भाई के लण्ड से चुद कर जीने की आजादी पाई-2
अब तक आपने पढ़ा..
मेरी पेंटी पर भय्या के वीर्य का चिपचिपापन था। मैं भी चुदासी प्यासी थी.. अपने भाई के वीर्य को चाट कर साफ कर गई।
अब आगे..
अब होली के बाद मेरा और मेरी एक सहेली का पीजी का एंट्रेन्स एग्जाम था।
पापा ने भैया से कहा- बेटा बाइक से ले जाकर कंचन का एग्जाम दिलवा दो।
मेरा सेंटर बनारस सिटी में ही थोड़ा आउटर में था.. रास्ता भी उतना सही नहीं था।
मैं बाइक पर पीछे दोनों तरफ पैर करके बैठ गई। एक बाइक पर तीन लोग.. बीच में मैं.. मेरी किस्मत अच्छी थी। तीन लोगों के बैठने की वजह से बाइक पर जरा भी जगह नहीं बची थी।
भैया जरा तेज बाइक चला रहे थे। जगह-जगह गड्डे और भीड़ की वजह से बार-बार ब्रेक मारना पड़ता था। मैं इसी मौके की तलाश में रहती थी कि कब भैया ब्रेक मारें.. और कब मैं अपनी चूची भैया की पीठ से रगड़ने का मौक़ा पाऊं।
उधर पीछे से मेरी सहेली अपनी चूचियाँ मेरी पीठ के ऊपर रगड़ रही थी और मैं भैया की पीठ से अपनी चूचियाँ घिस रही थी।
भैया को भी माजरा समझ में आ चुका था.. अब वो भी मज़ा लेने लगे।
मैंने महसूस किया कि वो भी अब नॉर्मल नहीं फील कर रहे थे। मैं पीछे से आगे को झाँक कर देखा.. तो उनके पैंट में तंबू बन रहा था।
मैं भैया को रिलेक्स नहीं देना चाह रही थी.. सो मैं अपनी चूचियों को खूब रगड़ रही थी।
मैं भी एकदम गर्म हो चुकी थी। बाइक पर ही मेरा एक हाथ मेरी चूत में चला गया और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
जैसे-तैसे हम लोग एग्जाम सेंटर पर पहुँचे.. तो बाइक से उतरने के बाद भैया के पैंट में तना हुआ तंबू देख कर मैं और मेरी सहेली दोनों ही लोग मुस्काराए। हालांकि भैया समझ गए थे.. लेकिन वो शर्मा गए।
हम दोनों एग्जाम हॉल में एंट्री लेकर के अपने-अपने क्लासरूम में चले गए। मैं अपनी सीट खोज कर सामान रख कर तुरंत बाथरूम में चली गई। मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि इस हालत में परीक्षा देना मुश्किल हो रहा था। मैंने सोचा कि आज यहीं किसी लंड का जुगाड़ हो जाए.. तो मैं अभी चुदवा लूँ।
चुदास मुझ पर हावी हो रही थी, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैं जानबूझ कर लड़कों के बाथरूम में घुस गई।
इस तरह मैंने टॉयलेट में जाकर अपनी उंगलियों से ही अपनी चुदाई चालू कर दी।
मैं इतने नशे में थी कि तीन-तीन उंगलियाँ चूत में डाल कर फिंगरिंग कर रही थी।
मैंने जानबूझ कर दरवाजा भी खुला छोड़ दिया था कि कोई भी आ जाए.. बस चुदवा लूँगी।
लेकिन वहाँ कोई लड़का नहीं आया.. उस वक्त मेरी किस्मत ने मेरा साथ नहीं दिया.. नहीं तो चूत का उद्घाटन तो आज ही हो जाता।
खैर.. हम दोनों ने अपना-अपना एग्जाम दिया और घर आने लगे।
