल कर रोने के बाद जब मेरा मन हल्का हो गया तब मैंने अपने को नियंत्रण में करते हुए अनीता से अलग हुई और कहा– नहीं तुमने ऐसी कोई गलत बात नहीं पूछी है। यह तो मेरे भाग्य की विडम्बना है मैं चाहते हुए भी अपने परिवार में वृद्धि नहीं कर पाने में विवश हूँ।
मेरी बात सुन कर अनीता के चहरे पर आसमंजस की रेखाएं उभर आई और वह मुझे ढाढस बंधाते हुए कहा- अमृता धैर्य रखो, सब ठीक हो जायेगा। क्या तुम अपना मन हल्का करने के लिए अपनी विवशता को मुझसे साझा करना चाहोगी?
उसकी बात सुन कर मैं बोली- अनीता, मेरी यह विवशता सिर्फ मुझे और मेरे पति को ही मालूम है। मैंने इसे अपनी सास से भी साझा की थी लेकिन उसने मेरी उस विवशता को नकारते हुए मुझ पर ही लांछन लगा दिए थे।
अनीता ने कहा- अमृता, तुम डरो मत और अपनी विवशता को बेझिझक हो कर मुझसे साझा कर सकती हो। मैं तुम्हारी सास नहीं हूँ जो तुम पर कोई लांछन लगाऊँगी।
अनीता की बात सुन कर मैं कुछ देर चुपचाप बैठी सोचती रही कि उसे बताऊँ या नहीं लेकिन अंत में निश्चय करके उसे सब कुछ बता दिया।
मैंने अनीता को बताया कि मेरी और मेरे पति की आयु में लगभग आठ वर्ष का अंतर है और मैं उनकी दूसरी पत्नी हूँ।
मेरे पति की पहली शादी नौ वर्ष पहली हुई थी लेकिन पांच वर्ष तक कोई भी संतान नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी माँ के दबाव में आकर पहली पत्नी को तलाक दे दिया था। फिर एक वर्ष तक अविवाहित रहने के बाद उन्होंने अपने परिवार वालों के दबाव में आकर मुझसे शादी कर ली थी।
जब दो वर्ष की अविधि में मैं गर्भवती नहीं हुई तो मेरी सास ने मुझे भी बाँझ घोषित कर दिया और मेरे पति को मुझे भी तलाक देने के लिए उकसाने लगी।
जब मुझे बाँझ कहा गया तब मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने अपनी एवं पति दोनों की जांच दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में करवाई थी।
जांच से पता चला था कि मेरे पति के वीर्य में शुक्राणु की गिनती कम है तथा उन शुक्राणु में गतिशीलता भी बहुत कम हैं जिसके कारण मुझे गर्भ नहीं ठहर रहा था।
उस जांच रिपोर्ट को घर का कोई भी सदस्य स्वीकार करने को तैयार नहीं था तथा मेरे पति पर लगातार विवाह-विच्छेद करने का दबाव डालने लगे।
इसलिए मैंने अपने पति पर जोर डाल कर उन्हें अपना तबादला इस शहर के सयंत्र में करवाने के लिए विवश कर दिया था।
इसके बाद अनीता से आगे कोई बात नहीं हुई और मैं अपने को हल्का महसूस करने लगी क्योंकि मेरे मन से बोझ उतर गया था तथा मैं सामान्य स्तिथि में आते ही अपने घर वापिस आ गई।
अगले चार माह का समय व्यतीत होते पता ही नहीं चला क्योंकि अक्सर अनीता मेरे घर आ जाती थी या फिर मैं उसके घर चली जाती थी और लगभग हम पूरा पूरा दिन एक साथ ही व्यतीत करती थीं।
हम दोनों में हर रोज़ कई बातें होती थी लकिन हम दोनों ने एक दूसरे से संतान नहीं होने के बारे में कभी भी कोई बात नहीं करी।
एक दिन जब अनीता मेरे घर आई और मुझे गुमसुम एवं उदास बैठी देखा तो मेरे पास आ कर बैठ गई और पूछा- अमृता, आज बहुत उदास दिखाई दे रही हो? क्या अमित जी से कोई मन-मुटाव हुआ है?
