लागी छूटे ना चुदाई की लगन-4
अब तक मेरी अन्तर्वासना की कहानी में आपने पढ़ा कि मेरी शादी उसी से हो गई जिससे मैं प्यार करती थी. शादी के बाद अपने मर्द के अलावा बाप से भी चुदने का मजा लेती रही. फिर बापू की उम्र हो चुकी थी, तो मेरे लिए एक साहब की केयरटेकर बनने का ऑफर आ गया.
अब आगे:
ये साहब गोल मटोल कैसा मोटा है? साले का लंड तो पहली नजर में दिख ही नहीं रहा था.
कुछ दिन बाद उसकी पत्नी आयी. क्या स्मार्ट, स्कूल टीचर थी. जब मैं उनसे घुल मिल गयी, तो उसने बताया कि साहब पहले बड़े हैंडसम थे, पर अब फैल गए हैं. और वो?
वो हंसने लगी- पहले सब सही था, पर पता नहीं क्या हो गया … फैल गए हैं, तब से कभी कभी ही हो पाता है. वो भी मुझे ही करना पड़ता है. साहब नीचे पसर जाते हैं और मुझे उनके लंड की सवारी करना पड़ती है. कभी कभी के लिए तो ठीक है, पर हमेशा पूरा मजा नहीं आता है. मन करता है कि कोई मर्द ऊपर से पेले, तो शरीर का अकड़न शांत हो.
पता नहीं मुझे क्या हुआ. मैं साहब के प्रति चिंतित हो गयी. बस मैंने उनके खाने में मैगी, नूडल्स, ब्रेड बटर सब बंद कर दिया. सुबह में सात बजे उठा देती. पहले खूब झल्लाते, पर धीरे धीरे ढल गए.
दूसरे स्टेप में मैंने योगा करवाना शुरू कर दिया. कुछ योग मैं जबरदस्ती करवाती. जैसे पैर को पेट पर सटाना, जिसमें हमदोनों का जिस्म तो सटता ही था. शुरू में तो साहब झिझकते, पर मेरी तरफ से पहल होने के कारण वे आश्वस्त हो गए.
कभी कभी जानबूझ कर मैं अपनी चूत को उनके लौड़े से सटा देती, तो देखती कि साहब के लंड में कड़ापन आ जाता था.
छह माह में मोटा आदमी खाते पीते घर का आदमी नजर आने लगा. अब तो साथ ही लंड भी पायजामे में हिलते डुलते नजर आ जाता.
अब हम लोग कुछ ज्यादा सटते हुए मसखरी करने लगे थे. कभी कभी वो मेरी चूचियां भी दाब देते, तो मैं उनके मंदिर का घंटा बजा कर उन्हें उत्साहित कर देती.
मैं उनको हमेशा कहती कि आप अपना पेट दिखाओ, कितना कम हुआ.
जब साहब पेट दिखाते, तो मैं पेट को खूब सहला देती. इससे उनका लंड थोड़ा खड़ा हो जाता.
मैं भी हंस कर कह देती- कभी अपने मुन्ने को भी दिखाओ.
एक दिन मैंने उनसे कहा कि अगर आप और जल्दी स्मार्ट होना चाहते हो तो एक उपाय है. वो उपाय अगर आप सही में मर्द हैं, तो ही कर पाएंगे.
मेरे ‘मर्द’ शब्द का तीर सीधे निशाने पर बैठा.
साहब बोले- ऐसा क्या है, जो मैं नहीं कर सकता.
मैंने उनके कान में कहा- मस्त चुदायी … फिर देखना कमाल.
कुछ क्षण रुकने के बाद बोले- अगर तुम तैयार हो तब … दूसरे के साथ नहीं.
मैंने साहब को अपने अंकपाश में लेते हुए उनके होंठों पर एक जोरदार चुम्मी की. मैं पीछे जा कर गर्दन पर प्यार कर रही थी, तो साथ ही साथ शर्ट का बटन भी खोलते जा रही थी. नीचे पैंट का बटन हुक और जिप खोल दी. फिर पैंट के साथ अंडरपैंट भी साथ ही साथ उतार दी. उनका लंड अब मेरे हाथ में था.
