मदद का इनाम
हेलो दोस्तो ! पिछले कुछ दिनों में मेरी जिंदगी में काफी कुछ हुआ तो नई कहानी लिखने का समय नहीं मिला। आज समय निकालकर अपने जिंदगी का एक भाग आपके सामने रख रहा हूँ। मैं अपने बारे में पहले ही अन्य कहानियों में बता चुका हूँ लेकिन नए पाठकों के लिए मैं बता दूँ, मेरा नाम अमित अग्रवाल है, मैं दिल्ली से हूँ, उम्र 25 साल हैं और मैं एक एथलेटिक बॉडी का मालिक हूँ। मैं अब एक शादीशुदा युवक हूँ और मेरी बीवी अपने रईस माता-पिता की इकलौती संतान है इसलिए अब शादी के बाद मैं अपने सास-ससुर के घर पर घरजमाई बनकर रहता हूँ क्योंकि वो बहुत ही अमीर हैं। यह तो हुई मेरी बात, अब मैं अपनी कहानी प्रस्तुत करता हूँ।
शाम के छह बजने वाले थे, मैं घर पर खाली बैठा था तो घर से बाहर निकल आया और काफी देर तक कनाट प्लेस के पालिका बाजार के पास बेकार ही इधर उधर टहलता रहा। घर में अकेले बोरे होने से तो अच्छा था शाम के समय कनाट प्लेस में ही रंगीनियाँ देखते हुए गुजार लूँ।
चार दिन हो गए थे, पत्नी तान्या अपने माता-पिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में गई हुई थी मगर किसी काम के कारण मैं नहीं गया था और अभी एक सप्ताह तक उसे आना भी नहीं था। कनाट प्लेस को देखते देखते नए स्वाद के लिए दिल मचलने लगा। दिल्ली के इस एरिया में कॉल गर्ल्स की कोई कमी नहीं है। कनाट प्लेस में इधर से उधर घूमते हुए मैं एक सुन्दर सी लड़की की तलाश में काफी देर तक चक्कर लगाता रहा।
तभी अचानक ही पालिका के मुख्य द्वार के बाहर ही मेरा सामना एक लड़की से हो गया। लड़की देखने में तो काफी सुन्दर थी, उसे मॉडर्न नहीं अल्ट्रा मॉडर्न कहना ही ठीक होगा। उसने इतना चुस्त लिबास पहन रखा था कि उसके खूबसूरत आकर्षक बदन की जानलेवा गोलाइयाँ और उभार कपड़ों को फाड़कर बाहर आ जाने के लिए आतुर दिखाई पड़ रहा था।
अचानक मेरी नजरें उससे मिल गई तो वो मेरी और देख कर हौले से मुस्कुरा दी। मेरा दिल बड़े जोर से धड़क उठा। शक्ल-ओ-सूरत और पहनावे से तो वह किसी अमीर परिवार की लग रही थी। उसे देखकर मेरे मन में ख्याल ही नहीं आया कि ऐसी सुन्दर नाजुक लड़की धंधे वाली भी हो सकती हैं। लेकिन अपनी और आते हुए देखकर उसके मुस्कुराने का राज जानने के लिए मैं उतावला हो गया।
फिर मैंने उस लड़की को जरा गोर से देखा तो न जाने मुझे क्यूँ लगा कि मैंने उस लड़की को पहले भी कहीं देखा है, उससे मिल चुका हूँ।
कौन है वो? कहाँ देखा है उसे? मुझे देखकर वो मुस्कुराई क्यूँ?…
दिमाग पर जोर डालने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया पर उसे अपनी और आते हुए देखकर मेरे होंठो पर भी खुशी आ गई।
उस खूबसूरत बाला की उम्र 23-24 ही रही होगी। उसने स्किन टाईट जींस और बड़ा ही कसा हुआ काले रंग का टॉप पहन रखा था जिसमें से उसके मस्त उभार बाहर को झांकते हुए और भी ज्यादा नशीला बना रहे थे। उसकी आँखें तो इतनी नशीली थी कि मैं उस समय खुद को भूल गया और उसकी अंकों में डूब गया।
मैं तो तब चौंका जब उस लड़की ने कहा- थैंक ग़ॉड ! मुझे तो पूरी उम्मीद थी कि आप मुझे अभी तक भूले नहीं होंगे।
ऐसा कहने के बाद उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।
हालांकि मैं अभी तक उसको पहचान नहीं पाया था और उसकी बातें सुनकर मैं और हैरत में पड़ गया कि आखिर मैं उससे कब और कहाँ मिला क्योंकि वो लड़की तो मुझे अच्छी तरह से पहचानने का दवा कर रही है। मुझे बस यही लग रहा था कि मैं उसे कहीं देखा है लेकिन याद नहीं आ रहा था।
आखिर में उसे न पहचानते हुए मैं बोला- कौन हैं आप?