अनीता के प्रश्न सुन कर मैंने कहा- नहीं अनीता, ऐसी कोई बात नहीं है।
इसके आगे मैं कुछ भी नहीं बोल पाई और मेरी आँखों में से आंसू निकल आये तथा मैं अनीता के कंधे पर सिर रख कर फूंट फूंट कर रोने लगी।
दस मिनट तक अनीता मुझे चुप कराती रही लेकिन जब मैं चुप नहीं हुई तो मुझे खींचती हुई अपने घर ले गई।
वहाँ पहुँच कर जब मेरे आंसूं बहने रुके तब उसने मुझसे एक बार फिर मेरी उदासी और मेरे रोने का कारण पूछा।
मैंने उसे बताया- एक सप्ताह पहले अमित ने टेस्ट कराये थे जिसकी रिपोर्ट कल आई है। उस रिपोर्ट में लिखा है कि उनके वीर्य में शुक्राणु की गिनती में तो कुछ वृद्धि तो हुई है लेकिन शुक्राणु की गतिशीलता में कोई भी सुधार नहीं हुआ है।
मैंने बात आगे बढ़ाते हुए अनीता को बताया- डॉक्टर ने शुक्राणु की गतिशीलता बढ़ाने के लिए कुछ दवाइयाँ तो दी हैं लेकिन साथ में यह भी कहा है कि अगर अगले तीन माह में कोई सुधार नहीं हुआ तो मेरे गर्भवती होने के लिए सिर्फ तीन ही रास्ते रह जायेंगे।
जब अनीता ने मुझसे उन तीन रास्तों के बारे में पूछा तो मैं बोली- पहली विधि में मेरा डिम्ब लेकर प्रयोगशाला में पति के शुक्राणु से कृत्रिम वातावरण में मिलन कराया जाएगा और फिर उस निषेचित डिंब को वापिस मेरे गर्भाशय में रख दिया जायेगा।
दूसरी विधि में मेरे गर्भाशय के अन्दर ही स्तिथ डिम्ब में इंजेक्शन के ज़रिये मेरे पति के शुक्राणु को डाला जाएगा और उसे गर्भ-धारण के लिए समर्थित प्राकृतिक वातावरण में पनपने दिया जाए।
तीसरी विधि में किसी पर-पुरुष द्वारा दान किये गए स्वस्थ शुक्राणुओं वाले वीर्य को इंजेक्शन के ज़रिये मेरी योनि के अन्दर डाल दिया जाएगा और उसे प्राकृतिक रूप से गर्भ-धारण होने दिया जाएगा।
मेरी बात सुन कर अनीता ने कहा- तो इसमें समस्या क्या है? तीन माह तक अगर सफलता नहीं मिलती तो उन तीनों विधियों में से किसी एक विधि से गर्भ धारण करवा लेना।
अनीता की बात सुन कर मैंने कहा- समस्या एक नहीं कई हैं। सभी विधियों में किसी विशेष हॉस्पिटल में ही उपचार होगा। कई बार हॉस्पिटल जाना पड़ेगा और प्रक्रिया के अंतिम चरण में तो दो से तीन सप्ताह तक हॉस्पिटल में भरती होना पड़ेगा। पहली दो विधियों में तो सफलता दर लगभग पैंतीस से चालीस प्रतिशत ही है और तीसरी विधि में साठ से पैंसठ प्रतिशत तक ही है।
फिर मैंने आगे कहा- इन विधियों के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि बड़े शहर में जा कर रहना पड़ेगा और पहली दो विधियों में तो खर्चा भी बहुत अधिक होगा जो हमारे बस में नहीं है। तीसरी विधि में खर्चा तो कम है लकिन पति इसके भी विरुद्ध हैं क्योंकि रूढ़िवादी परिवार से होने के कारण वह किसी पर-पुरुष के शुक्राणुओं से उत्पन हुए शिशु को अपनाने के हक में भी नहीं है।
मेरी बातें सुन कर अनीता भी असमंजस में पड़ गई और कुछ देर दोनों ही सोचती रही कि उस समस्या एवं विडम्बना को कैसे हल किया जाए।
लेकिन जब कुछ भी समझ नहीं आया तब अनीता ने मुझे ढांढस बंधाते हुए कहा- अमृता, अभी तो तीन माह का समय है और अगर ईश्वर की कृपा रही तो दवाइयों का असर अवश्य होगा तथा सब ठीक हो जाएगा।
