होली देवर से और चूत चुदाई भतीजे से
मेरा नाम कामिनी है और मैं 42 साल की शादीशुदा.. दो बच्चों की माँ हूँ। उम्र के इस पड़ाव में आकर मेरे अन्दर कुछ परिवर्तन आए हैं। अब मुझे 17-18 साल के लड़के अच्छे लगने लगे हैं। वैसे तो पति और मेरे बीच महीनों में कभी-कभार सम्भोग हो जाता है और ज्यादा कोई इच्छा भी नहीं रही.. पर जवान लड़कों को देखती हूँ.. तो ना जाने क्यों मुझे चूत चुदवाने का दिल करने लगता है।
हमारे पड़ोसी रमेश जी मेरे पति के बहुत अच्छे और बहुत पुराने दोस्त हैं। वो मुझे भाभी बुलाते हैं और मैं उन्हें देवर जी कह कर संबोधित करती हूँ।
वे मुझसे देवर भाभी के रिश्ते की तरह मज़ाक भी किया करते हैं। उनका लड़का अमित 18 साल का था और मुझे उस पर दिल आ गया था।
वैसे तो इस उम्र में मेरी सम्भोग शक्ति बहुत कम हो गई थी और 10 मिनट से ज्यादा मैं इस खेल में भाग नहीं ले नहीं सकती थी। फिर भी मैं अमित से अपनी चूत चुदवाना चाहती थी। मुझे यह भी पता था.. कि अमित भी अभी ज्यादा देर तक नहीं चोद पाएगा.. क्योंकि वो कुंवारा है और सिर्फ 18 साल का है.. इसलिए मुझे इस बात से कुछ खुशी भी होती थी।
पिछली होली की बात है.. रमेश जी दारू पी कर मेरे घर आए और मेरे साथ छेड़-छाड़ करने लगे।
रमेश जी- भाभी जी.. आज तो होली है.. अपने देवर को रंग लगाने दो.. मैं रगड़-रगड़ कर रंग लगाऊँगा अपनी भाभी को..
मुझे उनकी गन्दी बातें करने की आदत पता थी और मेरे पति को भी उनकी बात कभी बुरी नहीं लगी.. पर उस दिन पतिदेव भी नहीं थे और बच्चे भी घर से बाहर थे।
मैं बोली- देवर जी.. मैंने आपके बेटे को खाने पर बुलाया है.. बस वो अभी आता ही होगा.. आप ऐसी बातें करोगे तो वो सुन लेगा..
रमेश जी- अरे भाभी.. पहले बाप खाएगा फिर बेटे को भी खिला देना.. वैसे भी बेटा तो सिर्फ दूध पिएगा.. मैं तो पूरे का पूरा खा जाऊँगा..
मैं रसोईघर में थी.. अन्दर से ही बोली- अरे देवर जी.. अपनी उम्र का तो लिहाज करो.. अब बच्चों का जमाना है..
रमेश जी- मेरी जवानी को ललकारोगी तो पछताना पड़ेगा.. वैसे भी तुम्हारे मस्त पिछवाड़े को देखकर किसी का भी खड़ा हो जाता है..
नशे में अब वो खुल्लम-खुल्ला हो चले थे।
मैंने कहा- कितना गन्दा बोलते हो.. लगता है आपने तो शरम बेच दी है..
उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया.. मैंने उनके लंड को अपनी गाण्ड पर महसूस किया।
‘भाभी.. जिसने की शरम.. उसके फूटे करम..’
यह कहते हुए वो मेरे गालों पर रंग लगाने लगे और रंग लगाते हुए मेरी गाण्ड को भी रगड़ने लगे।
‘छोड़ो मुझे देवर जी.. मुझे होली नहीं खेलनी..’
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मैं किसी तरह उनसे अपने आपको छुड़ा कर रसोई से निकली.. लेकिन रमेश जी शराब के नशे में थे.. वो मेरे पीछे भागे.. मैं भी उनसे बचने के लिए भागी.. पर उन्होंने मुझे फिर से पकड़ लिया और नीचे फर्श पर लिटा दिया। अब वो मेरे गालों पर मसल-मसल कर रंग लगा रहे थे।
‘छोड़ो ना.. एक मैं ही बची हूँ क्या.. होली खेलने को…?’
