आंटी ने सिखाया-6
प्रेषक : अमन वर्मा
“यह बच्चा मुझे चाहिए… चाहे पैदा करके आप उसे ना रखो।”
“फिर मैं उस बच्चे का क्या करूँगी?”
“कुछ भी करो। अनाथ आश्रम में डाल देना।”
“हाँ.. यह कर सकती हूँ मैं तुम्हारे लिए। तुम्हें पता है कि एक माँ के लिए उसके बच्चे को अलग कर पाना कितना मुश्किल है।”
“इस बच्चे को कोख में मारना भी पाप है। आप उसे धरती में आने दो। उसे अनाथ आश्रम में डाल देंगे। फिर थोड़े समय बाद उसे गोद ले लेना आप..!”
आंटी इसके लिए राज़ी हो गई। मुझे उस बच्चे में बस यही ही दिलचस्पी थी कि मैं आंटी की कोख हरी करना चाहता था और अपने आपको मर्द साबित करना चाहता था।
हमारे बीच वैसे ही चुदाई चलती रही। जब 6 महीने हो गए तो आंटी के पेट का साइज़ बढ़ गया।
मैंने उनकी देख भाल के लिए एक आया और रख ली। उन दिनों मैं आंटी से चुदाई नहीं कर पाता था। वैसे तो आंटी चाहती थीं मगर मैं बच्चे का ख्याल करता था। मेरी चुदाई की चाहत बढ़ती जा रही थी। तभी उन दिनों मेरी काम वाली की तबियत खराब हो गई और अगले दिन उसकी बेटी काम पर आई।
मैंने उससे पूछा- उसकी माँ कहाँ हैं?
तो उसने कहा- वो बीमार हैं और जब तक वो ठीक नहीं हो जातीं, तब तक मैं ही काम करूँगी।
वो लड़की एक 18 साल की कच्ची कमसिन कली थी। हाइट कोई 5 फीट 5 इंच होगी। लंबे बाल… सुन्दर गोरा चेहरा… पतली कमर और लहराते बाल, सुडौल जांघें..। उसकी छाती कोई खास नहीं थी। छोटे-छोटे चीकू जैसे स्तन मगर उभरे हुए से थे।
उस लड़की को देख कर मेरा ईमान डोलने लगा। मैंने उसका नाम पूछा तो उसने सुषमा बताया। मैं रसोई में सुषमा की थोड़ी मदद कर देता था।
2–3 दिनों में वो मुझसे खुल सी गई। वो मेरे साथ हँसी-मज़ाक कर लेती थी। एक दिन वो सब्जी काट रही थी, तभी उसकी उंगली थोड़ी कट गई। मैंने झट से उसकी उंगली को मुँह में ले कर चूसने लगा। वो मेरी ओर देखे जा रही थी।
“मलिक, आपने मेरी उंगली चूस ली..!”
“हाँ.. तो क्या हुआ? देखो कट गया है न …! अभी इस पर बैंडेड लगा देता हूँ..!”
ऐसा कहते हुए मैंने उस पर एक बैंडेड लगा दिया।
वो बोली- मलिक हम छोटे लोग हैं और आप इतने बड़े लोग। फिर भी आपने मेरा ख्याल किया।”
“दोनों तो इंसान ही है ना, अब एक इंसान दूसरे का ख्याल तो रखेगा ना..!”