थोड़ा सहलाते ही साहब का लंड टनटनाते हुए खड़ा हो गया. वो मेरे तरफ घूमते हुए जिद करने लगे तुम भी कपड़े नीचे करो.
मैंने उनके नजदीक जाकर कहा- ये गलत है … औरतें का सीधे नीचे नहीं, धीरे धीरे पहले ऊपर. वो भी आप खुद उतार कर देख लें.
वो बुद्धू मेरे ब्लाउज को उतार कर सीधे साड़ी उतारने लगा. तो मैंने रोक दिया.
वो चिढ़ कर बोले- उतार तो दिया, अब नीचे वाला.
मैंने कहा- पहले ऊपर पूरी नंगी करो.
साहब ने हार कर मेरी ब्रा को उतार दिया. मैंने रोक कर कहा- थोड़ा प्यार कर लो न.
इतने इशारों के बाद उन्हें समझ में आया कि अब क्या करना है.
मुझे पलंग पर लिटाते हुए बोले- तुम मुझसे उम्र में बड़ी हो. पहले मैं ध्यान नहीं देता था, पर जब तुम मुझे दुबला करने पर तुल गईं, तो अच्छी लगने लगीं. पर जब भी मेरे शरीर को छूती हो, तो मैं इसी दिन की कल्पना करता था. पर मुझे डर लगता था. मैं तुमको खोना नहीं चाहता हूँ … क्योंकि पत्नी के बाद तुम मुझे पहली महिला मिली हो, जो मां की तरह केयर करती हो, मेरी पत्नी की तरह डाँटती हो … सच में मजा आ जाता है. इसलिए मैंने तुम्हारी सारी बात मानते हुए वो सब किया, जो तुमने कहा और आज कर रहा हूँ.
उफ साहब भी क्या चाशनी में लपेट कर बातें कर रहे थे, बड़े ही जबरदस्त लवमैन निकले साहब.
सामने मेरी चूचियां साहब के होंठों का इंतजार कर रही थीं, पर साहब ने तुरंत चूसना शुरू न करके, पहले अपने चेहरे से चूचियों को महसूस किया. उनकी छोटी छोटी दाड़ी, मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी. मेरी चूचियों में तनाव सा भर गया था. चूचियों की भुंडी छोटे छोटे काले अंगूर जैसे लग रहे थे.
साहब केवल मेरी चूचियों से खेल रहे थे. भुंडी के आस पास जीभ से सहला रहे थे पर भुंडी को छूकर निकल जा रहे थे. इससे मैं मारे उत्तेजना से मरी जा रही थी.
अंत में जब मुझसे नहीं रहा गया, तो मैंने साहब के सर के बालों को पकड़ कर अपनी चूचों की भुंडी पर रखते हुए गिड़गिड़ा कर कहा- सब्र का इम्तिहान मत लो साहब … चूचियों को चूस कर बेदम कर दो.
बस फिर क्या था, साहब ने तो मेरी चूचियों का कचूमर निकाल दिया. काफी अर्से के बाद मैं गैर मर्द से चुदवाने जा रही थी, सो काफी रोमांचित हो रही थी.
चूचियां पीने में साहब उस्ताद निकले. भांति भांति के तरीकों से चूचियों को चूसा.
मुझे खुद कहना पड़ा- साहब, आप तो फोरप्ले के उस्ताद हो.
तब वो बोले- आगे आगे देखो, मेनप्ले में भी तुम्हें मजा आएगा.
जब तक वे चूचियां चूसते, तो दूसरा हाथ कभी दूसरी चूची से … तो कभी नाभि से खेलने में लग जाता. कभी नीचे बढ़ कर जांघों को सहला जाता, तो कभी चूत की पावरोटी को दोनों तरफ से दाब कर मेरी बैचेनी को बढ़ा देते.
