अज्ञात-यौवना संग संसर्ग

अज्ञात-यौवना संग संसर्ग

दोस्तो, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मेरी कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया भेजने के लिए।

अब अगली कहानी !

यह घटना उस वक्त की है जब मेरी शादी को करीब एक वर्ष हुआ था। पहले तो मैं अपने मोहल्ले में काफी रिजर्व रहता था, कुछ गिने-चुने लोगों से ही मेरी बातचीत होती थी, मोहल्ले में मेरी छवि एक शरीफ़ और शर्मीले इंसान की थी। पर जबसे मेरी पत्नी आई तो धीरे-धीरे मेरे घर में मोहल्ले की कई औरतें और लड़कियों का आना जाना शुरू हो गया। कुछ तो मेरी पत्नी के अच्छे और मिलनसार स्वभाव के कारण और कुछ उसके सिलाई-कढ़ाई में निपुणता के कारण, दिन भर लड़कियों और महिलाओं का जमघट लगा रहता था और दिन तो कोई परेशानी नहीं होती क्यूंकि मैं खुद घर में नहीं रहता था पर रविवार के दिन भी घर में एकांत नहीं मिलता था।

थोड़ी खीझ तो होती थी पर यह सोचकर चुप रहता था कि एक रविवार के लिए मैं अपनी पत्नी के छः दिनों की व्यस्तता और दिनचर्या को क्यूँ भंग करूँ। इस बहाने से मोहल्ले में मेरी पहचान का दायरा भी तो बढ़ रहा था। और ऐसे ही जिंदगी चल रही थी।

एक दिन मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया- भाई-साहब, मैं आपके साथ सेक्स का अनुभव लेना चाहती हूँ, क्या मुझे यह मौका मिलेगा?

मैं चौंक गया, कौन हो सकती है यह? ना जान, ना पहचान, सीधा सेक्स का आमंत्रण?

दो दिनों तक तो मैं इस उधेड़बुन में लगा रहा कि कौन है यह।

तीसरे दिन फिर संदेश आया- भाई-साहब, मैं अभी भी आपके जवाब के इंतजार में हूँ। प्लीज, सिर्फ एक बार।

अब मैंने भी जवाब देना उचित समझा, मैंने जवाब दिया- बोलती हो भाई-साहब, और सेक्स की मांग करती हो? पहले अपनी पहचान तो बताओ?

उसका जवाब आया- आप रिश्ते में तो मेरे कोई नहीं हैं, पर मोहल्ले के नाते से मैं तो आपको भाई ही कहती हूँ। और अब तो आप समझ ही गए कि मैं आपके ही मोहल्ले की हूँ। इससे ज्यादा मैं अपनी कोई पहचान नहीं बता सकती और प्लीज आप भी ना पूछें।

मैं सन्नाटे में आ गया, मोहल्ले की औरत होकर ऐसी हिम्मत !

फिर मैंने लिखा- ठीक है, मैं तैयार हूँ, पर मेरे साथ ही सेक्स करने की क्यूँ सोची तुमने?

उसका जवाब आया- पहली वजह तो यह है कि आप शरीफ़ आदमी हैं तो मेरी बदनामी नहीं होगी, इतना भरोसा है आप पर। दूसरी वजह यह कि भाभी यानि आपकी पत्नी के मुँह से सुन चुकी हूँ कि आप बहुत एक्सपर्ट हैं सेक्स में।

मैं फिर चौंका। इसका मतलब है कि यह औरत मेरी पत्नी की पहचान वाली है, मैं थोड़ा सतर्क हो गया, कई बातें दिमाग में घुमड़ने लगी। जैसे क्या औरतें आपस में इतनी खुलकर सेक्स के बारे में बातचीत कर लेती हैं?

सोचा चलो पत्नी से पूछने पर इस औरत के बारे में पता चल जाएगा। पर एक डर भी मन में समा गया कि पूछने पर पत्नी को इस बात का शक हो सकता है कि उसके पहचान वाली किसी औरत का मुझसे भी संपर्क है। मैंने इस विचार को तत्काल ही अपने दिमाग से निकाल फेंका।

मैंने उसे मैसेज किया- क्या तुम अपने पति से संतुष्ट नहीं हो?