वो बहुत खुश हुई। उसके बाद से वो मुझसे ज़्यादा ही खुल गई। एक दिन वो रसोई में कुछ बना रही थी और मैं वहीं पास में खड़ा था। तभी अचानक से उसने एक कॉकरोच देख लिया। डर के मारे वो ज़ोर से चीखते हुए मुझसे लिपट गई। मैंने भी मौके का फायदा उठाया और अपनी बाँहें उसकी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लीं।
थोड़ी देर तक ऐसी ही रही फिर वो बोली- बाबूजी, कॉकरोच चला गया।
मैंने बोला- हाँ चला गया।
मगर मैंने उसे बांहों में भरे रखा। फिर वो मेरी बांहों में कसमसाने लगी। मैंने उसे छोड़ दिया। मेरा लण्ड पूरी तरह से टाइट हो गया था।
मन कर रहा था कि अभी साली को पटक कर चोद दूँ। मगर मैंने खुद पर काबू किया। फिर वो खाना बनाने लगी।
एक दिन वो रसोई में खाना पका रही थी और मैंने उसे पीछे से जा कर बांहों में भर लिया। मेरा लण्ड उसकी गांड पर टिक गया। वो कसमसा रही थी, मगर मैंने उसे नहीं छोड़ा।
वो बोली- बाबूजी छोड़ दीजिए ना..!
“एक चुम्बन दोगी तो छोड़ दूँगा।”
“ना बाबा ना..! चुम्बन नहीं दूँगी..! चुम्बन करने से मैं गर्भवती हो जाऊँगी.!”
“किसने कहा ऐसा?”
“मेरी माँ ने बताया।”
“ऐसा नहीं है पगली, चुम्बन से गर्भवती नहीं होती… यह देखो..” ऐसा कहते हुए मैंने उसे चुम्बन कर लिया।
वो शरमा गई। फिर मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ टिकाए और शुरू हो गया। थोड़ी देर तक वो छूटने की कोशिश करती रही, मगर मेरी पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो छूट ना पाई।
फिर थोड़ी देर बाद उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। मैं उसको बेतहाशा चूमने लगा।
वो भी मज़े लेने लगी। फिर मैंने उसके गर्दन पर चूम लिया और धीरे-धीरे नीचे आने लगा। उसने शर्ट और लॉन्ग स्कर्ट पहन रखा था। मेरे हाथ उसके लॉन्ग स्कर्ट के अन्दर चले गए और उसके नितम्बों को सहलाने लगे। वो मचलने लगी। मैं खुद भी उस समय चुदाई का भूखा था। मैं उसकी शर्ट के बटन खोलने लगा। वो मुझे रोक रही थी, मगर उसका रोकना बेमानी साबित हो रहा था।
मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसकी शर्ट को खोल दिया। अन्दर सफेद रंग की ब्रा में उसकी चिड़िया जैसी दो चूचियाँ कसी हुई थीं, छोटे-छोटे मगर बिल्कुल कड़े से चीकू, उनको देख कर मुझसे रहा ना गया। उसके उभारों को मैं बुरी तरह से मसलने लगा।
उसके मुँह से सिसकारी निकालने लगी। मुझे डर था कि कहीं आंटी ना आ जाए। वैसे तो वो बेड से नीचे नहीं उतरती थीं। फिर भी अगर वो आ गईं तो मुश्किल हो जाती।
मैंने सुषमा को खुद से अलग किया और आंटी के रूम की ओर गया। वो आराम से सो रही थीं। मैंने चुपके से उनके बेडरूम का दरवाजा बाहर से लॉक कर दिया, फिर रसोई की ओर दौड़ पड़ा।
सुषमा अपने शर्ट के बटन बंद कर रही थी। मैंने झट से उसका हाथ पकड़ लिया।
वो बोली- बस बाबूजी, बहुत मस्ती हो गई, अब मुझे जाने दो।
“अरे अभी कहाँ मेरी रानी..! अभी तो मस्ती शुरू हुई है..! अभी तो सब कुछ बाकी है।”
मैंने फिर से उसके स्तनों पर हाथ लगाया। मगर उसने मेरा हाथ झिड़क दिया।
वो बोली- बाबूजी हम ग़रीब लोग हैं। हमारे पास इज़्ज़त के सिवा कुछ नहीं होता। अगर ये इज़्ज़त ना रही तो मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी।
उसकी बातों ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया। मैंने उसे बांहों मे भरा और बोला- तुम बिल्कुल भी फिकर ना करो मेरे रहते, तुम्हारी इज़्ज़त मेरी इज़्ज़त है।
मैंने उसको गोद में उठाया और अपने बेडरूम की ओर चल पड़ा। फिर वहाँ उसे उतार कर खड़ा किया। फिर उसकी शर्ट उतार फेंकी। उसने मेरा बिल्कुल भी विरोध नहीं किया। फिर मैंने उसकी स्कर्ट भी उतार दी।
काले रंग की पैंटी और सफेद रंग की ब्रा.. क्या कॉंबिनेशन था !
