कॉलेज से जंगल में मेरी चूत चुदाई
हाय मेरा नाम पिंकी है. मेरी उम्र 18 साल है। मैं लखनऊ के पास के गाँव की रहने वाली हूँ। मैंने अन्तर्वासना पर बहुत सी कहानियाँ पढ़ी और सोचा कि मुझे भी अपनी बात सबको बतानी चाहिए। इसलिए आज मैं आपको एक व्यक्तिगत अनुभव सुनाने वाली हूँ।
हमारे गाँव में बहुत से कच्चे मकानों के बीच हमारा मकान पक्का है जिसमें मेरा, मेरे भाई का, मम्मी पापा का सबका अलग अलग कमरा है।
एक रात की बात है, मैं लगभग 11 बजे बाथरूम जाने के लिए उठी। बाथरूम मम्मी के कमरे को पार करने के बाद पड़ता है। जब मैं उस कमरे के सामने से गुज़री तो मुझे मम्मी के कराहने और ज़ोर ज़ोर से सांसें लेने जैसी आवाज़ें सुनाई पड़ी।
मैं एक बार को तो डर गई, पर मैंने हिम्मत रखते हुए चाबी के छेद से झांका तो मैं दंग रह गई। कमरे में पापा मम्मी बिल्कुल नंगे खड़े थे। पापा मम्मी की चूचियाँ दबा रहे थे और बार बार उनके चूतड़ों पर जोर से चपत सी मारते जा रहे थे।
पहले तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया पर फ़िर मैंने ध्यान से देखा कि पापा मम्मी से चिपटे हुए हिल भी रहे थे। तभी वे थोड़ा सा घूमे तो मेरी बुद्धि घूम गई। पापा ने अपना लण्ड शायद मम्मी की चूत में डाल रखा था और वहीं धक्के मार रहे थे।
मेरी समझ में कुछ कुछ आने लगा था। मेरी कोलेज़ की सहेली ने एक बार मुझे अपनी चुदाई की कहानी सुनाई थी। आज़ अचानक वही चुदाई मुझे अपने घर में होती दिखाई दी।
पता नहीं क्यों, पर वो नज़ारा देख कर मेरी चूत में खुज़ली सी होने लगी और मुझे अपनी सांसें कुछ भारी सी लगने लगी। मैं वहाँ पर पूरा कार्यक्रम देखकर बाथरूम जाकर अपने कमरे में तो आ गई पर मुझे फ़िर नींद नहीं आई।
वो दृष्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगा। मैंने अपनी सलवार और कच्छी उतार दी और एक हाथ से अपनी चूचियाँ दबाते हुए अपने पैन को चूत में डाल कर चलाया। फ़िर पैन के बज़ाए दूसरे हाथ की उँगली डाली। थोड़ी देर बाद मेरी चूत में से कुछ सफ़ेद सा निकला और मुझे पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई।
सुबह मम्मी की आवाज़ ‘ कोलेज़ नहीं जाना है क्या! जल्दी उठ!’ से मेरी आँख खुली, तो जल्दी से कपड़े पहन कर बाहर आई।
मुझे रात की बात अभी भी याद आ रही थी, पर मैं कोलेज़ जाने के लिए तैयार होने लगी। मैं कच्छी और ब्रा पहन कर ही नहाती हूँ पर उस समय मेरी उत्तेज़ना बढ़ गई और मैं पूरी नंगी होकर नहाई और उँगली, साबुन की सहायता से अपनी चूत का पानी निकाला।
तरोताज़ा होकर, नाश्ता कर मैं कोलेज़ के लिए घर से निकल गई। थोड़ी सी दूर सड़क से बस मिल जाती है, वहीं से मैंने बस पकड़ी जो रोज़ की तरह ठसाठस भरी थी। जैसे तैसे गेट से ऊपर चढ़ कर थोड़ा बीच में आ गई। तो वो रोज़ की कहानी चालू। आप तो जानते ही होंगे, जवान लड़की अगर भीड़ में हो तो लोग कैसे फ़ायदा उठाते हैं, और आप उन्हें कुछ कह भी नहीं सकते।
वही मेरे साथ होता है। मेरे पीछे से कोई मेरे चूतड़ दबाने सा लगा, तो एक अन्कल मेरे कन्धे पर बार बार हाथ रख कर खुश होने लगे। एक महाशय सीट पर बैठे थे, भीड़ की वज़ह से मेरी साईड उनके सिर से दबी थी, जो उन्हें भी मज़ा दे रही होगी।
