लम्बी जिंदगी की लम्बी कहानी
दोस्तों मेरा नाम मोहन है…मेरी उम्र ४६ वर्ष है…मेरी पत्नी सीमा की उम्र 44 वर्ष है…..मेरी पत्नी का जिक्र इतनी जल्दी करना इसलिए जरुरी है क्योंकि उसके बिना मैं अपने आप को अधुरा समझता हूँ…..इस साईट पर बहुत सारी कहानियां पढ़ी हैं मैंने…पहले तो अपने अकेलेपन को दूर करने का एक सहारा थी ये साईट लेकिन धीरे धीरे यह दिनचर्या का एक अभिन्न अंग बन गयी…..इस साईट पर कुछ लेखकों ने तो कमाल का काम किया है..उनकी कल्पना और उनकी मेहनत तारीफ के काबिल है……कई बार कहानिया बीच में ही बंद हो जाती हैं…हम सब पढने वाले बहुत दुखी होते हैं और गुस्से में आ के गलियां भी देते हैं…..मैंने भी ऐसे अधूरे लेखकों को बहुत कोसा है….लेकिन यह भी हमें समझना चाहिए की इस साईट के अलावा भी तो बहुत से काम करने होते हैं…खैर..सबकी अपनी अपनी सोच है….
एक कहानी मैं भी सुनाना चाहता हूँ…..ये मेरी कहानी है..मेरे अपने परिवार मेरी अपनी जिंदगी की कहानी…लेकिन इसमें सब कुछ सच नहीं है..काफी कुछ सच है और काफी कुछ मेरी कल्पना है……..मेरी और मेरी पत्नी की उम्र सच है..मैं सच में ही ४६ साल का हूँ….देखने वाले शायद मुझे ६० का समझते होंगे….पर मुझे फर्क नहीं पड़ता…..सबसे पहले मैं अपना और अपनी पत्नी का परिचय करवा दूं और उसके बाद फिर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ेगी आप बाकी के लोगों से भी मिलते जायेंगे….
एक छोटे से गाँव में मेरा जन्म हुआ था..पिताजी गाँव में ही किसानी करते थे लेकिन उनके पास कोई बहुत ज्यदा जमीन नहीं थी….हम दो भाई थे…मैं छोटा था….और मैं एकदम ही मूर्ख था….आप लोगों ने शायद अपने स्कूल में अपने दोस्तों के बीच कुछ ऐसे लड़के भी देखे हों जिन्हें स्कूल का कुछ भी समझ नहीं आता…सरल से सरल सवाल भी उनके लिए मुश्किल होता है और वो रोज अपने टीचर्स से मार खाते हैं….मैं उसी तरह का एक बालक था…अब तो खैर स्कूल बहुत बदल गए हैं लेकिन जिस समय मैं स्कूल जाने की उम्र में था उस समय स्कूल में पिटाई होना एक आम बात थी…..मैंने ज्यादा पढाई तो नहीं की लेकिन जितनी भी की उसमे मैं हमेशा ही सबसे कमजोर बालक था…मेरा किसी काम में मन नहीं लगता था..मैं निरा मूर्ख था….पिताजी भी परेशां रहते थे मुझसे……उस समय कम उम्र म शादी करने का ही चलन था….सो मेरी भी शादी कर दी गयी…..शादी तो हो गयी लेकिन गौना नहीं हुआ था तो मेरी पत्नी मेरे यहाँ नहीं बलके अपने मायके में ही रहती थी..जब मेरी शादी हुई थी तब मैं शादी के बारे में भी कुछ नहीं जनता था…..फिर बड़े भाई की शहर में नौकरी लग गयी और वो शहर चले गए….भाभी और उनके बच्चे भी उनके साथ ही चले गए….गाँव में सिर्फ मैं और पिता जी ही थे बस..माँ तो बहुत पहले ही देहांत हो चूका था…..मैं करीब बीस साल का था जब पिता जी की सेहत बिगड़ने लगी…..कुछ ही हफ़्तों में वो बहुत कमजोर हो गए थे..उन्हें यह चिंता भी रहती थी की उनके बाद मेरा क्या होगा……मैं तो किसी काम का नहीं था…और बड़े भाई ने भी शहर जाने के बाद लगभग सब नाता ख़त्म सा कर दिया था गाँव से…वो वहीँ की जिंदगी में खुश थे…..जब उन्हें पिता जी की सेहत के बारे में खबर दी गयी तो वो अपने पुरे परिवार के साथ तुरंत गाँव आये……उनके आने पर हम सभी खुस थे….
