लम्बी चुदाई-2

लम्बी चुदाई-2

Lambi Choot Chudai-2

उस लड़की ने मुझे तरह-तरह की ब्रा और पैंटी सेट्स दिखाने शुरू कर दिए जिनमें से 3 सेट्स अमर ने मेरे लिए खरीद लिए।

फिर हमने एक रेस्तरां में जाकर खाना खाया और वापस घर आ गए।

घर आते ही अमर ने मुझे बच्चे को दूध पिला कर सुलाने को कहा ताकि हम बेफिक्र हो कर प्यार करते रहें।

सो मैंने बच्चे को दूध पिला कर सुला दिया।

तब अमर ने मुझसे कहा- ब्रा और पैंटी पहन कर दिखाओ, तुम उनमें कैसी लगती हो?

मैंने बारी-बारी से पहन कर दिखाया, जिसमें से सफ़ेद रंग की ब्रा और पैंटी मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी।

अमर ने मुझे पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया फिर मुझे चूमने लगा। मैंने भी उसको चूमना शुरू कर दिया।

हमारे होंठ आपस में चिपक गए, कभी होंठों को चूसते तो कभी जुबान को चूसते।

अमर मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर भर कर ऐसे चूसने लगा जैसे उसमें से कोई मीठा रस रिस रहा हो।

फिर उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा निकाल दी।

उसने मुझे बिस्तर पर दीवार से लगा कर बिठा दिया और मेरे स्तनों से खेलने लगा, वो मेरे स्तनों को जोर से मसलता, फिर उन्हें मुँह से लगा कर चूमता और फिर चूचुकों को मुँह में भर कर चूसने लगता।

वो मेरा दूध पीने में मगन हो गया, बीच-बीच में दांतों से काट भी लेता, मैं दर्द से अपने बदन को सिकोड़ लेती।

मैं उत्तेजित होने लगी.. मेरे चूचुक कड़े हो गए थे।

मेरी योनि में भी पानी रिसने लगा था, मैंने भी एक-एक करके अमर के कपड़े उतार दिए और उसको नंगा करके उसके लिंग को मुट्ठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी और हिलाने लगी।

अमर ने कुछ देर मेरे स्तनों को जी भर चूसने के बाद मेरे पूरे जिस्म को चूमा फिर मेरी पैंटी निकाल दी और मेरी टांगों को फैला कर मेरी योनि के बालों को सहलाते हुए योनि पर हाथ फिराने लगा।

उसने मेरी योनि को दो ऊँगलियों से फैलाया और चूम लिया।

फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा, उसके बाद मुँह लगा कर चूसने लगा।

उसकी इस तरह के हरकतों से मेरे पूरे जिस्म में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी, मैं गर्म होती चली गई।

उसने अब अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसाने का प्रयास शुरू कर दिया। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैंने अपने दोनों हाथों से योनि को फैला दिया और अमर उसमें जीभ डाल कर चूसने लगा।

वो कभी मेरी योनि के छेद में जीभ घुसाता तो कभी योनि की दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता, तो कभी योनि के ऊपर के दाने को दांतों से पकड़ कर खींचता।

इस तरह कभी-कभी मुझे लगता कि मैं झड़ जाऊँगी पर अमर को मेरी हर बात का मानो अहसास हो चुका था, उसने मुझे छोड़ दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया।

मैंने उसके लिंग को मुठ्ठी में भर कर पहले आगे-पीछे किया, फिर लिंग के चमड़े को पीछे की तरफ खींच कर सुपारे को खोल दिया।

पहले तो मैंने उसके सुपारे को चूमा फिर जुबान को पूरे सुपारे में फिराया और मुँह में भर कर चूसने लगी।

मैंने एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ रखा था और आगे-पीछे कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके दो गोल-गोल अन्डकोषों को प्यार से दबा-दबा कर चूस रही थी।

अमर का लिंग पूरी तरह सख्त हो गया था और इतना लाल था जैसे कि अभी फूट कर खून निकल जाएगा।

उसने मुझे कहा- मुझे और मत तड़पाओ जल्दी से अपने अन्दर ले लो।

मैंने भी कहा- मैं तो खुद तड़प रही हूँ.. अब जल्दी से मेरे अन्दर आ जाओ…

और मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके सामने लेट गई।

तब अमर ने कहा- ऐसे नहीं.. आज मुझे कुछ और तरीके से मजा लेने दो.. आज का दिन हमारा है।

यह कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया और मेरी एक टांग को ड्रेसिंग टेबल पर चढ़ा दिया।

फिर वो सामने से मेरे एक नितम्ब को पकड़ कर अपने लिंग को मेरी योनि में रगड़ने लगा।

मुझसे रहा नहीं जा रहा था सो मैंने कहा- अब देर मत करो, कितना तड़फाते हो तुम!!

