गदराई लंगड़ी घोड़ी-1
कहानी उस वक़्त की है जब मैं 12वीं क्लास में पढ़ता था. मेरी उम्र उस वक़्त 18 साल थी. मैं छोटा और प्यारा होने के कारण अपने मोहल्ले का चहेता था. सभी जवान लड़कियों को मैं दीदी कहता था और शादीशुदा औरतों को आंटी कहता था.
कम उम्र में ही मैंने अपने जीवन की पहली चुदाई कर ली थी, जब मेरे ही पड़ोस की कीर्ति दीदी ने मुझे सब कुछ सिखाया और चूत चुदवाई. पहले मैं किसी को चोदने की नज़र से नहीं देखता था, पर कीर्ति दीदी ने मेरा नज़रिया बदल दिया. कीर्ति दीदी तो मेरे लंड की दीवानी हो गई थी. होती भी कैसे न मेरा लंड 8″ का था और काफी मोटा भी था. दीदी को बहुत देर तक चोदता था.
कीर्ति दीदी के बाद मैंने अपनी ही एक किराएदारनी को चोदा. चोदा क्या बस यूँ समझ लो कि जन्नत के मज़े लूटे.
जी हाँ, बबिता आंटी एक बेहद कामुक औरत थी. शादीशुदा थी और एक 2 साल का बच्चा भी था उस समय. पति परदेस में मजदूरी करता था और 4-6 महीने में एक बार घर आता था. बबिता आंटी एक 27 साल की सांवली सी, छोटी कद की पर एक बेहद कामुक और गरम औरत थी. शादी को 4 साल हुए थे और शादी के बाद से ही हमारे घर में किराये पर रहती थी.
मेरे घर पर सब लोग सुबह को जाते और शाम को ही वापस आते थे. इसलिए ही किरायेदार रखा था. मेरा बबिता आंटी से बहुत प्यार था. बहुत बार मैं उनके पास ही सोता और पढ़ाई करता था. वो मुझे प्यार से रखती और रात में जब मैं उनके पास सोता तो कहानी सुनाती और खिलंदरी करती. पर उनकी खिलंदरी का मतलब मुझे जब समझ आया, जब मैंने कीर्ति दीदी को चोदा.
कीर्ति दीदी को चोदने के बाद मुझे उनकी खिलंदरी मजा देने लगी और गुदगुदी के बजाय लंड खड़ा करने लगी.
एक दिन मैं स्कूल नहीं गया और घर पर अकेला बबिता आंटी के पास था. उन्होंने खिलंदरी करनी शुरू की और कुछ ही देर में मैं उनके बेड के पास नंगा खड़ा होकर अपने सामने घोड़ी बनी हुई अपनी बबिता आंटी की मस्त गर्म चूत को अपने मूसल से चोद रहा था.
आंटी बिल्कुल नंगी होकर बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई थी और बहुत ही कामुक सिसकियाँ ले रही थी. दरअसल आंटी 4 महीनों बाद चुद रही थी और वो भी इतने बड़े लंड से. उनका गदराया जिस्म बहुत प्यासा और कामुक लग रहा था.
बबिता कीर्ति दीदी से कद में काफी छोटी थी पर बहुत ही गर्म औरत थी. चोदते वक़्त उनके गुदाज़ चूतड़ों पर हाथ फेरने में बहुत मजा आ रहा था. इतना लाजवाब था सब कुछ कि क्या बताऊँ! उस दिन के बाद से बबिता आंटी के साथ जो कुछ हुआ, वो अपने आप में एक बहुत ही गरम और बावला कर देने वाली कहानी है. बबिता की गांड को चोदना कभी गांड पर लिपस्टिक लगा कर, तो कभी घोड़ी बना कर गांड में मक्खन लगा कर. कभी-कभी तो नंगी घोड़ी को कुर्सी पर या खटिया पर 2-3 दुप्पट्टे से बाँध कर खूब तबियत से थप्पड़ मारते हुए चोदने में बहुत मजा आता था. नंगी बंधी हुई और घोड़ी बनी हुई जवान औरत की गांड पर, चोदते वक़्त थप्पड़ मारने में बहुत मजा आता है यार. और जब औरत छोटे कद की सांवली सी बबिता जैसी हो तो…ओये होए…क्या मस्त मजा आता है.
