हवस का पुजारी प्रेम के अंकुर
मेरा नाम आर्यन है, अन्तर्वासना साईट का मैं पुराना पाठक रहा हूँ। यह मेरी पहली और अपनी कहानी है, आशा है आप सबको पसंद आयेगी।
आठ महीने पहले की बात है, मेरी दीदी की शादी थी। दोस्तो, सबसे पहले मैं बता दूँ कि मैं इससे पहले लव-सव में यकीन नहीं करता था, मुझे यह सब हवस की भूख और नाटक ज्यादा लगता था।
पर मेरी दीदी के शादी के बाद से मेरे विचार और सोच बहुत बदल गए इसलिए भी शायद मुझे शादी के पल बहुत यादगार लगे।
मैं अपनी कहानी पर आता हूँ।
शादी में मेरी मुलाकात एक सुन्दर, खूबसूरत, हसीन और प्यारी लड़की से हुई। मैंने अपने दोस्तों को इस लड़की का पता लगाने को कहा, पता चला कि उसका नाम है नीति प्रिया है और वो लड़के वालों की तरफ से है और जीजाजी की बहन लगती है।
पहली नजर में ही मैं दीवाना हो गया उसकी अदाओं का, उसकी खूबसूरती का, उसकी मुस्कान का।
मैं पूरी तरह पागल हो गया था, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
मैंने दोस्तों को यह बात बताई और वो मेरी सेटिंग करवाने में जुट गए।
मेरे दिमाग में सिर्फ हवस की भूख थी, किसी भी हाल में उस लड़की को भोगना चाहता था, मैं उसे पटाने की तरकीब भिड़ाने लगा।
थैंक्स टू माय फ्रेंड्स… जिनकी वजह से मेरी दोस्ती उस लड़की से हो गई।
शादी के हरेक पल में मैं, मेरे दोस्त और वो साथ थे। हमने शादी में खूब हुड़दंग और मस्ती की। ये पल अब तक के सबसे रोमांचक और यादगार पल थे।
दोस्ती बढ़ी, जान पहचान हुई और मालूम पड़ा कि वो भी मेरे शहर यानि जमशेदपुर में ही रहती है और जीजाजी के सम्बन्धी हैं।
फ़ोन नंबर्स का आदान प्रदान हुआ और इस तरह मेरी प्रेम कहानी का शुभारम्भ हुआ।
हम उत्सवों, पार्टी, पर्व-त्योहार में मिलने लगे। मैंने उसे एक दिन न्यू ईयर DJ पार्टी में भी बुलाया और हमने खूब मस्ती की और साथ में डांस भी किया।
पर इसके बावजूद मेरा उससे रिश्ता बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड का नहीं था सिर्फ जस्ट फ्रेंड का था। मैंने कभी अश्लील हरकत नहीं की और ना ही उसने कोई इशारा किया। मैं भी थोड़ा शर्मीला था इस वजह मैं भी आगे नहीं बढ़ पाया पर मेरे अन्दर एक भूखा शेर था जिसे एक मौके की तलाश थी।
हमारे पास एक दूसरे का फ़ोन नंबर्स थे पर हमने कभी देर रात चैटिंग नहीं की ना ही देर तक फ़ोन पर चिपके रहे, क्यूंकि हमारे बीच कभी प्यार की बातें हुई ही नहीं।
मैं भी प्रेम का इज़हार न कर पाया ना ही वो, पर आग दोनों तरफ सुलगी थी। यह बात मुझे तब पता चली जब एक दिन उसने मुझे कॉल किया और बोली कि उसके मम्मी पापा एक दिन के लिए घर से बाहर रहेंगे।
उसकी बातों से साफ़ झलका कि वो मेरा साथ चाहती थी।
मैं कोई बहाना बना के घर से निकला और सीधा उसके घर पहुँच गया। वो घर पर अकेली थी क्योंकि उसका भाई हॉस्टल में रहता था। हमने साथ में मूवी देखी, वीडियो गेम खेला और खाना बनाया।
मैंने उससे पूछा- तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?