इतने में मेरी ही क्लास का एक लड़का जो बहुत दिन से मेरे पीछे पड़ा था और केवल मेरे लिए ही इस बस से आता-जाता था, अपने गाँव से बस में चढ़ा। लन्बा तगड़ा तो खैर वो है ही, हैण्डसम भी है। पर मैं उसे ज्यादा भाव नहीं देती थी। आज़ तो वो सबको हटाता हुआ ठीक मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया। मैंने उसे देखा पर मैं कोई आपत्ति करने की स्थिति में नहीं थी। कुछ कहा तो बोला- बस में भीड़ ही इतनी है।
मुझे चुप हो जाना पड़ा। मुश्किल से पाँच मिनट बीते होंगे कि अचानक ड्राईवर ने बड़े जोर से ब्रेक लगाए और पता नहीं क्यों ड्राईवर मादरचोद, बहनचोद जैसी माँ बहन की गालियाँ किसी को बकने लगा। शायद कोई बस के आगे आ गया होगा।
लेकिन उसके अचानक ब्रेक मारने से थोड़ सा बैलैंस तो सबका बिगड़ ही गया था। जितेन्द्र, मेरा क्लासमेट गिरते गिरते बचा। उसके हाथ में मेरी दाईं चूची आ गई थी, या वो जानबूझ कर उसे पकड़ कर लटका। पर इतना जरूर हुआ कि उसने उसे कायदे से दबा मसल जरूर दिया। मुझे गुस्सा आया, पर मैं कुछ कहती, उससे पहले ही वो वैरी सोरी कहने लगा। तो मुझे भी लगा कि शायद अनायास ही यह हो गया होगा।
वो फ़िर मेरे से सट कर खड़ा हो गया। बस चलने लगी। इतने में मैंने अपने चूतड़ों के बीच अपनी गाण्ड में कुछ चुभता सा दबाव महसूस किया। पहले तो मैंने इस पर खास ध्यान नहीं दिया अप्र मैं समझ गई कि जितेन्द्र का लण्ड मेरे चूतड़ों की गरमी खा कर खड़ा हो गया है और वो ही मुझे चुभ रहा है।
यह सोच कर मुझे रात वाला नज़ारा फ़िर याद आ गया और मेरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। अब मैं बिल्कुल बिना हिले कपड़ों के ऊपर से ही अपनी गाण्ड का तिया-पाँचा कराने लगी।
कुछ देर बाद ही कोलेज़ जाने वली सड़क पर बस रुकी और कोलेज़ जाने वाले सभी लोग उतरने लगे। मैं और जितेन्द्र साथ साथ ही उतरे। उतरने के बाद भी आज़ तो वो मेरे साथ ही चलने लगा। कुछ मिनटों बाद मैंने उससे मुस्कुरा कर कह ही दिया कि आप जो बस में कर रहे थे, वो अच्छी बात नहीं है। इस पर वो नाटक करते हुए बोला कि मैंने तो कुछ नहीं किया और कहते कहते ही मेरे चूतड़ों को भी दबाने लगा। मुझे भी अच्छा सा लगा पर मैंने उससे कुछ नहीं कहा।
अचानक ही हम कोलेज़ जाने वाले मोड़ से कोलेज़ की बजाए जंगल वाली सड़क पर मुड़ गए। शुरू में तो मुझे मज़े मज़े में पता ही नहीं चला पर थोड़ी देर बाद मैंने उससे कहा तो बोला- कोलेज़ में तो रोज़ ही जाते हैं, चलो आज एक नया नज़ारा दिखाता हूँ।
उसकी बात का मतलब समझते हुए भी मैं उसके साथ चलने लगी, सच में तो मुझे रात से लग रहा था कि कोई मेरी चूत को चोद डाले, जैसे पापा मम्मी को चोद कर मज़ा दे रहे थे।
एक जगह बिल्कुल सुनसान थी। दूर दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी हमें गन्ने के खेत के बीच में कुछ खाली हिस्सा नज़र आया। वो मुझे वहीं ले गया और मुझसे लिपट कर जगह जगह मुझे चूमने चाटने लगा। इससे मेरी उत्तेज़ना और बढ़ गई। इसके बाद जब उसने मेरी चूचियों को दबाना-मसलना शुरू किया तो मुझे जैसे ज़न्नत दिखाई देने लगी। वो एक हाथ से मेरी चूचियाँ और दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ों को बारी बारी दबा रहा था।
अचानक उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं मना करने की स्थिति में नहीं थी, सो मैंने हाथ ऊपर कर दिए ताकि वो मेरा कुर्ता आराम से उतार सके। उसने मेरी सलवार का नाड़ा भी खींच दिया। सलवार बिना लगाम के घोड़े की तरह झट से नीचे गिर गई। अब मैं उसके सामने केवल ब्रा और पैन्टी में रह गई थी।
