जन्म दिन पर चुदी शिखा रानी-5

जन्म दिन पर चुदी शिखा रानी-5

चूतनिवास
शिखा रानी ने कहा- तूने सलोनी रानी का स्वर्ण रस पिया था उससे मिलते ही। हमें तूने चोद भी दिया लेकिन स्वर्ण रस अभी तक नहीं पूछा। यह भेद भाव नहीं तो क्या है। सलोनी रानी को तूने इतना चाटा, हमें अभी तक चाटा क्या? यह नहीं है क्या भेद भाव? जाओ हम नहीं बात करेंगे।
मैंने शिखा रानी की एक लम्बी चुम्मी ली, इस बार उसने मुँह नहीं हटाया। मैंने उसके चूचे भी ज़ोर से मसले और कहा- यार कोई भेद भाव की बात नहीं है। मिलने के बाद हमारी बातें किसी और दिशा में चल पड़ीं इसलिये ना तो स्वर्ण रस पीने का मौका मिला और ना ही मेरी रानी को चाटने का। अभी पिलाओ ना रानी.. देर किस बात की है.. अभी भेद भाव दूर लिये देता हूँ… पहले रस पिलाओ, फिर मैं चाटूँगा।
शिखा रानी ने हंस कर कहा- राजे हम कौन सा सचमुच खफा हुए थे। हम तो अपने राजे को सता रहे थे। बहुत मज़ा आया तेरे को घबराते हुए देख के… चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं…
मैंने कहा- चलो अब पिलाओ तो स्वर्ण रस जल्दी से…
शिखा रानी ने कहा- तो चल बाथरूम में!
मैं- बाथरूम में क्यों, यहीं पी लूंगा न.. अभी सेट करता हूँ तुझे…
शिखा रानी बोली- नहीं राजे… मुझे तो आधा रस तेरे मुँह पर बरसा के मुँह धुलवाना है। बाकी का आधा पीने के लिये…
हम दोनों बाथरूम में घुस गये।
मैं नहाने वाले एरिया में लेट गया और शिखा रानी दोनों टांगें मेरे आजू बाजू टिका कर बिल्कुल मेरे मुँह के आस खड़ी हो गई, उसकी चूत मेरे मुँह से बस एक फुट के लगभग दूर थी।
शिखा रानी ने थोड़े से घुटने झुका कर खुद को जमाया और बोली- राजे, तैयार है ना तू?
मैंने जवाब में सिर हिलाया।
शुर्र सर्र… की आवाज़ के साथ शिखा रानी का स्वर्ण रस मेरे चहरे पर एक तेज़ गर्म गर्म बौछार के रूप में पड़ने लगा।
मस्ती में मेरी गाण्ड फटने को हो गई, लौड़ा धमाक से अकड़ गया।
मैंने मुँह पूरा खोल रखा था जिसके कारण कुछ कुछ रस मेरे मुँह में भी जा रहा था। लगता था वो इसकी तैयारी के साथ आई थी। गर्माहट, रंग, गाढ़ापन और स्वाद से कई घंटों का जमा किया हुआ लग रहा था।
मस्ती में दीवाना होकर मैं इस अमृत को अपने मुँह पर लिये जा रहा था और जितना पी सकता था पिये जा रहा था।
कुछ देर के बाद बौछार अचानक रुक गई।