अनीता की बात सुन कर मुझे कुछ आश्वासन मिला और इश्वर के भरोसे सब कुछ छोड़ कर अपने को सम्भाला और अपने घर जाकर नित्य-कार्य में लग गई।
धीरे धीरे जब दो माह बीत गए और मुझे फिर माहवारी आई तब मैं बहुत ही चिंतित हो उठी।
उस दिन जब अनीता मेरे घर आई तब मैं भाग कर उससे चिपट कर एवं रुआंसी होते हुए बोली- अनीता, देखो आज फिर से मेरी लाल झंडी आ गई है। समय बीतता जा रहा है और अभी तक कुछ भी नहीं हुआ, मुझे बहुत चिंता हो रही है।
उसने मुझ से कहा- तुम जितनी चिंता करोगी उतनी ही दिक्कत एवं देरी होगी। तुम बिल्कुल निश्चिन्त हो कर सामान्य हो जाओ, तब देखना, अवश्य ही सब ठीक हो जाएगा।
मैं तुरन्त उत्तर देते हुए बोली- क्या ठीक हो जाएगा, मुझे तो समझ नहीं आ रहा है। अगले माह मेरी सास भी यहाँ आ जाएगी और तब तक कुछ भी नहीं हुआ तो वह मेरा तलाक अवश्य करा कर ही जायेगी।
अनीता ने मेरे मुहं पर हाथ रखते हुए कहा- पागल, ऐसा नहीं बोलते, हमेशा शुभ शुभ ही बोला करो। अगर आस का दामन नहीं छोड़ोगी तो जल्दी ही कोई हल ज़रूर मिलेगा।
तब मैंने उसके बगल में बैठते हुए कहा- अनीता, तुम एक नारी हो और किसी दुविधा में फंसी हुई नारी की मानसिक परिस्थिति को भी अच्छी तरह समझ सकती हो। मैं तो तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानती हूँ और मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी दुविधा को हल करने के लिए मेरी सहायता करो।
मेरी बात सुन कर वह बोली- अमृता, मैं भी तुम्हें अपनी बड़ी बहन ही मानती हूँ, लेकिन मैं तुम्हारी इस समस्या में क्या और कैसी मदद कर सकती हूँ?
मैं उसके पास सरकते हुए बोली- अनीता, मेरी समस्या एवं दुविधा का एक हल अभी अभी मेरे मस्तिष्क में आया है लेकिन वह तुम्हारे सहयोग के बिना कार्यान्वित नहीं हो सकता है।
अनीता ने मेरी बात सुन कर कहा- अमृता, जब तुम तुम्हारे मस्तिष्क में आये हल के बारे में मुझे बताओगी तभी तो पता चलेगा कि तुम्हें किस प्रकार की सहायता चाहिए। वह जानने के बाद ही मैं बता पाऊँगी कि तुम्हारी मदद कर सकती हूँ या नहीं।
उसकी बात सुनते ही मैं बोली- अनीता, वह हल ऐसा है जो तुम्हारे सहयोग के बिना कभी भी नहीं हो पायेगा और मुझे पूर्ण आशा है कि तुम मेरी सहायता अवश्य करोगी।
उसके बाद मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- अनीता, मैंने तुम्हें डॉक्टर द्वारा बताई गई तीन विधियाँ बताईं थी। उनमें से पहली दो विधियाँ तो बहुत महंगी हैं लेकिन जो तीसरी विधि है वह कुछ सस्ती तो है लेकिन उसमे भी हॉस्पिटल में तो भरती होना ही पड़ेगा। इसलिए मेरे मस्तिष्क में एक बात आई है कि अगर तीसरी विधि से पर-पुरुष के शुक्राणु से गर्भ धारण करना ही है तो हॉस्पिटल का इतना खर्चा क्यों किया जाए।
मेरी बात पर असमंजस दिखाते हुए अनीता बोली- अमृता, तुम क्या कह रही हो मुझे समझ ही नहीं आ रहा है। उस विधि के लिए शुक्राणु को गर्भाशय के अन्दर रोपण कराने के लिये तुम्हें हॉस्पिटल में भरती तो होना ही पड़ेगा।