मुझे शर्म तो आ रही थी लेकिन उत्तेज़ना शर्म पर हावी हो गई थी। सो मैं चुपचाप तमाशा देखती रही। उसने पहले तो मेरे सीने को फ़िर नाभि को ऐसे चूसना शुरू कर दिया मानो कुछ मीठा उस पर गिरा हो और वो उसे चाट कर साफ़ कर रहा हो।
मैं बुरी तरह उत्तेज़ित हो रही थी कि उसने मेरी कच्छी के ऊपर से एक उँगली मेरी चूत में घुसेड़नी शुरू कर दी। मुझे दर्द का भी अहसास हुआ पर मैं उसे मना ना कर सकी। पता नहीं मुझे क्या हो गया था लेकिन मैं बेशर्म हो कर अपनी चूचियाँ अपने आप दबाने लगी थी।
उसने धीरे धीरे मेरी पैन्टी और ब्रा को भी मेरे शरीर से अलग कर दिया और मुझे मादरजात नंगी कर दिया। मैं तड़प रही थी और उसे मज़ा आ रहा था।
वो अभी तक पूरे कपड़ो में खड़ा था। मुझे गुस्सा आया और मैंने उसे गाली दे देकर कहना शुरू कर दिया कि अपने कपड़े भी तो उतार। वो झटके से मुझसे अलग हुआ और बिजली की रफ्तार से उसने अपने कपड़े उतार दिये। कच्छा उतारते के साथ मेरी हालत खराब हो गयी। उसका लण्ड मेरे पापा के लण्ड से कम से कम दुगुना लग रहा था। उसकी लम्बाई कम से कम 8 इंच और गोलाई कम से कम 3 इंच से तो किसी भी तरह कम नहीं थी।
उसने अपना हथियार मेरे हाथ में देकर मुझसे सहलाने को कहा। मैं उसे हाथ में लेकर आगे पीछे करने लगी तो उससे डर कुछ कम लगने लगा। फिर उसने मुझे नीचे बैठाया और अपना लण्ड मेरे मुँह में देने लगा। मुझे बहुत घिन्न आ रही थी कि इसी से ये मूतता होगा और अपना पेशाब मुझे पिलाने की तैयारी में है और सच में उसने मेरे मुँह में डालते डालते पेशाब की तेज धार मेरे मुँह और सारे चेहरे पर डाल दी और हंसने लगा।
पहले तो मुझे बहुत घिन्न आयी पर पता नहीं क्यों कैसे मुझे अपने ऊपर पड़ती गर्म पेशाब से अचानक नहाने में बड़ी उत्तेजना का अनुभव होने लगा। मैं उसके पेशाब को चाटने भी लगी और अपनी चुचियों पर भी मला। मुझे सच इसमें बहुत मजा आया। इसके बाद लण्ड में बची बूंदो को खराब न जाने देने के इरादे से मैंने उसका मोटा लण्ड अपने मुँह में बिना उसके कहे डाल लिया और चूसने लगी।
मुझे तो खैर उसमें बहुत मजा आ ही रहा था, मैंने महसूस किया कि उसे भी इसमें बहुत मजा आया होगा क्योंकि उसका लण्ड पहले से अधिक सख्त और गर्म महसूस हो रहा था। वो मेरा सिर पकड़ कर आगे पीछे करने लगा। अब मेरी चूत में उत्तेजना बढती जा रही थी। यह बात मैंने पूरी बेशर्मी से उसको बतायी तो वो अपना लण्ड मेरी चूत में डालने को तैयार हो गया। वो मुझे जमीन पर लिटाकर मेरे उपर आ गया।
उसके लण्ड का अगला भाग जिसे शायद सुपाड़ा कहते हैं जैसे ही मेरी चूत से टकराया लगा कि जैसे गर्म सरिया या रॉड सी मेरी चूत पर छुआ दी हो। सच अगर चूत में लण्ड डलवाने की इतनी खुजली न मची होती तो मैं तुरन्त उसे वहाँ से हटा देती, लेकिन मैं अपनी चूत के हाथो मजबूर थी। अब उसने चूत पर लण्ड का दबाब बढ़ाना शुरू किया। मुझे दर्द का एहसास हुआ तो मैंने थूक लगाकर डालने की सलाह दी जिसे उसने तुरन्त मान लिया।
उसने सुपाड़े पर थूक लगाकर जोर का झटका मेरी चूत के छेद पर मारा, पर निशाना मिस हो गया और लण्ड मेरे पेट के निचले हिस्से की खाल को जैसे चीरता हुआ उपर आया। मैंने उसे अपने पर्स में निकालकर अपनी कोल्ड क्रीम की ट्यूब उसे दी और उसके लण्ड पर लगाने को कहा, अबके उसने लण्ड के साथ साथ मेरी चूत को भी क्रीम से भर दिया, उँगली डाल डाल कर क्रीम अन्दर पहुँचा दी। मेरी हालत प्रति क्षण खराब होती जा रही थी।
मैंने उससे कहा कि मैं रास्ता दिखाती हूँ तुम जोर का धक्का मारो।