शिखा रानी ने अब मुझे बैठने को कहा, मैं घुटनों पर बैठ गया, शिखा रानी ने चूत मेरे मुँह से सटा दी और मैंने अपना मुँह खोल कर चूत को अपने मुँह के भीतर ले लिया, सुर्र शुर्र सुर्र सुर्र करता हुआ स्वर्ण अमृत मेरे मुँह में आने लगा, गर्म गर्म और गाढ़ा गाढ़ा ! लाजवाब स्वाद !! शिखा रानी धार एकदम सही स्पीड पर छोड़ रही थी। उसे अंदाज़ा था कि मैं कितना पी पाऊँगा, उतना ही रस वो निकाल रही थी, ना तो मेरा मुँह खाली होता था और ना ही इतना भरता था कि मैं निगल ना सकूं।
बेहद स्वादिष्ट अमृत था शिखा रानी का और सभी लड़कियों के रस से मिलता जुलता भी और अलग सा भी।
यारों बस आनन्द ही आनन्द आ गया और छा गया मेरे तन बदन में, शिखा रानी का स्वर्ण अमृत से मुँह धुलवा के और पी कर… वो भी पिला के गर्म होने लगी थी।
जैसे ही अमृत कलश खाली हुआ, शिखा रानी मेरे से लिपट गई और बोली- अब हमारा मिलन पुख्ता हो गया है।
और फिर उसने मेरे मुँह पर चुम्मियों की झड़ी लगा दी। हम वहीं बाथरूम के फर्श पर लिपट गये और यूं चिपक गये जैसे लिफाफे पर टिकट चिपकता है।
हमने एक दूसरे को दीवानगी के आलम चूमना शुरू कर दिया, मैं उसके बदन में और वो मेरे बदन में ऐसे लिपटे पड़े थे जैसे दो रस्सियों को आपस में गूँथ दिया गया हो।
मैं तो गर्म था ही लेकिन रानी तो जैसे उबल रही थी, उसका तन जा रहा था, आँखें लाल लाल हो गई थी, कहने लगी- राजे… यार ये फर्श बहुत ठण्डा लग रहा है। रूम में चलें?
मैंने कहा- रानी, फर्श तो इतना ठण्डा नहीं है तेरा बदन बहुत गर्म है परन्तु चल चलते हैं रूम में।
मैंने फूल सी नाज़ुक शिखा रानी को बाहों में उठा लिया और उसके नशीले होंठ चूसता हुआ उसे रूम में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। फिर यारों जो मैंने शिखा रानी को चाटना शुरू किया तो उसके शरीर का एक एक इंच भाग मैंने चाट डाला।
मैं उसकी बाहें उठाकर बगलें चाटने से शुरू हुआ, बगलें बिल्कुल चिकनी थीं, शायद शिखा रानी झांटों के साथ बगल के बाल भी साफ करा के आई थी, जैसे ही मैंने बगल में चाटना शुरू किया शिखा रानी तड़पने लगी, उसे पहले कभी किसी ने यहाँ नहीं चाटा था।
दोनों बगलों को मैंने बारी बारी से अच्छे से चाटा, शिखा रानी आहें भरने लगी। कभी एक टांग इधर करती तो कभी दूसरी टांग उधर करती।
बगलें चाट कर मैंने उसकी बाहें चाटीं, हाथ चाटे और हाथों की सभी उंगली-अंगूठे मुँह में लेकर चूसे।
शिखा रानी का हाल बुरा होता जा रहा था, अब उसने अपनी कमर उछालना शुरू कर दिया था जैसे कि चूत में लौड़ा घुसा हो।
मैंने एक उंगली सीधी करके शिखा रानी की चूत में दे दी। रानी चिहुँक उठी और बार बार अपनी अम्मा को पुकारने लगी।
मैंने कहा- शिखा रानी, अभी तो खेल शुरू हुआ है तू अभी से अपनी अम्मा को याद कर रही है?