“मुझे पहचाना नहीं?”
“मुझे तो याद नहीं आ रहा कि हम आज से पहले कब और कैसे मिले हैं?”
फिर वो मुझसे बोली- आप मुझे कुछ परेशान से लग रहे हैं, क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ?
“मैडम… परेशानी तो कुछ खास नहीं है… बस पहले आप इतना बता दो कि इससे पहले हमारी मुलाकात कहाँ हुई थी? मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा।”
फिर वो बोली- क्या वाकयी आपने मुझे नहीं पहचाना?
“आई ऍम डॉक्टर नीलिमा, क्या तुम्हें याद नहीं आ रहा? उस दिन आगरा से दिल्ली आते हुए रोडवेज की बस में मेरा पर्स चोरी हो गया था और तब आपने अनजान होते हुए भी मेरी टिकट लेकर मेरी मदद की थी। कुछ याद आया आपको?”
मैं चौंक पड़ा। एक साल पहले घटित वो घटना एकदम से साफ़ होने लगी, सब याद आता चला गया- मैं छुट्टियाँ बिताकर दिल्ली लौट रहा था तब मैंने उसकी टिकट ली थी।
फिर मैंने उससे पूछा- कैसी हो तुम?
तो वो बोली- मैं तो अच्छी हूँ… आप बताइए अपने बारे में? दिल्ली आकर मैंने आपको बहुत तलाश किया आपका सही एड्रेस नहीं मिला, कहीं शिफ्ट कर लिया है क्या आपने?
“मैं तो आपको बताना ही भूल गया था, तीन -चार दिन बाद ही मैंने वहाँ से शिफ्ट कर लिया था।”
फिर नीलिमा बोली- आइये कहीं बैठकर बातें करते हैं।
उसने बेझिझक मेरा हाथ थामकर एक ओर खींचा तो मैं बरबस उसके साथ चल पड़ा। नीलिमा थी ही इतनी सुन्दर कि कोई भी उसके साथ बात करने को उतावला हो जाए। वो मुझे पास के ही पार्क के सामने बने कॉफी होम में ले गई, वो मुझे लगातार गहरी नजरों से देखे जा रही थी जो मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
फिर हम दोनों वहाँ बैठकर काफी देर बातें करते रहे। बातों ही बातों में उसने बताया कि वो अपने परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गई है। फिर मैंने उसके पति के बारे में पूछा तो वो बोली- मेरे पति बिजनेस करते हैं।
फिर उसने मुझे वही सवाल किया और जैसे ही मैंने बताया- मेरी शादी हो चुकी है !
तो उसके चेहरे पर एक मायूसी सी छा गई। मैंने उसे बताया कि अभी मेरी पत्नी कुछ दिनों के लिए दिल्ली से बाहर गई हुई है।
उसने अपना पता नोट करवा दिया और मैंने भी अपना विजिटिंग कार्ड कार्ड उसे दे दिया जो उसने अपने पर्स में डाल लिया। मैं खूब चाहकर भी उसे अपने घर चलने का न्योता देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। जाने क्यूँ मुझे लगा कि कहीं वो बुरा न मान जाए।
सड़क के किनारे किनारे मेरे साथ चलती हुई वो बोली- वैसे मैं बहुत जल्दी ही आपसे फिर मिलना चाहूँगी।
मुझे लगा कि वो मेरे 500 रूपए लौटाने के लिए उतावली हो रही है, मैं बोला- घबराओ मत, मैं उस दिन के पैसे लौटाने के लिए नहीं कह रहा हूँ। मैं तो उस बात को भी भूल चुका हूँ।
“हम आपस में अच्छे दोस्त नहीं बन सकते क्या?”
