कॉलेज की हंसमुख और सुन्दर सहपाठिनी संग प्रेम प्रसंग
कॉलेज की हंसमुख और सुन्दर सहपाठिनी मित्र के साथ उसके गृहनगर सूरत में प्रेम लीला, काम लीला रति क्रिया… इसमें प्यार है, ममत्व है, रोमांस है, वासना है… पढ़ कर मजा लीजिए।
आप सभी पाठकों ने मेरी कहानी को भी सराहा, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
मैं आपको स्पष्ट कर देना चाहता हूँ किसी भी लड़की को मैंने एक दिन में सम्भोग के लिए नहीं मनाया। उसके पीछे निरंतर प्रयास थे जैसे फ़ोन लगाना, मिलना, बातचीत, सेक्स चैटिंग आदि आदि। पाठको को अपने अभद्र शब्द या टिप्पणी प्रेषित करने के पहले अपने विवेक से काम लेना चाहिए।
बहरहाल, यह कहानी मेरे इंजीनियरिंग महाविद्यालय की सहपाठिनी सिद्धि के साथ दोस्ती की है। सिंद्धि सूरत के पास नवसारी में रहने वाले सम्पन्न परिवार की गुजराती लड़की थी, वह दिखने में सुन्दर, गोरी थी, बहुत ही हसमुख, जिंदादिल लड़की थी।
कक्षा में हमारी बातचीत पहले सेमेस्टर से थी, हम अच्छे दोस्त बन गए थे, वह सभी विषयों (सेक्स भी) पर मुझसे बात करती। महाविद्यालय में उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, हम एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे, पर प्यार जैसा कुछ ना था।
बात रक्षा बंधन के समय की है, बी.इ. का पांचवा सेमेस्टर था, पड़ोस में पहचान के एक भैया को सूरत में नौकरी मिली थी, उनको कुछ सामान ले कर वहाँ जाना था, साथ में उन्होंने मुझे उसी हफ्ते शनिवार को चलने को कहा।
हम ट्रेन से रविवार सुबह सूरत पहुंचे, स्टेशन से ‘पार्ले पॉइंट’ के पास ऑफिस फ्लैट गए, वहाँ पर सब कुछ जमाने के बाद मैंने सिद्धि को फ़ोन लगाया।
वो अचंभित थी कि मैं सूरत में था। हालचाल जानने के बाद मैंने उसको मिलने के लिए सूरत आने को कहा। उसने बताया कि अगले दिन सोमवार को 10-11 के बीच वो स्टेशन पहुंचेगी।
मैंने भैया को सिद्धि के आने का बता दिया था। उनको कोई परेशानी नहीं थी, वैसे भी फ्लैट वो शाम के 6 बजे के बाद ही आने वाले थे।
सोमवार को भैया के ऑफिस निकलने के बाद मैं ऑटो पकड़ स्टेशन आ गया।
दस बजे थे, सिद्धि के आने में बीस मिनट थे, तब तक मैं पैदल ही सूरत स्टेशन के आस पास चक्कर लगाने लगा।
ट्रेन आते ही उसने मुझे फ़ोन किया, हम औपचारिक तरीके से ही मिले, हाथ मिलाते हुए मैंने कहा- माफ़ करना, तुम्हें तकलीफ दी यहाँ बुलाने की।
उसने जवाब दिया- तुमने अचंभित कर दिया यहाँ आकर… और माफ़ी क्यों? मैं तुम्हारे उधर आऊँ, तो क्या मेहमान नवाजी नहीं करोगे?
मैंने कहा- बिल्कुल करूँगा, फ़िलहाल, फ्लैट या कहीं घूमने जाने से पहले, चलो कुछ खाया जाये, नाश्ता नहीं किया।
सिद्धि ने पूछा- कहाँ ले जाओगे?
मैंने जवाब दिया- यहाँ का कुछ नहीं जनता, बस फ्लैट के पास एक रेस्टोरेंट देखा है।
ऑटो कर हम वापस पार्ले पॉइंट आ गए, वहाँ कॉफ़ी कल्चर रेस्टोरेंट में कुछ खाने और कॉफ़ी का आर्डर देने के बाद मैंने सिद्धि से कहा- मुझे सूरत घूमने का कुछ खास मन नहीं है, मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया ताकि तुम्हारे साथ कुछ समय बिता सकूँ।
सिद्धि ने पूछा- क्यों भई, क्या इरादा है? और कैसे समय बिताना चाहते हो?
हमारी नज़रें मिली, और वो मुस्कुराने लगी।
मैंने आँख मारते हुए कहा- बस तुम्हारे होठों की लाली चुरानी है।
सिद्धि शरमा गई और बोली- व्हाट अ पी. जे. !