अगले कुछ दिनों में…..भाभी ने और भाई ने मिल के पिता जी को इस बात के लिए मन लिया की गाँव की सब जमीन बेच के वो सरे पैसे भाई को दे देन ताकि पिता जी के जाने के बाद वो मुझे और मेरी पत्नी को अपने साथ शहर ले जाएँ और मेरा पालन पोषण कर सकें….पिता जी के सामने ही उन्होंने मेरे और मेरे परिवार को पालने की जिम्मेदारी ली थी..हालाँकि उस समय मेरा परिवार था नहीं….मेरी पत्नी तो शादी के बाद से अपने मायके में ही थी….पिता जी इस बात के लिए राजी हो गए..वो भी जानते थे की मैं निरा मूर्ख हूँ..मैं अपने दम तो कुछ कर नहीं सकता….सो उन्होंने जमीन बेचने का फैसला कर लिया…उनकी सेहत लगातार गिरती जा रही थी और उनके बचने का कोई रास्ता नहीं था…भाभी ने मेरी पत्नी का गौना करवाने की बात राखी और उसे भी मान लिया गया….करीब दो हफ्ते बाद पिता जी गुजर गए….उनके जाने के कुछ दिन पहले ही मेरी पत्नी घर आ गयी थी…मैं पहली बार अपनी पत्नी से मिल रहा था…..उस ज़माने में लड़के लड़की का मिलना जुलना संभव नहीं था..और मुझे पता भी नहीं था की मिला कैसे जाता है और क्यों….मैं उस समय बीस साल का था और मेरी पत्नी मुझसे करीब 3 साल छोटी थी…..आप लोग सोचेंगे की बीस साल के होते होते तक तो आपने सब कुछ जां लिया था आदमी और औरत के बारे में….और सही भी है…लेकिन मैं कुछ नहीं जनता था…मेरी बुद्धि कभी खुली ही नहीं थी…कभी मेरी सोच ने विकास ही नहीं किया था…..मेरी पत्नी को सब काम करना उसके घर वालों ने सिखा ही दिया था…..उससे मेरी बात ज्यादा नै होती थी……
पिता जी को गुजरे अभी कुछ ही दिन हुए थे की एक सुबह भैया ने कहा की कल शहर चलना है…तयारी कर लो…मैं क्या तयारी करता..मेरी तयारी भी मेरी पत्नी ने ही की….हम लोग सब कुछ बेच के शहर आ गए….मुझे पिता जी के गुजर जाने का दुःख भी था और इस बात से मैं खुश भी था की अब अपने भैया के साथ रहूँगा…….मेरे मन में कभी यह ख्याल नहीं आया की मेरी अपनी कोई हस्ती है की नहीं…..ऐसा नहीं की मैं बेगैरत था….लेकिन मुझे हर बात किसी दुसरे से सुन के ही समझ आती थी..मैं अपने फैसले खुद नहीं कर पता था…..हम लोग शहर आ गए…….भैया वहां किसी श्कूल में मास्टर थे…उनकी कमाई ज्यादा नहीं थाई..और मुझे यह भी नहीं पता था की गाँव का सब कुछ बेच के उन्हें कितना पैसा मिला है……करीब तीन चार दिन तक सब ठीक रहा…….फिर एक दिन सुबह नाश्ते पर भैया ने मुझे 200 रुपये दिए और मुझसे कहा की हम तुम लोगों का बोझ नहीं उठा सकते हैं…..पिता जी से वडा किया था इसलिए तुम्हे शहर ले आये हैं..लेकिन यहाँ तुम कैसे रहोगे कहाँ रहोगे यह सब तुम ही जानो….जो पैसे मिले थे तुमसे से आधे तुम रख लो….और अब अपना हिसाब खुद देखो…आज शाम तक हमर घर खली कर दो………अचानक हुए एक घटनाक्रम से मैं एकदम बौखला गया था….मेरा अपना सगा भाई मुझे इस तरह शहर में कैसे अकेले कर सकता है..