खेत खलिहान-3
देसी कहानी का दूसरा भाग: खेत खलिहान में देसी छोरियों का यौवन का खेल-2
रेणु की छातियाँ सुरेश के सीने पर दबकर चपटी हो गईं। किनारे से उभर गए माँस में ही एक चूचुक का कालापन झाँक रहा था। सुरेश उसकी कनपटी पर, बालों की जड़ पर इधर उधर चूम रहा था। उसे अपने बदन से दबा कर अपने सीने से उसके स्तनों को मसल रहा था। उसके गले में रेणु की पकड़ ढीली पड़ती जा रही थी- आह.. आह… आऽऽह…
संजना बार-बार दरवाजे की तरफ देख रही थी; आखिरकार बोल पड़ी- बाहर कोई…
सुरेश को जैसे होश आया। वह उठा और दरवाजा खोल कर बाहर निकल कर देखने लगा। दूर-दूर तक कोई नहीं था। फिर भी उसने एहतियात के लिए दोनों की साइकिलें एक एक करके कमरे के अंदर कर दीं ताकि इधर से कोई गुजरे तो देखकर संदेह न करे। उसके बड़ी देर से तने लिंग को राहत भी मिली। उसने देखा, रेणु और संजना में कुछ बात हो रही है। संजना शायद रेणु पर बिगड़ रही थी। क्या कर रही हो यह सब!
दरवाजा पुनः लगाकर वह दोनों के पास बैठता हुआ संजना से बोला- थैंक्यू!
इस थैंक्यू से संजना एकदम से संकुचित हो गई; देख कर सुरेश का दिल और रीझ गया। यह सही समझदार और शीलवान लड़की है। ‘शील’ शब्द से उसका ध्यान कुँआरेपन की सील की ओर चला गया। लगता नहीं कि अभी इसकी ‘सील’ टूटी है। ‘सील तोड़ने’ के खयाल से वह रोमांचित हो उठा। उसका लिंग जो जींस के अंदर काफी देर से तना असुविधा पैदा कर रहा था, इस खयाल से फनफना उठा। उसे हाथ से इधर-उधर दबाकर कोई आरामदेह स्थिति में पहुँचाने की कोशिश की, लेकिन घर्षण से मुसीबत और बढ़ ही गई।
सुरेश ने संजना के झुके सिर को संबोधित किया- तुमने कमीज नहीं उतारी? मदद करें क्या?
कहकर वह फिर रेणु की ओर मुड़ गया और उसकी कुहनी उठाकर एक स्तन को अपने कब्जे में ले लिया और पुनः रेणु उसे चूमने लगा।
यह धमकी है या सामान्य बात? संजना का एक एक क्षण क्षीण-सी उत्सुकता के साथ आतंक में बीत रहा था। सुरेश रेणु का चुम्बन समाप्त कर संजना की ओर बढ़ा। संजना ने बाँहों को अपनी छाती पर और कस कर दबा कर हथेली में चेहरे को छिपा लिया। सुरेश इस वक्त कोई भी कमजोरी का संकेत नहीं देना चाहता था। उसने उसकी एक हथेली को मुट्ठी में पकड़ा और ताकत से अपनी ओर खींचा। संजना का हाथ चेहरे से अलग होकर सुरेश की तरफ सीधा होने लगा।
संजना एक ही हाथ से चेहरा छिपाए रही।
“इधर देखो।”
संजना ने सिर नहीं उठाया, लेकिन उसने सुरेश की पकड़ से हाथ खींचना बंद कर दिया।
सुरेश ने रेणु से कहा- तुम्हारी दोस्त बहुत शरमा रही है। जरा इसे समझा दो ना।
कह कर उसने संजना का हाथ खींचकर रेणु की पीठ पर रख दिया। रेणु के गर्म, गीले, धड़कते शरीर को हथेली के नीचे महसूस कर संजना को झुरझुरी दौड़ गई; उसने अपना हाथ हटा लिया।
सुरेश ने उसके हाथ को पकड़कर रेणु के स्तन पर लगाया; पूछा- देखो, यह क्या है?
