मेरी तन की आग देवर जी ने बुझाई
हम पति पत्नि दोनों ही गांव छोड़ कर नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गये थे। मेरा देवर भी पढ़ाई के लिये हमारे साथ यहां आ गया था। मेरा देवर राजू कॉलेज में था उसे सुबह जाना होता था और 12 बजे तक वापस आ जाता था। मैं दोनों का नाश्ता और खाना सुबह ही तैयार देती थी। राजू सवेरे उठ कर मुझे जगा देता था, कई बार मैं कम कपड़ो में सोती थी, तब राजू मुझे बहुत गौर से देखता रहता था। शायद वो मेरे बोबे निहारता था। अगर कभी कभी रात को पति से चुदाने के बाद मैं ऐसे ही सो जाती थी।
मुझे अस्तव्यस्त कपड़ों में राजू का मुझे ऐसे निहारना रोमांचित कर देता था। पर वो तो दिन भर अपने आप को इन चीज़ो से अनजान ही बताता था। वो भी जब कभी पेशाब करता था तो मौका देख कर लण्ड को ऐसे निकाल कर करता था कि उसका लण्ड मुझे दिख जाये। मैं भी उसके लण्ड की छवि मन में उतार लेती थी और वो मेरे मन में बस जाता था। अपने ख्यालो में मैं उस लण्ड से चुदती भी थी।
जब वो करीब 12 बजे दिन को लौटता था तो उसे खाना परोसते समय मैं झुक कर अपने स्तन के दर्शन जरूर कराती थी, वो भी तिरछी नजरों से मेरे सुडौल स्तनों का रसपान करता था। पजामे में से उसका लण्ड जोर मारता स्पष्ट दिखाई देता था।
जब दोनों तरफ़ आग लगी थी तो देरी किस बात की थी। जी हां … हमारे रिश्तों की दीवार थी, मेरी उम्र की दीवार थी … उसे तोड़नी थी … पर कैसे ??? देखने दिखाने का खेल तो हमने बहुत खेल लिया था … अब मन करता था कि आगे बढ़ा जाये, कुछ किया जाये … … शायद ऊपर वाले को भी हम पर दया आ गई थी … … यह दीवार अपने आप ही अचानक टूट गई।
दिन में खाना खा कर राजू अपने बिस्तर पर लेटा था। मैं भी अपने कमरे में जा कर लेट गई थी। मन तो भटक रहा था। मेरे हाथ धीरे धीरे चूत पर घिस रहे थे। मीठी मीठी सी आग लग रही थी। मेरा पेटीकोट भी ऊपर उठा हुआ था। हाथ दाने को सहला रहा था। अचानक मुझे लगा को कोई है? मैंने तुरन्त नजरें घुमाई तो राजू दरवाजे पर नजर आ गया। मैंने जल्दी से पेटीकोट नीचे कर लिया और बैठ गई। राजू डर गया और जाने लगा … शायद वो कुछ देर से मुझे देख रहा था …
“ए राजू … इधर आ … ” मैंने उसे बुलाया ” देख भैया को मत कहना जो तूने देखा है।”
“नहीं भाभी, नहीं कहूंगा … आपकी कसम !”
“ले ये 50 रु रख ले बस … !” मैंने उसे रिश्वत दी। राजू की आंखे चमक उठी, उसने झट से पैसे रख लिये।
“आप बहुत अच्छी है भाभी … !” उसका लण्ड अभी भी उठान पर था, मुझे ये सब करता देख कर वो उत्तेजित हो चुका था।
“तुझे अच्छा लगा ना … ” मैंने शरम तोड़ना ही बेहतर समझा।
“हां … भाभी, पर आप भी मत कहना भैया से कि मैंने आपको ये सब करते हुये देख लिया है।”
मेरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई … तो सब इसने देख लिया है … मैं समझी थी कि बस थोड़ा सा ही देखा होगा। मुझे लगा कि अब राजू मुझसे चुदाई के बारे में फ़रमाईश करेगा। पर हुआ उल्टा ही … राजू की सांसे तेज हो गई थी … उसके चेहरे पर पसीना आ रहा था … राजू मेरे कमरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में आ गया। मुझे लगा कि आज मौका है, लोहा गर्म है, माहौल भी है … कोशिश कर लेनी चाहिये।