“अगर मुझे दोस्त समझा तो कभी उन पैसों का जिकर मत करना।”
नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली- मैं जानती थी कि अगर आप मुझे मिल गए तो आप यही बोलेंगे, बहरहाल मैं सिर्फ उन पैसों को लौटाने के लिए आपसे मिलना नहीं चाहती थी।
उसने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी और बोली- अब मैं चलूँ !
मुझे विश करने के बाद वो सामने फ़ुटपाथ पर खड़ी अपनी आलीशान कार की ओर बढ़ गई। सच में वो एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखती थी। मैंने भी अपनी कार पकड़ी और अपने घर की ओर चल दिया।
मैं नीलिमा के व्यक्तित्व की ओर इतना आकर्षित था कि मैं भूल ही गया कि मैं यहाँ क्यूँ आया था।
मैं नीलिमा की तरफ इतना आकर्षित था कि मैंने सोच लिया अगर मैं नीलिमा से दुबारा मिला तो उसे अपने मन की बात जरूर बताऊँगा।
सारी रात मैं नीलिमा के बारे में सोचता रहा। रात में ना जाने मुझे कब नींद आ गई।
मुझे नीलिमा का ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा, अगले ही दिन रात 8 बजे नीलिमा मेरे घर आ धमकी। मैं ऑफिस से आकर जरा आराम के मूड में लेटा हुआ था। मैंने घण्टी की आवाज सुनकर दरवाजा खोला तो वो सामने खड़ी हुई थी।
उसे देखकर मैं तो हैरान रह गया, उस दिन तो उसने और भी आकर्षक मेकअप कर रखा था। लाल रंग की साडी ब्लाउज और हल्के मेकअप में वो इतनी हसीं नजर आ रही थी कि उसे देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया, बिल्कुल आसमान से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी जो सिर्फ मेरे लिए आई थी।
लाल रंग की गहरे शेड की लिपस्टिक से सजे उसके होंठों पर एक जानलेवा मुस्कान थी। उसे देखते ही मेरी तो बोलती बंद हो गई, मैं तो बस उसे देखता ही रह गया।
तभी नीलिमा मेरी आँखों के सामने हाथ हिलाते हुए बोली- क्या हुआ… कहाँ खो गए जनाब? दिल्ली वाले इस तरह मेहमान का स्वागत करते हैं क्या?
मैंने एकदम से होश संभाला और उसे अपने ड्राईंगरूम में ले जाकर बिठाया। कुछ पल की चुप्पी के बाद मैंने उसकी शादीशुदा जिंदगी के बारे में पूछा।
मेरा प्रश्न सुनकर नीलिमा के चेहरे पर एक विचित्र सी प्रतिक्रिया हुई। शायद मैं अनजाने में उसकी दुखती रग को छेड़ बैठा था।
नीलिमा बोली- एक ही घर में हम दोनों कई-कई दिनों तक ढंग से बात भी नहीं करते, वो तो बस पैसे और काम के लिए पागल हैं।
फिर मैंने कहा- लगता है तुम अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं हो?