मैं किस रहूँगा कहाँ रहूँगा…और मुझे उस समय भी यह समझ नहीं थी की मैं अकेला नहीं बल्कि मेरे साथ मेरी पत्नी सीमा भी है..उसकी जिम्मेदारी भी मुझ पैर है….भाभी ने भी हमसे एकदम से पल्ला झटक लिया था…..मुझे नहीं पता की सीमा और भाभी के बीच क्या बात हुई थी क्या हुआ था…..लेकिन सीमा ने अपनी तरफ से एक शब्द का भी विरोध नहीं किया था….मैं ही बार बार भैया से विंती कर रहा था की हमें अपने पास ही रहने दो….और मेरी पत्नी सीमा हमारा सामान जमा करने में लगि हुई थी…उसने एक बार भी किसी तरह की विनती ना तो भैया से की न भाभी से…….हम लोग दोपहर में उनके घर से निकाल दिए गए थे….जिंदगी के बीसवें साल में मैं पहली बार जागा था शायद…..वो झटका शायद मेरे जनम लेने की शुरुआत थी..लेकिन उस समय मुझे ऐसा नहीं लगा था..उस समय तो मैं बस रो रहा था की मैं अकेले कैसे रहूँगा..मुझे दर लग रहा था…सीमा एक हाथ में हमारा एक बैग लिए और दुसरे में मेरा हाथ थामे मुझे कहाँ ले जा रही थी मुझे नहीं पता……..मैंने कभी अपने फैसले नहीं किये थे….उस दिन भी मेरा हाथ सीमा ने थमा हुआ था..मैंने सीमा का हाथ नहीं थामा था..मैं तो इस लायक ही नहीं था की किसी को सहारा दे सकता…..
उस दिन को बीते आज 26 साल हो चुके हैं……इन सालों के दौरान वो दिन भी आये जब मैंने अपने ही बड़े भाई के घर में नौकर का काम किया….झाड़ू पोंचा लगाया बर्तन धोये…..पैसे कमाने के लिए….वो दिन भी आये जब दिन में तीन तीन चार चार काम किये…और काम भी कैसे कैसे…अपने मोहल्ले की नालियाँ साफ़ की…लोगों के घर साफ़ किये…अख़बार फेंके घर घर….दिन में मजदूरी की…रात में चौकीदारी का काम किया……..ऐसे दिन भी देखे….और फिर आज ऐसे दिन भी देखता हूँ की जिस भी बैंक में कदम रखता हूँ वहां का ब्रांच मेनेजर भाग के आता है और ऐसे स्वागत करता है जैसे मेरे पैसों से ही उसकी रोजी रोटी चल रही है….आज ऐसे दिन भी देख रहा हूँ जब मेरे लिए काम करने वालों की एक पूरी फ़ौज है…एक स्टेट नहीं बल्कि भारत के लगभग हर स्टेट में काम चल रहा है मेरा और हर लक्जरी चीज मेरे कदमों में है…..यह पूरा सफ़र मैंने अकेले तय नहीं किया….सीमा मेरे साथ थी…उसी ने मुझे राह दिखाई……कहते हैं न की गधे को काम में लगा दो तो वो थकता नहीं…गधा तो मैं था ही…..गाँव की हवा मिटटी पानी ने मेरे शरीर को अद्भुत ताकत दी थी…बुद्धि नहीं थी सो वो कमी सीमा ने पूरी कर दी…मुझ गधे को उसने काम पर लगाया….और आज वो किसी रानी से कम नहीं है……..मुझे अपनी पत्नी को पहचानने में बहुत समय लगा लेकिन मेरी पत्नी ने बहुत पहले ही मुझे पहचान लिया था अपना मान लिया…..इसलिए उसने मेरे भैया और भाभी के सलूक का भी बदला पूरा किया……जब जब मैं अपनी भाभी को रंडी बना के चोदता था उसे उसकी चुदाई के पैसे सीमा ही देती थी……….