जवाब में शिखा रानी ने एक मुक्का मेरी उस हाथ की कलाई पर मारा जिस हाथ की उंगली मैंने चूत में घुसा रखी थी। हा हा हा… एक पक्षी के पंख से भी कोमल शिखा रानी के मुक्के का तो क्या असर होना था।
मैंने खटाक से वो हाथ ही चूम लिया।
अब मैं उसकी मदमस्त मतवाली चूचियों पर शुरू हुआ, पहले मैंने अपना मुँह चूचियों से लगाकर खूब रगड़ा, कभी दायीं चूची पर तो कभी बायीं चूची पर और लगातार उंगली से उसकी रसीली चूत को सहलाता रहा।
शिखा रानी तो अब मज़े के नशे में धुत्त हो चुकी थी, ‘हाय हाय हाय राजे राजे राजे’ करती बिल्लो रानी यूं तड़प रही थी जैसे मछली जल के बाहर आकर छटपटाती है।
चूत से रस का झरना फूट रहा था, मेरी उंगली रस में सराबोर पूरी तरह से तर हो गई थी, अब तक शिखा रानी कई दफा झड़ गई थी।  अचानक मैंने चूचियों से हट कर शिखा रानी को पलट दिया जिस से वो अब पेट के बल हो गई थी। मैंने नीचे को सरक कर अपना ध्यान शिखा रानी के क़ातिल चूतड़ों पर लगाया।
यारो, गोरे चिट्टे मुलायम ख़रबूज़े की तरह गोल चूतड़ देख कर मेरा हाल खराब हो गया। कैसे ऊपर वाला एक लड़की को हर अंग इतना मादक दे सकता है !!!
मैंने लपक कर उन हसीन नितम्बों को चाटना शुरू किया… आनन्द अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँचा।
शिखा रानी भी मदमस्त हुए जा रही थी।
नितम्ब चाटते चाटते मैंने अपनी तर्जनी उंगली को मुँह में देकर गीला किया और फिर तपाक से उसे शिखा रानी की चूत में घुसेड़ दिया। शिखा रानी छटपटा उठी, उसके मुँह से एक किलकारी सी निकाली और वो धम्म से झड़ी, झड़ झड़ के उसकी चूत ने रस बहा बहा कर बिस्तर की चादर भिगो डाली।
इधर मैंने उसकी गाण्ड के छेद को चौड़ा किया और अपनी जीभ को मोड़ कर उस प्यारे से गुलाबी छेद को चाटा।
‘राजे राजे राजे’ की रट लगाते हुए शिखा रानी ने मज़े में मस्त होकर अपने चूतड़ खूब उछाले। तब मैंने जीभ उस छेद में थोड़ी सी घुसाई।
शिखा रानी बिलबिला उठी, मैंने ज़ोर लगाते हुए जीभ जितनी घुस सकती थी उतनी घुसा दी और उसकी गाण्ड मैं जीभ से ही मारने लगा।
शिखा रानी कराहती हुई भिंचे गले से बोली- राजे, बहुत सता रहा है तू… लौड़ा दे ना चूसने को, राजा, क्यों इतना तरसाता है।
मैंने अपनी पोज़िशन बदली और अब हम 69 के पोज़ में हो गये, जैसे ही लण्ड उसके मुँह के पास आया, उसने गप्प से मुँह में ले लिया और लगी मज़े से चूसने।
मैं उसकी चूस चूस के ही गाण्ड मार रहा था और अब मैंने एक उंगली चूत में घुसा के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। चूत के रस में उंगली बड़े आराम से फिच्च फिच्च भीतर आ जा रही थी।
शिखा रानी कभी टांगें कस लेती और कभी खोल लेती। इसी तरह वो अपनी ज़बरदस्त बढ़ती हुई उत्तेजना को काबू करने की कोशिश करती लेकिन सफल ना हो पाई क्योंकि दस मिनट में उसने टांगें इतनी कस कर भींचीं कि मेरी सांस भी घुटने को हो गई, लंड मुँह से निकाला और आहें भरते हुए शिखा रानी चरम सीमा के उस पार पहुँच कर स्खलित हो गई।