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उसकी बात के उत्तर में मैंने कहा- अनीता, उस विधि में मेरे अण्डोत्सर्ग अवधि के समय किसी पर पुरुष के शुक्राणुओं को एक इंजेक्शन नली में भर कर मेरे गर्भाशय के मुख के अन्दर रोपण किया जाएगा। बस इतनी सी विधि के लिए मुझे शुक्राणु रोपण से एक दिन पहले और तीन दिन बाद तक हॉस्पिटल में ही भरती रहना पड़ेगा जिससे हमारा कम से कम चालीस-पचास हज़ार का खर्चा हो जाएगा।
मेरी बात सुन कर अनीता ने कहा- अमृता, तुम्हारी बात तो सही है लेकिन तुम्हारे पास इसका कोई विकल्प भी तो नहीं है।
उसकी बात सुन कर मैंने थोड़ा मुस्करा कर कहा- अनीता रानी, एक विकल्प है जिस में कोई भी खर्चा नहीं है और बिल्कुल प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण किया जा सकता है। लेकिन मेरे लिए वह विधि में पूर्णत: सफलता पाने के लिए तुम्हारे सहयोग की बहुत ही अधिक आवश्यकता है।
अनीता गंभीरता से बोली- अमृता तुम विस्तार से बताओ कि तुम क्या करना चाहती हो और तुम्हें मुझसे क्या सहयोग चाहिए?
मैंने भी तुरंत उत्तर दिया- अनीता, अगर मैं डॉक्टर द्वारा बताई गई तीसरी विधि से गर्भवती होने के बदले किसी पर-पुरुष से सहवास करके ही गर्भ धारण कर लूँ तो कुछ भी खर्चा नहीं होगा।
इतना सुनते ही अनीता मेरे ऊपर चिल्ला कर बोली- अमृता, तुम पागल तो नहीं हो गई हो? तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रही हो? अगर यह बात तुम्हारे पति एवं परिवार वालों को पता चल गई तो तुम्हारे लिए इसके परिणाम कितने बुरे हो सकते हैं।
मैंने उसे शांत करते हुए कहा- अनीता, इसमें चिल्लाने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम शांति से भी इस सुझाव पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। अगर यह बात मेरे पति एवं परिवार वालों को ज्ञात होगी तब उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी इसका मैं अनुमान लगा सकती हूँ। इसीलिए तो मैं तुम्हें अपना करीबी विश्वासपात्र मान कर ही तुमसे यह बात कर रही हूँ। मुझे तुम पर पूर्ण विशवास है कि तुम मेरे इस रहस्य को किसी के साथ भी साझा नहीं करोगी।
अनीता न कुछ नर्म होते हुए बोली- अमृता, जब तुम्हारे पास तीसरी विधि उपलब्ध है तो फिर तुम यह सब क्यों करने का सोच रही हो
उसके प्रश्न के उत्तर में मैंने कहा- अनीता, मैंने तुम्हें पहले भी बताया था कि मेरे पति को तीसरी विधि स्वीकार्य नहीं है और अगर मैंने उसे करवाया तो वह मेरी सास को बता देंगें और मेरा तलाक अवश्य हो जाएगा। मैं यह अपने विवाहिक जीवन को बचाने के लिए और अपने पति एवं उसके रुढ़िवादी परिवार को सिर्फ एक संतान देने के लिए ही करना चाहती हूँ।
मैंने आगे कहा- अनीता, अगर मैंने हॉस्पिटल में पर-पुरुष सुक्राणु का रोपण करवा कर माँ बनी तो मैं उस संतान के साथ बहुत बड़ा अन्याय करूँगी क्योंकि मैं उसे पिता का प्यार कभी भी नहीं दिलवा पाऊँगी।
मेरे तर्क सुन कर अनीता बहुत ही गंभीर मुद्रा में कुछ देर सोचने के बाद बोली- अमृता तुम्हारी स्थिति ही कुछ ऐसी है कि मुझे भी तुम्हारे तर्कों का कोई उपयुक्त वितर्क नहीं मिल रहा है। मान लो कि तुम ऐसा करने का निश्चय कर भी लिया तो मैं उसमे तुम्हारी क्या सहायता कर सकती हूँ और तुम किस पर-पुरुष से सहवास करोगी? क्या वह पर-पुरुष तुम्हारी इस क्रिया को जीवन भर गोपनीय रखेगा?