पर अब जो मैं कहानी बताने जा रहा हूँ, वो बहुत ही ख़ास है और मेरे दिल के बहुत ही करीब है. ये कहानी मेरे उस अहसास के बारे में जो किसी लड़के को तभी होता है, जब वो एक कुंवारी लड़की को पहली बार लड़की होने के बजाये एक गरम कामुक औरत होने का अहसास दिलाता है.
कीर्ति दीदी और बबिता आंटी दोनों ही पहले से चुदी हुई थीं. हालाँकि बबिता आंटी ने मुझसे उन सभी गर्म और वहशी तरीकों से चुदवाया और गांड मरवाई, जो उनकी जैसी चुदक्कड़ के बस में था. पर एक अहसास वो कभी नहीं दे पाईं और वो था कुँवारेपन का अहसास.
पर वो दिन आया, जब मैंने एक कुंवारी लड़की को चोदा. वो कोई गैर नहीं थी, बल्कि मेरे ही मोहल्ले की एक 18 साल की दोनों पैरों से विकलांग मेरी एक बहुत ही ख़ास दीदी, जिनको सभी प्यार से मधु दीदी बुलाते थे.
मधु दीदी दिल की बहुत अच्छी थीं, पर बचपन से ही पोलियो के कारण उनके घुटनों के नीचे से दोनों पैर ख़राब थे जिसकी वजह से वो खड़ी नहीं हो सकती थीं. वो बाहर घूमने के लिए हाथ के पैडल वाली 3 पहियों की रिक्शा खुद ही चलाती थीं. मगर घर के अंदर वो घुटनों के बल ही चलती थीं, बिल्कुल घोड़ी वाले स्टाइल में.
घर में वो हमेशा स्कर्ट ही पहनती थीं क्यूंकि वो फर्श पर यूँ ही घुटनों के बल घोड़ी की तरह चलती थीं जिससे सलवार ख़राब होने का डर रहता है.
बचपन से ही मैं दीदी के घर वालों के काफी नजदीक था और उनके घर खूब आना जाना था. मधु दीदी से मेरी खूब पटती थी. कीर्ति दीदी को चोदने से पहले सब कुछ सामान्य था, पर कीर्ति दीदी को चोदने के बाद मेरे अन्दर बदलाव आ गया.
इधर बबिता आंटी ने तो मुझे औरत के जिस्म का दीवाना ही बना दिया था. मैं बबिता आंटी को लगभग रोज़ चोदता था. इन सब की वजह से मेरे मन में मधु दीदी के लिए भी ख्याल आने लगे. जो दीदी मुझे अपनी सगी दीदी से ज्यादा प्यारी लगती अब मुझे एक चलती फिरती घोड़ी नज़र आने लगी.
मैं जब भी उनके बारे में ऐसा सोचता तो मुझे बहुत बुरा लगता कि मैं अपनी दीदी के बारे में ऐसा कैसे सोच रहा हूँ, पर यार जब-जब वो घर में घुटनों के बल चलती, मैं बस दीदी की हिलती हुई स्कर्ट देखता, दिल सोचने लगता कि जब दीदी के चूतड़ स्कर्ट के अंदर से इतने प्यारे लग रहे है, तो नंगे चूतड़ कैसे होंगे.
बस मन करता कि एक बार दीदी को इस घोड़ी वाली चाल में बिल्कुल नंगी चलते हुए देखूँ. कई बार तो दीदी को चलते देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाता, पर फिर मैं खुद को कोसता भी कि कितना गिर गया हूँ मैं. अपनी ही विकलांग दीदी को नंगा देखना चाहता हूँ. जब दीदी चलतीं, तो फिर से वही ख्याल आता.
चुदाई के अनुभव से पहले मैंने बहुत बार मधु दीदी की नंगी जाँघें देखी थीं, जब कभी छत पर हवा से उनकी स्कर्ट ऊपर होकर उलट जाती थीं. दीदी की कच्छी में कैद उनके चूतड़ और नंगी जाँघें एकदम अचानक सामने आकर नुमाइश लगा देते थे, पर तब मैं उन्हें इस नज़र से नहीं देखता था. बस मुस्कुरा कर मुँह फेर लेता था.
लेकिन अब जब मेरा सच में मन करता था कि मधु दीदी के स्कर्ट के अंदर देखने का तो कभी स्कर्ट नहीं उड़ी क्यूंकि दीदी तेज़ हवा के वक़्त छत पर नहीं जाती थीं. एक बार मैं उन्हें छत पर लेकर भी गया इस उम्मीद में कि एक बार स्कर्ट उड़ जाये पर नहीं उड़ी.
