Incest – एक भाई की वासना -4
सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मैं- देख लो फैजान.. आज बड़ी मुश्किल से तुम्हारी इस चहेती बैकवर्ड माइंडेड बहन को जीन्स पहनाई है और इसकी तो शरम ही नहीं जा रही है.. देखो तो सही क्या कोई खराबी है इसमें.. जो इसने पहनी हुई है?
फैजान ने जाहिरा की तरफ ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- नहीं यार.. बिल्कुल परफेक्ट है। जाहिरा तुम तो ऐसे ही घबरा रही हो.. अरे ताबिदा तुमने इसे कोई शर्ट लेकर नहीं दी क्या?
मैं- यार.. मैंने इसके लिए वो भी ले देनी थी.. लेकिन इसने साफ़-साफ़ इन्कार कर दिया कि मैं टी-शर्ट नहीं पहनूंगी… इसलिए मैं नहीं ले कर आई।
फैजान- चलो फिर किसी दिन ला देना… जस्ट रिलेक्स करो जाहिरा.. क्यों परेशान हो रही हो.. यह तो आजकल सब लड़कियाँ कॉलेज में और बाहर भी पहनती हैं।
फिर हम सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में आ गए।
धीरे-धीरे जाहिरा को जीन्स की आदत होने लगी और वो फ्रीली घर में जीन्स पहनने लगी.. लेकिन अभी भी उसने कभी भी टी-शर्ट नहीं पहनी थी।
अब मेरा अगला कदम उसको लेगिंग पहनाने का था.. जिसमें उसके जिस्म की निचले हिस्से की पूरी गोलाइयां उसके भाई की नज़रों के सामने आ जातीं। काफ़ी बार मैंने उससे कहा.. लेकिन वो शर्मा जाती थी और मेरी बात मानने को तैयार नहीं होती थी।
अब आगे लुत्फ़ लें..
एक रोज़ मैं और जाहिरा दोनों घर पर अकेले थे। फैजान के जाने के बाद जब हम काम से फारिग हुए.. तो मेरे दिमाग में एक ख्याल आया। मैंने अपनी एक ब्लैक कलर की लेगिंग निकाली और जाहिरा को अपने कमरे में बुलाया।
वो आई तो मैंने उससे कहा- जाहिरा देखो इस वक़्त तो तुम्हारे भैया भी घर पर नहीं हैं.. तो तुम एक बार मुझे यह लेगिंग पहन कर तो दिखाओ।
जाहिरा शरम से सुर्ख हो गई और इन्कार करने लगी.. लेकिन मैंने भी आज.. उसकी बात ना मानने का पक्का इरादा कर लिया हुआ था।
जब मैं उससे इसरार करती रही तो फिर वो मानी और मेरी ब्लैक लेगिंग लेकर बाथरूम में चली गई।
कुछ देर के बाद जाहिरा अपनी सलवार उतार कर मेरी वाली ब्लैक टाइट लेगिंग पहन कर बाथरूम से बाहर आई और बाथरूम के दरवाजे के पास ही खड़ी हो गई।
उस देख कर मेरी आँखें चमक उठीं.. वो टाइट ब्लैक लेगिंग जाहिरा की खूबसूरत और सुडौल टाँगों पर बेहद प्यारी और सेक्सी लग रही थी।
उसकी टाँगों का हर एक कर्व उसमें बहुत ही प्यारा और अट्रॅक्टिव लग रहा था। जाहिरा मुझसे दूर अपनी नजरें झुका कर खड़ी हुई थी और उसके चेहरे पर एक शर्मीली सी मुस्कान थी।
मैंने उसे अपने पास आने को कहा.. वो आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई मेरी पास आई.. तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिस्तर पर बैठा लिया।
ऊपर से उसने अभी भी अपनी लंबी सी कमीज़ पहनी हुई थी। मैंने अपने पास बैठा कर अपना हाथ उसकी टाँग के ऊपर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता सहलाने लगी और बोली- देखो इस लेगिंग में तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो।
जाहिरा शर्मा कर बोली- लेकिन भाभी इस लेग्गी में तो पूरे का पूरा जिस्म जैसे नंगा ही लग रहा है।
मैं मुस्करा कर बोली- अरे पगली ऐसा क्यों सोचती हो तुम.. यह तो बन्दी की खुद महसूस करने की बात है ना.. अब मुझे देखो.. मैं तो यह पहन कर बाहर भी चली जाती हूँ और तुम्हारे भैया कोई ऐतराज़ भी नहीं करते हैं।
जाहिरा मेरी तरफ देख कर शरमाती हुई बोली- भाभी आपने तो हद ही की है.. भला इतनी खुले गले के कपड़े भी कोई पहनता है क्या?
जाहिरा ने मेरे डीप और लो-नेक गले की तरफ इशारा करते हुए कहा.. जिसमें से मेरी चूचियों का ऊपरी हिस्सा और क्लीवेज साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था।
मैंने मुस्करा कर अपनी गले की तरफ देखा और अपना हाथ जाहिरा की टाँग पर ऊपर की तरफ.. जो उसकी टाइट लेग्गी में साफ़ नज़र आ रही थी.. पर ले जाते हुए बोली- अरे यह सब तेरे भैया की ही फरमाइश तो है.. वो ही मुझे घर में ऐसी सेक्सी हालत में ही देखना चाहते हैं.. तो फिर मैं क्या कर सकती हूँ।
मेरी बात पर जाहिरा हँसने लगी।
जाहिरा- भाभी क्या आपको ऐसे कपड़ों में कुछ गलत फील नहीं होता क्या.. या कोई परेशानी तो नहीं होती.. जब बाहर लोग आपको देखते हैं तब?