मुलायम स्तन से हाथ का स्पर्श होते ही संजना को जैसे करंट लगा। उसने सिर उठाकर देखा और तत्काल हाथ खींच लिया। लेकिन सुरेश ने उसका हाथ अपनी पकड़ से छूटने नहीं दिया, बोला- नहीं, नहीं, ऐसे नहीं। अभी तो हमें तुम्हारा भी देखना है, लो देखो।
उसने उसका हाथ फिर से रेणु के स्तन पर लगा दिया। खुद ही उसको पकड़े उससे मसलवाने लगा।
संजना को एकदम से हैरानी हुई कि कि ऐसा क्या है कि सुरेश उसकी ऐसी बेइज्जती कर रहा है और वह कुछ नहीं कर रही? क्या वह इतनी कमजोर है?
एक बिजली सी उसके दिमाग में कौंधी। उसका हाथ सुरेश की पकड़ से छूटा और उसके गाल पर जा लगा…
“तड़ाक…!!!!”
सुरेश अवाक! इस गाय जैसी लड़की की ये हरकत? गाल को सहलाता कुछ देर संजना को देखता रह गया। इधर रेणु तो रेणु, संजना भी हैरान थी कि वह क्या कर बैठी है। वह ऐसा चाहती नहीं थी मगर उससे अपने-आप ऐसा हो गया।
सुरेश रेणु को छोड़कर संजना की ओर बढ़ा। उसके गालों को पकड़ा और सीधे उसके मुँह को चूमने लगा। संजना छूटने के लिए जोर लगाने लगी। सुरेश ने उसके दोनों हाथों को पीठ की तरफ मोड़ कर एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरा हाथ से उसका सिर थामकर उसे पुनः चूमने लगा।
इस बार यह गाढ़ा चुम्बन था; संजना की अकबकाहट को रौंदता; साँस के खत्म हो जाने की हद तक लम्बा। जब टूटा तो दोनों हाँफ रहे थे। खास कर संजना साँस पहले समाप्त हो जाने से ज्यादा ही हाँफ रही थी। पीठ पीछे हाथ पकड़े रहने से उसकी छातिय़ाँ उभर आई थीं। सुरेश ने उन हाँफती छातियों को सहलाया। संजना उसको भौंचक देख रही थी। यह सब उसी के साथ हो रहा है क्या?
रेणु को संजना पर जबरदस्ती से खुशी के साथ हमदर्दी भी हो रही थी। बेचारी! लेकिन पहला संभोग तो हर लड़की कष्ट से ही भुगतती है। उसके मन में बड़ी तीव्रता से संजना को सुरेश के नीचे दबी देखने की इच्छा उभर आई- ऐसे ही आँखें मूंदे, किंतु अंदर सुरेश का लिंग धँसाए।
सुरेश उसके स्तन दबा रहा था और संजना को देखकर लग रहा था कि अब रो देगी। रेणु सहानुभूति में आकर उससे सट गई। सुरेश ने मुँह बढ़ा कर उसको भी चूमा और संजना से उसकी कमीज पकड़कर पूछा- खोलोगी या फाड़ूँ?
संजना के मुँह में बोल नहीं थे।
रेणु खुश थी, लेकिन इस वक्त दोस्त से नकली हमदर्दी भी जताना जरूरी लगा, बोली- और कितना परेशान करोगे बेचारी को। इतने से संतोष नहीं हुआ?
कहकर उसने सुरेश का हाथ संजना की कमीज पर से छुड़ा दिया।
संजना को लगा कि उसकी दोस्त उसका साथ दे रही है लेकिन वह ठगी सी रह गई जब रेणु बोली- मैं खोल देती हूँ।
कह कर वह खुद संजना के बटन खोलने लगी।
सुरेश, जो अभी उलझन में पड़ा था, उसकी चालाकी पर मुस्कुरा पड़ा।
इधर संजना की तो पूछो मत। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी दोस्त ही उसके कपड़े उतार रही है।
जब रेणु ने उसके हाथ पीछे खींचे तो उसने हाथ ढ़ीले छोड़ दिए। वह किसी विरोध या सहयोग की अवस्था से दूर थी।
कमीज निकलते ही एक नई गंध हवा में फैल गई। खट्टी होने से पहले ताजे शरीर के पसीने की गंध। सुरेश उस अर्धनग्न संजना को आँखें फाड़े देखने लगा। क्या कमाल की ब्यूटी है!