हम वहाँ से निकल कर फ्लैट की ओर बढ़े, मैंने सिद्धि का हाथ पकड़ लिया चलते समय। मेरी तरफ और सटते हुए उसने कहा- क्या बात है कुछ रोमांटिक सा हो रहा है तू?
मैंने कुछ नहीं कहा, थोड़ी देर में हम फ्लैट पहुँच गए।
‘कल ही राशन भरा है, दिन में कुछ खाने का मन करे तो बना लेना!’ मैंने कहा।
सिद्धि ने कहा- अभी कुछ नहीं!
और फ्लैट में इधर उधर देखने लगी- बाथरूम?
मैंने कहा- उधर बैडरूम वाला, हॉल वाले का नल ठीक नहीं है।
यह कहते हुए मैं बिस्तर पर लेट गया।
फ्रेश होने क बाद वो भी बिस्तर पर मेरे सामने आकर बैठ गई, बोली- नागपुर में तुझे कभी मेरे होठों की लाली नहीं दिखाई दी?
मैंने कहा- पूरी की पूरी सिद्धि पर ध्यान था, पर मेहमाननवाजी सूरत में ही देखनी थी शायद!
मैंने सोचा कि यही समय है अब सिद्धि के साथ अंतरंग सम्बन्ध बनाने का।
मौसम उमस भरा था, मैं उठा और ए सी चालू करके उसके बाजू में बैठ गया और मैंने उसका हाथ पकड़ के अपनी ओर खींचा।
वो मुझसे अलग होने के लिए छटपटाने लगी।
मैंने सिद्धि को अपनी बाहों में कस्ते हुए उसके होठों को चूमा।
शुरू में थोड़ा झूठा ना नुकुर के बाद सिद्धि भी साथ देने लगी, मेरे ऊपर के होंठ को चूसने लगी। हम एक दूसरे की बाहों में थे।
मैं भी उसके होठों को चूस और चूम रहा था, प्यारे से गोरे-गोरे चेहरे पर खूबसूरत गुलाबी होंठ कहर ढा रहे थे।
सिद्धि को बिस्तर पर लेटा कर उसकी बगल में मैं भी लेट गया। फिर हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूमने लगे, मैं उसकी पीठ और चूतड़ों के उभारों को सहला रहा था।
सिद्धि जोर जोर से सांस लेने लगी, मेरे पीठ को हाथों से सहलाने लगी।
मैंने अब उसके माथे को चूमा, उसकी आँखें, फिर गाल को!
अब मैंने उसके एक कान पर हल्के से चूमा, उसके कर्णपाली को चूसना और जीभ से चाटना शुरु किया।
सिद्धि ने आँखें बंद कर ली और मदहोश हो गई, वो मेरी हर गतिविधि का आनन्द उठा रही थी।
फिर मैंने दूसरे कान और कर्णपाली को भी चूमा और चूसा। अब मैं उसके गर्दन से कंधे तक चूमने लगा, हल्के हाथ से सहलाने लगा। वो धीरे धीरे उत्तेजित होने लगी थी।
सिद्धि कभी मुझे देखती, कभी आँखें बंद कर लेती।
मैंने उसके कमीज के ऊपर से ही बड़े बड़े मम्मों को पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने, मसलने लगा।
सिद्धि बहुत उत्तेजित हो उठी थी, वो उठी और मेरे टी शर्ट निकालने लगी।
मैंने कहा- तुम अपनी सलवार कमीज निकालो टाइट फिट है, मुझसे कही फट न जाये!
और फिर हम दोनों पूरी तरह से नग्न थे।
सिद्धि बला की खूबसूरत थी, आम गुजराती जैसे मोटी नहीं थी परन्तु गदराया और सुडौल (कर्वी) बदन था उसका!
शर्म के कारण सिद्धि उलटी लेट गई।
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मैंने उसकी पीठ को चूमा, हल्के हाथ से उसकी पीठ कमर को सहलाने लगा। मैं अपनी जीभ से पीठ और कमर को चाटते हुए उसके खूबसूरत सुडौल कमर के निचले हिस्से की तरफ बढ़ा।
जैसे ही मैं उसके नितम्ब पर हथेली रखी, उसने अपने कूल्हों को कस लिया।मैंने कहा- ढीले ही रहने दो इन्हें।
और मैंने उसके कूल्हों पर काट लिया।
सिद्धि सिसकारियाँ भरने लगी ‘आअह्ह आ ह्ह्ह्ह…’
मैंने उसकी गांड की दरार को चूमा, सिद्धि तुरंत पलट गई, उसकी आँखों में चमक थी, मादकता थी।
उसने अपने हाथों से मम्मों को ढका हुआ था।
मैं उसकी कमर और पेट पर हल्के हाथों से सहलाने लगा, नाभि के पास जीभ से चाटने लगा।
सिद्धि मेरे बालों पर हाथ फेरने लगी, सिर को सहलाने लगी, कमर के साइड पर काट कर मैंने ‘लव बाईट’ दिया, वो चिल्लाई ‘आ आ आईई ई…’
अब मेरा चेहरा उसके जांघों के बीच था एकदम चूत के सामने, मैं बेतहाशा चूत को चूमने चाटने लगा, उसकी चूत बहुत ही गीली और गर्म थी।
मैंने उसके चूत के दाने को चूमा, सिद्धि बहुत उत्तेजित हो रही थी ‘आह आह्ह्ह आह्ह्ह… आ जाओ अब सहा नहीं जाता!’