वो शर्मा कर आँखें बंद कर चुकी थी। मैंने भी झट से अपना शर्ट उतारी और बरमूडा उतार फेंका। मैं भी केवल अंडरवियर में आ गया। फिर उसको बांहों में भर कर उसके होंठों पर चूमने लगा।
थोड़ी देर में वो मेरा साथ देने लगी। मैंने उसके मुँह में अपनी जीभ डाल दी और वो उसे चूसने लगी। मैं उसके होंठों को चूसता रहा। फिर मैं नीचे की ओर आने लगा और उसकी चूचियों के बीच आ कर रुक गया। फिर मैंने उसकी ब्रा उतार फेंकी।
उसके 28 साइज़ के स्तन बिल्कुल टाइट से.. मैंने झट से उन पर कब्जा कर लिया। एक स्तन पर अपना मुँह लगा दिया और उसके निप्पल चूसने लगा।
वो व्याकुल हो रही थी। उसके निप्पल एकदम कड़े हो गए। फिर मैंने अपने मोबाइल से उसकी कुछ तस्वीरें लीं और फिर उसकी पैंटी उतार फेंकी नीचे घना जंगल था।
मैंने उससे पूछा- ये जंगल साफ नहीं करती क्या?
उसने कुछ भी जवाब नहीं दिया। मैंने उसके घने जंगल के बीच उसकी चूत को बेपर्दा कर दिया।
क्या मस्त चूत थी उसकी..! गुलाबी रंग की चूत और उस पर मुश्किल से एक इंच का चीरा लगा हुआ बहुत ही प्यारी छटा बिखेर रहा था। उसकी चूत बहुत ही टाइट थी।
मैंने उसमें उंगली डालने की कोशिश की तो वो बिफर पड़ी और मेरा हाथ अलग कर दिया। मैंने फिर से उसके चूत में उंगली डाल दी। उसकी चूत बहुत टाइट थी। मैं अपनी उंगली को अन्दर डाल कर उसके लिए जगह बना रहा था। मैंने फिर उंगली अन्दर-बाहर करनी शुरू कर दी। वो बेचैन होने लगी।
फिर मैं नीचे की ओर झुका और उसकी गुलाबी चूत पर अपना मुँह लगा दिया। वो ‘आह’ कर उठी। मैंने उसकी चूत की एक ‘फाँक’ को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। वो सिसकारियाँ भरने लगी। मैं भी वासना के वशीभूत होकर ये सब कर रहा था। फिर मैंने अपनी जीभ उसके अन्दर डाल दी और जीभ अन्दर घुमाने लगा। वो अब सहन नहीं कर पाई और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने अब जीभ से अन्दर चाटना शुरू कर दिया। दस मिनट में मैंने उसकी चूत पूरी साफ कर दी।
अब मैं खड़ा हुआ और अपना अंडरवियर उतार दिया। मेरा लण्ड देख कर उसकी आँखें फटी रह गईं, बोली- हाय राम..! बाबूजी.. आपका लण्ड तो बहुत बड़ा है।”
मैंने उसको नीचे बिठाया और अपना लण्ड निकाल कर उसके होंठों पर टिका दिया। पहले तो वो नखरे दिखा रही थी फिर मेरे कहने पर मान गई। उसने अपना मुँह खोल कर मेरे लण्ड का स्वागत किया। मैंने अपना लण्ड उसके मुँह के अन्दर डाल दिया। वो मेरा लण्ड चूसने लगी। मैं धीरे-धीरे उसके मुँह में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर रहा था। वो मज़े ले रही थी। मैं बीच बीच में अपना लण्ड उसके गले तक उतार देता। फिर मेरा लण्ड और अकड़ कर फूलने लगा। मैं उसकी मुँह को ही चूत समझ कर धक्के लगाने लगा। मैं ज़ोर-ज़ोर से धक्का मार रहा था। वो बेचारी मेरा साथ दे रही थी। करीब 15 मिनट की चुसाई के बाद मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया जिसे मैंने उसके गले से नीचे उतार दिया। उसने मेरा लण्ड चूस कर साफ कर दिया।
