आकांक्षा होटल में चुद गई
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम रमेश है, मैं सूरत से हूँ। मेरे एक दोस्त की मोबाइल की दुकान हैं, मैं रोज कॉलेज आने के बाद अपने दोस्त की दुकान पर जाता था, हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं, दोस्त की दुकान के ऊपर एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर हैं।
कहते हैं न कि भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है, और मेरे साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ।
मैं दुकान के बाहर अपनी गाड़ी में बैठे बैठे ऊपर जा रही लड़कियों को देख रहा था कि तभी ऊपर छत पर खड़ी एक लड़की से मेरी नजर टकराई, और कमबख्त मैं अपनी नजर न हटा सका।
क्या क़यामत लग रही थी !
हम एक-दूसरे को लगभग दो मिनट तक देखते रहे और वो फिर अन्दर अपनी क्लास के लिए चली गई।
मुझे पता नहीं क्या नशा सा चढ़ गया मैं पहले कई कई दिन तक दोस्त की दुकान पर नहीं जाता था, पर उस दिन से रोज जाता और हम दोनों की नजरें टकराती पर न उसे मेरा नाम और ना मुझे उसका नाम पता था।
मैंने देखा कि वो क्लास से निकालने के बाद अकेले कुछ दूर पर एक गली थी, वहाँ से जाती थी। मैं आज पहले ही वहाँ पहुँच गया और जब वो आई तो बड़ी हिम्मत करके मैंने उसे ‘हाय’ कहा।
सच बोलूँ दोस्तो, मेरी गांड फट भी रही थी कि कहीं कुछ हो न जाये, पर शायद सब अच्छा ही होने वाला था। उसने भी मुझे हैलो कहा और हमने एक-दूसरे को अपना नाम बताया।
उस क़यामत का नाम आकांक्षा था। मैंने उसे पूरा ऊपर से नीचे तक देखा। उसका सेक्सी फिगर 32-30-32 का होगा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितनी जबरदस्त होगी आकांक्षा।
उसने मुझे बताया कि वो भी कॉलेज के सेकण्ड ईयर में है। हमने मोबाइल नम्बर शेयर किये और चले गए।
मैंने शाम को 8 बजे के लगभग उसे कॉल किया और सामने से एक मीठी सी आवाज़ आई- हैलो।
मैंने बोला- मैं रमेश, आपके कंप्यूटर क्लास वाला।
उसने कहा- बोलिए।
और फिर हम इधर-उधर की बातें करते रहे और ऐसे करते-करते हमें लगभग पंद्रह दिन हो गए।
एक दिन मैंने कहा कि यार मुझे तुम्हारे साथ कुछ प्यार के हसीन पल बिताने हैं। क्या तुम मुझे उन प्यार के पलों में शामिल करना चाहोगी?
उसने कहा- आप ही हमारे प्यार हो। आप जब चाहो, जहाँ चाहोगे हम वहाँ आ जायेंगे।
मुझे क्या पता था कि आग दोनों साइड में है। हमने बुधवार को मिलने का तय किया और उस दिन मैंने उसे रिक्शा स्टैंड से ही अपनी बाइक पर बिठा लिया और सीधे निकल गए दुम्मस के लिए।
वहाँ हम 8.30 तक पहुँच गए। मस्त बीच के किनारे और पत्थरों पर बैठे और बातें करते रहे।
धीरे-धीरे मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, उसने कोई विरोध नहीं किया। जो लोग सूरत से होंगे, वो तो जानते ही होंगे कि वहाँ कोई कुछ भी करे, कोई बोलने वाला नहीं है क्योंकि वहाँ सब अपने में ही मस्त रहते हैं।
अब मैं और आकांक्षा भी एक-दूसरे को किस भी करने लगे। और इसी तरह कब दस बज गए, पता ही नहीं चला। मैंने मन में सोचा कि बेटा रमेश मौका अच्छा हैं फिर कभी चांस मिले न मिले, आज ही चोद ले आकांक्षा को।
मैंने कहा- जानू, हम यहाँ पर खुले में प्यार कर रहे हैं। अगर कोई अपनी पहचान का आ गया तो परेशानी हो सकती है। एक काम करो हम किसी होटल में चलते हैं।
आकांक्षा ने भी हामी भर दी। अब मेरा लंड मन ही मन में खुश होकर फूलता जा रहा था। हमने गाड़ी स्टार्ट की और मेन रोड पर दो होटल हैं। उसमें पहले वाले में मैंने गाड़ी घुसा दी।
वहाँ पर एक कमरा लिया और दस से पंद्रह मिनट में होटल के एक मस्त कमरे में अकेले थे। आकांक्षा थोड़ा शरमा रही थी।
मैंने कहा- जान शरमाओगी तो मज़ा कहाँ से आएगा !
मैं उसके बाजू में बैठ कर अपना हाथ उसकी जाँघों के ऊपर रखा, उसे जैसे करेंट लग गया हो पर उसने विरोध नहीं किया।
मैंने उसे प्यार से बिस्तर पर लिटाया और धीरे-धीरे उसके माथे को, उसकी आँखों को किस करने लगा। आकांक्षा भी मदहोश होने लगी और अपनी आँखे बंद कर ली। बिना किसी विरोध के पहली बार में ही मेरा पूरा सहयोग करने लगी।
मैंने उससे पूछा- क्या खुल कर सेक्स करोगी?
