यौवन में चुदाई का स्वर्गिक सुख
मेरा शायरी का शायराना अन्दाज किसी मोहतरमा को इतना पसन्द आया कि Desi Kahani की घटना में उसने अपने यौवन का रसपान उसकी चूत चुदाई के द्वारा प्रदान किया..
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सुख है किसी की रूह में बूँद बूँद घुलने में.. अपनी साँसों में किसी की साँसों की महक महसूस करने..
अपने बदन पर किसी के बदन की तपिश महसूस करने में.. इस सुखद अनुभूति का रसपान करने के लिए..
यौवन काल के प्रारम्भ से देह बेचैन रहने लगती है और ऐसे में किसी यौन संसर्ग के साथी का मिलना..
जैसे तपते सहरा में किसी जलाशय की प्राप्ति.. संसर्ग का प्रथम आनद अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति कराने वाला..
जिसे अभिव्यक्त करना असंभव है.. फिर भी प्रयास करता हूँ कि इस अनुपम रसानुभव को आपके साथ बाँट सकूं..
मैं एक साधारण देहयष्टि का पुरुष हूँ.. बचपन से लिखने पढ़ने का शौक़ीन..
इस शौक ने कालान्तर में लिखने के लिए प्रेरित किया, और एक शायर के रूप में थोड़ी बहुत ख्याति भी दिला दी..
छोटे छोटे कवि सम्मेलनों की यात्रा के दौरान ज़िन्दगी में ऐसा भी पल आया, जिसने जीते जी स्वर्ग के दर्शन करा दिए..
बात लगभग 10 वर्ष पुरानी है, एक मुशायरे के लिए दिल्ली से मुम्बई की यात्रा के दौरान साथ वाली सीट पर एक विवाहिता यात्रा कर रही थी..
उसके देसी अदाओं का मैं हुआ कायल
रूप स्वर्ग की अप्सराओं से होड़ करता हुआ, कुछ और सहयात्री भी साथ थे। बातचीत में मेरा शायर होना भी खुल गया।
अब शुरू हुआ शायरी की फरमाइश! एक एक शेर पर होने वाली वाह वाह!
इसी दौरान मेरे मुँह से निकले एक शेर, बदन बदन से और लबों से लब मिलते हैं! लोग प्यार में इससे ज्यादा कब मिलते हैं!
इस पर उसने दो आँखों ने तिरछी नज़रों से मुझे ताका और अधरों पर एक सरस मुस्कराहट बिखर गई।
अब शुरू हुआ बातचीत का लम्बा सिलसिला, और एक प्रगाढ़ मित्रता की नीव के साथ मुम्बई प्रवेश के दौरान उनके ही घर रहने खाने का आमन्त्रण।
नीलमणि, अपने नाम से भी ज्यादा खूबसूरत! नीले समन्दर सी गहरी आँखें सुनहरे बाल पुष्ट अमृत कलश और कमाल की देहयष्टि..
किसी उस्ताद शायर की सलीके से तराशी ग़ज़ल की तरह.. उसके सम्मोहन में बंधे हुए मुम्बई तक की यात्रा सम्पन्न हुई।
स्टेशन से नीलमणि की जिद मुझे उसके घर ले आई, घर जिसमें से उसकी सम्पन्नता की खुशबू फुट रही थी एक बड़ी सी कोठी।
जिसमे उसके अतिरिक्त सिर्फ एक नौकरानी रहती थी सर्वेंट क्वार्टर में। उसने आकर ताला खोल और मेहमान नवाज़ी का सिलसिला शुरू..
न जाने कौन से रिश्ते में बाँध लिया था उसने मुझे, मैं उसके रूप पर मुग्ध अवश्य था।
हालांकि, उसके सलीकेमन्द व्यक्तित्व ने मेरे मन में उसके प्रति कोई गलत भावना नहीं पनपने दी..
चूँकि, नीलमणि के मन में कुछ और था, शाम के भोजन के उपरान्त सेविका की छुट्टी के बाद..
मैं अतिथि कक्ष में अपने बिस्तर पर लेटा मन ही मन नीलमणि के रूप और गुण का आकलन कर रहा था।
तभी मानो जैसे मेरी कल्पना में से छिटककर वो साकार कमरे में अवतरित हुई, बिजलियाँ गिराती हुई..
पारदर्शी लिवास में अंग अंग के दर्शन
एक पारदर्शी गुलाबी नाइटी में, हर रेशे से बदन की चांदनी फूट रही थी..