मैंने उसे बांहों में भरा और चुम्बन करने लगा। वो भी मेरा साथ देने लगी। थोड़ी ही देर में वो भी गरम हो गई। जवानी तो अभी उस पर आई ही थी।
मुझसे भी अब सहन नहीं हो रहा था। मैंने उसे सीधा लिटा दिया और उसकी चूत पर अपना लण्ड रगड़ने लगा।
उसने अपनी कमर मेरी ओर उचका दी जैसे वो मेरे लण्ड को अन्दर लेना चाहती हो। मैंने अब अपना लण्ड उसकी चूत में डालना शुरू कर दिया।
थोड़ी ही देर में उसका शरीर ऐंठने लगा, बोली- साहिब अब दर्द हो रहा है, अब और मत डालना अन्दर।
“अभी तो आधा लण्ड भी नहीं गया।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
वो घबरा गई, मैंने तभी एक ज़ोर का झटका लगा दिया। मेरा लण्ड उसकी चूत में आधा उतर गया।
वो चीख पड़ी, “ओह्ह माँ, बस करो बाबूजी, अब नहीं…!”
मैंने उसकी एक ना सुनी.. फिर ज़ोर से धक्का मार दिया। उसकी चीख उबल पड़ी, मगर मैंने उसका मुँह अपने हाथों से ज़ोर से दबा दिया। उसकी चीख घुट कर रह गई। वो कराह रही थी।
“बाबूजी अब ज़रा भी मत डालना, फट गई मेरी चूत। बहुत दर्द हो रहा है। शायद बच्चेदानी तक आ पहुँचा है..!”
मैंने उसकी चूत फाड़ डाली थी। उसकी चूत से खून निकल आया। उसकी चूत फट चुकी थी। मैंने उसकी सील तोड़ दी। वो दर्द के मारे कराह रही थी और मैंने उसे प्यार से सहला रहा था। वो बेचारी दर्द से बिलबिला रही थी।
मैंने अपने लण्ड को हिलाने की कोशिश की तो वो बोली- बाबूजी, अब नहीं अब निकाल दो प्लीज़..। मेरी अन्दर नाभि तक आ पहुँचा है। बहुत दर्द हो रहा है।
“अभी थोड़ी देर में अच्छा लगने लगेगा।” मैंने अपना लण्ड बाहर की ओर खींचा और एक ज़ोर कर धक्का मारा।
मेरा लण्ड उसकी चूत को चीरता हुआ अन्दर चला गया। वो बहुत ज़ोर से चीख पड़ी। उसकी चूत की मैंने बहुत बुरी हालत कर दी थी। वो बेचारी दर्द के मारे कराह रही थी।
मैं धीरे-धीरे उसके बदन को सहला रहा था और उसकी चूचियों को सहला रहा था। थोड़ी देर में उसका दर्द कुछ कम हुआ तो उसकी सिसकियाँ कम हो गई। वो अपने चूतड़ थोड़ा उचकाने लगी।
बस मुझे तो इसी पल का इंतज़ार था। मैंने भी अब आव देखा ना ताव, लण्ड को खींच कर बाहर निकाला और एक ज़ोर की ठाप मार दी। वो फिर से कराह उठी। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। शायद वो दर्द सहन नहीं कर पा रही थी। मैंने फिर से एक ज़ोर का धक्का मारा।
“ओह्ह माँ मर गई रे मैं तो..! मेरी चूत फट गई…! बाबूजी, बहुत दर्द हो रहा है!”
