कच्ची कली से फूल बनी शीतल
दोस्तो.. मैं एक बार फिर हाजिर हूँ आप सभी के सामने अपनी एक नई कहानी लेकर.. पहले तो मैं आप सभी का धन्यवाद दूँगा.. जो आप लोगों ने मेरी कहानी पहले चूचे दिखाए फ़िर चूत चुदाई को बहुत पसंद किया और इसी वजह से मैं आज फिर एक नई कहानी आपके सामने लेकर आ गया हूँ।
तो हुआ यूँ कि मेरी कहानी पढ़कर बहुत सारे ईमेल आए.. जिनमें मैंने बहुत सारे प्रशंसकों को रिप्लाई भी किया.. उन्हीं में से एक थी शीतल!
मैं आप सभी को शीतल के बारे में बता दूँ कि वो एक 18 साल की लड़की थी जो अभी तक एकदम कुंवारी थी।
उसका ईमेल पढ़ कर मैंने उसे रिप्लाई दिया और जवाब में उसने कहा कि वो भी चंडीगढ़ से है.. और मुझे मिलना चाहती है।
मैंने मिलने का कारण पूछा तो बोली- मैं आपकी फैन हो गई हूँ.. बस इसलिए..
मैंने कहा- अच्छा मिलेंगे.. पर पहले एक-दूसरे को जान पहचान तो लें..
इस तरह हमारे बीच ईमेल से बातें शुरू हो गईं, धीरे-धीरे ये बातें ईमेल से व्हाटसैप तक पहुँच गईं।
एक दिन उसने मुझे बताया कि वो अभी तक कुँवारी है पर वो सब करना चाहती है.. पर उसे डर भी लग रहा था।
पर क्या करें.. उसे अपने जागी हुई अन्तर्वासना को भी शांत करना था।
मैंने उसे बता दिया कि मैं शादीशुदा हूँ और ये इसलिए बता दिया है कि बाद में आपको बुरा ना लगे।
उसने कहा कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.. वो तो बस पहली बार संभोग करना चाहती है।
मैंने उसे यह भी बता दिया- हम दोनों की उम्र में लगभग 10 साल का अन्तर है.. अगर उसे सही लगे.. तो हम मिल सकते हैं।
धीरे-धीरे व्हाटसैप का सिलसिला बढ़ता गया और हम फोन सेक्स करने लगे।
आखिर वो दिन आ ही गया.. जब हम दोनों ने मिलने का प्लान बना लिया।
बहुत मुश्किलों से जगह का प्रबंध हुआ और वो भी शीतल ने ही किया, मैं शीतल का धन्यवाद देना चाहूँगा।
अब चलते हैं मुद्दे वाली बात पर.. जिसके लिए आप सब अन्तर्वासना को पढ़ते हैं। मैं उससे मिलने गया और जब हम दोनों मिले.. तो मैं तो बस उसे देखते ही रह गया। ऐसा लगा.. मानो काम की देवी ही आज इस धरती पर आ गई हो.. वो हुस्न की परी.. उसकी बड़ी-बड़ी कटीली आँखें.. उसके गुलाबी-गुलाबी रसभरे होंठ.. उसके 32 के कमसिन चूचे.. और 34 की उभरती हुई गाण्ड देखकर मैं तो ख्वाबी पुलाव बनाने लग गया था।
अचानक उसे मुझे हिलाते हुए कहा- कहाँ डूब गए?
मैंने माफी माँगते हुए कहा- तुम हो ही इतनी सुंदर कि दिन में भी सपने आने लगे..
उसने कहा- सपने देखने की ज़रूरत नहीं.. मैं तुम्हारे सामने ही हूँ.. और हम दोनों अपने सपनों को साकार करने के लिए ही मिले हैं।
मैंने उसे अपने गाड़ी में बैठाया और उसके बताए हुए मकान में पहुँचे।
मकान खाली था और सारी सुख सुविधाओं से भरपूर था।
मैं जैसे ही अन्दर गया… उसने झट से दरवाजा बन्द किया और मुझे पीछे से आकर जकड़ लिया.. मानो वो कई सालों से प्यासी हो। उसमें मुझे एक अलग सा प्यासापन सा दिख रहा था।
मैंने उसे पकड़ते हुए कहा- जान तुम्हारी हर प्यास को आज मैं पूरा शांत कर दूँगा.. बस थोड़ा सब्र रखो.. पूरी रात हमारी ही है।
फिर मैंने उसके बालों से क्लिप निकाली और उसके बालों को खोल दिया। उसकी गर्दन में एक हाथ रख उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए..