जवाब आया- मेरी शादी नहीं हुई है अभी। मैं बिल्कुल कुंवारी हूँ। और शादी से पहले सिर्फ एक बार सेक्स का अनुभव लेना चाहती हूँ।

मैंने पूछा- मैं तुम्हें पहचानूँगा कैसे?

उसने कहा- पहचानने की जरुरत ही नहीं है। मैं आपको बताऊंगी कि कब, कहाँ, और कैसे हमें मिलना है। आप तय समय पर आयेंगे और हम अपना काम निपटायेंगे। हाँ, आपसे फिर मैं आग्रह कर रही हूँ कि सेक्स करने के समय भी आप मेरा चेहरा देखने की जिद और प्रयास नहीं करेंगे।

मैंने हार मान ली- ठीक है, जो तुम्हारी मर्जी। जब तुम्हें सहूलियत हो मुझे याद करना।

फिर करीब एक महीना बीत गया। इस एक महीने में उसका दो बार मैसेज आया जिसमे वो अपनी बेबसी व्यक्त कर रही थी कि उसे अनुकूल मौका नहीं मिल रहा है।

लगभग एक महीने के बाद उसका मैसेज आया- दो-चार दिनों में मैं कोई प्रोग्राम बनाती हूँ, पर आपसे एक प्रार्थना है कि आप नाराज ना होना।

फिर एक सप्ताह के बाद उसका मैसेज आया- आज शाम को गाछी में मिलिए, ठीक छः बजे।

मैंने जवाब भेजा- ठीक है।

मेरे मोहल्ले से उत्तर की ओर एक बहुत बड़ा और घना आम का बगीचा है जिसे सभी लोग गाछी कहते हैं। आम के मौसम के बाद वो इलाका लगभग सुनसान और वीरान ही रहता था। वैसे भी बगीचा चूंकि मोहल्ले के आखिर में था इसलिए उस ओर किसी का भी आना-जाना नहीं होता था। मैं भी उसके जगह के चुनाव से खुश था।

मैं शाम होने का इंतजार करने लगा। कुछ खुशी, कुछ उत्तेजना, कुछ डर, कुछ रोमांच, कुछ रहस्य का सा महसूस हो रहा था। आखिर मैं एक अज्ञात लड़की के साथ सेक्स करने जा रहा था।

साढ़े पाँच के बाद मैं एक चक्कर गाछी की ओर लगा आया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आज के दिन उस ओर कोई चहल-पहल तो नहीं है।

फिर जब छः बजे तो मैं मोहल्ले की पूरब दिशा की ओर से एक लम्बा चक्कर काट कर गाछी में पहुँचा। शाम का धुंधलका छा गया था पर चांदनी रात होने के कारण रोशनी भी थी। फिर भी मैं पेड़ों के आड़ लेता हुआ आगे बढ़ रहा था और मेरी नजरें उनको ढूँढने में लगी थी।

अचानक एक पेड़ के पीछे मुझे कुछ हलचल सी महसूस हुई। मेरी धड़कन बढ़ गई। मैं वहीं खड़ा रहा। तब मैंने देखा कि एक लड़की मेरी ओर आ रही है, वो सलवार-सूट में थी पर चेहरा दुपट्टे से नकाब की तरह ढके हुए थी।

वो लड़की आगे आई और बोली- मैं ही आपके मोहल्ले की हूँ। और आपसे सेक्स के लिए आई हूँ।

मैंने हाँ में सर हिलाया। उस लड़की के शरीर का कोई खास अंदाजा नहीं लग पा रहा था क्योंकि वो बहुत ढीले-ढाले लिबास में थी।

मैंने पूछा- अब बताओ, कैसे और क्या करना है?

इस पर मेरे मोहल्ले वाली ने हंसकर कहा- अरे यही अनुभव करने तो मैं यहाँ आई हूँ, और आप हमसे ही पूछ रहे हैं।

मैं झेंप गया और बोला- मेरा मतलब यह नहीं था।

उसने कहा- आप जैसा चाहें करें !