यह सब कैसे हुआ…यह आपको धीरे धीरे बताता रहूँगा…..जल्दीबाजी मत कीजियेगा….४६ साल की जिंदगी एक दिन में नहीं सुनाई जा सकती….
अपने भाई के घर से निकल के हमें कहाँ जाना है कैसे रहना है हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था…मैं तो यह सब सोच भी नहीं रहा था….सीमा ही मुझे ले के बहुत दूर तक पैदल चलती रही…और फिर जब मैंने रोना बंद किया तो देखा की हम लोग बस स्टैंड पर थे….वहां इतनी ज्यादा भीड़ नहीं थी उस समय….शाम हो चली थी और दुकानें पूरी सजी हुई थीं….हम वहीँ एक किनारे जमीन पैर ही बैठ गए…..न सीमा ने मुझसे कुछ कहा न ही मैंने सीमा से….धीरे धीरे रात होने लगी..मन में जो भी चल रहा हो उससे पेट को कोई फर्क नहीं पड़ता….खाना तो हमने दिन में ही नहीं खाया था…सुबह का नाश्ता भी अधुरा ही रख दिया था वो आदेश सुनने के बाद…अभी तक तो उस सदमे ने उलझाया हुआ था लेकिन अब पेट ने आवाज देनी शुरू कर दी थी…मैंने सीमा की तरफ देखा…..वो सामने आते जाते लोगों को देख रही थी…उसके चेहरे का भाव मुझे समझ नहीं आया…हाँ इतना समझ आ गया की वो रो नहीं रही थी….उसे दर्द और तकलीफ तो हो रही होगी ऐसी जिनगी देख के लेकिन उसने अपने चेहरे पैर कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया था….मैं सहम सा गया और उससे कह भी नहीं पाया की भूख लग रही है…..काफी देर बाद सीमा ने ही मुझसे पुचा….”आपको भूख लगी है? “……मैंने चौंक गया की इसे कैसे पता चला…..मैंने कहा हाँ…..उसने मुझे वहीँ बैठे रहने को कहा…..और खुद उठ के बस अड्डे के दूसरी तरफ चल दी…वहां एक लाइन से बहुत सारे होटल थे….मैंन देख रहा था की वो एक एक होटल में जाती और वहाँ कुछ पूछती और फिर दुसरे होटल में चली जाती….उस समय मुझे समझ नहीं आया की यह क्या कर रही है…लेकिन अब सोचता हूँ तो समझ आता है की वो खाने का दाम पूछ रही थी और कोई ऐसा होटल खोज रही थी जहाँ हमें कम से कम दाम में पेट भर खाना मिल जाये……..कुछ देर के बाद वो मुड़ी और उसने मुझे वहां आने का इशारा किया……हमने एक होटल में सादा खाना खाया…..और फिर अगला सवाल हमारे सामने आ खड़ा हुआ….रात भर हम सोयेंगे कहाँ……..
अपने गाँव में मैं खेती का सब काम करता था….मेरे पिताजी कभी कभी मुझे अपने तीसरा बैल भी कहते थे.और सच भी था..मैं बिना थके बिना रुके दिन दिन भर काम करता था…….उस काम के दौरान मैंने कभी यह नहीं सोचा की एक जिंदगी में कैसे कैसे फैसले हमें हर कदम पर करने पड़ते हैं….इसके पहले तो कभी सोने की कोई दिक्कत नहीं थी…..लेकिन आज इस अजनबी शहर में इस भीड़ के बीच हम अपने आप को बहुत अकेला पा रहे थे……मैंने देखा की अब सीमा की पत्थर चेहरे पर भी चिंता तैर रही थी…….