वो तो एक मछली की तरह तड़पने लगी..
और जैसे ही मैंने उसे चूमना चाटना प्रारंभ किया.. वो खड़े हुए ही मचलने लगी।
लगभग 5 मिनट तक हम दोनों किस करते रहे।
फिर एकदम से मैंने उसकी जीभ पर अपनी जीभ रख दी.. धीरे-धीरे उसकी आँखें बन्द होने लगीं और वो नशे में चूर होने लगी।
जैसे कि आप सभी को बता दूँ.. उसका यह पहला संभोग था.. इसलिए ना तो मैंने कोई जल्दी की.. ना ही कोई गलती.. मैं उससे इस तरह से चोदना चाहता था कि वो इस पल को अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं भूले।
चुम्बन के साथ-साथ मेरे हाथ उसकी कमर पर चल रहे थे। उसने गुलाबी टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहन रखी थी।
मैंने धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट के दो बटन खोले और उसकी टी-शर्ट उतार फेंकी।
उसने अपने दोनों हाथ अपने चूचों पर रख लिए, उसने काली रंग की ब्रा पहन रखी थी और मानो उसकी ब्रा में चूचे ऐसे लग रहे थे.. जैसे छोटी-छोटी मुसम्मियाँ फंसी हों।
आज मैं इन मुसम्मियों का पूरा रस निकाल देना चाहता था। मैंने धीरे-धीरे उसके हाथों को हटाया और फिर चूमना शुरू कर दिया।
इस बार मेरे हाथ उसके कमर की जगह चूचों पर थे।
वाह.. क्या छोटे समोसे थे.. एकदम कड़क और मखमल के तरह..
थोड़ी देर मैं धीरे-धीरे उसेके चूचों को रगड़ता रहा और फिर धीरे से उसकी ब्रा का हुक खो दिया और उसकी ब्रा को एक कोने में फेंक दिया।
अब उसके गुलाबी-गुलाबी चूचे.. मेरे सामने थे.. मैंने देर ना करते हुए उन्हें मुँह में ले लिया.. मुँह में लेते ही उसकी एक लंबी से सीत्कार निकल पड़ी- उह्ह.. बस.. बस.. अब नहीं सहा जाता.. प्लीज़ अब जल्दी से कर दो..
पर मैं तो एक मंजा हुआ खिलाड़ी था और मुझे पता था कि यह सब उसकी चुदास की जल्दबाजी थी.. इससे मजा खराब हो सकता था, मैंने उससे कहा- जरा सबर रखो.. अभी तो सिलसिला शुरू हुआ है।
मैंने धीरे से उसकी जीन्स का बटन खोला और उसे गोद में ले लिया..
फिर उसने देर ना करते हुई अपनी जीन्स को निकाल फेंका।
मैं उसे बिस्तर पर ले गया और उसे लिटा दिया। ज्यूँ ही मैंने उसे गद्दे पर लिटाया मुझे गद्दे को महसूस करके मन में एक ही बात आई ‘वाह.. यह क्या मस्त गद्दा है..’
सच में क्या मस्त मुलायम गद्दा था.. यह तो सोने पर सुहागे वाली बात हो गई। अनछुई चूत के साथ मखमली गद्दा..
अब मैंने उसके एक अंगूठे को अपने मुँह में ले लिया.. जैसा कि आप सभी को पता होगा कि औरत के अंगूठे को चूसने से उसे असीम सुख मिलता है..
ऐसा ही हुआ भी.. वो भी ज़ोर-ज़ोर से सीत्कारें भरने लगी और कहने लगी- प्लीज.. अब नहीं रहा जाता.. प्लीज़ जल्द करो..
मुझे लगा अब शायद इससे नहीं रहा जा रहा है.. पर तभी अचानक मेरा मूड बदला और मैंने अपने आपसे कहा- नहीं अभी नहीं.. अभी तो इसे और मज़े देने है..