वो मेरे गालों और गले में रंग लगा चुका था।
‘जब तक देवर भाभी की चूचियां ना रंग दे.. तब तक होली कामयाब नहीं होती..’
यह कहते हुए वो मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगे।
‘अरे.. अरे.. आज आपने ज्यादा पी ली है.. अभी आपके दोस्त आ जायेंगे तो गलत मतलब निकाल लेंगे..’
उस दिन मैंने ब्रा और पैन्टी कुछ भी नहीं पहन रखी थी.. शायद अमित के लिए.. पर मुझे नहीं पता था कि उसका फायदा उसके बाप को मिलेगा।
उसने मेरे ब्लाउज के दो बटन खोल दिए थे और मेरे ब्लाउज के अन्दर हाथ डाल कर मेरी बड़ी-बड़ी गोरी चूचियों को मसलते हुए रंग लगा रहे थे।
उसके हाथ की हरकत से पता चल रहा था कि वो रंग लगाने से ज्यादा मेरी चूचियों को मसलने में मस्त हैं।
‘बस करो देवर जी, कितना रंग लगाओगे? तुम्हारे दोस्त के रंग लगाने के लिए भी तो जगह छोड़ दो..’
मैं उसके चंगुल से निकली और बाथरूम की तरफ जाने लगी।
‘बहुत होली खेल लिए देवर जी.. अब घर जाकर अपनी लुगाई के साथ बाकी की होली खेलो..’
पर वो कहाँ मानने वाले थे.. वो उठे और पीछे से मुझे पकड़ कर मुझे दीवार से सटा कर खड़ा कर दिया। मैंने अपनी गाण्ड पर उनके खड़े लंड को महसूस किया.. वो धीरे-धीरे कमर हिलाते हुए लंड मेरी गाण्ड पर रगड़ रहे थे।
‘क्या कर रहे हो देवर जी..? अब बस भी करो.. मुझे नहाना है..!’
उन्होंने एक हाथ से मुझे दीवार में दबा रखा था और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी ऊपर उठाने लगे।
‘अरे साड़ी क्यों ऊपर उठा रहे हो??’
‘मैंने कहा था ना.. अपनी भाभी को रगड़-रगड़ कर चारों तरफ़ से रंग लगाऊँगा..’
उन्होंने मेरी साड़ी ऊपर की और एक हाथ साड़ी के अन्दर डाल कर मेरी नंगी गाण्ड को चारों तरफ से गुलाल लगाने लगे।
ऐसा नहीं है कि पहली बार कोई पराया मर्द मेरी नंगी गाण्ड को दबा रहा हो.. इससे पहले दो लोग मेरी चुदाई कर चुके है और उनमें से एक रमेश जी के दोस्त हैं और इसलिए रमेश जी को भी पता है।
वो दस साल पहले की बात है। हम 4 परिवार पिकनिक पर गए थे.. हम सभी ने उस हिल स्टेशन में बहुत एन्जॉय किया.. और उनमें से एक थे अरुण जी.. जो मुझ पर लट्टू हो गए थे..
बाद में मौका देखकर वो मुझे जंगल के अन्दर ले गया और वह मेरी काफी चुदाई की.. यह ‘जंगल में मंगल’ की घटना रमेश जी ने देख ली थी.. पर क्योंकि वो हमारे अच्छे नजदीकी हैं.. उन्होंने मेरे से भी इस बात का कभी ज़िक्र नहीं किया और ना ही कभी इस बात का फायदा उठाया..
आज वो कुछ ज्यादा ही नशे में थे.. पर मैं जानती थी वो बस रंग ही लगायेंगे..
रमेश जी अब मेरी गाण्ड की दरार में ऊँगली फेर रहे थे.. बोले- भाभी तुम्हारी गाण्ड तो काफी गहरी है.. मेरा दोस्त तो तुमको कुतिया बनाकर पेलता होगा?
‘अरे देवर जी.. इतनी गन्दी बातें क्यों करते हो..? जल्दी से रंग लगा लो.. कोई आने वाला है..’
