सविता भाभी जैसी पड़ोसन भाभी-2
दोस्तो, मैं कुणाल.. अब तक आपने पढ़ा कि मैं भाभी जी को बाथरूम के रोशनदान से देख रहा था।
मेरी समझ में आ गया कि आज भाभी की चूत में आग लगी है। मैं भी उनको देख कर गरम हो चुका था और मेरा लौड़ा खड़ा हो गया था। मैं अपने लौड़े को सहला कर शांत करा रहा था- रुक जा भोसड़ी के, आज चूत मिलेगी तो तू ही तो चूत का औजार है मादरचोद.. जार सब्र तो कर।
इतने में जाने कैसे ऊपर से कुछ चीज की आवाज आई और भाभी ने रोशनदान की तरफ देखा तो मैं सकपका गया.. और जल्दी से उतर कर अभी नीचे उतरा ही था कि भाभी ने दरवाजा खोल दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया।
मेरी तो फट गई.. कि आज माँ चुद गई अब जाने क्या होगा।
तभी आश्चर्य.. भाभी ने मुझे बाथरूम में खींच लिया और दरवाजे लगा कर उससे पीठ टिका कर खड़ी हो गईं।
मैं हक्का-बक्का था.. पर अगले ही पल जैसे ही भाभी ने मुझे एक आँख मारी.. मैं समझ गया कि यह भाभी सविता भाभी की तरह चुदक्कड़ है.. तब भी मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ा रहा।
भाभी ने बिंदास कहा- अब क्या हुआ.. नंगी खड़ी हूँ.. कुछ करोगे नहीं?
मैंने सर उठाया और उनकी तरफ देखा तो वो अपनी चूचियों को मसल रही थीं और बड़े ही कामुक अंदाज में अपनी जीभ को अपने होंठों पर फेर कर मुझे उकसा रही थीं।
उनका यह पोज देख कर मुझे वास्तव में किसी रंडी की याद गई जो इस तरह से अपने ग्राहक को चोदने के लिए आमंत्रित करती है..
खैर.. मैं उनकी तरफ बढ़ा और मैंने उनको अपनी गोद में उठा लिया।
वो बोलीं- यही उम्मीद थी.. चलो चुदाई के अखाड़े में चलते हैं..
मैं मुस्कुरा उठा और उनके होंठों से अपने होंठों को चिपका दिया।
आह्ह.. क्या मस्त रसीले होंठ थे..
मैंने ड्राइंगरूम में ले जाकर दीवान पर उनको गिरा दिया।
भाभी तो सिर्फ पैन्टी में ही थीं.. मैंने अपने कपड़े जल्दी से उतारे और लौड़ा हिलाते हुए भाभी की तरफ बढ़ा।
भाभी पहले तो अपनी टांगें पसारे चूत सहला रही थीं.. लेकिन जैसे ही उन्होंने मेरा हलब्बी लण्ड देखा.. उनकी आँखें फ़ैल गईं…
‘राहुल.. यह क्या है.. इतना बड़ा.. मैंने तो सोचा ही नहीं था.. मेरी तो फट जाएगी..’
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मैं मुस्कुरा दिया, मैंने कहा- क्या भाभी इतनी बहकी-बहकी बातें कर रही हो.. अपनी इसी छेद से तो तुमने दो दो बच्चे निकाले हैं.. अब भी क्या मेरा औजार तुम्हारी चूत को फाड़ सकता है.. आराम से लील जाओगी मेरी सविता भाभी सी भाभी..
भाभी मुस्कुरा उठीं, बोली- अरे वाह्… त्युम भी सविता भाभी कार्टून के शौकीन हो?
और बैठ कर उन्होंने मेरा लवड़ा पकड़ लिया।
कुछ देर लौड़े को हाथ से सहलाने के बाद उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपने मुँह में ‘गप्प’ से सुपारे को दबा लिया।
‘आह्ह.. मेरी तो आँखें मुंद गईं..’
मुझे मजा आ गया.. लण्ड का उद्घाटन ही मुँह से हुआ था.. बड़ा मजा आया।
कुछ देर लण्ड चूसने के बाद भाभी जी ने मेरी गोटियों को चूसना शुरू कर दिया। मेरी तो मानो लाटरी निकल आई थी.. मैंने अपने हाथों में उनकी चूचियों को थाम लिया और मसलने लगा।
कुछ ही देर में मैंने भाभी से कहा- अब 69 में हो जाए?