मैं धीरे-धीरे उसकी नाभि तक पहुँचा और उसे भी चूसने लगा, थोड़ा और ऊपर पहुँचा और उसके चूचों को चूसना शुरू कर दिया।
तभी अचानक से उसने मुझे इतने ज़ोर से जकड़ लिया.. मानो उसका काम हो गया हो।
उसने अपने नाखून भी मेरी कमर में गड़ा दिए.. पर मैं नहीं रूका, वो धीरे-धीरे ढीली पड़ने लगी।
अभी मैंने उसके कान के नीचे वाली भाग को चूसना शुरू किया और वो फिर ज़ोर-ज़ोर से मचलने लगी।
कभी गर्दन.. कभी चूचे.. कभी नाभि.. वो दोबारा बहुत गरम हो चुकी थी और अचानक से उसने मेरा लिंग पकड़ लिया।
जीन्स पहने हुए होने से वो मेरे लौड़े को ढंग से पकड़ नहीं पा रही थी। मैंने उसे छोड़ा और अपनी टी-शर्ट और जीन्स एक झटके में उतार दी।
मैंने अन्दर चड्डी के अलावा कुछ भी नहीं पहना हुआ, जैसे ही उसके निगाहें मेरी चड्डी में उभरे हुए मेरे लंड पर पड़ीं.. तो उसके होश उड़ गए।
वो भय से बोली- इतना बड़ा.. मैं इसे कैसे लूँगी.. मुझे नहीं करना.. मुझे तो बहुत डर लग रहा है।
मैंने उसे समझाया- मैं कुछ ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करूँगा.. और बहुत ही प्यार से करेंगे.. तुम्हें दर्द हो.. तो बता देना.. मैं निकाल लूँगा।
वो बहुत डरी हुई थी.. फिर मैंने वापस उसे चूसना शुरू किया ताकि उसका ध्यान वहाँ से हटे।
धीरे-धीरे वो फिर मेरा साथ देने लगी और इस बार मैंने एक झटके से उसकी पैन्टी को निकाल फेंका.. आह्ह.. और मैंने क्या देखा.. एकदम चिकनी चूत… मेरी आँखों के सामने थी.. मानो एक अनखिली कली खिलने को तैयार हो।
यकीन मानिए.. जैसे ही मैंने उसके पैरों को थोड़ा खोला और उसकी चूत पर अपने होंठ रखे.. वो एकदम से तड़पने लगी.. उसने मेरे सिर को जकड़ लिया।
अब मैं बाहर से उसकी चूत को चूसता रहा और वो ज़ोर-ज़ोर से आहें भरने लगी।
मेरा बम्बू भी चड्डी फाड़ कर बाहर आने को तैयार था या यूं कहो कि वो चड्डी में समा ही नहीं पा रहा था।
मैंने अपनी जीभ उसकी चूत में अन्दर रख दी और धीरे-धीरे इधर-उधर हिलाने लगा। वो अपनी कमर को ज़ोर-ज़ोर से उठाने लगी।
ऐसा लग रहा था कि वो अपनी चरम सीमा पर हो..
मैं लगातार उसकी चूत को चूस रहा था और अपनी जीभ को अन्दर-बाहर करता रहा और अचानक से एक गर्म बहाव फूट पड़ा।
आह्ह.. बड़ा ही नमकीन स्वाद था उसके कामरस में.. जोकि मैं सारा का सारा पी गया।
अब मुझे लगा कि देर नहीं करना चाहिए, मैंने इधर देखा.. उधर देखा.. फिर सोचा बिना कन्डोम के शुरू करूँ.. पर लगा.. नहीं यह ग़लत होगा।
मैं उठा और अपनी जीन्स में से कन्डोम निकाल कर उसके पास पहुँचा और उसे कन्डोम देकर उससे कहा- तुम अपने हाथों से चढ़ा दो।
उसने जैसे ही मेरी चड्डी उतारी.. मेरा 7 इंच का लण्ड उसके होंठों से छू पड़ा। उसने उसे ज़ोर से अपनी मुठ्ठी में भींच लिया।
मैंने उससे कहा- चूसना पसंद करोगी?