ऐसा कहकर वो मेरे नजदीक आई और मेरे सीने से लग गई।

मैंने कहा- यह तो ठीक है कि मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूँगा पर इससे तुम चुम्बन का मजा नहीं ले पाओगी।

उसने कहा- कोई बात नहीं चुम्बन के बगैर ही मैं आपसे करवाऊँगी।

मैंने कहा- ठीक है, पर जब मैं तुम्हारे कपड़े उतारूँगा तो तुम भी मेरे कपड़े उतारना।

वो तैयार हो गई।

पहले तो मैंने कपड़े के ऊपर से ही उसके उरोजों को दबाना शुरू किया। उसके शारीरिक गठन और स्वास्थ्य की तुलना में काफी बड़े-बड़े थे उसके उरोज बड़े और कठोर। मैं मस्त होकर उसे दबाने लगा। उसके मुँह से भी आह.. उह… निकलने लगी।

उसने अपने हाथ में पकड़े थैले से एक चादर निकाली और एक पेड़ के नीचे ऐसे जगह पर बिछाई जहाँ पूरी चाँदनी खिल रही थी। चाँदनी रात और हसीना का साथ, दोस्तो, आप सिर्फ महसूस कर सकते हैं मेरी खुशी और आनन्द के आलम को।

हम दोनों उस चादर पर बैठ गए, मैंने उसके कुर्ते का हुक खोलना शुरू किया। उसने भी मदद की, उसका सारा ध्यान इस बात पर था कि कपड़े उतारते हुए चेहरा ना बेनकाब हो जाए।

खैर मैंने भी उसका चेहरा देखने का कोई प्रयास नहीं किया, उसके पेट और पीठ का हिस्सा देखकर एहसास हुआ कि वो कितनी गोरी है। दूध की तरह सफ़ेद और चमकीला जिस्म देखकर तो मैं पागल हो गया। फिर मैंने उसकी ब्रा निकाली। उसके दोनों यौवन-कपोत उछलकर बाहर आ गए। क्या खूबसूरत लग रहे थे, दोस्तों क्या बताऊँ।

मैं कुछ देर तक तो प्यार से उसे सहलाता रहा। इतने सुन्दर स्तन मैंने अब तक अपने जीवन में नहीं देखे थे। इतने सुन्दर स्तन को सिर्फ सहलाने का मन कर रहा था, दबाने का नहीं। डर लग रहा था कि कहीं दबाने से इनकी सुंदरता कम ना हो जाए।

कुछ देर सहलाने के बाद मैं उसकी सलवार का नाड़ा खोलने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

तो उसने मेरा हाथ थाम लिया और बोली- अभी आप अपना कमीज उतारने दीजिए।

मैंने कहा- मैंने कब मना किया है, उतारो।

उसने मेरी कमीज उतारी और मेरे बालों से भरे सीने को चूम लिया और अपना चेहरा सीने में छुपा लिया। मैंने उसे बाहों में भर लिया।

उसने कहा- जरा जोर से।

मैंने उसे भींच लिया, वो मेरे बाहों में सिमट सी गई। सीने में सिमटे हुए ही अब उसने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे लिंग पर पैंट के ऊपर से ही रख दिया और दबाने लगी।

मैंने कहा- बाहर निकाल कर प्यार करो ना !

वो मेरे पैंट का हुक और चेन खोलने लगी और मैं उसकी सलवार का नाड़ा। कुछ ही देर में हम दोनों बिल्कुल वस्त्र-विहीन हो गए। मैंने उसके गुलाबी योनि को सहलाना शुरू किया। क्या मखमली एहसास था। वो भी मेरे लिंग बड़े प्यार से सहला रही थी और कभी-कभी दबा भी देती थी। हम दोनों ही सुखद स्पर्श की अनुभूति में सराबोर हो रहे थे। हम दोनों की ही आँखें बंद थी।

मैं उसके स्तनों को चूसने लगा। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी और जोश में आकर उसने मेरे लिंग के चमड़े को आगे-पीछे करके हिलाने लगी।

मैंने कहा- इसे किस तो करो।

उसने कहा- सिर्फ किस करूँ या कुछ और भी..?