फिर भी मैं उठा नहीं, चूत को जीभ से अंदर तक चाटने लगा। सिद्धि ने मेरे सिर के बाल जोर से पकड़ लिए, और अपनी कमर हिलाने लगी ‘आ आ… आह्ह्ह्ह् आह… अहह…’ वो झड़ गई।
मैंने जीभ से पूरी चूत को अच्छे से चाटा और चूमा, फिर मैं चूमते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा, मम्मो को मुंह में लेकर चूसने लगा। मेरा लंड भी मचल रहा था चूत घर्षण के लिए एकदम तैयार… लंड का सुपारा चूत को छू रहा था।
सिद्धि बहुत उत्तेजित और विचलित हो उठी थी, मुझ पर चिल्ला उठी ‘तू अब क्या अगले साल डालेगा?’
मैंने लंड धीरे धीरे अंदर डालना शुरु किया, मैंने कहा- सिद्धि, तेरी चूत मस्त गीली और तंग है। लंड चूत का एक एक सेंटीमीटर महसूस कर रहा है।
मेरा लंड पूरा चूत में समां गया।
अब मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए, वो मादक आवाजें निकलने लगी ‘उउइई.. आआआहह.. आआह्ह्ह..’
मैं उसे धीरे धीरे चोदने लगा, उसे चूमने लगा, होठों को चूसने लगा।
वो मजे से कराहने लगी ‘उउउईए.. ह्ह्ह्ह्म्म्म्म आआह्ह्ह!’
वो मेरे कमर पर हाथ रख कर चुदाई के मज़े लेने लगी।
मैं अब थोड़ा जोर से धक्के लगाने लगा था, सिद्धि अपनी कमर तेजी से गोल गोल हिलाने लगी, वो जोर से चिल्लाई ‘ओह्ह गॉडड डडडड, लव यू सो मच…’
वो झड़ चुकी थी।
मैंने जोर जोर से धक्के लगा के चुदाई करना शुरू कर दिया।
सिद्धि मदमस्त होकर हर धक्के को महसूस करते हुए भरपूर आनन्द ले रही थी, हम दोनों एक दूसरे से चिपक गए, हवा के लिए भी जगह न थी। उसकी पकड़ मेरे पीठ पर मजबूत थी।
मैं सिद्धि को बेतहाशा चूमने लगा, मैं अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ाने लगा।
ए सी की ठंडी हवा भी हमारे बदन की गर्मी को कम नहीं कर पा रही थी।
मैंने कहा- मैं झड़ने वाला हूँ सिद्धि, अब नहीं रुक पाऊँगा।
हम दोनों सम्भोग के चरम सीमा पर थे, मेरे अंदर का वीर्य ज्वालामुखी से लावा की तरह बाहर आने को बेताब हो रहा था।
उसने कहा- मेरा भी यही हाल है, ओह्ह गॉडडड, अआह्ह्ह अआह्ह्ह अह्ह्ह्ह!
मैंने लण्ड निकाल लिया और मुठ मरते हुए सारा पानी सिद्धि के पेट पर गिरा दिया। पूरा पानी निकलने पश्चात मैं उसके बगल में लेट गया।
हम दोनों की साँसें और दिल की धड़कन बहुत तेज़ चल रही थी।
सिद्धि ने अपने पैंटी से पूरा वीर्य साफ किया और मेरे पास आकर मुझे चूम लिया।
थोड़ी देर हम यूँ ही एक दूसरे की नंगी बाँहों में पड़े रहे।
उस दिन हमने दो बार और चुदाई की।
शाम को उसको स्टेशन छोड़ अगले दिन मैंने भी नागपुर के लिए ट्रेन पकड़ ली।
कॉलेज में हम सामान्य दोस्तों की तरह ही रहे पर जब इच्छा होती तब अंतरंग हो जाते थे, बाकी तीन सेमेस्टर में न जाने कितने बार हमने सेक्स किया।
दोस्तो, आपके ईमेल का इन्तजार है।
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