समलैंगिकता का मजा-1
सभी पाठकों को लल्लन सारंग का प्यार भरा नमस्कार।
मैं आज अपनी पहली कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी सच्ची है.. लेकिन इसे चटपटा और मजेदार बनाने के लिए थोड़ी काल्पनिकता का प्रयोग किया है। उम्मीद है कि आपको कहानी पसन्द आएगी।
बात तब की है.. जब मैं स्कूल में पढ़ता था.. किशोरवय का दौर था।
स्कूल में तो लड़के सेक्स के बारे में हमेशा बातें करते रहते थे और मुझे भी उनकी बातों में बड़ा मजा आता था। नया-नया लंड का खड़ा होना शुरू हुआ था और मैं दिन में ना जाने कितने बार मुठ मार लिया करता था।
दोस्तों के साथ मजाक-मजाक में एक-दूसरे के लंड को छू लेना या फिर निप्पलों को उमेठ देना या एक-दूसरे की गाण्ड दबा देना या गाण्ड पर चपत मारना आदि.. ऐसे मजाक चलते रहते थे, मुझे ये सब अच्छा लगता था।
जब क्लास चलती रहती थी.. तब भी मैं और मेरा दोस्त जो मेरे साथ बैंच पर बैठता था.. वो एक-दूसरे के लंड को सहलाया करते थे। हाफ पैंट की वजह से खुली जाँघों को सहलाना और पैंट के अन्दर हाथ डालना आसान होता था। लेकिन उस वक्त लंड सहलाने के अलावा और कुछ कर ना सके.. ना ही पता था कि किया क्या जा सकता है।
यूं ही दिन बीतते गए और मेरी सेक्स के प्रति रूचि बढ़ती चली गई।
मुझे एक बात थोड़ा अजीब लगती थी कि मैं लड़कियों के मुकाबले लड़कों की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहा हूँ, मेरे दोस्त लड़कियों को टापते थे और कमेंन्ट करते थे.. लेकिन मुझे इसमें कभी मजा नहीं आया।
अकेले-अकेले लड़कों को देखना और उनकी टांगों के बीच में लंड वाली जगह को निहारना… ये मुझे ज्यादा पसंद था।
कभी-कभी लड़कों को टापते समय उनका ध्यान मेरी तरफ जाता और मेरा उनके लंड को निहारना पकड़ा जाता लेकिन किसी ने कभी कुछ कहा नहीं.. मैं हर वक्त चुदाई को देखने के सपने देखता था.. ना कि चुदाई करने के बारे में कुछ सोचता था।
चुदती लड़की से ज्यादा.. चोदते लड़के के बारे में ज्यादा सोचता था। मुझे समझ में आने लगा था कि मुझे लड़के पसंद आते हैं। अखबार में आती कुछ समलैंगिक विषयों या खबरों से आधा अधूरा ज्ञान मिलता था कि मैं अलग हूँ और मेरे जैसे और भी हैं.. मैं अकेला ही ऐसा नहीं हूँ।
ऐसे ही 2-3 साल बीत गए जवानी का दौर शुरू हो गया। मेरा रिजल्ट कुछ अच्छा नहीं आया और वजह साफ थी.. मैं हर वक्त सेक्स या फिर सेक्सी लड़कों के बारे में जो सोचता रहता था। इस बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकता था। दोस्त तो थे.. मगर मैं उनसे गहरी दोस्ती नहीं बना सका.. और अकेला रह गया।
कम नम्बर मिलने की वजह से मुझे साइन्स में एडमीशन नहीं मिला और मुझे आर्टस को एडमीशन लेना पड़ा।
वहाँ मेरे पहचान का कोई नहीं था।
वहाँ मेरी मुलाकात आमिर से हुई. वो मेरे शहर का नहीं था.. वो अपने मामा के घर आया था। उसके घर वालों ने उसे यहाँ पढ़ने भेजा था। वो और उसका मामा मेरे घर से कुछ ही दूरी पर किराए का मकान ले कर रहते थे।