मैंने कहा- आज के दिन तो यह तुम्हारा है, जो मर्जी हो करो।

इतना सुनते ही उसने मेरे लिंग को गप से अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। दो तीन बार ही चूसने पर उसे उबकाई सी आने लगी और उसने लिंग को मुँह से बाहर निकाल दिया।

मैंने कहा- तुम्हे अच्छा नहीं लगा तो क्यूँ मुँह लिया तुमने?

उसने कहा- भाभी ने कहा था कि आपको लिंग चुसवाने में बहुत मजा आता है। मैंने सोचा कि जब मैं अपनी खुशी के लिए आप जैसे शरीफ़ आदमी से मजे ले सकती हूँ तो मेरा भी तो फर्ज बनता है कि आपको भी पूरी खुशी दूँ।

मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है, जो तुम्हें पसंद हो, वही किया करो। आज का हमारा मिलन हम दोनों के लिए यादगार बन जाए।

इस पर वो बोली- नहीं भैया, चूंकि मेरी ख्वाहिश थी कि शादी से पहले भी एक बार मैं सेक्स का मजा लूँ इसलिए मैंने आपको अनुरोधकिया, वरना आज के दिन को मैं कभी भी याद नहीं रखना चाहूँगी और शायद इसलिए ही मैंने आप जैसे शरीफ़ इंसान का चुनाव किया।

मैंने कहा- जैसी तुम्हारी मर्जी ! पर कम से कम अब तो मुझे भैया मत कहो।

वो मुस्कुराने लगी।

उसने फिर मेरे लिंग को चूमना शुरू किया, चूमते-चूमते चाटना भी शुरू कर दिया। मैंने मना भी किया पर वो नहीं मानी और लिंग के जड़ से नोक तक अपनी जीभ फिरा कर चाटती रही। चाटते-चाटते फिर उसने मेरे लिंग को मुँह के अंदर ले लिया और मजे से चूसने लगी।

अब मुझे भी अपनी जिम्मेवारी का एहसास हुआ और बगैर अपने लिंग को उसके मुँह से निकाले ही मैं घूमकर अपने मुँह को उसकी योनि के पास लाया और उसके योनि को चूम लिया। वो चिहुँक गई और मस्ती में आकर अपने कमर को उठाने लगी।

पहले तो मैंने उसकी योनि को ऊपर से चाटा फिर बाद में उसके दोनों फांकों अलग किया, अपनी जीभ को घुसेड़ कर जीभ से ही मजे लेने लगा।

वो मस्ती में इस्स्स… इस्स्स करने लगी। मैं भी उसके योनिरस के स्वाद और सुगंध से मदहोश होता जा रहा था।कुछ ही देर चाटने पर उसके योनि से भरपूर रसों की बरसात हो गई।

कुछ देर और सहलाने और चिपटने के बाद वो बोली- अब देर क्यूँ कर रहे हैं, कीजिये न?

मैंने कहा- धीरज रखो !

और फिर हम सीधे हो गए और मैं उसकी दोनों टांगों के बीच में आ गया। उसकी योनि गीली होकर चिपचिप हो गई थी। मेरे लिंग में भी काफी तनाव था। मैंने अपने लिंग को उसके योनिद्वार से सटाया ही था कि उसने अपनी कमर उचकाई। इससे लगा कि वो कितनी उतावली हो रही है मिलन के लिए।

मैंने कहा- देखो पहली बार में थोड़ा दर्द होगा, क्या बर्दाश्त कर लोगी?

वो बोली- हाँ भैया कर लूँगी। यह सब सोचकर ही तो फैसला किया था मैंने सेक्स के लिए।

मैंने कहा- फिर भैया?