उसने हाँ कहा पर मैंने उसकी नज़रों से उसका झूठ पकड़ लिया और वो मान गई कि वो सिंगल है।
मैंने उस दिन कह ही दिया कि मुझे तुम्हारा साथ बहुत पसंद है और उसने भी हाँ में हाँ मिलाई।
फिर कुछ देर तक हम दोनों शांत बैठे रहे और टीवी देखने लगे। मैंने जान-बूझकर ऐसी मूवी चलाई जिसमें गर्म और अतरंग सीन थे। ऐसे सीन पर उसका रिएक्शन थोड़ा अलग था, वो उस समय नजरें फेर लेती थी।
मैंने उससे कहा- पसंद नहीं है तो बंद कर लेता हूँ।
उसने कहा- नहीं कोई बात नहीं है।
मैंने सोचा अब और इंतजार नहीं करना है, यही मौका है शुरू हो जाओ। मैं उससे चिपक कर बैठ गया और थोड़ा गर्म-गर्म बातें करने लगा।
मैंने उससे कहा- मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ।
और उसकी सर हिलाने की देर थी, मैं भूखे शेर की तरह झपट पड़ा और चेहरे, गले पे चुम्बनों की बरसात करने लगा।
तभी मेरे मन में बिजली कौंधी कि जल्दी क्या है पूरी रात मेरी है।
मैंने उसे गौर किया कि वो तनिक असहज महसूस कर रही थी।
मैंने उससे कारण पूछा तो उसने झिझकते हुए बताया कि ये उसका पहली बार सेक्स है।
मैंने स्थिति को भांप लिया और कहा- रिलैक्स डार्लिंग! चलो इसे एक गेम की तरह खेलते हैं। एंड्राइड पे ऐसे अनेक गेम हैं जिसे फोरप्ले के वक़्त खेला जा सकता है।
पहला टास्क मेरे लिये था जिसमें मुझे पार्टनर को फ़िल्मी अंदाज में प्रोपोज करना था।
मैंने बड़ी रोमांटिक तरीके से उसे निभाया, अब बारी उसकी थी, उसे माथे पे किस करने का टास्क मिला, उसने बिना किसी परेशानी के बड़े प्यार से मेरे माथे पे लम्बा किस किया।
अब बारी मेरी थी और मेरा टास्क था आंख, चिन और कान चूमना।
मैंने उसके कानों को रगड़ा, चूमा फिर चिन पर, मैंने महसूस किया कि वो गर्म हो रही थी।
मैंने सोचा कि आग को इसी तरह भड़कने दूँ और हौले-हौले से उसकी हिरनी की सी आँखों पर किस किया।
अबकी बारी उसकी थी और उसे मेरी आँखों में पांच मिनट तक देखना था। हमने एक दूसरे की आँखों में झाँका, सपने बनने लगे, और ना जाने क्यों हमारे होंठ पास आते गए।
मैंने चुप्पी तोड़ी और कहा- पहले गेम पूरा करते हैं।
अगला टास्क मेरा था जो कि पार्टनर को होंठों पर किस करना था। गेम में किस करने का तरीका भी दिया गया था, मैंने निर्देशों को पढ़ा और अपने होंठ उसकी ओर बढ़ाये।
मैंने पहले होंठों पे हल्का स्पर्श किया, वो कम्फ़र्टेबल दिखी फिर मैंने उसके निचले होंठ को चूमा और जम के चूसा, फिर ऊपरी होंठ को धीमे से अपने होठों से दबाया और चूसने लगा।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं एकदम प्रो की तरह उसे किस कर रहा था।
उसने भी कहा कि तुम तो फिल्म की तरह किस करते हो।
मैंने फ्रेंच किस करने की हिम्मत नहीं की क्यूंकि इससे बात बिगड़ सकती थी।
मैंने गेम बंद कर दी और माथे से आलिंगन करते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगा।