मुझे आज भी वो दिन याद है.. जब मैं अपने पति की एक ऑफिस पार्टी में गई थी.. उनके बॉस के घर पर पार्टी थी.. हॉल में लोग नाच-गा रहे थे.. दारू पी रहे थे.. काफी भीड़ थी.. और मैं एक कोने खड़ी थी.. तभी इनके बॉस मेरे पास आए और मुझसे बातें करने लगे.. बात करते हुए वो बार-बार अपने एक हाथ को मेरी गाण्ड से टकरा रहे थे.. मानो अनजाने में लग रहा हो..
मुझे नहीं पता था कि वो औरतों का बहुत ही शौक़ीन आदमी है.. वो मुझसे नार्मली ही बात कर रहे थे.. पर मैंने महसूस किया कि उनका हाथ अब मेरी गाण्ड को चारों तरफ से सहला रहा था। मैं भी अनजान बन रही थी.. बॉस को ना शर्मिंदा कर सकती थी और ना ही नाराज़..
मैं उनके सवालों को जवाब दिए बिना वहाँ से जा भी नहीं सकती थी.. इससे उनकी बेईज्ज़ती हो जाती और इसका हर्जाना मेरे पति को भुगतना पड़ जाता।
वो मुझसे बात करते हुए मेरी गाण्ड को दबाने लगे.. मैं उनके हाथ को अपनी गाण्ड की दरार पर महसूस करने लगी। साड़ी के साथ ऊँगली को अन्दर ले कर वो मेरे गाण्ड के छेद को दबाता हुआ बोला- चलो तुमको अपना घर दिखता हूँ.. और तुम्हारे पति के प्रोमशन की भी बात करता हूँ..
मैं उनके साथ चल दी.. वो सीधा मुझे अपने बेडरूम में ले गए.. पहले तो मुझे बिस्तर में लिटा कर मेरी साड़ी ऊपर करके मुझे कुछ देर तक चोदा और फिर मुझे कुतिया बना दिया और गाण्ड में कोई क्रीम लगाई.. कुतिया बना कर अच्छी तरह से मेरी गाण्ड मारी.. पहली बार किसी मर्द ने मेरी गाण्ड मारी थी। उस दिन काफी दर्द हुआ था..
जब आज फिर से मेरी गाण्ड पर हाथ फेरा गया तो.. मुझे अपने अतीत की ये घटनाएँ आज बरबस ही याद आ गई थीं।
‘ऊउईई माँआआ.. देवर जी.. उंगली क्यों घुसा दी…?’
‘लोग तो पता नहीं अपनी भाभी के साथ क्या-क्या करते हैं.. हमको गाण्ड में उंगली घुसाने तक की इज़ाज़त नहीं..!’
उन्होंने बहुत देर तक मेरी गाण्ड दबाई.. सहलाई.. उंगली की और गाण्ड लाल कर दी..
फिर अचानक मुझे पलटा.. सामने से साड़ी उठाई और मेरी चूत को सहलाने लगे- भाभी पेल दूँ क्या?
‘नहीं नहीं.. देवर जी.. अब ये सब अच्छा नहीं लगता.. प्लीज़ ऐसा मत करना..’
बस वो मेरी चूत में उंगली करते रहे..
तभी दरवाजे की घंटी बजी और मैंने राहत की सांस ली.. मैं बाथरूम में चली गई और रमेश जी दरवाजा खोला।
रमेश जी का बेटा अमित आया था.. ‘पापा चाची जी कहाँ है?’
‘वो नहा रही हैं बेटा.. मैं भी काफी देर से इंतज़ार कर रहा था.. अब मैं चलता हूँ.. मुझे और जगह भी होली की बधाई देनी है.. तुम बैठो..’
रमेश जी चले गए.. बाथरूम का दरवाजा खुला था.. मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी और मैं बिल्कुल नंगी हो कर नहा रही थी.. मैंने महसूस किया कि कोई मुझे पीछे से दख रहा है और उसकी निगाहें सिर्फ मेरी गोरी-मोटी गाण्ड पर हैं।
आज मुझे अजीब-सा अहसाह होने लगा लेकिन फिर भी मैं बिना पलते नहाती रही.. और फिर पेटीकोट अपनी चूचियों के ऊपर तक बांध कर पलटी तो देखा अमित खड़ा है और अमित ‘का’ भी खड़ा है।
वो शर्मा गया लेकिन मैं उसकी हिम्मत बढ़ाना चाहती थी- अरे बदमाश.. अपनी चाची को नहाते देख रहा था?