रास्ते में फ़िर वही रास-लीला चालू हो गई। इस बार तो हद यह हो गई कि मेरी सहेली मुझ पर टूट पड़ी, उसने बाइक पर ही हाथ आगे करके मेरी चूत में फिंगरिंग शुरू कर दी.. और मेरी गाण्ड में भी उंगली डालने लगी।
मैं आगे भैया को सिडयूश कर रही थी।
कुछ देर बाद हम लोग घर पहुँच गए। घर पहुँच कर मैं सीधा रसोई में गई वहाँ से एक पतला सा बैंगन लेकर अपने कमरे में चली गई और जल्दी से अपनी चूत में आधा बैंगन घुसेड़ लिया।
मैं खूब उत्तेजित हो गई थी। अगर मैं चाहती तो आज भैया से चुदवा लेती.. लेकिन घर पर मम्मी थीं।
इस तरह आज मैंने बैंगन के सहारे अपनी आग बुझा ली।
अब मैंने भी पापा से जिद करके एक स्मार्टफ़ोन ले लिया। शायद अब भैया मेरे ऊपर मेहरबान थे.. इसलिए उन्होंने मुझे मना नहीं किया।
भैया इलाहाबाद तैयारी करने वापस चले गए और पापा ड्यूटी पर चले जाते थे। मुझे घर पर कोई रोक-टोक नहीं थी। मैं दिन भर वासना में डूबी रहती थी, ब्लूफिल्म और सेक्सी कहानियाँ पढ़ना.. बस यही सब दिन भर चलता रहता था।
मम्मी अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थीं.. तो मैं मम्मी से कहती थी कि मैं ऑनलाइन पढ़ाई कर रही हूँ।
कभी-कभी कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते मेरी वासना इतनी बढ़ जाती थी कि मैं अपनी छत पर नंगी भी घूमने लगती थी। बस इसी इंतजार में.. कि कोई देख ले और लंड का जुगाड़ हो जाए क्योंकि आम तौर पर मेरा घर से बाहर निकलना मना था।
मैं इतनी जवान और कामुक दिखने लगी थी कि मम्मी जानती थीं अगर मैं बाहर जाऊँगी तो लड़के मुझपे कमेंट्स करेंगे और मुझे चोदना चाहेंगे। इसलिए मैं अब रोज रात को छत पर लगभग कुछ देर नंगी होकर फिंगरिंग करती थी।
लेकिन मेरी बदनसीब चूत पर किसी का ध्यान नहीं गया।
अब मेरा इलाहाबाद यूनीवर्सिटी का एंट्रेन्स एग्जाम था.. जिसका सेंटर इलाहाबाद ही था, यह देखकर मैं काफ़ी खुश हो गई।
मैंने भैया को बताया- मैं आपके पास आ रही हूँ।
वो भी बहुत खुश हुए- आ जाओ मैं तुम्हें एग्जाम भी दिलवा दूँगा और इलाहाबाद भी घुमा दूँगा।
मैं दो दिन पहले ही भैया के पास चली गई।
उनका एक सिंगल रूम था.. नीचे मकान-मालिक रहते थे और ऊपर भैया अकेले रहते थे।
उनका कोई पार्ट्नर नहीं था। गर्मियों का समय था.. उस दिन खाना वगैरह खाने के बाद मैं भैया से बोली- मैं नीचे सो जाती हूँ और आप ऊपर बिस्तर पर सो जाओ।
भैया बोले- रात में नीचे चूहे घूमते हैं.. अगर तुम सोती हो तो अपनी रिस्क पर सोना।
मैं हँस पड़ी- भैया अगर मेरे कपड़ों में चूहा घुस गया.. तो क्या होगा।
मुझे डर लगने लगा।
भैया बोले- मैं ही नीचे सो जाता हूँ..
मैंने उन्हें भी मना किया- चूहे आपके ऊपर भी आ सकते हैं..