उसने मना कर दिया और मैंने भी ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया क्यूँकि उसका पहली बार था।
फिर उसने मेरे लंड पर कन्डोम चढ़ाया और यह क्या.. कन्डोम थोड़ा सा फट गया.. वो हँसी और एक नया कन्डोम निकाल कर उसे भी ऊपर से चढ़ा कर कहा- डबल प्रोटेक्शन..
मैं भी हँस दिया।
अब ज़्यादा देर ना लगाते हुए मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूसने लगा और फिर जो यह सिलसिला शुरू हुआ तो मैंने उसके पूरे बदन को अपनी जीभ और मुँह से चूस डाला। एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह मैंने उसके दोनों पाँवों को खोला और दोनों हाथों को पकड़ लिया।
फिर मैंने थोड़ा सा थूक उसकी चूत पर लगा दिया और धीरे से अपने लौड़े के आगे का टोपा उसकी चूत के मुँह पर रख दिया।
वो मेरे लण्ड की गर्माहट से ही तड़पने लगी, मैं उसके होंठों पर होंठ रखे रहा.. और अचानक से एक ज़ोर का झटका लगा दिया।
उसकी एक ज़ोरदार चीख निकल पड़ी.. उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।
अच्छा तो नहीं लग रहा था उसकी आँखों से ये टपकते आँसू.. पर मैंने अपने आपको कंट्रोल करते हुए उसके होंठ चूसना जारी रखा..
फिर कुछ देर बाद एक और झटका लगाया तो मानो उसकी जान ही निकल गई..
नन्हीं सी कली फूल बनने को तैयार थी, आँख से उसके आँसू नहीं रुक रहे थे।
मैं थोड़ा सा रुका और उसकी आँखों के रस को पीने लगा।
उसकी तकलीफ़ कम होने का इन्तजार करने लगा।
और जब वो थोड़ा सा नॉर्मल हुई.. तो मैंने बहुत ही धीरे-धीरे आगे-पीछे अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे मैं रफ़्तार बढ़ाने लगा.. धीरे-धीरे उसे भी मज़ा आने लगा और वो भी मेरा पूरा साथ देने लगी। धीरे-धीरे उसके आँसू भी बन्द होने लगे और उसे बहुत मज़ा आने लगा, वो सीत्कारें भरने लगी।
लगभग 5-7 मिनट में ही उसकी चूत से घर गर्म सा रस निकल पड़ा और उसने मुझे जकड़ लिया.. उसके आँखों में एक असीम सा सुख था।
मेरा अभी हुआ नहीं था.. पर मैं भी अपनी चरम सीमा पर ही था।
पिछले एक घंटे से उसके साथ फॉरप्ले ने मुझे भी चरम सीमा पर ला दिया था।
मेरे झटके ज़ोर-ज़ोर से लगने लगे और ‘फॅक.. फॅक..’ की आवाजों से कमरा गूंजने लगा।
अब उसे थोड़ा दर्द महसूस होने लगा था.. लगभग दो मिनट के बाद मैं भी अपने चरम सीमा पर पहुँच गया और एक गरम लावा सा फूट पड़ा।
हम दोनों बिस्तर पर एक-दूसरे से चिपके लगभग 15 मिनट लेटे रहे।
जब हम उठे.. तो खून की एक-दो बूँदें उसकी चूत से बाहर आ चुकी थीं।
मैंने उससे कहा- मैं तुम्हें बाथरूम में ले चलता हूँ और साफ़ कर देता हूँ..
यह तो थी अब तक की शीतल के कली से फूल बनने की कथा.. आगे का किस्सा जल्द ही लिखकर पोस्ट करूँगा।
जहाँ मैंने उसे कैसे बाथरूम में और पूरी रात कैसे-कैसे.. अलग-अलग तरीके से चोदा। पर उस सबसे पहले मुझे आप सभी के ईमेल का इंतज़ार रहेगा.. और अपने सुझाव ज़रूर बताना.. जिससे मैं आने वाली कहानियों में एक जीती-जागती घटना जैसी जान भर दूँ।
जल्दी से मुझे ईमेल कीजिएगा।
आपका अपना अभिराज
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