भाभी तो जैसे यही चाहती थीं.. तुरंत चित्त हो गईं।
मैंने उनकी चूत की तरफ अपना मुँह करके अपने लौड़े को उनके होंठों पर टिका कर घोड़ा सा बन गया।
भाभी की चिकनी और गोरी चूत.. महक रही थी.. मैंने अपनी जीभ को चूत पर फेरा.. तो भाभी चिहुंक सी गईं।
अब दोनों तरफ से हम दोनों एक-दूसरे के गुप्तांगों को चूसने और चाटने में लगे थे।
कुछ ही देर में हम दोनों झड़ गए और फिर सीधे हो कर एक-दूसरे को अपने होंठों से अपने-अपने गुप्तांगों का रस चटाया।
इस तरह से मस्त हो कर चुदाई का खेल चल रहा था।
यूं ही कुछ देर और प्यार से चुम्बनों की बारिश हुई.. हम दोनों फिर से गरम हो गए।
फिर चूत चुदाई की बेला आ गई।
भाभी बोलीं- मेरी जान.. अब नहीं सहा जाता है.. जल्दी से चढ़ जाओ और चोद दो..
मैंने उनकी चूचियों को अपने मुँह में से निकाल कर कहा- ओके डार्लिंग.. अभी लो..
अब मैं उठा और भाभी की टाँगों को फैला कर चूत के सामने बैठ कर अपना लौड़ा हिलाने लगा..
फिर चूत की दरार पर अपने सुपारे को टिकाया और उनकी चूत लण्ड लीलने के लिए थोड़ी सी खुली.. मैंने सुपारा उस खुलती हुई फांकों पर रगड़ा और सुपारे को चूत में फंसा दिया।
भाभी ने मेरा आंवले के नाप का सुपारा जैसे ही चूत के मुँह में फंसता हुआ महसूस किया.. उनकी एक ‘आह्ह..’ निकल गई।
उनकी आँखें पीड़ा से फ़ैल सी गईं और उनके हाथों की मुट्ठियाँ बंध गईं.. मैंने पूछा- क्या हुआ जान?
‘तुम्हारा बहुत बड़ा है..’ उनके कंठ से एक सी आवाज निकली।
मैं मुस्कुरा कर कहा- बस दो मिनट.. फिर इससे कम छोटे में तुम्हारा काम नहीं चलेगा डार्लिंग।
वो हंस सी पड़ीं.. पर पीड़ा के कारण खुल कर नहीं हंस पाईं।
मैंने देर न करते हुए उससे कहा- अब झेलना.. रन्नो..
उसने अभी अपनी ताकत समेटी ही थी कि मैंने अपना मुसंड उनकी बुर में ठूंस दिया।
‘आई..उई..ओह्ह.. मर गई.. माँ.. साले क्या घुसेड़ दिया.. निकालो..’
मैं एक पल के लिए रुका और फिर कुछ देर तक उनकी चूचियों को चूसा.. उनकी चूत ने लण्ड को सहन कर लिया था तो मैंने फिर एक झटका मारा और इस बार बेरहमी से एक बार में ही पूरा औजार चूत की जड़ में पहुँच गया था।
मैंने इसी के साथ अपने होंठों का ढक्कन उनके मुँह पर कस दिया था।
भाभी बिन पानी मछली की तरह मेरी पकड़ से छूटने को मचल रही थीं.. पर कुछ ही देर में सब कुछ ठीक हो गया और उनके चूतड़ों ने नीचे से अपनी चुदास दिखानी आरम्भ कर दी।
नीचे से चूतड़ों की ठोकर ने मानो मेरे लवड़े को गुस्सा दिला दिया हो.. हचक कर चार ठापें चूत के मुँह पर पड़ी तो चूत रो दी।
पानी सी सराबोर चूत ने मेरे लवड़े को खूब लीला.. और मेरे लण्ड ने भी चूत की खूब धुनाई की.. भाभी दो बार अकड़ कर झड़ चुकी थीं।
मैंने अब भाभी से कहा- पोज बदलें?
भाभी कराहते हुए बोलीं- तुम तो चूत ही बदल लो.. मेरे बस में नहीं है तुम बहुत बेदर्दी हो।
मैं हंस पड़ा।
फिर मैंने सोचा पहला स्खलन इसी पोज में हो जाने दो तो मैंने फिर उनसे पूछा- माल तो अन्दर ही लोगी न?
भाभी जी हंस पड़ी और बोलीं- हाँ अब तो ऑपरेशन हो चुका है.. कोई चिंता नहीं है.. अन्दर ही आ जाना..
अब क्या था.. मैंने जबरदस्त तरीके से चुदाई करना चालू कर दिया था।
करीब डेढ़ सौ चोटों के बाद लौड़े ने पानी चूत में ही छोड़ दिया और मैं निढाल हो कर भाभी के ऊपर ही ढेर हो गया।
भाभी पूर्ण रूप से तृप्त हो चुकी थीं.. उन्होंने मुझे दुलारते हुए मेरे बालों में अपने अतिरिक्त ठोकू को जो पा लिया था।
मित्रों मैंने सिर्फ घटना को कहानी के रूप में अपनी टूटी-फूटी भाषा में लिख कर दिया था.. जिसको रसपूर्ण बनाने में अन्तर्वासना का भी बड़ा सहयोग रहता है.. मैं आप सभी से उम्मीद करता हूँ कि आप मुझे अपने ईमेल जरूर भेजेंगे।
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