मगर मैंने उसकी एक ना सुनी और ताबड़-तोड़ धक्का मारता चला गया। मैंने उसका मुँह अपने हाथों से बंद कर रखा था, इसलिए वो कराह भी नहीं पा रही थी।
फिर थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और वो मेरा खुल कर साथ देने लगी। मैं लगातार धक्के पर धक्का लगा रहा था। उसकी चूत में मेरा लण्ड उछालें मार रहा था।
मैं भी उसकी चूत के मज़े लूट रहा था। वो बस मेरा साथ दे रही थी। मैं ऊपर से धक्का लगाता और वो नीचे से अपनी चूत उछाल देती…!
हम दोनों मस्ती के सागर में गोते लगा रहे थे।
आज मैंने एक सील तोड़ी थी। इसलिए जोश कुछ ज़्यादा ही था। वो भी खुल कर मुझसे चुद रही थी। मैं जन्नत की सैर कर रहा था। बस यही सोच रहा था कि ये समय ना ख़त्म हो।
इतनी मस्त कुँवारी चूत को भला कोई ऐसे छोड़ सकता है। मगर वो बेचारी कब तक मेरा साथ निभा पाती। पहली बार चुद रही थी। वैसे उसकी चूत ने पहले चूसने पर बहुत पानी फेंका था, मगर इस बार वो बुरी तरह से झड़ गई और चीखें मारते हुए मुझसे लिपट गई। उसकी चूत ने इतना पानी छोड़ा कि मेरा लण्ड उसमें नहा गया। मैं भी अब अपना लण्ड खींच-खींच कर जोरदार धक्के लगाने लगा।
थोड़ी देर के बाद मेरे लण्ड ने भी पानी छोड़ दिया और मैं भी निढाल हो गया। हम दोनों बुरी तरह से हाँफ रहे थे उसके बाद जब हमारी साँसें सामान्य हुईं तो हम अलग हुए। वो उठ कर बाथरूम जाना चाहती थी, मगर वो चल ना पाई। उसकी चूत की इतनी बुरी तरह से चुदाई होने के बाद वो हिल भी नहीं पा रही थी।
मैंने उसे गोद में उठाया और बाथरूम ले गया। वहाँ उसने मेरे सामने ही मूतना शुरू कर दिया। फिर मेरे सहारे चल कर वापस आई और बेड पर लेट गई।
उसे अब अपने घर वापस जाना था, मगर इस हाल में कैसे जाती। वो तो चल भी नहीं पा रही थी। फिर मैंने गर्म पानी से उसकी चूत की सिकाई करी, तो वो थोड़ा चलने लायक हो गई। फिर मैंने उसे घर तक छोड़ दिया।
मेरे दोस्तो, अब आप ही बताओ कि चुदाई के भूखे शेर को ऐसी कुँवारी चूत मिल जाए तो वो भला उसका शिकार किए बिना उसे कैसे छोड़ सकता है?
आंटी ने मुझे वैसे भी चुदाई का वो ज्ञान दिया था कि किसी भी चूत को लण्ड की चाहत होती है और वो कभी भी खुल कर तुम्हें चुदने को नहीं बोलेगी, चाहे उसे चुदाई की कितनी भी प्यास क्यों ना हो.. इसलिए रिश्तों की परवाह किए बिना उसे चोद दो।
मैंने आज उनके बताए रास्ते पे चलते हुए एक कुँवारी चूत मारी थी। इसके बाद की कहानी और भी उत्तेजक है। अगर कहानी पढ़ कर आप सभी दोस्तों की चुदाई की प्यास ना जागे तो मुझे बताइए। मेरी ईमेल आईडी तो आप सबके पास ही होगी मगर फिर भी एक बार फिर से आपको दे रहा हूँ।
कहानी जारी रहेगी।
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