मन में गन्दा लगता यह सब सोच कर लेकिन फिर भी उनकी मस्त गांड मुझे अच्छी लगने लगी. मैंने वैसे तो कीर्ति दीदी और बबिता आंटी की नंगी गांड का बहुत मजा लिया था पर फिर भी मधु दीदी की गांड बहुत अच्छी लगने लगी थी.
मैं बस सोचता रहता था कि नंगी गांड कितनी प्यारी और गर्म होगी. मुझे लड़की और औरतों के चूतड़ बहुत पसंद हैं. मैं अक्सर कीर्ति दीदी के चूतड़ों को नंगा करके चूमता और सहलाता रहता. चोदते वक़्त उनके नंगे जवान चूतड़ों के साथ मैं खूब खेलता. कभी चूतड़ पर हौले से थप्पड़ मारता तो कभी चिकोटी काटता.
जब मैं कीर्ति दीदी को घोड़ी बना कर चोदता तो उनके कसे चूतड़ों को हथेली से पकड़-पकड़ कर फैलाकर कर देखता और जोर से चूत चोदता. बबिता की गांड का तो मैं बाजा ही बजा देता. वो चुदक्कड़ तो अपनी गांड भी मरवाती. उनकी गांड चोदते वक़्त तो मैं गांड पर कस-कस कर थप्पड़ मारता और कभी-कभी तो नंगी गांड पर लकड़ी की पट्टी से भी मारता. आंटी खूब मज़े से चीखती हुई घोड़ी की तरह हिनहिनाती हुई गांड चुदवातीं.
अब मेरा मन में मधु दीदी की लंगड़ी चाल बस गई थी. मैं बहुत बार बहाने से उन्हें इधर-उधर चलने के लिए कहता और मज़े से उस घोड़ी की मटकती गांड देखता. ऐसे ही 2-3 महीने कट गए और मेरा दीदी के चूतड़ों के लिए आकर्षण खूब बढ़ गया.
एक दिन जैसे मेरी किस्मत खुल गई. उस दिन दीदी और मैं उनके घर पर अकेले थे और बातें कर रहे थे. दिन के करीब 11 बजे थे. मैं और दीदी उनके रूम में तख्त पर बैठे थे. तभी वो बाथरूम जाने के लिए बोलीं और तख्त से उतरने लगीं. मैं खुश हो गया कि फिर से उनके मटकते चूतड़ का नज़ारा मिलेगा.
पर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मेरे होश उड़ गए. जैसे ही दीदी तख्त से नीचे उतरीं, उनकी स्कर्ट तख्त में लगी एक कील में फंस गई. दीदी तब तक तख्त से नीचे उतर कर घोड़ी वाली मुद्रा में हो गईं. मेरी तो जैसे जान ही निकल गई, तख्त से नीचे का नज़ारा देख कर.
दीदी फर्श पर घोड़ी बनी हुई और स्कर्ट कील में अटकी हुई. सबसे जानलेवा तो ये था कि उस दिन दीदी ने कच्छी भी नहीं पहन रखी थी. मेरे सामने सिर्फ नंगी जाँघें ही नहीं बल्कि एक नरम गदराई और बिल्कुल नंगी कुँवारी गांड स्कर्ट के ऊपर हो जाने से झांक रही थी.
मेरे तो मुँह में पानी आ गया. गांड इतनी ज़बरदस्त भी हो सकती है, यह पहली बार लगा. चूतड़ इतने चिकने और मुलायम लग रहे थे कि बिना पकड़े मन नहीं मानेगा.
दीदी को स्कर्ट ऊपर होने का पता नहीं चला क्यूंकि वो तख्त के नीचे कुछ ढूंढ़ रही थीं. शायद विकलांग वाले चप्पल जो वो बाथरूम जाते वक़्त पहनती थीं. चप्पल ढूंढते वक़्त वो थोड़ा इधर-उधर हिल रही थीं जिससे उनके नंगे चूतड़ थिरक रहे थे.
मैं तो पागलों की तरह ऊपर से उस मस्त लंगड़ी घोड़ी की गांड देख रहा था कि अचानक मेरे मुँह से लार की धार निकल कर ठीक उनकी नंगी गांड पर गिरी. गरम लार गिरते ही दीदी ने पीछे घूम कर देखा और एकदम दंग रह गई.
कहानी जारी रहेगी.
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