फिर मैंने उसका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर रखा और दबाया। इशारा समझकर उसने शायद पूरी ताकत से धक्का मार दिया। उस समय ऐसा लगा कि उसने धक्का नहीं मुझे मार दिया। एक झटके में उसका आधे से ज्यादा महालण्ड मेरी चूत में समा गया था। मेरी चूत निश्चित ही फट गयी थी और वह दर्द का अहसास हुआ जो आज तक कभी भी जिन्दगी में नहीं हुआ। मैं सिर पटकने लगी।
सारी उत्तेजना जाने कहाँ हवा हो गयी थी, मैं उससे लण्ड निकालने की रो-रोकर विनती करने लगी, लेकिन उसे तरस न आया, वो तो उल्टा मेरी चुचियों को चूसने और काटने लगा। पर उसने लण्ड को वहीं रोक दिया। थोड़ी देर में मुझे कुछ आराम सा महसूस होने लगा तो मैंने उसे बताया। अब उसने लण्ड को धीरे धीरे गति देनी चालू की। उसने धक्के अब भी मेरी चूत को फाड़े दे रहे थे। भंयकर दर्द हो रहा था लेकिन ये उस जानलेवा दर्द के आसपास भी नहीं था जो पहले झटके में शायद क्रीम के कारण हो गया था।
थोड़ी ही देर में मुझको भी मजा सा आने लगा। उसके धक्के अभी भी दर्द पैदा कर रहे थे पर उस दर्द में भी एक अलग आनन्द की अनुभूति हो रही थी। मेरी चूत में से पता नहीं क्या कुछ निकल कर रिस रहा था। पर उसका चूमना चाटना और बीच बीच में काटना अलग ही था। मैंनें इतना आनन्द अनुभव किया जो जिन्दगी में पहले नहीं किया था। पर बात उससे आगे की भी थी। करीब 20 मिनट बाद उसने अचानक धक्कों की स्पीड बढा दी। मैंने भी सहयोग करने का निश्चय करके नीचे से चूतड़ उछालने लगी।
दोनों अपने वेग में थे कि अचानक मेरी चूत में कुछ संकुचन सा हुआ और मैंनें उसको कस के चिपटा लिया, अपने नाखून उसकी कमर में गाड़ दिये। तभी मैंनें अपनी चूत में कुछ गर्म गर्म लावा सा गिरता हुआ महसूस किया।
कुछ ही मिनटों में हम दोनों शान्त हो गये थे। पर आखिर के वो एक-दो मिनट में जो आनन्द आया उसके सामने शायद जन्नत का सुख भी फीका हो। मैं उसकी मुरीद हो गयी। उसने उसके बाद लण्ड निकाला और मेरे मुँह में डाल दिया, मैंने उसे बड़े प्यार से चाट-चाट कर साफ किया।
फिर जब मैंनें बैठकर अपनी चूत रानी को देखा तो मेरे मुँह से चीख सी निकल गयी। चूत का भोसड़ा तो बन ही गया था साथ ही उसमें से खून भी रिस रहा था। मैं यह देखकर डर गयी थी। पर उसने हिम्मत बंधायी। पता नहीं उसने मुझे वापस लिटाकर मेरी चूत में कपड़े से और क्रीम से क्या क्या किया पर सुकून था कि खून रूक गया था। अब थकान बहुत महसूस हो रही थी। सो थोड़ी देर लेटी रही।
फिर उसके सहारे से उठी और बदन झाड कर कपड़े पहने। कपड़े पहनकर उसकी तरफ मुस्कुराकर देखा तो उसने फिर एक बार मेरे निचले होंठ को चूसना शुरू कर दिया और चुचियों को दबाने लगा। मुझे बहुत आनन्द आया और सच में अगर घर वापिस लौटने में टाइम का ख्याल नहीं होता तो मैं उसे हटने को कभी नहीं कहती।
उसके बाद हमने उस जंगल वाले कालेज की कई क्लासेज अटेण्ड की। पर अब गन्ना कट जाने से हमें बड़ी दिक्कत हो गई है। खैर, भगवान ने चाहा तो उसका इन्तजाम भी हो जायेगा। अच्छा मैं अपनी कहानी यहीं पर बन्द करती हूँ।
सम्पादक महोदय से गुजारिश है कि मेरा नाम भले ही छाप दें पर मेरे गाँव और जिले का नाम साइट पर न दें नहीं तो मेरी पूरे कालेज में बदनामी हो सकती है। मैं जानती हूँ मेरे कालेज कई लड़के लड़कियाँ अर्न्तवासना पर कहानियाँ पढने के शौकीन हैं।
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