पता नहीं क्यूँ गेम ने मेरे आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया और मैं प्रो की तरह फोरप्ले में लग गया।
मैंने उसके कपड़े उतारे सिर्फ ब्रा और पेंटी छोड़ दी, उसने भी मुझे पूरा नंगा कर दिया। मैंने उसे सोफे से नीचे उतारा और बेड पर लिटा दिया।
मैं उसके मम्मों को हलके हाथों से सहलाने और मसलने लगा। वो उस पल को भरपूर एन्जॉय कर रही थी और सिसकारियाँ भर रही थी। मैं उसके निप्पल को ब्रा के ऊपर से ही चूसने लगा फिर ब्रा हट मदमस्त होकर चूसने लगा।
मैं आगे बढ़ा और पेट, नितम्बों को चूमने लगा साथ ही साथ पेंटी के ऊपर से हाथ फेरने लगा।
उस स्पर्श का करंट ऐसा था कि मानो मेरे उँगलियों में कोई जादू हो, जिसके प्रभाव से वो नागिन जैसे डोल रही हो।
मैंने पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पे किस किया, झटका बड़ा था।
मेरे होंठों पर भी करंट का अहसास हुआ, मैंने पेंटी उतारी और नीचे पैरों से ऊपर बढ़ने लगा, किस करते करते उसके तलवे और अंगूठों को चूमने लगा।
जैसे जैसे मैं ऊपर बढ़ रहा था झटके तेज़ होते जा रहे थे।
उसकी चूत में से पानी रिसना शुरू हो गया था, मैंने जांघों को सहलाया और किस करने लगा।
दोस्तो, मैं आप सबको बता दूँ कि फोरप्ले सेक्स का सबसे अहम स्टेप होता है। बिना फोरप्ले के आगे बढ़ना बेकार है क्यूंकि इससे सम्पूर्ण आनन्द की प्राप्ति नहीं होती। फोरप्ले में जितना वक़्त देंगे उतना अच्छा है। मैंने फोरप्ले जारी रखी।
मैंने चूत के ऊपर एक दाना (जो की क्लिओट्रिस कहलाता है) को जीभ से छेड़ने लगा। अब तक करंट 440V तक पहुँच चुका था। उसकी चूत का गंध थोड़ा अजीब था पर पता नहीं क्यूँ मुझे अच्छा लग रहा था।
उसकी कुंवारी चूत एकदम फूल जैसे थी, मानो दो पंखुड़ियाँ चूत को ढकी हुई हो। मैंने अपने अँगुलियों को उसके रिसते द्रव से तर किया और उसकी चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
कुंवारी झिल्ली होने की वजह से अंगुली सिर्फ आधा ही जा पा रहा था। जैसे ही अंगुली का स्पर्श झिल्ली से होता था, उसकी हल्की चीख निकल जाती थी।
मैं सोच में पड़ गया कि आगे कैसे बढ़ूँ। मुझे उसके दर्द के प्रभाव को कम करना था।
मैंने उसे होंठो पे चुम्बन करके उसका ध्यान बाँटा और जोर जोर से मम्मे दबाने लगा। दूसरी अंगुली तेज़ी से चूत पर अन्दर-बाहर करने लगा।
दर्द बंटने की वजह से उसे चूत पर ज्यादा दर्द नहीं हुआ और झिल्ली इतनी फट चुकी थी कि लंड अपना काम कर सकता था।
मैंने उससे कहा कि मज़ा अगर बहुत हो गया तो मेरी तरफ भी ध्यान दो।
वो इशारा समझ गई और मुझे नीचे लेटने को कहा और और खुद ऊपर आ गई।
अब मज़ा लेने की बारी मेरी थी।
उसने मुझे होंठों पे किस किया और मेरे जीभ को चूसने लगी। चूमते-चूमते वो नीचे आई मेरे छाती पर हाथ फेरने लगी और मेरे मर्दाना निप्पल को चूसने, काटने लगी।
मुझे यकीन नहीं हुआ कि वो भी बिल्कुल दक्ष खिलाड़ी की तरह कर रही थी। वह लगभग बीस मिनट तक लंड से खेलती रही, जब तक कि मैं झड़ नहीं गया।