वो सर झुकाए खड़ा था।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- हूँ ना तुम्हारी सभी सहेलियों से खूबसूरत?
अमित शर्माता हुआ बोला- जी चाची जी..
मैं अब उसकी शर्म को तोडना चाहती थी..
‘ज्यादा बड़ी तो नहीं है ना?’
अमित शर्माता हुआ बोला- नहीं.. चाची जी बड़ी ही ज्यादा अच्छी लगती है..
मैं हँस पड़ी और उसकी तरफ पलट गई.. अपना पेटीकोट ऊपर उठा कर अपनी गाण्ड को उसके सामने नंगी कर बोली- जरा छू कर बता कैसी है? पर देख कोई बदमाशी नहीं करना..
उसने मेरी गाण्ड पर हाथ रखा और चारों तरफ से सहलाने लगा.. मैं चुपचाप खड़ी थी.. धीरे से मैंने अपनी टाँगों को फैला दिया.. वो मेरी गाण्ड के छेद और चूत दोनों को सहलाने लगा..
कुछ देर बाद उसने मेरे कान में कहा- चाची जी बिस्तर पर चलो.. आपको चोदना है..
मैंने समय बर्बाद न करते हुए उससे कहा- आराम से.. प्यार से चोदना अपनी चाची को..
मैं नंगी हो कर बिस्तर पर लेट गई और वो भी जल्दी ही नंगा गया.. उसका लंड करीब 8″ का था और मेरी उम्मीद से काफी बड़ा था.. मैं थोड़ा सा घबराई.. पर फिर सोचा बच्चा है और पहली बार है इसका तो 10 मिनट में ही झड़ जाएगा।
वो मेरे ऊपर लेट गया और काफी देर तक मेरी चूचियों को दबाता.. सहलाता और चूसता रहा..
फिर धीरे-धीरे अपने लंड को मेरी चूत में पेलने लगा.. काफी दिनों बाद.. मेरी चूत में इतना तगड़ा लंड घुस रहा था।
मेरे मुँह से ‘आह.. ह्ह..’ निकल गई..
वो जवान लड़का था.. बहुत ताबड़तोड़ तरीके से चुदाई कर रहा था।
करीब 10 मिनट की उसकी बेतहाशा चुदाई से मैं झड़ गई.. पर वो नहीं झड़ा.. वो मुझे चोदता रहा.. मैंने उसको छोड़ने को बोला.. पर वो नहीं माना।
पहले तो मेरे ऊपर लेट कर चोद रहा था.. फिर बैठ कर चोदने लगा.. मेरे लाख मना करने के बाद भी उसने मुझे पलट दिया.. और मेरे ऊपर लेट कर पीछे से मेरी चूत मारने लगा..
‘अब बस करो अमित.. आह्ह.. आह..ह्ह.. इस्स्स्स.. इस्स्स्स.. अपनी आह..ह्ह.. चाची की आह..ह्ह्ह.. ऊईई माँअआ.. जान लोगे क्या.. आआह्ह..’
अमित अचानक उठा.. दोनों हाथों से मेरी गाण्ड पकड़ी और ऊपर उठा लिया, मेरी चूत फ़ैल गई.. अपना लंड मेरी चूत में एक झटके के साथ पूरा का पूरा पेल दिया।
‘ऊईईई माँआआ..!’
मेरे बदन के हिलने और खटिया की आवाज़ से कोई भी समझ सकता था कि मेरी कितनी बुरी तरह से चुदाई चल रही थी।
करीब आधे घंटे बाद वो मेरी चूत के अन्दर ही झड़ गया.. मैं वैसी ही काफी देर तक.. बिस्तर में निढाल हो कर पड़ी रही।
अमित कपड़े पहन कर चुपचाप चला गया.. मेरे बाल बिखरे हुए थे.. मैं पूरी नंगी बिस्तर में उल्टा लेटी हुई थी.. कोई भी उस वक्त मुझे देखता तो समझ जाता कि मेरी बेतहाशा चुदाई हुई है..
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