इन दिनों मेरा काम आसाम के एक कसबे में चल रहा था….मैंने वहां सड़क बनाने का ठेका लिया हुआ था….अपने शहर से इतनी दूर आ के काम करने के पीछे की कहानी आने वाले समय में आपके सामने आएगी..मेरी फैमिली वहीँ थी..हमारे शहर में ही..यहाँ अपनी साईट पर मैं अपनी टीम के साथ था..मैं सीमा और अपनी दोनों बेटियों को अपने साथ साईट पर नहीं ले जाता था…वो दोनों अब स्कूल ख़त्म कर चुकी थी और उनका तो ग्रैजुएसन भी ख़त्म होने वाला था….उन्हें यहाँ इस तरह के पिछड़े कस्बों में ले के आने का कोई तुक नहीं था……मैं यहाँ अकेला ही रहता था….मुझे घर जाने का मौका साल में बस एक दो बार ही मिलता था और वो भी बस कुछ ही दिनों के लिए……आज का अपना काम ख़त्म करने के बाद मैं अपने होटल में वापस आ गया…..रात हो गयी थी…खाना खाने के बाद मैंने अपने घर फ़ोन किया…सीमा ने कॉल उठाया…
सीमा – खाना खाया आपने?
मैं – अरे पहले हेल्लो तो बोलो..
सीमा – हाँ हेल्लो. अब बताओ खाना खा लिया आपने?
मैं – हाँ खा लिया.
सीमा – वहां सब कैसा चल रहा है? काम टाइम से चल रहा है? तबियत कैसी है? खांसी की दिकत तो नहीं है न अब?
मैं – सीमा तुम कब तक मुझे बच्चा समझोगी..मैं ठीक हूँ और यहाँ सब ठीक है…
सीमा – क्या करूँ मैं? आपने सब कुछ सीख लिया इतने बड़े आदमी बन गए लेकिन अपने बारे में जरा सा भी ख्याल नहीं रखते हो.
मैं – यहाँ सब ठीक है. तुम परेशां न हुआ करो….वहां सब कैसा है? बच्चे कैसे हैं?
सीमा – यहाँ भी सब ठीक है…..कल दोनों का पेपर् है न…दोनों अपने अपने कमरे में हैं..पढ़ रहे हैं….बात करनी है?
मैं – नहीं. पढने दो उन्हें…..कल सुबह जब वो पेपर देने जाये तो एक बार मेरी बात करवा देना…..
सीमा – हाँ मैं करवा दूँगी…सुनो अब ज्यादा बात नहीं करुँगी…जाती हूँ उन लोगों के लिए चाय बना दूं…
मैं – हाँ ठीक है…..अच्चा सुनो………..
सीमा – हाँ बोलो……
मैं -..कुछ नहीं…बस वही…………………………
सीमा – आज भी????
मैं – हाँ. प्लीस……बस थोड़ी देर.