वो मुसकुराती हुई बोली- रहने दो भैया, मैं कुछ और नहीं बोल पाऊँगी।

मैंने भी हामी भरी। अब मैंने लिंग को सही जगह पर सेट किया और थोड़ा दबाया। लिंग का अग्रभाग यानि सुपाड़ा योनि द्वार में फंस गया। काफी कसी थी उसकी योनि, आखिर पहली बार सेक्स करवा रही थी वो। उसका चेहरा तो दिख नहीं रहा था पर लगा जैसे वो दर्द से घिर गई है। पर वो खुश थी। मैं रुक कर उसके स्तनों को प्यार करने लगा।

कुछ देर बाद वो बोली- भैया क्या इतना ही बड़ा है आपका लिंग?

यह उसका इशारा था आगे बढ़ने के लिए, मैंने हल्के से एक धक्का लगाया। लिंग करीब दो इंच और अंदर चला गया, उसने गर्दन हिलाना शुरू किया और छटपटाने लगी। मैं रुक गया और फिर से उसके स्तनों की घुंडी को उंगली से गोल गोल घुमाने लगा।

दो मिनट बाद वो बोली- जब दर्द होना ही है तो बार-बार दर्द देने की क्या जरुरत है? एक ही बार में पूरा डाल दीजिए ना।

मैं तो उसके हिम्मत से दंग रह गया। अब मैंने अपने लिंग को थोड़ा बाहर निकाला और एक जोरदार धक्का लगाया। पूरा का पूरा लिंग जड़ तक उसके योनि में धँस गया था।

उई…

और वो मछली की तरह मचलने लगी। मैंने हिम्मत करके उसके दुपट्टे के ऊपर से ही उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। पहले तो वो थोड़ी चौंकी पर कुछ बोली नहीं। फिर उसने मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़ कर थोड़ा उठा दिया और बोली- मैं अपना दुपट्टा होंठों से ऊपर करुँगी, आप मुझे चूम सकते हैं पर प्लीज आगे नहीं।

इतना कहकर उसने अपने दुपट्टे को होंठों के उपर से हटाया। उसके उपरी होंठ के ठीक ऊपर दाईं तरफ तिल का निशान था जो बहुत प्यारा लग रहा था। मैं उसके होंठो को चूमने लगा। चूमने क्या चूसने लगा। इतना रसभरा था कि पूछो मत। मैं तो खो गया उसके होंठों में !

कुछ देर बाद जब वो सामान्य हुई तो कमर उचका कर इशारा किया। अब मैंने अपने कमर को आगे पीछे करना शुरू किया। शुरू में तो धीरे-धीरे फिर जैसे ही लिंग योनि में व्यवस्थित हुआ, अपने आप ही स्पीड बढ़ गई। मेरे हर धक्के का जवाब वो भी नीचे अपनी कमर उचका कर देने लगी। पन्द्रह-बीस धक्कों के बाद ही उसकी योनि ने फिर से रस छोड़ दिया और वो कुछ निढाल सी हो गई।

मैंने पूछा- थक गई क्या?

तो वो बोली- थक तो गई, पर आप करते रहिये, अच्छा लग रहा है, आपके लिंग का घर्षण मेरे तन-मन को बहुत खुश कर रहा है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सेक्स में इतना मजा आता है। जब तक आपका मन नहीं भरे करते रहिये।

मैं उसकी खुशी और हिम्मत से अभिभूत हो गया। अब तो चिकनाई भी बढ़ गई थी, सटासट सटासट इंजन के पिस्टन की तरह मेरा लिंग अंदर-बाहर होने लगा।

उसके मुँह से आह… उह… जोर से… और जोर से… की अस्फुट आवाज आ रही थी। उसकी आवाज से मैं और भी उत्साहित हो रहा था और जोश में धक्के पर धक्के लगा रहा था।

दस-बारह मिनट तक धक्के लगा-लगा कर मैं भी थकने लगा। लेकिन पता नहीं क्यूँ मेरा स्खलन नहीं हो रहा था। मैं थक कर थोड़ी देर के लिए रुक गया।

उसने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- अब मैं थक गया।

उसने पूछा- पर आपका डिस्चार्ज हुआ क्या?