उसके मामा की शादी हो चुकी थी.. मगर मामी के पेट से होने की वजह से वो मायके में थी। उसका मामा पुलिस विभाग में था.. तो वो ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था।
आमिर बहुत बढ़िया बंदा था.. वो हमेशा सेक्स की बारे में बातें करता रहता था। उसने नंगी फ़िल्में यानि कि ब्लू-फ़िल्में देखी हुई थीं.. और वो उनकी बातें किया करता था।
मैंने कभी ऐसी फ़िल्में नहीं देखी थीं.. तो मुझे उसकी बातें बहुत सेक्सी लगती थीं। हम दोनों ही सेक्स के बारे में बातें करते रहते थे और हमारी अच्छी दोस्ती हो गई।
मैं उससे हमेशा ब्लू-फिल्मों के बारे में पूछता रहता था.. और वो सब कुछ बिना छुपाए बड़े ही सेक्सी तरीके से सब बताता था। अब हम एक-दूसरे के घर भी जाने लगे थे और हमारे घर के लोग हमें पहचानने लगे थे।
मैं अकसर उसके घर जाया करता था.. क्योंकि वो अकेला होता था और हम उसके घर पर आराम से नंगी बातें कर सकते थे। टीवी पर एफ चैनल या फिर इंग्लिश चैनल देख सकते थे। जब भी उसके मामा की नाइट डयूटी होती थी.. तब मैं पढ़ाई का बहाना करके उसके घर आ जाता था और रात को हम टीवी पर कुछ देखने लायक सेक्सी सीन ढूँढा करते थे।
तब सीडी प्लेयर्स नए-नए मार्केट में आऐ थे.. तो हम में से किसी के पास नहीं थे। हमें एफ टीवी और अंग्रेजी मूवी चैनलों से ही समाधान करना पड़ता था। ऐसे ही चार-पाँच महीने बीत गए।
एक रात हम दोनों उसके घर पर टीवी देख रहे थे.. एफ टीवी पर अधनंगी मॉडलों को देखकर हम उत्तेजित हो चुके थे.. और अब कुछ अधिक सेक्सी देखने की चाहत लिए अंग्रेजी चैनलों को खोज रहे थे। तभी एक चैनल पर सेक्सी सीन चल रहा था.. उसे देख कर मैं तो पागल ही हो गया। कुछ ही मिनटों के उस सीन ने मेरे लंड को खड़ा कर दिया।
रात भी बहुत हो गई थी.. तो हम दोनों टीवी बंद करके सोने चले गए। हम दोनों अलग-अलग बिस्तर पर सोए हुए थे और उस सेक्सी सीन के बारे में बात कर रहे थे।
मैं- क्या सीन था यार.. उस मादरचोद हीरो और रंडी हीरोइन की चुदाई देख कर तो बड़ा मजा आया।
आमिर- साले.. तू इसी में इतना खुश हो गया.. अगर ब्लू-फिल्म देखेगा तो क्या बोलेगा.. उसमें सब कुछ एकदम खुल्लम-खुल्ला होता है.. उसके मुकाबले ये तो झांट बराबर भी नहीं था।
मैं- हाँ यार.. ना जाने कब मेरी ब्लू-फिल्म देखने की मुराद पूरी होगी.. मैंने घर में सीडी प्लेयर लेने की बात कही है.. लेकिन इतने जल्दी घर के लोग नहीं मानेंगे।
आमिर- साले लौड़े.. तू तो छोटी ही बात सोचेगा.. चुदाई देखने की.. मैं तो ये सोच रहा हूँ कि मैं खुद कब किसी हसीना को चोदूँगा।
मैं- अबे पहले देख तो लूँ.. फिर कर भी लूंगा.. तू देख चुका है.. इसी लिए करने के बारे में सोच रहा है।
आमिर- काश.. कोई रंडी ही मिल जाए जिसकी मैं जम कर चुदाई करूँ.. खूब उसके मम्मे चूसूं.. और उससे मेरा लंड चुसवाऊँ।
मैं- लौड़ा खड़ा है क्या तेरा?
आमिर- कब से खड़ा है.. साला खुद भी नहीं सोता.. ना मुझे सोने देता है.. अब इस को हिलाके सुलाना होगा.. तेरा लंड भी खड़ा है क्या?
मैं- आके चैक कर ले..
आमिर- तेरी चूत होती तो न सिर्फ चैक करता.. बल्कि तेरी चूत से अपना लंड भी चैक करवाता.. अन्दर घुसा-घुसा के..