रेणु को भी एहसास हुआ कि उसकी दोस्त उससे बढ़कर है.
सीने पर लिपटी टीन ब्रा की सादी सी भीगी पट्टी को छोड़ कर संजना बाकी शरीर से किशोरी की तरह लग रही थी। लेकिन कपों में वक्षों के आधार की चौड़ाई, गोलाई और उठान किसी बड़े भराव की संभावना जता रहे थे। शरम से सिकुड़े शरीर में वक्षों का यों सिर उठाकर घमंड करना गजब लग रहा था।
सुरेश ने उन्हें हथेली के नीचे दबा-दबाकर उनका गर्व तोड़ा और उन्हें निरावृत करने के लिए ब्रा में उंगली घुसाकर खींची।
रेणु ने आगे बढ़कर संजना की पीठ पर ब्रा के हुक खोल दिए; सुरेश किसी भूखे की तरह संजना के नग्न वक्षों पर झुक गया; देखकर रेणु को बड़ा मजा आया; उसने ताली बजा दी लेकिन तुरंत उसकी स्त्रीसुलभ ईर्ष्या जग पड़ी- मैं इतनी देर से टॉपलेस हूँ और वो मिल गई तो सब कुछ उसी को?
उसने सुरेश का मुँह संजना के चूचुक पर से छुड़ाते हुए कहा- यहाँ एक और लड़की है।
सुरेश ने रेणु को चूमा और कहा- डार्लिंग, तुम तो मेरी जान हो, लेकिन अभी जरा इसको कर लेने दो। नहीं तो हाथ से निकल जाएगी।
सुनकर संजना का चेहरा अपमान से लाल हो गया। वह उठ खड़ी हुई। रेणु ने, जो अभी अपनी ही ईर्ष्या से उबरने की कोशिश कर रही थी, एकदम से घबराकर उसका पैर पकड़ लिया। सुरेश ने संजना को जितनी तेजी से उठी थी उतनी ही तेजी से नीचे खींच लिया। वह लड़खड़ाकर सुरेश के ऊपर गिर पड़ी। सुरेश ने पलटकर उसे अपने नीचे दबाया और बोला- अब बोलो, चोद दूँ इसी वक्त? बहुत उछल रही हो?
सचमुच के मर्द का भार अपने ऊपर महसूस कर एक क्षण के लिए संजना को लगा जैसे वह यूँ ही पड़ी रह जाए और सुरेश उससे आगे की कर ले।
सुरेश उसका चेहरा देखकर बोला- पागल हो गई हो क्या? इस अवस्था में बाहर निकलोगी?
रेणु स्थिति की गंभीरता से काँप गई; अब वापसी का कोई रास्ता नहीं है; संजना का कैसे भी चुद जाना जरूरी है।
सुरेश- देखो, अब तो तुम ऐसे जा नहीं सकती, फिर बेहतर है राजी-खुशी से करवा लो। क्यों परेशान होती हो?
संजना का स्त्री मन स्थिति की तीव्रतावश ही रोने को हो आया। जैसे ही उसका मुँह खुला, सुरेश ने उसके मुँह पर अपना मुँह जमा दिया। उसकी रुलाई घुटकर रह गई।
सुरेश- सच मानो बहुत मजा आएगा। पहले थोड़ा दर्द होगा, उसके बाद तुम खुद मांगोगी। हम तुम्हें कोई मार-पीट थोड़ी रहे हैं।
संजना उसे कातर निगाहों से देखती रही।
सुरेश- मान जाओ।
रेणु को जैसे मौका मिला, वो बोली- हाँ संजना, मान जाओ। बहुत मजा आएगा। फिर हम दोनों मिलकर…
बोलते बोलते वह चुप हो गई; हड़बड़ी में अपने मन का राज खोलने जा रही थी।
सुरेश ने घूरकर रेणु को देखा, रेणु सकपका गई।
संजना को यह लड़का उसे पसंद था लेकिन उसकी इस तरह की जबरदस्ती वह कैसे कबूल कर सकती है! अपने नीचे दबाए हुए है और कह रहा है ‘मान जाओ।’ कैसे मानेगी?