सीमा – दो तीन दिन पहले ही तो की थी न…
मैं – हाँ….लेकिन उस बार तो फ़ोन बार बार कट रहा था न….तो मजा नहीं आया था…
सीमा – आपको मजा आये या न आये बिल तो आ जाता है न…
मैं – हाँ वो तो आता ही है….कहो तो नहीं करता हूँ…
सीमा – देखिये हमें यह ध्यान रखना है की हमें उन लोगों की लत न लगे…उन्हें तो हमारी लत लगेगी ही…हमारे बिना उनका काम नहीं चलेगा…लेकिन ऐसा हमारे साथ नहीं होना चाहिए….मैं बस इतना कह रही हूँ की वो हमारे नीचे हैं..और हमारे नीचे ही रहने चाहिए…हमें कभी भी उन्हें अपने उपर नहीं आने देना है…
मैं – हाँ..मैं समझता हूँ…..आज भी सिर्फ एक बार ही करूँगा…और मैं भी थोडा अपने पर कंट्रोल करूँगा अब….मुझे भी लग रहा है की इधेर एक दो महीने से मैं कुछ ज्यादा ही भूखा रहने लगा हूँ इस चीज के लिए…
सीमा – मैं आपको दोष नहीं देती…भगवन करे आपकी भूख कभी कम न हो….अभी आपकी भूख शांत होने के दिन नहीं आये…..अभी तो आपको खाना है और खेलना है….बहुत खेलना है और बहुतों के साथ खेलना है….वो तो कल बच्चियों का पेपर है वरना एक बार तो आज मैं भी खेलती आपके साथ……….पर कोई बात नहीं……किस्से बात करोगे?
मैं – सोच रहा था आज मीनू से बात कर लेता..बहुत दिन हो गए उसकी ली नहीं है….
सीमा – हाँ ठीक है….लेकिन सिर्फ एक बार..
मैं – हाँ पक्का. सिर्फ एक बार.
सीमा – ठीक है…आज तो मैं भी बिज़ी हूँ…फुर्सत में खबर लेती हूँ की आजकल यह बार बार आप कर क्या रहे हैं…
मैं – नहीं बस आज ही..उसके बाद अगले हफ्ते तक कुछ नहीं…पक्का..
सीमा – मुझे कोई दिक्कत नहीं…मैं मना नहीं कर रही..मैं तो ऐसे ही आपकी टांग खीच रही थी…..अच्चा जब हो जाये तो मुझे मेसेज कर के बता देना..मैं हिसाब में लिख लूंगी…….
मैं – हां ठीक है….
सीमा – बाय.
पिछले कुछ सालों से मैं काम के लिए हमेशा बाहर रहता था और साल में एक दो बार ही घर जाता था….शरीर की अपनी एक अलग सोच होती है….आपका दिमाग कुछ भी सोच ले लेकिन वो तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक आपका शरीर भी उस बात के लिए राजी न हो जाये….मैं आज मेराथन दौड़ने की सोच तो लूं लेकिन अगर मेरा शरीर साथ न दे तो मेरा दिमाग अकेले कुछ नहीं कर सकता…..अभी मेरी उम्र इतनी ज्यादा भी नहीं हुई थी की मेरे शरीर की जरूरतें ख़त्म हो जाएँ या कम हो जाए……..इतने लम्बे लम्बे समय के लिए अपने घर और पत्नी से दूर रहने के कारन मुझे कुछ न कुछ तो दूसरा तरीका खोजना ही था…सो मैंने खोज लिया था….और सीमा को न सिर्फ इसका पता था बल्कि वो ही इस पुरे लेन देन का हिसाब भी रखती थी……यह भी धीरे धीरे बात आपके सामने साफ़ होगी की यह सब तरीके क्या और कैसे बने…….
सीमा से फ़ोन पैर बात करने के बाद मैंने एक बार बाथरूम गया….फिर लौट के आया…अपने रूम की लाइट बंद की….अपना लैपटॉप चालू किया और उसमे एक फोल्डर खोला जिसका नाम था मीनू…..इसमें एक लडकी की नंगी पिक्स थीं….हर तरह से हर एंगल से…एकदम नंगी तस्वीरें…और कुछ तस्वीरें उन पोजेज में थी जैसा मैं खीचने को कहा था….मैंने अपने कपडे उतार लिए थे…वेसलीन अपने पास रख ली और धीरे धीरे अपने लंड पर वसलीन की मालिश शुरू कर दी थी…दुसरे हाथ से मैंने अपना फ़ोन उठाया और कांटेक्ट में जा के मीनू का नाम खोजा और उसे काल किया………मीनू मेरी साली थी…..सीमा की छोटी बहन….
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