पहला सच्चा प्यार-2

पहला सच्चा प्यार-2

प्रेषक : राजीव

मेरा और आगे नियमित पढ़ने का मन नहीं तो मैंने पारिवारिक व्यवसाय में काम करना शुरू कर दिया और उसके एक साल बाद ही नीतू की शादी हो गई और कुछ सालो बाद मेरी भी शादी हो गई।

मैं अपने जीवन में मस्त हो गया और नीतू उसके जीवन में मस्त थी। हम दोनों ने ही एक दूसरे से संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं कि लेकिन करीब चार साल पहले एक दिन नीतू मुझ से मिली और मेरे दिल के तार फिर से झनझना उठे।

और जब उसने मेरा फोन नम्बर माँगा तो मैं ना नहीं कर पाया, मेरे दिल का पुराना प्यार फिर से हिलौरें मारने लगा था, मैंने उसे यह कहने में जरा भी देर नहीं की कि मैं उसे अब भी प्यार करता हूँ।

नीतू का जवाब सुनने के इन्तजार में मेरा दिल धाड़ धाड़ बज रहा था और जब उसका जवाब सुना तो ऐसा लगा जैसे हर तरफ सितार बज रहे हों।

उसने कहा- राज, मैं भी तुमसे अब भी उतना ही प्यार करती हूँ।

उसके बाद हम दोनों की फोन पर बातें होती रही और एस एम एस करते रहे लेकिन फिर से मिलना नहीं हो पाया। वो कुछ दिनों के लिए ही आई तो वो वापस चली गई पर हम दोनों की एस एम एस और फोन पर बातें होती रही। वो जब भी दिल्ली आती तो मुझे मिलती और हम दोनों उसके लिए शॉपिंग करते।

यह सिलसिला लगातार चलता रहा, मैं उसे दिल से प्यार करता था तो मैंने कभी भी उसे पाने की कोशिश नहीं की और उसकी हर जायज- नाजायज मांग को पूरा करता रहा लेकिन उसके इस बर्ताव से अंदर ही अंदर एक असंतोष भी पनपता रहा।

इसी बीच कुछ महीनों पहले मेरी बात संदीप से हुई और उसे मैंने इस सबके बारे में बताया तो संदीप ने साफ़ साफ़ कहा- नीतू से बात कर अकेले में मिलने की ! और उसे सिर्फ आत्मा से ही नहीं शरीर से भी पाने की कोशिश कर ! क्यूँकि लगता है नीतू तुझे इस्तेमाल कर रही है उसके खर्चों को पूरा करने के लिए !

और मुझे संदीप की बात सही भी लगी तो उसके बाद जब नीतू ने शॉपिंग करवाने का कहा तो मैंने उसे कहा- मैं उसे अकेले में मिलना चाहता हूँ, उसे प्यार करना चाहता हूँ !

पर नीतू बोली- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता !

और फिर मैंने उसे कहा- आता हूँ !

पर थोड़ी देर बाद अचानक आई मीटिंग का बहाना बना कर उसे शॉपिंग पर ले जाने से टाल दिया।

इसके बाद और भी दो तीन बार यही हुआ कि मैंने नीतू को इसी तरह से टाल दिया जिससे वो थोड़ी उदास तो हो गई लेकिन संदीप के कहने पर मैं मेरी जिद पर अड़ा ही रहा।

फिर एक दिन नीतू का संदेश आया- क्या हम लॉन्ग ड्राइव पर जा सकते हैं?

और इस बात के लिए ना करने का कोई कारण ही नहीं था तो मैंने तुरंत जवाब दिया- हाँ बिल्कुल !

और फिर जगह तय करके मैं उसे लेने चला गया।

उसे मैंने कनाट प्लेस से शाम के वक्त लिया और उसके बाद हम लोग थोड़ी देर तो ऐसे ही बैठे रहे मानो दो अजनबी एक ही कार में अगल बगल बैठे हों, थोड़ी देर बाद नीतू ने ही पहल की और मेरी जांघ पर हाथ रखते हुए बोली- राज, मुझसे गुस्सा हो क्या तुम?

मैंने कहा- नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है।

तो बोली- फिर मुझसे बात क्यूँ नहीं कर रहे? मुझे कुछ दिनों से इग्नोर भी कर रहे हो।

मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है जान, बस थोड़ा काम ज्यादा है इसलिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था।

इस सारी बात के समय नीतू का दायाँ हाथ मेरी जांघ को सहला रहा था और उससे मेरा लण्ड सख्त होता जा रहा था।

नीतू फिर बोली- मैं भी तुमसे मिलना चाहती थी राज लेकिन बस एक अनजान डर था जो मिलने नहीं दे रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

उसकी इस बात को सुन कर मैंने अपना बांया हाथ नीतू के हाथ पर रख दिया, उसके नाजुक हाथ को सहलाने लगा और सहलाते हुए उसका हाथ अपने सख्त लंड पर रख लिया।

नीतू जैसे मेरी बात समझ गई थी और उसने मेरे पैंट की ज़िप खोल कर मेरे लण्ड को बाहर निकाला और उसे सहलाना शुरू कर दिया।

मैं गाड़ी चला रहा था और नीतू मेरे लण्ड को पकड़ कर मुठ मार रही थी, मुझे ऐसी हालत में यही लग रहा था कि अब अगर मैंने गाड़ी ना रोकी तो कहीं एक्सीडेंट ना हो जाये तो मैंने एक खाली जगह देख कर गाड़ी रोक दी और हैण्ड ब्रेक लगा दिए।

नीतू के हाथों के जादू से मेरा वीर्य भी निकलने ही वाला था तो मैंने नीतू को यही बात बताई और नीतू ने उसका हाथ हटाया और नीचे झुक कर मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया।

वो लण्ड चूस रही थी और मैं दोनों हाथों से उसके सर को सहला रहा था, उसके चूसने में एक अलग ही मजा था जिससे मैं ज्यादा देर टिक नहीं सका और उसने थोड़ी ही देर चूसा होगा कि मेरा वीर्य निकलने लगा।

मैं झटके मार मर के वीर्य उसके मुँह में निकालता रहा और नीतू उस पूरे वीर्य को पीती रही। उसने मेरे लण्ड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक मेरे वीर्य की एक एक बूंद को वो चूस नहीं गई।

मैं उस वक्त तो एक बार झड़ चुका था, तुरंत तो कुछ नहीं कर सकता था लेकिन कुछ मिनट बाद करने की हालत में हो ही जाता। इस सब के बाद मैं और जोश में भी आ चुका था और इस बात के लिए आश्वस्त भी हो गया था कि अब तो हमारा मधुर मिलन होकर ही रहेगा।

कुछ मिनट रुक कर मैंने गाड़ी शुरू की आगे जाने के लिए तो नीतू बोली- राज, मुझे वापस छोड़ दो न आज ! देर हो जायेगी, घर भी जाना है और रात में तुम्हारे साथ रुकना मुमकिन नहीं है।

मैंने कहा- ठीक है, जैसा तुम कहो, लेकिन फिर कब मिलोगी?

मैं जवाब के इन्तजार में उतावला हो रहा था, हर सेकंड ऐसे लग रहा था जैसे सदियाँ गुजर रही हों।

उसके बाद क्या हुआ, अगले भाग का इन्तजार करो दोस्तो ! कहानी अभी बाकी है।

अपनी राय मुझे भेजिए।

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