इसी कशमकश में 15 मिनट निकल गये। हिम्मत करके मै उठी और धीरे से उसके कमरे में झांका। वो किन्हीं ख्यालो में खोया हुआ था या उसे वासना की खुमारी सी आ रही थी। पजामे में उसका लण्ड खड़ा था और उसके हाथ उस पर कसे हुये थे। आंखे बन्द थी और वो शायद हौले हौले मुठ मार रहा था। शायद मेरे नाम की ही मुठ मार रहा था। आनन्द में मस्त था वो। मैं दबे पांव उसके बिस्तर के पास आई और उसके बालों पर हाथ फ़ेरा। उसने अपनी आंख नहीं खोली, शायद वो इसे सपना समझ रहा था। मैंने अपना होंठ उसके होंठो से मिला दिये और उसे चूमने लगी। वो तन्द्रा से जागा। उसके होंठ कांप उठे और अपने आप खुल गये।
” भाभी … आप … !” उसके हाथ मेरी कमर में आ गये, उसकी वासना से भरी आंखे गुलाबी हो रही थी।
“राजू मत बोल कुछ भी … तू मुझे प्यार करता है ना … !” मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और दबाने लग गई, ताकि उसके इन्कार की गुन्जाइश नहीं रहे।
“भाभी … हाय मेरा लण्ड … मैं मर गया … मत करो ना … !” उसकी झिझक अभी बाकी थी। पर उसका लण्ड बहुत जोर मार रहा था।
“तू कितनी बार मुठ मारेगा … आजा आज अपनी कसर निकाल ले, कितना मोटा लण्ड है तेरा … !” उसके लण्ड को मैंने जबरदस्ती कस कर पकड़ लिया और उसे दबाने लगी। आखिर उस पर वासना सवार हो ही गई। उसने विरोध करना छोड़ दिया और लण्ड को मेरे हवाले कर दिया। मैं धीरे से उसके ऊपर चढ़ गई और उसे अपने जिस्म के नीचे दबा लिया। अपना पेटीकोट भी ऊपर करके नंगी चूत उसके पजामे में खड़े कड़क लण्ड के ऊपर रख दी और हौले हौले घिसने लगी। राजू उत्तेजना से तड़प उठा। उसने मेरे कठोर स्तन थाम लिये और सहलाने लग गया। मेरे स्तन कड़े होते जा रहे थे। चूचक भी कड़क हो कर फूल गये थे। चूत से पानी रिसने लगा था। मेरे शरीर का बोझ उस पर बढ़ने लगा।
“राजू पजामा उतार दे ना … हाय रे देख तेरे लण्ड की क्या हालत हो रही है।” मुझे चुदाने की जोर से इच्छा होने लगी थी। चूत में जोर की मिठास भरने लगी थी।
“भाभी, आप भी पेटीकोट उतार दो ना … मुझे आपका सब देखना है … ” उसकी बेताबी देखते बनती थी, लगता था कि राजू की भी प्रबल इच्छा हो रही थी कि अपनी भाभी की मस्त चूत और गाण्ड की प्यारी प्यारी गोलाइयाँ देखे।
“सच राजू … मेरी चूत देखेगा, … मेरी चूंचिया देखेगा … सुन, अपना लण्ड मुझे दिखायेगा ना !” मेरी बेताबी बढ़ने लगी। चूत का पानी साफ़ करते करते पेटीकोट भी गीला हो गया था।
“हां, मेरी भाभी … जो चाहोगी आप कर लेना।” राजू नंगा होने को बेताब लग रहा था। उसकी कमर चोदने की स्टाईल में कुछ कुछ ऊपर नीचे हो रही थी।
मैंने धीरे से उसका पजामा उतार दिया। उसका मस्त तन्नाया हुआ लण्ड बाहर निकल कर झूमने लगा। थोडी सी गोल सी चमड़ी में से उसका सुपाड़ा झांक रहा था। मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और सहलाने लगी। उसकी सुपाड़े की चमड़ी खींच कर लाल सुपाड़ा बाहर निकाल लिया। उसकी स्किन लगी हुई थी , मतलब उसने किसी को नहीं चोदा था, फ़्रेश माल था। मेरा प्यार उस पर उमड पड़ा।
“राजू, प्लीज अपनी आंखे बन्द कर लो, मुझे अब कुछ करना है … !” मैंने राजू से वासनामय स्वर में कहा। राजू ने चुपचाप अपनी आंखे बन्द कर ली। मैंने थूक का बड़ा सा लौन्दा उसके सुपाड़े पर रख दिया और उसे मलने लगी। उसके मुख से सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मैंने अब झुक कर उसका मस्त लण्ड मुख में ले लिया और मुख में लण्ड अन्दर बाहर करके अपना मुख चोदने लगी। वो मस्ती में सिमट गया और … आहें भरने लगा।
“अपनी टांगे उठाओ राजू … थोड़ी और मस्ती करनी है … !” मुझे उसकी गाण्ड को अंगुली से चोदने की इच्छा होने लगी।
“लो उठा ली टांगें … ” उसने अपनी टांगें ऊपर उठा ली। उसकी गाण्ड खुल गई।