मैं- अफसोस.. ना तेरे पास चूत है.. ना मेरे पास.. खुद का लंड खुद ही संभालना होगा।
आमिर- साले बता ना.. खड़ा है क्या?
मैं- तुझे क्या लगता है.. आके चैक कर ले.. पता चल जाएगा..
आमिर- साले तुझे चैक करवाना है.. तो तू ही आ जा न..
मैं बहुत ही उत्तेजित हो गया था और मुझे आमिर के लौड़े को छूने का मन कर रहा था। मैं अपने बिस्तर से उठा और आमिर के बिस्तर पर जा कर बैठ गया।
मैंने लौड़ा हिलाते हुए कहा- ले चैक कर ले राजा।
आमिर- अबे चूत के.. मैं तो मजाक कर रहा था.. तू तो सच में आ गया।
मैं- लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ..
ऐसा कहते हुए मैंने आमिर के लौड़े पर हाथ रख दिया। पहले तो उसने हाथ हटा दिया और उठ कर बैठ गया।
वो बोला- अबे साले क्या कर रहा है ये?
मैं- साले.. खुद भी नहीं चैक करता.. ना मुझे करने देता है.. फिर पूछ क्यों रहा है कि लौड़ा खड़ा है या नहीं?
मैं उठ कर वापस अपने बिस्तर पर जाने लगा तो.. आमिर- मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला- ले चैक कर ले..
और उसने मेरा हाथ खुदके लौड़े पे रख दिया।
मैं उसके लंड को सहलाने लगा और कहा- मेरा भी पकड़ ना लवड़े..
आमिर ने भी मेरा लवड़ा पकड़ा और सहलाने लगा। हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट गए.. अब हम दोनों ने अपने-अपने हाथ एक-दूसरे की चड्डी में घुसा दिए और लौड़े सहलाने लगे।
आमिर- साले तेरा लौड़ा तो मुझसे बड़ा है।
मैं- तेरा लंड भी कुछ कम नहीं है.. पत्थर की तरह कड़क है।
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हम दोनों भी अब पूरी तरह से उत्तेजित हो चुके थे, हम दोनों भी एक-दूसरे के पूरे बदन को छू रहे थे, पहली बार किसी को इस तरह छू रहे थे.. तो काफी जोश में थे।
क्या करें.. क्या ना करें.. ऐसी ही स्थिति में थे।
मैंने आमिर के सर को पकड़ा और अपने होंठों को उसके गालों को चूमने लगा। आमिर भी मेरा पूरा साथ दे रहा था और उसने मेरे होंठों को अपने रसीले होंठों से चूम लिया।
वो क्या अनूभूति थी.. ये मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता।
हम दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे.. जुबान से चाटने लगे.. यह था मेरा पहला चुम्बन..
हम दोनों के हाथ एक-दूसरे की चड्डी में घुसे हुए लंड.. आंड.. जांघें और गाण्ड सहला रहे थे.. मसल रहे थे।
आमिर के चूतड़ बहुत ही नर्म थे, मैं उन्हें मसल रहा था और आमिर मेरी गाण्ड के छेद को उंगली से सहला रहा था।
हम दोनों की जुबान एक-दूसरे के मुँह में लड़ रही थी।
फिर हम दोनों ने एक-दूसरे के कपड़े उतारने शुरू किए। हम दोनों भी उम्र में सामान थे.. हमारे शरीरों पर बालों का आना बस शुरू ही हुआ था.. तो हम दोनों काफी चिकने थे।
आमिर के गहरे लाल रंग के निप्पलों को देख कर तो मैं पागल ही हो गया और उन्हें चूसने लगा।
आमिर का एक हाथ मेरे बालों में घूम रहा था.. तो दूसरा मेरे निप्पलों को अपनी ऊँगलियों में पकड़ के मसल रहा था। मैंने हल्के से काटा.. तो आमिर के मुँह से ‘हाय…’ निकल गई।
उसने कहा- मादरचोद.. काट मत.. मेरे बहुत नाजुक हैं.. जुबान और होंठों से चूस..
तो मैंने कहा- बहनचोद… मेरे क्या पत्थर के है?
हम दोनों हँस पड़े।
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कहानी जारी है।
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