मैंने कहा- अभी तक तो नहीं।

फिर करीब दो मिनट के बाद मैं फिर शुरू हुआ और अब वो भी फिर से कमर उचका कर मेरा साथ देने लगी। मेरी स्पीड भी तेज होने लगी। करीब तीस-बत्तीस धक्के के बाद भी मेरा स्खलन नहीं हुआ तो सोचने लगा कि आखिर बात क्या है।

उसका हाथ मेरे चूतड़ों को सहला रहा था, कभी कभी वो नाख़ून भी गड़ा देती थी। अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी गुदा के अंदर घुसा दी और इसके साथ ही मैं इतना उत्तेजित हुआ कि मेरे लिंग से जोर-जोर से पिचकारी चलने लगी। मेरी पिचकारी को अपने योनि में महसूस करते ही उसने मुझे कसकर भींच लिया। आठ-दस पिचकारी के बाद मैं भी निढाल होकर उसके शरीर पर ही लेट गया।

हम दोनों का पूरा शरीर पसीने से भीग गया था, दोनों ही हाँफ रहे थे। थोड़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद दोनों अलग हुए, मैंने एक बार फिर उसके होंठों को चूम लिया।

अब कुछ ठंडक महसूस होने लगी। आखिर नवंबर का महीना था और वो भी खुली चाँदनी रात। हम दोनों फिर एक बार एक-दूसरे से लिपट गए। उसका बदन अभी भी भट्ठी की तरह तप रहा था। बेड-शीट पर काफी जगह में खून के धब्बे का निशान हो गया था।

उसने कहा- भाभी कह रही थी कि आप उनको पीछे से भी करते हैं और आपको इसमें बहुत मजा आता है?

मैंने कहा- हाँ, अच्छा तो लगता है, पर पीछे से तुम्हारा क्या मतलब है?

तो उसने अपनी योनि पर हाथ रखकर कहा- पीछे से भी यहीं, आप कुछ और नहीं समझिएगा और मैं तैयार हूँ। आपने मुझे इतनी खुशी दी, मैं भी आपको खुश करके ही वापस जाने देना चाहती हूँ।

मैंने उसे सीने से लगा लिया और उसके नितंबों को सहलाने लगा और वो भी मेरे लिंग को पकड़ कर चूसने लगी।

कुछ ही देर में मेरे लिंग में उत्थान आ गया। मैंने उसके नितम्ब पर एक थपकी देकर इशारा किया, वो घोड़ी के स्टाइल में आ गई। उसकी योनि तो गीली हो ही रही थी, मैंने भी अपने लिंग को उसके योनि पर सेट किया और एक जोरदार धक्का मारा। पूरा का पूरा लिंग एक बार में ही उसकी योनि में घुस गया, अब मैं धक्के लगाने लगा, वो भी अपने कमर को पीछे की ओर करके अधिक से अधिक मेरे लिंग को अपने अंदर लेने की कोशिश करने लगी।

हर धक्के में आनंद-विभोर होकर आह… उह… करने लगी। कुछ देर बाद हम दोनों ने ही चरम-सुख को पा लिया।

फिर हम लोगों ने कपड़े पहने और वापस जाने को हुए।

वो एक बार फिर मेरे सीने से लग गई और बोली- मुझे आपके साथ बहुत सुख मिला। मैं बहुत आभारी हूँ आपकी। और आप ये राज़ हमेशा राज़ ही रखेंगे इसके लिए भी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। और हाँ, आप मुझे पहचानने की भी कोशिश नहीं करेंगे, प्लीज !

और हम लोग अपने-अपने घर लौट आए।

दोस्तो, यह थी मेरी कहानी। मैं अब तक उस अज्ञात यौवना के बारे में नहीं जान सका। और न ही कभी अपनी पत्नी से उसके बारे में जानने की कोशिश की। हाँ एक लड़की जरूर है मेरे मोहल्ले की जिसके होंठ के ऊपर तिल का निशान भी है और उसका शारीरिक गठन भी वैसा ही है जो उस दिन आई थी। पर यकीन के साथ नहीं कह सकता कि वही है। अब जो भी हो… !!!!!

आपको कैसी लगी यह दास्तान, जरूर बताइएगा।

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