मैंने उसकी गाण्ड को सहलाने लगी और दबाने लगी। उसकी गाण्ड के फ़ूल को छूने लगी और दबाने लगी। उसकी गाण्ड के छेद में थूक लगा कर एक अन्गुली धीरे से अन्दर सरका दी। राजू चिहुंक उठा। धीरे धीरे अंगुली अन्दर बाहर करने लगी … राजू झूम उठा।
“भाभी … आप तो सब कुछ जानती है … कितनी अच्छी है … कितना मजा आ रहा है … मेरा लण्ड रगड़ दो ना !” उसकी सिसकारियां बढ़ने लगी, आहें फ़ूट पड़ी।
“मजा आ रहा है ना … !” मैंने दूसरे हाथ से उसका लण्ड पकड कर मुठ मारना चालू कर दिया। पर ये क्या … वो टांगे समेट कर एठने लगा और उसका वीर्य छूट पड़ा। ढेर सारा वीर्य निकलता गया … मैंने फ़ुर्ती से लण्ड को अपने मुख में ले लिया और गटागट पीने लगी। उसकी गाण्ड में से अन्गुली निकाल ली। उसकी सांसे उखड़ रही थी। वो अब धीरे धीरे अपनी सांसें समेट रहा था, अपने आप को कन्ट्रोल कर रहा था।
अब कपड़े उतारने की मेरी बारी थी। मैं भी बेकाबू हो रही थी। मैं चाह रही थी कि वो भी मेरे जिस्म से खेले। मेरी चूंचियो को दबाये,, खींचे, घुमाये, मेरी चूत से खेले मेरी गाण्ड की गोलाईयाँ दबाये औए गाण्ड में मेरी ही तरह अंगुली करे। मैंने राजू से कहा,” राजू … अब आप भी अपनी इच्छा पूरी कर लो … कहो कहां से शुरू करोगे … ?” मेरे मुख से बोल नहीं वासना उमड़ रही थी।
“भाभी … मुझे तो आपके बोबे यानी चूंचियाँ बहुत जोरदार लगती हैं … जाने सपनो में कितनी बार दबा चुका हूँ।” राजू ने शान्त स्वर में इकरार किया। और कुछ ही पल में उसने मेरे बचे खुचे कपड़े भी उतार दिये। उसने प्यार से मेरे मद मस्त बदन को निहारा और मेरे चूचियों को सहलाने लगा। मेरे कड़े चूचक उबल पडे। मेरे निपल को उसने घुमाना चालू कर दिया। मेरे मुँह से सीत्कार निकल पडी।
“राजू … हाय … मसल दे रे मेरी चूंची … ” मैं झनझनाहट से तड़प उठी। मैंने प्यार से उसके चेहरे को चूम लिया। तभी उसका कुंवारा लण्ड धीरे धीरे खडा होता हुआ दिखने लगा। मैं तनमयता से लण्ड को एक्शन में आते देखने लगी। उसे देख कर मेरी चूत तड़प उठी। खड़ा होते होते उसका लण्ड फ़ुफ़कारें मारने लगा। मुझे लगने लगा कि बस अब राजू मेरी चूत मार ही दे और मेरी चूत फ़ाड दे। लेकिन अभी उसके होंठो के बीच मेरे चूचक दबे हुये थे जिसे वो खींच खींच कर चूस रहा था या कहिये कि पी रहा था। उसमें से थोड़ा थोड़ा सा दूध आ रहा था।
अब उसके एक हाथ ने नीचे से मेरी चूत दबा दी। मैं हाय कर उठी … चूत के पानी से उसका हाथ गीला हो गया। अब धीरे धीरे बदन चूमता हुआ चूत की ओर बढ़ने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। कुछ ही क्षणों में मेरी फूली हुई चूत पर उसके होंठ जम गये थे। राजू की जीभ बाहर निकल कर चूत के द्वार खोल कर कर अन्दर का रसपान करने लगी। मेरी कलिका फ़ुदक उठी, कठोर हो कर तन गई। जीभ का स्पर्श मुझे तेज मिठास दे रहा था। उब उसकी जीभ ने मेरी कलिका को होंठो के बीच दबा लिया था और उसको चूस रहा था। अचानक राजू की एक अंगुली मेरी कोमल गाण्ड में घुस गई। और अन्दर बाहर होने लगी। ये सब कुछ मेरे सहनशक्ति के बाहर था । मेरे मुख से एक सीत्कार निकल पड़ी और उसके बालों को पकड़ कर मैंने उसके सर को अपनी चूत पर दबा दिया और अपना पानी उगलने लगी। मैं झड़ चुकी थी।
“हाय राजू … मेरा तो दम निकल गया रे … मैं तो गई … आह्ह्ह्ह्ह् … मेरी मां री … …!! ” राजू ने अपनी नशीली आंखों से मुझे देखा और मेरे ऊपर आ गया। मुझे चूमने लग गया।
“हाय मेरी भाभी, आप तो बडी मस्त हैं … काश आप मुझे पहले मिली होती … आपके नाम के कितनी बार मुठ मारी मैंने
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