अनीता द्वारा उठाये गए प्रश्नों का उत्तर में मैंने कहा- अनीता, मैं कोई तर्क नहीं दे रही हूँ, मैं तो सिर्फ यथार्थ ही बता रही हूँ। मैं तो निश्चय करने की देहलीज़ पर खड़ी हूँ और अब सिर्फ तुम्हारी हाँ और सहायता का आश्वासन चाहती हूँ।
मेरी बात सुन कर बोली- अमृता, कुछ हद तक तुम्हारा कहना तो सही है लेकिन यह तो तुम्हारा व्यक्तिगत निश्चय होगा इसमें मेरी सहमति क्यों चाहिए? और तुमने उस पर-पुरुष के बारे में नहीं बताया जिसके साथ तुम सहवास करोगी और क्या वह इसके लिए सहमत है?
उसके प्रश्नों के उत्तर में मैंने कहा- अनीता, तुम्हारी सहमति इसलिए चाहिए क्योंकि उस पर-पुरुष की सहमति के लिए मुझे तुम्हारी सहायता की बहुत ही आवश्यकता है। अगर तुम मेरे निश्चय का समर्थन करती हो तभी मैं आगे बात करुँगी नहीं तो मेरे भाग्य में जो होना है उसकी चुपचाप प्रतीक्षा करुँगी।
मेरी बातें सुन कर अनीता बोली- अमृता, तुम ऐसी बातें कर के मुझे भावुक बना रही हो। ठीक है तुम्हारी सभी बातों और तर्कों के आधार पर मैं तुम्हारे निश्चय का समर्थन करती हूँ। लेकिन तुम्हारे इस निश्चय के लिए मैं किसी पर-पुरुष से तुम्हारे साथ सहवास करने के लिए क्यों सहमत करूँ? तुम खुद क्यों नहीं करती?
मेरे निश्चय के अनुमोदन पर अनीता का समर्थन सुन कर मैं ख़ुशी के मारे चिल्ला उठी और उछल कर उससे चिपट गई और उसके गालों पर दो तीन प्रगाढ़ चुम्बन जड़ दिए।
मेरी इस प्रतिक्रिया पर वह बहुत विस्मित होकर मुझे देखने लगी और फिर एक चुम्बन मेरे गालों पर करने के बाद बोली- अमृता, अच्छा अब मेरी बाकी प्रश्नों का उत्तर तो दो?
तब मैंने अनीता कहा- अनीता, उस पर-पुरुष को तुम जानती हो और इस पृथ्वी पर तुम्हीं एक इंसान हो जो उसे मेरे साथ सहवास करने के लिए सहमत कर सकती हो। तुम मेरे लिए भगवान हो और मेरी सहायता का आश्वासन देकर तुम मेरे सभी बिगड़े काम बना सकती हो। तुम्हारे द्वारा किया गया यह काम मेरे जीवन को ख़ुशी और उल्लास से भर देगा।
मेरी बात पर झल्लाते हुए अनीता बोली- मुझे तुम्हारी कोई भी बात समझ नहीं आ रही, तुम सीधा सीधा यह बताओ कि तुम मुझसे क्या सहायता चाहती हो और वह पर-पुरुष कौन है?
तब मैंने सीधी बात करते हुए कहा- अनीता, मैं तुमसे यानि कि अपनी छोटी बहन से अपने कुछ विशेष दिनों में तुम्हारे पति के कुछ समय के लिए भीख मांगती हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे उन विशेष दिनों में मुझे कुछ समय के लिए अपने पति के साथ सोने की अनुमति दे दो और उन्हें मेरे साथ सहवास करने के लिए राज़ी भी करो।
कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का अगला भाग : संतान के लिए परपुरुष सहवास -2
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