अभी भी वो मेरी चूत के अन्दर उंगलियां नहीं ले जा रहे थे, अपितु दरारों को केवल सहला रहे थे. मैंने ही अपने पैरों को पूरा फैलाते हुए कोशिश की कि फांक थोड़ा और फैल जाए, तो उंगली अपने आप अन्दर चली जाएगी.
मेरे पैर फैलाने की वजह से चुत की दरार चौड़ी तो हो गई, पर वे उसके चारों तरफ ही सहलाते रहे. उंगली और अंगूठे के बीच में भगनशीश को फंसाते हुए ऊपर नीचे करने लगे.
जब मेरी गांड काफी ऊपर नीचे होने लगी, तो उंगली अन्दर कर लिसलिसा सा रस निकाल लिया.
मेरी चुत के रस को अपनी अपनी उंगली और अंगूठे से ऊपर नीचे करने के बाद बोले- अभी एक तार की चाशनी ही बनी है अभी रस को और जरा लिसलिसा, गाढ़ा होने दो … फिर और मजा आएगा.
पता नहीं इनको इतना सताने में क्यों मजा आ रहा था. सही में थोड़े देर और फोर प्ले के बाद और गाढ़ा रस स्रावित होने लगा.
साहब- मैडम, अब चुदवाने को तैयार हो जाओ.
मैंने कहा- मैडम तो कब से तैयार है, आप महाशय के लौड़े की कृपा तो मेरी चूत पर हो.
साहब ने अपना लंड मेरी चूत पर सैट किया और बहुत ही हल्के से दवाब बनाया. उनके लंड ने अपना रास्ता बनाते हुए चूत के अन्दर जाना शुरू कर दिया.
कोई नई चूत तो थी नहीं कि रुकावट हो … गीली तो थी ही, सो पूरा लंड एक बार में अन्दर पर घुसता चला गया. उनके लंड ने चूत के छेद को पूरा भर दिया था.
साहब लंड को बहुत ही धीरे धीरे निकालते हुए चूत के बाहर ले आए और धपाक से धीरे धीरे अन्दर कर दिया. इस स्लो सेक्स में मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था.
लंड को बाहर आने में मिनटों लग रहे थे … और अन्दर जाने में घप से.
उफ क्या मजा आ रहा था. मीठी यातना में इतना मजा आज पहली बार महसूस कर रही थी. मैं भी उनके लय में आते हुए धीरे धीरे चूतड़ ऊपर नीचे कर रही थी.
एकाएक साहब ने रुक कर चुदाई तेज कर दी. मैंने सोची शायद निकलने वाले होंगे, इसलिए तेज हो गए.
उसके साथ ही चप चप छप छप से रूम गुंजायमान हो रहा था.
मैं स्खलित होने ही वाली थी कि वो अपना लंड निकाल कर बगल में लेट गए मैं उत्तेजना के चरम पर थी, सो बिना देर किए पलटी और साहब के खड़े लौड़े पर चढ़ गयी.
मैं हिंसक रूप अख्तियार किए हुए थी. दनादन लंड को मेरी चुत निगल रही थी. मेरी सांसें उखड़ रही थीं. मेरा सांसों को नाक से लेना मुश्किल हो रहा था, मुँह खुला हुआ था, कलेजा धौंकनी की तरह चल रहा था. जबरदस्त रूप से चूत रस छोड़ रही थी.
फच फच चप चप की आवाज और नीचे से वे मेरे चूचियों की भुंडी को मसल मसल कर घायल कर रहे थे.
थोड़ा और पाघप और चूत के अन्दर गर्म गर्म फव्वारा महसूस किया, साथ ही साथ मैंने भी स्खलित होना शुरू कर दिया.
मेरे पूरे शरीर की उर्जा गायब हो गयी थी. मैं पस्त हो कर उनके शरीर पर बेजान पड़ी रही.
जब उठी तो मेरी चुत में उनका वीर्य लबालब भरा हुआ था. मेरी चूत से लंड का रस रिस रिस कर उनकी जांघों से होते हुए बिस्तर पर गीला निशान बना रहा था.
साहब से एक बार चुदाई हुई तो सिलसिला बन गया. अब तो दोनों को जब मन करता, एक दूसरे को चोद देते.