सुरेश को घबराहट में संजना और मासूम और सुंदर लग रही थी। इसको छोड़ना नहीं है। लेकिन काश, ज्यादा जबरदस्ती नहीं करनी पड़े। है बड़ी प्यारी।
वह उस पर से खिसका और उसकी कमर में स्कर्ट के हुक खोलने लगा।
“नहीं…” संजना ने उसे रोका।
“देखो, इसको खोले बिना भी काम हो जाएगा, लेकिन यह फालतू ही चूर हो जाएगी; और फिर…” वह रुका, फिर रेणु को बोला- रेणु, तुम बता दो।
रेणु अनुभवी और बेधड़क थी, उसने बात पूरी की- प्लीज संजना, ये गंदी भी हो सकती है… धब्बे वगैरह…
संजना के मुँह से एक जोर की साँस निकली और उसने कस कर स्कर्ट पकड़ लिया- हाय राम!
एकदम लड़कीपने से भरी इस ‘हाय राम’ को सुनकर सुरेश का दिल उछल गया, बोला- अब भी रोक रही हो? तो फिर ठीक है, ऐसे ही सही।
“अभी नहीं!” संजना के मुँह से निकला।
“क्या? अभी नहीं? तो कब?”
संजना ने सिर झुका लिया।
“ठीक है रुक जाते हैं।” उसने रेणु को संबोधित किया.
“पहला मौका है, जल्दी मत करो, मेरी सखी है।” रेणु बोली।
सुरेश हँस पड़ा- सखी! अब तो ये मेरी भी सखी होने जा रही है। बल्कि सखी से भी ज्यादा।
“सखी से भी ज्यादा? इसे प्रेमिका बनाओगे?”
“वैसे, बुरा न मानो, तुम्हारी सहेली है बिल्कुल प्यार करने लायक।”
“बस बस! प्यार तुम मुझे करोगे।” रेणु बोली।
सुरेश ने रेणु को खींचकर आलिंगन में भर लिया- अरे, तुम तो मेरी जान हो।
उसे चूमा और बोला- लेकिन अभी अपनमी सहेली की मदद तो करो।
“बोलो, क्या मदद करूँ? बेचारी को ज्यादा परेशान मत करो।”
नकली सहानुभूति संजना को और जला गई।
“यह मुझे किस देने में हिचक रही है।”
रेणु मुस्कुराई- लड़कियाँ किस देती नहीं, उनसे ली जाती है….लेकिन वो तो तुम ले रहे हो?”
“दिल नहीं भरा।”
“जिन्दगी भर नहीं भरेगा। मेरी सहेली बेमिसाल है।”
“तो जिन्दगी भर के लिए रख लूंगा, पूछो, तैयार है?”
“?क्या!!” रेणु की आँखें फट गईं। “तुम सचमुच इसको चाहते हो?”
सुरेश ने सही मौका देखकर कह दिया- आज ही नहीं, काफी दिन से। पूछो अपने सहेली से।
“क्या संजना? ये सच है? कब से चल रहा है?”
“मैंने कुछ नहीं किया।” संजना बोली।
“तो जो किया, इसने किया?” संजना ने सुरेश की ओर इशारा किया।
“मैं कुछ नहीं जानती।”
सुरेश बोला- वो जानती है। दिल पर हाथ रखकर बोलने बोलो।
संजना की चुप्पी देखकर उसने जोड़ दिया- मुझसे एक बार मिल भी चुकी है।
“कब? वो तो…” संजना बोलते बोलते रुक गई। सुरेश की बहन, जो उसकी सहेली थी, उसी के साथ वह सुरेश से मिली थी।
“हूँ…” रेणु गंभीर हो गई, उसके दिल में चुभन सी हुई लेकिन हँसकर बोली- तो तुम दोनों पुराने प्रेमी हो।
उसने ताली बजाई- मैं तो समझ रही थी कि दोनों अनजाने हैं। वाह, फिर क्या प्रॉब्लम है? शुभ कार्य जल्दी से हो जाना चाहिए।
सुरेश अपनी जींस के बटन खोलने लगा, रेणु ने टोका- प्रेमियों को तो एक दूसरे की पैंट उतारनी चाहिए।
संजना के मुँह से निकल पड़ा-धत!