हम दोनों लोगों ने मजबूरी में एक ही बिस्तर पर सोने का तय किया। एक तरफ मुँह करके भैया सो गए और एक तरफ मुँह करके में लेट गई। गर्मी अधिक होने के कारण नींद ही नहीं आ रही थी। भैया भी परेशान हो रहे थे। तभी वो उठे और उन्होंने अपना शॉर्ट निकाल दिया और तौलिया लपेट लिया।
वे मुझसे बोले- कंचन गर्मी बहुत है सलवार निकाल लो.. और ये शॉर्ट्स पहन लो।
मैं भी गर्मी से तंग आ गई थी.. तो मैंने बाथरूम जाकर शॉर्ट्स पहन लिया।
अब मेरी गोरी चिकनी टांगें देखकर भैया की हालत खराब होने लगी। मैं मन ही मन सोच रही थी कि अभी इनको और तरसाऊंगी।
लेकिन भैया मुझसे भी तेज निकले.. फिर वो बोले- कंचन मेरा एक काफ़ी ढीला टी-शर्ट है.. अगर तुम चाहो तो पहन लो। उसमें तुम्हें गर्मी कम लगेगी।
मैंने उसे भी राज़ी ख़ुशी जाकर पहन लिया। अब मैं देख रही थी कि टी-शर्ट ‘वी’ गले का था और उसमें से मेरी क्लीवेज साफ दिख रही थी।
जब मैं पहन कर आई.. तो मैं उन्हें देख कर मुस्करा दी.. वे भी मुस्कुरा उठे।
मैंने भैया से पूछा- क्या हुआ?
वो कहने लगे- खूबसूरत लग रही हो टी-शर्ट में..
टी-शर्ट पहनते समय मैंने अपनी ब्रा निकाल दी थी।
मैंने भैया को ‘थैंक्स’ बोला। मुझे पता है कि मेरी बड़ी चूचियाँ हैं.. जो टी-शर्ट में पूरी नहीं आ पा रही थीं। इसी वजह से मैं और हॉट लगने लगी।
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अब फिर से जैसे ही सोने लगे.. तो लाइट कट गई। शहरों में रात में लाइट काटना आम बात है। लाइट कटने के बाद हम और भैया बाल्कनी में आ गए, वहाँ थोड़ी हवा लग रही थी।
मैं भैया को देख रही थी कि वो मेरी चूचियों को ही देख रहे थे.. बस घूरे जा रहे थे।
मैं भी उन्हें स्माइल दे देती थी। अब उनकी तौलिया में उभार स्पष्ट नज़र आ रहा था।
फिर काफ़ी देर बाद जब लाइट आई.. तो हम लोग फिर से सोने चले.. इस बार मैं शॉर्ट और टी-शर्ट में थोड़ा रिलेक्स फील कर रही थी।
भैया का शॉर्ट्स ढीला होने के कारण मेरी चूत का थोड़ा-थोड़ा दर्शन भैया को हो जा रहा था। मैंने आँखें बंद कर ली थीं.. पर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने देखा कि भैया ने भी अपनी आँखें बंद कर ली हैं लेकिन उनका तौलिया अब खुल चुका है और वो सिर्फ़ अंडरवियर में थे।
कुछ देर बाद एक करवट लेने के बाद मेरी गाण्ड भैया से टच हो गई। मुझे बहुत अजीब सा महसूस हुआ। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गरम लोहे का सख़्त रॉड टच हो रहा हो। मुझे तो अच्छा लग रहा था.. मेरे मन में लड्डू फूटने लगे थे.. पर मैं वैसे ही सोई रही।
मुझे ऐसा लग रहा था कि वो कुछ डर रहे हैं.. इसलिए आगे नहीं बढ़ रहे थे.. पर ज़रूरत तो मुझे उनके लंड की थी।
अगर उनको मुझे चोदना होता.. तो वो जिस दिन बाइक पर मैंने उनको चूची रगड़ी थी.. उसी दिन वो मुझे चोद चुके होते।
मेरे भैया मुझे फट्टू किस्म के लग रहे थे। उनकी अब तक कोई दूसरा लड़का होता तो कब का मुझे चोद चुका होता।
मेरे मन में यह बात घुस चुकी थी कि मुझे किसी तरह से अपनी चूत की चुदाई करवानी है और साथ ही एक आजाद पंछी की तरह मैं खुले आसमान में उड़ना चाहती थी।
आगे लिखूँगी कि मेरा मकसद कैसे मुकाम पर पहुँचा।
आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।
कहानी जारी है।
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