मैं मुस्कुराई और बोली- अरे बस शुरू-शुरू में होता था.. लेकिन अब मैं आदी हो गई हूँ। अब तो हर लड़की ही ऐसा ही ड्रेस पहनती है.. फैशन ही इस चीज़ का है.. तो अब क्या कर सकते हैं.. अगर फैशन के साथ ना चली.. तो ‘पेण्डू’ ही लगूँगी ना.. इसलिए अब मुझे दूसरों की गंदी नजरें भी बुरी नहीं लगतीं.. बल्कि सच पूछो तो मुझे मज़ा भी आता है.. जब कोई मेरे जिस्म को ऐसी नजरों से देख रहा हो.. पता है इससे औरत को संतुष्टि होती है कि उसका जिस्म इतना अट्रॅक्टिव है कि वो मर्दों की नज़रों को अपनी तरफ खींच सकी।
जाहिरा मेरी बातें हैरान होकर सुन रही थी लेकिन आज उसका दिमाग कुछ-कुछ.. जैसे मेरी बातों को समझ भी रहा था।
मैंने उसे तसल्ली से समझाया- देख तू मेरी बहन की तरह है.. तो मुझे ही तेरा ख्याल रखना है ना.. कि तू वक़्त के साथ-साथ चले.. ताकि कल को तेरा भी किसी अच्छी जगह पर रिश्ता हो जाए और तू अपने शौहर के साथ अपनी ज़िंदगी एंजाय कर सके। अरे यह जो थोड़ा बहुत जिस्म को शो करना होता है ना.. यह तो बस ऐसे ही है और अब तो एक रुटीन ही बन गया है.. इस बात को कोई भी माइंड नहीं करता।
जाहिरा- लेकिन भाभी वो भैया?
मैं- तू क्या समझती है कि यह जो लड़कियाँ बाहर इतनी टाइट जीन्स और लेग्गी पहन कर फिरती हैं.. तो क्या उनके घर में उनके बाप या भाई नहीं होते क्या? अरे पगली सब ही होते हैं.. लेकिन वो लोग अब इस चीज़ को माइंड नहीं करते और वक़्त कि मुताबिक़ चलते हैं.. ऐसे ही तू भी बस अपने भाई से डरती रहती है.. मैं तुमको यकीन दिलाती हूँ कि वो कुछ नहीं कहेंगे तुझे. और अगर कोई ऐसी-वैसी बात की.. तो मैं खुद उनको सम्भाल लूँगी.. और फिर अपना घर तो इस सबकी प्रैक्टिस करने के लिए सबसे अच्छी जगह है..
जाहिरा शायद मेरी बात समझ गई थी.. मैंने उससे कहा- अभी आज तू मेरी वाली यही लेग्गी पहन ले.. फिर मैं तुझे तेरी साइज़ की और भी प्यारी प्यारी सी नई ला दूँगी।
जाहिरा शर्मा गई लेकिन कुछ बोली नहीं। फिर मैं उसे लेकर रसोई में आ गई और हम लोग खाना तैयार करने लगे.. क्योंकि फैजान के आने का टाइम भी हो रहा था। काम करते हुए जाहिरा थोड़ा घबरा भी रही थी.. एक-दो बार उसने मुझसे कहा भी कि भाभी मैं चेंज करना चाहती हूँ.. लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उसे मना ही लिया कि वो आज अपने भाई के सामने भी यह लेग्गी पहनेगी।
जैसे ही डोर पर फैजान की बेल बजी.. तो जाहिरा ने मुझसे कहा- जाओ दरवाज़ा आप ही खोलो।
खुद वो रसोई मैं ही रुक गई। मैंने मुस्करा कर उसे देखा और फिर दरवाजा खोलने बाहर आ गई। मैंने दरवाज़ा खोल कर जैसे ही फैजान अपनी बाइक पार्क कर रहा था.. तो मैंने उसे बताया।
मैं- फैजान.. देखो आज जाहिरा ने बहुत मुश्किल से हिम्मत करके लेग्गी पहनी है.. तुम से बहुत डर रही थी.. बस तुम को उसकी तरफ कोई तवज्जो नहीं देनी और ना ही उससे कुछ कहना.. ना कोई कमेंट देना है.. और उसकी तरफ ऐसे ही नॉर्मल रहना है.. जैसे कि रोज़ उससे व्यवहार करते हो.. ताकि वो थोड़ी सामान्य हो जाए और आहिस्ता-आहिस्ता इस नई ड्रेसिंग की आदी हो सके। अगर तुमने कोई ऐसी-वैसी बात की.. तो फिर वो दोबारा से अपनी पहली वाली लाइफ में चली जाएगी।
मुझे पता था कि फैजान के लिए अपनी बहन की टाँगों को टाइट लेगिंग में देखने से खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा.. लेकिन मैं तो खुद ही उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी और दूसरी बात यह भी है कि सच में मैं जाहिरा को थोड़ा कंफर्टबल भी करना चाहती थी ताकि आइन्दा भी उसे ऐसे और इससे भी थोड़ा ज्यादा ओपन कपड़े पहनने में आसानी हो सके।
बहरहाल फैजान ने मेरी बात मान ली और बोला- अच्छा ठीक है।
अन्दर आ कर फैजान ने अपने कमरे में जाकर चेंज किया। फिर वो फ्रेश होकर वापिस आया और लंच करने कि लिए बैठ गया।
मैं रसोई में गई और कुछ बर्तन ले आई और फिर जाहिरा को भी खाना लेकर आने का कहा। मैं फैजान के पास बैठ गई और जाहिरा का वेट करने लगी।
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अभी वाकिया बदस्तूर है।
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