आकांक्षा ने तुरंत हामी भर दी। अब मैंने सबसे पहले अपने पैंट-शर्ट उतार दिए पर चड्डी नहीं उतारी और लंड महाराज ख़ुशी से फूल चुके थे और साफ़-साफ़ दिख रहे थे।
मैंने उसके भी कपड़े उतार दिए। आकांक्षा ने ब्रा नहीं पहनी थी, उसने कमीज पहनी थी। जैसे ही मैंने उसकी समीज ऊपर करके उतारी। उसके गोरे-गोरे मस्त संतरे देखकर मैं सब कुछ भूल गया।
अब क्या बताऊँ, ऐसे दूध मैंने आज तक किसी भी लड़की के नहीं देखे थे। तुरंत मैंने उसके बूब्स को अपने हाथों में ऐसे कस लिए, जैसे कोई देख लेगा तो उन्हें चुरा न ले।
आकांक्षा ने कहा- क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहे हो?
मैंने कहा- तुम्हारा ऊपर का पहाड़ जब इतना खूबसूरत हैं तो नीचे की नदी कितनी मस्त होगी।
उसने कहा- जैसे पहाड़ देखे हैं वैसे ही नदी भी देख लेना। पर नदी को सोखने वाला पीपा मतलब मेरा लंड कहा है?
उसका इतना कहना हुआ कि मैंने तुरंत अपना लंड निकाल दिया और वो फटाक से मेरे लंड को अपने मुँह में भर कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
मुझे अब समझते देर न लगी कि यह खिलाड़ी भी मेरी तरह खाया-पिया है।
मैंने सोचा ‘माँ चुदाये सब कुछ, मुझे तो बस चोदने से मतलब।’
वो मेरा लंड चूसे जा रही थी, मैंने कहा- अरे मुझे भी तो कुछ दो, तुम ऐसे में तो मेरा पानी निकाल दोगी।
उसने कहा- हाँ ! और मुझे तुम्हारा पानी भी पीना है।
मैंने कहा- एक शर्त है।
वो बोली- क्या?
मैंने कहा- अगर तुम मुझे भी अपनी चूत का पानी पिलाओगी, तब मैं अपने लंड का पानी पिलाऊँगा।
उसने भी ‘हां’ बोला।
अब हम 69 की अवस्था में आ गए। मैं उसकी मस्त हल्के बालों वाली चूत चाट रहा था और वो मेरा लंड चूस रही थी। ऐसे ही चूसते-चूसते हमें 7-8 मिनट हुए और हमारा शरीर अकड़ने लगा।
हम दोनों ने एक-दूसरे के मुँह में अपना पानी छोड़ दिया। मैंने तो उसका पानी थोड़ा छोड़ भी दिया पर उस साली ने मेरे लंड के पानी को चूस-चूस कर चाट लिया।
अब हम दोनों बेशर्म हो चुके थे, गालियाँ देने लगे थे, जिससे चुदाई में आनन्द भी आता है।
मैंने कहा- साली चुदक्कड़ माल, बहन की लौड़ी, तूने पहले कितनों से चुदवाया है?
वो तुरंत बोली- बहन के लौड़े, मैंने चाहे सौ से चुदवाया हो। वो छोड़, तुझे मैं मिल रही हूँ न चोदने के लिए? तो बस चोद। और तू भी साले कौन सा दूध का धुला हुआ है। तूने भी तो कई फ़ुद्दियाँ ढीली की हैं।
मैंने देर न करते हुए उससे कहा- जल्दी से मेरा लंड चूस और अपने भोसड़े के लिए तैयार कर।
कहने की देर थी कि तुरंत उसने लंड चूसना चालू किया और पाँच मिनट में तुरंत तैयार कर दिया।
मैंने कहा- कैसे डलवाएगी?
उसने तुरंत अपने दोनों हाथ पीछे किये और अपनी चूत को आगे की तरफ उठा दिया। मैंने भी तुरंत अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ कर उसे चोदने लगा।
लंड अभी थोडा ही गया होगा, वो सिसकारने लगी, मेरे लंड को ऐसा लगा जैसे कहीं आग की भट्ठी न हो। थोड़ी देर ऐसे चोदने के बाद मैंने उसे डौगी स्टाइल में चोदा।
दोस्तो, आप यकीन नहीं मानोगे, वो चोदने में, हर स्टाइल में मुझे ज्यादा एक्सपर्ट लग रही थी। उसने वहाँ पर अपनी चूत और गांड दोनों मराई और जी भर के चुदवाई।
अब मैं और आकांक्षा पूरी तरह थक चुके थे। उसने मेरे लंड का एक बूंद भी गिरने नहीं दिया था, पूरा चूसा था।
इसी तरह हमने वहाँ तीन बार चुदाई की और हम दोनों बुरी तरह थक गए थे, मेरे लंड में भी दर्द होने लगा था।
वो भी बोली- मेरी चूत भी सूज गई है।
हमने वहाँ से 12 बजे चेक-आउट किया।
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