यह सुनते ही उसने लिंग को छेद पर टिका कर एक धक्का दिया… लिंग मेरी योनि के भीतर समा गया।

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मनोकामना पूरी हो गई, एक सुकून का अहसास हुआ, पर अभी पूरा सुकून मिलना बाकी था।

उसने मुझे धक्के लगाने शुरू कर दिए और मेरे अन्दर चिनगारियाँ आग का रूप लेने लगीं।

मैं बार-बार आइने में देख रही थी, कैसे उसका लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर को छू कर वापस बाहर आ रहा है।

कुछ देर मैं इतनी ज्यादा गर्म हो गई कि मैं अमर को अपने हाथों और पैरों से दबोच लेना चाहती थी। मेरी योनि पहले से कही ज्यादा गीली हो गई थी जिसकी वजह से उसका लिंग ‘चिपचिप’ करने लगा था।

मैंने अमर से कहा- मुझसे अब ऐसे और नहीं खड़ा रहा जाता.. मुझे बिस्तर पर ले चलो।

उसने अपना लिंग बाहर निकाला और बिस्तर पर लेट गया और मुझे अपने ऊपर आने को कहा।

मैंने अपने दोनों टाँगें अमर के दोनों तरफ फैला कर अमर के लिंग के ऊपर योनि को रख दिया और अमर के ऊपर लेट गई।

अमर ने अपनी कमर को हिला कर लिंग से मेरी योनि को टटोलना शुरू किया। योनि की छेद को पाते ही अमर ने अपनी कमर उठाई,
तो लिंग योनि में घुस गया और मैंने भी अपनी कमर पर जोर दिया तो लिंग मेरी योनि के अंतिम छोर तक घुसता चला गया।

मैंने अब अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया और अमर मेरे कूल्हों को पकड़ कर मुझे मदद करने लगा।

मैंने अपने होंठ अमर के होंठों से लगा दिए और अमर ने चूमना और चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने अपने स्तनों को बारी-बारी से उसके मुँह से लगा कर अपने दूध चुसवाने लगी।

मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के लगा रही थी और अमर भी नीचे से अपनी कमर को नचाने लगा था।

अमर को बहुत मजा आ रहा था और यह सोच कर मैं भी खुश थी कि अमर को मैं पूरी तरह से खुश कर रही हूँ।

मैं बुरी तरह से पसीने में भीग गई थी और मैं हाँफने लगी थी।

तब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरे पीछे आ गया और मेरे कूल्हों को ऊपर करने को कहा।

उसने लिंग मेरी योनि में घुसा कर धक्के देना शुरू कर दिया, साथ ही मेरे स्तनों से खेलने लगा।

कुछ देर बाद मुझे उसने सीधा लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रख मेरी टाँगें फैला कर लिंग अन्दर घुसा कर.. मेरे ऊपर लेट गया और धक्के देने लगा।

हमें सम्भोग करते हुए करीब आधा घंटा हो चुका था और अब हम चरम सीमा से दूर नहीं थे।

मैं भी अब चाहती थी कि मैं अमर के साथ ही झड़ू, क्योंकि उस वक़्त जो मजा आता है वो सबसे अलग और सबसे ज्यादा होता है।

मैंने अमर के गले में हाथ डाल कर उसको पकड़ लिया और टांगों को ज्यादा से ज्यादा उठा कर उसके कूल्हों पर चढ़ा दिया ताकि उसे अपना लिंग मेरी योनि में घुसाने को ज्यादा से ज्यादा जगह मिल सके।

उसने भी मुझे कन्धों से पकड़ा और एक जोर का धक्का देकर सुपारे को मेरी बच्चेदानी में रगड़ने लगा।

मैं मस्ती में सिसकने लगी और मैंने अपनी पकड़ और कड़ा कर दिया।

अमर मेरी हालत देख समझ गया कि मैं झड़ने वाली हूँ, उसने पूरी ताकत के साथ मुझे पकड़ा और मेरी आँखों में देखा।

मैंने भी उससे अपनी नजरें मिलाईं।

अब वो पूरी ताकत लगा कर तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

उसके चेहरे से लग रहा था जैसे वो मुझे संतुष्ट करने के लिए कोई जंग लड़ रहा है।

मैंने भी उसे पूरा मजा देने के लिए अपनी योनि को सिकोड़ लिया और उसके लिंग को योनि से कस लिया।

हम दोनों तेज़ी से सांस लेने लगे, तेज धक्कों के साथ मेरी ‘आहें’ तेज़ होती चली गईं।
मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा और मैं झड़ गई…
मैं पूरी मस्ती में कमर उछालने लगी और अमर भी इसी बीच जोर-जोर के धक्कों के साथ झड़ गया।

हम दोनों ने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया और हाँफने लगे।
अमर का सुपारा मेरी बच्चेदानी से चिपक गया और उसका वीर्य मेरी बच्चेदानी को नहलाने लगा।

कुछ देर तक हम ऐसे ही एक-दूसरे से चिपक कर सुस्ताते रहे।

जैसे-जैसे अमर का लिंग का आकार कम होता गया, मेरी योनि से अमर का रस रिस-रिस कर बहने लगा और बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया।

कुछ देर में अमर मेरे ऊपर से हट कर मेरे बगल में लेट गया और कहा- तुम्हें मजा आया?

मैंने जवाब दिया- क्या कभी ऐसा हुआ कि मुझे मजा नहीं आया हो… तुम्हारे साथ?

उसने मेरे गालों पर हाथ फेरते हुआ कहा- तुम में अजीब सी कशिश है.. जितना तुम्हें प्यार करना चाहता6 हूँ उतना ही कम लगता है।

यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बांहों में भर कर दुबारा चूमना शुरू कर दिया।

अभी हमारे बदन का पसीना सूखा भी नहीं था और मेरी योनि अमर के वीर्य से गीली होकर चिपचिपी हो गई थी।

उसके चूमने और बदन को सहलाने से मेरे अन्दर वासना की आग फिर से भड़क उठी और मैं गर्म हो कर जोश में आने लगी।

मैंने उसके लिंग को हाथों में भर कर जोर से मसलना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर में वो दुबारा सख्त होने लगा।

वो मेरे स्तनों से खेलने में मगन हो गया और मैं उसके लिंग को दुबारा सम्भोग के लिए तैयार करने लगी।
कहानी जारी रहेगी।
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