मेरी हमदर्दी भरी बातें सुनकर नीलिमा अचानक मेरे सीने से आ लगी और रोने लगी।
मुझे लगा शायद रोने से उसका दिल हल्का हो जाए और एक बला सी खूबसूरत लड़की मेरे सीने से लगी थी तो एक अजीब सा सुखद अनुभव था। मैं उसे अपने से अलग करना ही नहीं चाहता था। मैं तो चाहता था कि नीलिमा यों ही मेरे सीने से लिपटी रहे।
नीलिमा की आँखों में देखते हुए मैं भावना में इस कदर बह गया कि मैंने उसे अपने आगोश में लेकर उसके माथे पर चूम लिया।
इस चुम्बन की वजह से नीलिमा कुछ देर के लिए थर्रा गई और वो अपना हाथ मेरे बालों में फिरने लगी। उसके बाद मैं खुद को रोक ही नहीं पाया और उसके होंठो पर चुम्बनों की वर्षा करता चला गया। नीलिमा ने भी मेरा पूरा साथ दिया, वो मुझसे इस तरह लिपट गई कि उसके सीने के उभार मेरे सीने में गड़ गए। मैं इतना बेताब हो गया कि मैंने ब्लाउज के ऊपर से ही उसके उरोज दबा दिए।
ऐसा करने से नीलिमा पूरी तरह मस्ती में आ गई और अपने ब्लाउज के सारे हुक खोलकर ब्लाउज़ उतार फेंका। फिर मैंने धीरे धीरे उसके सारे कपड़े उतार दिए।
कुछ पल में पूर्ण आवरण रहित नीलिमा मेरी बाहों में मचलने लगी, नीलिमा का सोने सा बदन मेरी बाहों में कुछ कर गुजरने के लिए तड़प रहा था। उसकी चिकनी कमर तो जैसे क़यामत गिरा रही थी।
मैंने झट से उसकी जांघों और हसीं कूल्हों के उभारों को सहलाया तो वो वासना के सुख में सराबोर होकर मुझसे लिपट गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
फिर मैंने अपने भी कपड़े उतार दिए, वो तुरन्त मेरे लंड को इस कदर चूसने लगी कि एक बार तो मैं उससे पीछा छुड़ाने की सोचने लगा !
आखिर में वो मुझसे फिर चिपक गई। हम दोनों अपना-अपना नंगा बदन एक दूसरे से रगड़ने लगे, फिर मैं हल्के-हल्के से उसके स्तनों को दबाने लगा और एक चुचूक अपने मुंह में ले लिया और उसको चूसने लगा। हम दोनों ही उस वक्त एक-दूसरे का साथ जोश से निभा रहे थे।
नीलिमा ने जोश में मुझे अपने ऊपर बिस्तर पर गिरा दिया और हम दोनों 69 में आकर एक-दूसरे को चूसने लगे। काफी देर तक हम एक-दूसरे को चूसते रहे, फिर सीधे होकर मैंने शॉट लगाने शुरू किया क्योंकि नीलिमा शादीशुदा थी तो मैंने सोचा कि उसकी चूत पहले से ही फटी हुई होगी मगर मेरे शॉट मारने से नीलिमा बुरी तरह चिल्ला उठी, शायद वो अपने पति से ज्यादा नहीं चुदी थी, नीलिमा इतनी जोर से चिल्लाई कि उसकी आँखों से आँसू आ गए, मगर मैंने कोई रहम नहीं दिखाई और बेतहाशा शॉट मारता रहा !
उस रात सूने और एकांत घर में हम दोनों पूरी तरह आजाद थे, पूरी रात हम दोनों एक-दूसरे के बदन से खेलते रहे, थक कर हम एक-दूसरे से लिपट कर सो गए।पूरे एक सप्ताह तक हम दोनों एक-दूसरे की शारीरिक जरूरतों को पूरा करते रहे।
आज भी हम दोनों कभी-कभी मिलते हैं और एक-दूसरे को शारीरिक सुख और दूसरे सुख-दुःख बांटते हैं। उस एक दिन की मदद के ईनामके रूप में मुझे जिंदगी भर के लिए नीलिमा का साथ एक दोस्त और शारीरिक सुख देने लेने वाली साथी के रूप में मिला !
तो दोस्तो, इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि ‘सबकी मदद करो, जाने कब कोई आप पर फ़िदा हो जाए !’
आपको यह कहानी कैसी लगी जरूर बताइयेगा, आप मुझे इस ID पर मेल करियेगा।
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