रेणु ने कहा- खैर, मेरी सहेली नई है इसलिए तुम्हारा मैं कर देती हूँ।
सुरेश उठकर खड़ा हो गया, रेणु ने उसकी चेन खींची और उसकी कमर से पैंट नीचे सरका दी। सुरेश ने एक एक करके पाँव निकाल लिया।
चड्डी के अंदर एक बड़ा सा उभार था- नोक पर भीगा हुआ। परदे के पीछे पिस्तौल की नली सा तना हुआ।
सुरेश संजना की ओर बढ़ा।
संजना चिल्लाई- नहीं…ऽ…ऽ…ऽ…
सुरेश ने रेणु से कहा- तुम्हारी सहेली रुकने को बोल रही है।
फिर वह संजना को बोला- देखो, तुम्हारा पहले नहीं कर रहा हूँ। परेशान मत होओ।
संजना फिर चिल्लाने लगी तो उसने उसका मुँह बंद कर दिया- चिल्लाओगी, तो मुँह में कपड़ा ठूँस दूंगा। रेणु, जरा वो गमछा देना।”
संजना को लग रहा था कि कैसे कहे कि वह इतना भी न डरे। अपने आत्म-सम्मान की खातिर वह इतना तो विरोध करेगी ही।
“क्या करोगे? मुँह मत बंद करना।” रेणु ने गमछा सुरेश को दे दिया।
“अरे वो नहीं करूंगा। मैं इसे प्यार भी तो करता हूँ।”
उसने संजना को खींचकर बैठा दिया और बोला- हाथ पीछे करो।
संजना स्थिर रही। सुरेश ने पर चेताया- चुपचाप जो कहता हूँ, करो। थप्पड़ चलाना मुझे भी आता है।
उसने खुद उसके हाथ पकड़े और पीठ पीछे ले जाकर गमछे से बांध दिया। रेणु को यह जबरदस्ती अच्छी नहीं लग रही थी। लेकिन अभी कुछ देर पहले संजना की प्रतिक्रिया से डरी हुई थी।
“यह ठीक है.” संजना ने सोचा, नहीं तो उसके सामने ये दोनों मनमानी करें और वह चुपचाप देखती रहे, कुछ न करे, यह कैसे हो सकता है। हाथ बंधे रहने से सहयोगी होने की दोषी तो नहीं होगी।
बाँधने के बाद बंधन खींच खाँचकर सुरेश ने तसल्ली कर ली और बोला- सॉरी, लेकिन यह जरूरी था; अब चैन से बैठो; अगर चिल्लाओगी तो मुँह भी बंद कर दूँगा।
सुरेश को अपनी क्रूरता पर खुद आश्चर्य हो रहा था; रेणु भी आश्चर्य कर रही थी; लेकिन परिस्थिति की मांग ही ऐसी थी।
संजना भी, परिस्थिति की मांग से ही हाथ कसमसा रही थी।
हाथ पीछे बंध जाने से संजना की छातियाँ और उभर आईं, सुरेश ने रेणु से पूछा- कैसी लग रही है तुम्हारी दोस्त?
“मुझे अच्छा नहीं लग रहा।”
“अब तुम्हीं को अच्छा लगवाऊँगा; आओ।” उसने रेणु को खींच लिया। रेणु कुनमुनाने लगी लेकिन सुरेश ने उसे बांहों में समेट लिया और चूमने लगा; कुछ क्षणों में वह उत्तर देने लगी; चुम्बनों की सिसकारियाँ गूंजने लगीं।
सुरेश ने उसे चूमते-चूमते लिटा दिया और उसकी शलवार का नाड़ा खींचने लगा, रेणु ने नितम्ब उठा दिए। उसे इस बात की खुशी थी कि संजना को चाहने के बावजूद सुरेश पहले उसी को प्यार कर रहा है।
गोरी जांघों पर चड्ढी प्रकट हो गई गुलाबी, फूलों वाली।
सुरेश ने संजना की ओर देखा, वह भी उसी को देख रही थी।
सुरेश ने चड्डी में पेड़ू पर उभरी हुई जगह को पसीने से भीगी होने के बावजूद चूम लिया। उसने रेणु को पहले भी किया था, लेकिन आज संजना के सामने करने का रोमांच कुछ और ही था।
कहानी जारी रहेगी.
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देसी कहानी का चौथा भाग: खेत खलिहान में देसी छोरियों का यौवन का खेल-4
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