चूत ने रस छोड़ दिया और शिखा रानी ने लंड तो फिर मुँह में ले लिया और उसे यूं ही मुँह में रखे रही। शायद उसमें अब चूसने की शक्ति नहीं बची थी।
कोई बात नहीं कुछ देर में तैयार हो जायगी, मैंने सोचा कि गाण्ड चूस के इसे एक बार झ़ाड़ ही दिया है तो अब चूत चूसने का भी मज़ा लूँ और अच्छे से इस चुदासी, मस्त रसीली चूत को पी डालूं।
जीभ से शिखा रानी की गाण्ड ले कर मैं भी अत्यधिक ठरक में आ चुका था, गहरी गहरी साँसें लेकर लौड़े को फटने से रोक रहा था, मैंने अपना मुँह शिखा रानी की गाण्ड से हटाया और चूत के सामने ले आया।
पहले तो मैंने शिखा रानी की प्यारी चूत को अच्छे से खूब गहरी गहरी सांस लेकर सूंघा, चूत की उस खास सुगंध ने मेरा भेजा उड़ा दिया, लण्ड उसके मुँह में पड़ा हुआ फुंकारने लगा।
तब तक शिखा रानी भी संभल चुकी थी तो उसने भी लौड़ा पूरा अंदर गले तक घुसा लिया और लगी अंदर ही अंदर जीभ फिराने।
मैंने अब चूत के आस पास रेशम से चिकने झांट स्थान को खूब जीभ को गीली करके चाटा और फिर चूत के होंठों को चूसा।
शिखा रानी छटपटाने लगी, उसने लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया जैसे की उसका मुँह ना होकर चूत हो।
साथ साथ वो लंड पर सब तरफ जीभ भी घुमा घुमा कर चाट रही थी।
फिर मैंने जीभ चूत के उस मस्त छेद में घुसेड़ दी और खूब इधर उधर चूत के भीतर चूसा, चूत का रस दबादब मेरे मुँह में आ रहा था जिस के नशे से मैं अब बेकाबू होने के करीब पहुँचने को था।
शिखा रानी को शायद लगने लगा था कि मैं अब स्खलित होने के बहुत नज़दीक हूँ, उसने लंड को तेज़ तेज़ अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, वो लौड़ा पूरा मुँह के बाहर कर लेती, फिर सुपारे को चाटती, फिर सुपारा मुँह मे घुसा के खाल को आगे पीछे करती और फिर अचानक से लंड पूरा का पूरा जड़ तक मुँह में ठेल देती। उसने एक हाथ से मेरे चूतड जकड़ा हुआ था जिसे दबा के और खींच के वो लंड को मुँह में ठूंस लेती और फिर मुँह को चोदने लगती।
इधर मैं उसकी चूत में जीभ घुसाये मज़ा लिये जा रहा था, मस्ती में आकर बुर अब लपलप करने लगी थी, मैंने जीभ पूरी की पूरी अंदर दे रखी थी।
बुर अब जल्दी जल्दी कसने और खुलने लगी जिसने मुझे इशारा कर दिया कि अब शिखा रानी चरम आनन्द को प्राप्त होने वाली है। और वही हुआ, बस दो ही मिनट के अंदर शिखा रानी ने टांगें कस के ‘दन दन दन दन’ मेरे मुँह पर धक्के लगाये और एक लम्बी सी सीत्कार भरते हुए स्खलित हो गई, गर्म गर्म चूत रस की एक फुहार ने मेरी जीभ को तृप्त किया और मैं झन्नाटे से शिखा रानी के मुँह में फूटा।
उसने मेरे चूतड़ थाम कर मुझे संभाले रखा और सारा लावा मुँह में झड़ने दिया।
जब मलाई निकालनी बंद हो गई तो शिखा रानी ने उंगली से लंड को पोंछा और फिर उंगली अपने मुँह में लेकर चूस लिया।
मैंने भी चाट के चूत, झांट प्रदेश, जाँघें इत्यादि को साफ किया।
मैं सीधा हो गया और शिखा रानी के पास उसके नरम गर्म चूचों के बीच अपने मुँह रख के लेट गया।

कहानी जारी रहेगी।

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