मेरी तो चाँदी थी, कभी साहब की सेवा से चूत को ठंडा करवा लेती, तो कभी पति के लंड की सवारी कर लेती.
छुट्टियों में मेम साहब आईं, तो साहब को देख कर एकदम से चौंक गईं. गोल मटोल साहब चुस्त हो चुके थे.
तीसरे दिन बहुत देर तक सोई रहीं. मैं समझ गई कि साहब ने मेमसाहब की तबियत से चुदाई की होगी.
साहब ऑफिस भी चले गए, तब भी मेमसाहब सोती रहीं.
मैंने चिंतित होते हुए पूछा- मेम तबियत तो ठीक है न?
उन्होंने जबाव देने की जगह मेरा हाथ पकड़ कर अपने चादर के अन्दर मुझे खींच लिया. अन्दर से वो पूरी नंगी थीं, सो मैं सकपकाते हुए बोली- मेम मैं आपके घर में काम करने वाली दाई हूँ अपने बगल में क्यों खींच रही हैं?
वो कहां सुनने वाली थीं. अपने होंठों पर उंगली रखते हुए चुप रहने का इशारा किया और बोलीं- साला, तुम्हारा साहब की उम्र बढ़ रही है, पर जवानी और जवान होती जा रही है. साले ने चोद चोद कर बुरा हाल कर दिया है. मेरा पूरा शरीर टूट रहा है. तुम क्या खिलाती पिलाती थीं?
वो मेरा कोई जवाब सुनने के मूड में कहां थीं. मेमसाहब ने एक एक करके मेरे सारे कपड़े उतार दिए. मैं दम साधे हुए थी, सोच रही थी कि आगे क्या होगा.
हम दोनों नंगी चादर के अन्दर पड़ी हुई थी. वो मेरी चूचियां मसलने लगीं, मेरे ऊपर चढ़ कर होंठों को चूसने लगीं. वो मर्द के रोल में थीं. कभी मेरी चूचियां पी रही थीं, तो कभी नाभि.
फिर मैडम ने मेरी चूत में प्लास्टिक का लंड जैसा कुछ फंसा दिया, दूसरे सिरे पर उन्होंने खुद भी उसको अपनी चूत में डाल लिया. आधा लंड मेरी चूत में, तो आधा मेम के चूत में था. उसी पर मैडम लगी कूदने.
मैंने पूछा- क्या हुआ … मेम रात में पूरा नहीं हुआ था क्या?
वो बोलीं- तीन बार!
मैं- फिर मेरे साथ क्यों?
वो बोलीं- अरे समझा करो ये चुदाई चीज ही ऐसी है कि जितना करो उतनी ही आग बढ़ती है. आज उठते समय मन कर रहा था चुदवाने का, तो साहब से कहा. वो बोले कि रात में तीन बार हो चुका है और कितना बार चुदवाओगी … क्या पक्की चुदक्कड़ हो गयी हो … हटो कमजोरी हो जाएगी. पर मेरा मन पूरा चुदासा था, बस अब चुप रहो, मुझे चोदने दो.
जब मेम स्खलित हो गईं, तो उसी तरह नंगी रह कर चादर को हटा दिया.
मैंने शरमाते हुए एक हाथ से अपनी चूची, तो एक हाथ से अपनी चूत को ढक लिया.
वो मुस्कुरा दीं और नंगी ही बाथरूम की और चली गईं.
मैंने उठ कर कपड़े पहन लिए.
बाथरूम से निकल कर मैडम बोलीं- अब हम दोनों बराबर … न तुम मेड, न मैं मेम. जब मैं न रहूँ, तो अपने साहब को अपनी चूत का सुख दे दिया करना, बेचारे उसके बिना तड़पते रहते होंगे.
मैं इतना ही बोल पायी- नहीं मैम, आपके साथ करना अलग बात है, पर गैर मर्द के साथ हमसे न हो पाएगा.
मैडम हंस दीं. शायद वो समझ गई थीं.
आपके मेल का इन्तजार रहेगा.
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