मुझ पर एक अजीब सा नशा छाने लगा.. नीलमणि ने मेरे कान के पास आकर वही शेर दोहराया।
बदन बदन से और और लबों से लब मिलते हैं! लोग प्यार में इससे ज्यादा कब मिलते हैं!
उसके उपरान्त मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा- क्या तुम इतने मिल सकते हो?
बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए मेरे थरथराते हुए होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. एक मीठी सी ग़ज़ल मेरी रूह में घुलने लगी..
मेरी चेतना पर जैसे उसका अधिकार हो गया और अनायास मेरे हाथ उसकी पीठ पर बन्ध गए।
एक अनबुझी सी प्यास और एक असीम तृप्ति का भाव मेरी आत्मा में एक साथ जागने लगा..
मेरे हाथों ने उसके बदन को टटोलना शुरू कर दिया और रेंगते हुए मंगल घट को हस्तगत कर लिया..
एक रेशमी एहसास मन में घुलते हुए, एक अजीब सी उत्तेजना मुझ में बो दी..
मुझे स्वयं के कपड़े ही अपने बदन पर बोझ लगने लगे, धीरे-धीरे कपड़ों नें शरीर का साथ छोड़ना शुरू कर दिया।
अब हम दो बदन एक दूसरे से लिपटे नंग धड़ंग अवस्था में खड़े हुए थे।
एक तूफ़ान के आने की तैयारी कहें या एक चैतन्य खजुराहो के दर्शन का भाव, मेरे होंठों ने नीलमणि के पोर पोर को चूमना शुरू कर दिया..
नीलमणि के शरीर का हर हिस्सा, एक अमृत कुण्ड में परिवर्तित हो गया। जिसकी मिठास में पगा मन स्वयम् को..
उस समय जगत में सबसे सौभाग्य शाली मान रहा था। पोर पोर अमृत पान करते हुए अधर अचानक स्वर्ग के द्वार पर जाकर ठहर गए..
एक भीनी मादक सुगंध ने नासिका से आत्मा तक सब कुछ महका दिया। जीभ ने जैसे ही दिव्य गुफा का द्वार खोला..
एक मीठी सी सिसकारी नीलमणि के होंठों से छूटी और सारा बदन थरथराने लगा।
नीलमणि नें मेरे बालों को पकड़ कर जोर से दबा दिया और मेरी जीभ स्वर्ग से झरते अमृत का पान करने लगी..
उत्तेजना के कारण मेरा भी बुरा हाल होने लगा, और मैं घूम कर 69 अवस्था में आ गया।
अगर स्वर्ग का द्वार मेरे लिए अमृत की वर्षा कर रहा था, तो दिव्य दण्डिका को देख कर नीलमणि की आँखों में..
बला की चमक आ गई थी, उसने तुरन्त की प्यासी आत्मा की तरह उसे 69 हो होंठों की गिरफ्त में ले लिए..
यह मेरे लिए बहुत ही खास अनुभव था, एक ऐसा सुख जिस पर जीवन न्योछावर किया जा सकता था।
सुखद कल्पना में डूबे हुए दिव्य दंड यानी मेरे लण्ड ने नीलमणि के हिस्से का अमृत दान कर दिया।
जिसे नीलमणि ने बड़े प्यार से न सिर्फ पिया बल्कि मेरी देह को तृप्ति की नई अनुभूति से परिचित कराया..
लण्ड से चूत की गहराई को नापा
एक दूसरे की देह से छलके अमृत का पान दोनों ने ऐसे किया, मानो काम देव की पूजन का प्रसाद ग्रहण किया हो..
यह उत्तर अनुष्ठान था, मूल अनुष्ठान अभी बाकी था! इस तृप्ति ने एक नई प्यास की आधार शिला रख दी थी।
एक ऐसी प्यास जिसमें दोनों के दिव्य अंग परस्पर आलिंगन के लिए व्याकुल हो उठे।
नीलमणि की गीली चूत मेरे लण्ड को निगलने के लिए बेताब थी, तो मेरा लण्ड नीलमणि की चूत में समाने को..
दोनों बदन एक अजीब से नशे में डूबे हुए, एक दूसरे से लिपट गए।
अब हम दोनों काम रथ पर सवार होकर, स्वर्गिक सुख की यात्रा पर निकल गए..
इस अपार आत्मा की तृप्ति की आपबीती पर अपने भाव जरुर डाले.. आपका काव्य
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