मैं चिल्लाया- अरे पगली क्या कर रही हो, आगे का काम कैसे होगा।
उसने बड़े प्यार से जवाब दिया- क्या तुम ही कामसूत्र का ज्ञान रखते हो, मैं नहीं रख सकती? एक बार झड़ने के बाद तुम ज्यादा देर तक पारी खेल सकोगे, समझे बुद्धु।
वह फिर लंड से खेलती रही और शेर दोबारा जाग उठा, तिगुने स्टैमिना के साथ। हम दोनों फोरप्ले का मज़ा ले चुके थे अब आर और पार की जंग बाकी थी।
मैंने उसे टेबल पर उठाया और उसकी टांगों को अपने कंधों पर रखा और लंड महाराज को कुंवारी चूत का दर्शन करवाए।
लंड महाराज भी जवाब में पूरा का पूरा तन गया और काठ का लकड़ी बन गया, अब वो बिल खोदने के लिए तैयार था।
मैंने लंड के मुंह को चूत पर रखा और धीरे-धीरे आगे पीछे सरकाने लगा लग। वो अब सहम गई थी क्यूंकि उसकी झिल्ली फटने वाली थी।
मैंने उसे हिम्मत दिलाई कि देखो मेरे साथ तुम्हें थोड़ा भी दर्द महसूस नहीं होगा।
मैंने कह तो दिया पर मुझे साबित भी करना था। मैंने उसके चूतड़ और मम्मों पर चपत लगाई ताकि उसका चूत के दर्द पर से ध्यान बंटे।
मौका देख कर मैंने लंड जोर से आगे धकेल दिया, लंड महाराज चूत की झिल्ली को तोड़ता हुआ अन्दर दाखिल हुआ।
इसके साथ ही उसकी चूत से खून और आँख से आंसू निकल पड़े।
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मैंने तुरंत उसे गले से लगा लिया और धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा।
कुछ समय बाद चूत का दर्द छूमंतर और वो भी कमर हिला हिला कर मेरा साथ देने लगी।
पूरा कमरा कच्छ-खच की आवाज से गूंज उठा।
हमने अलग-अलग तरीके के सेक्स आसन प्रयोग किये। इतने में वो दो बार झड़ चुकी थी पर लंड महाराज तो अभी भी मूड में था और इसकी वजह भी वो ही थी।
अब हम चरम पर पहुँच चुके थे, दिल आनन्द की हिल्लोरे ले रहा था, मैंने कहा कि मैं झड़ने वाला हूँ कहाँ छोड़ूँ अपने लावे को?
उसने कहा- बाहर मत निकलना, मैं तुम्हारे लावे को अपने अन्दर महसूस करना चाहती हूँ।
झड़ने के बाद भी वो मेरे लंड से अलग नहीं हुई और मेरा लंड उसके अन्दर ही रहा और वो मेरे छाती पे सर रख कर सो गई।
सुबह उठ कर हमने साथ में स्नान किया और एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया।
इस घटना के बाद तो हमारी बॉन्डिंग और मज़बूत हो गई। अब बातें करने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं पड़ती थी, जरूरत पड़ती थी तो सिर्फ भावनावों की, इशारों की, ऐसा लगता था मानो अब हम दो जिस्म एक जान हों, अब लगता था कि मेरा जीवन सिर्फ उसके लिए है।
इसके बाद हमारे प्यार की सीमाएँ सरहदें लांघने लगी अर्थात प्यार के चर्चे माँ-बाप तक पहुंचने लगे। पर मेरे घरवालों ने कभी इसकी शिकायत नहीं की और ना ही नीति के घरवालों ने की।
हमने खुद से ही मिलना जुलना थोड़ा कम कर दिया। मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया और उसने मेडिकल कॉलेज में। बहुत दिनों तक हम एक दूसरे से दूर रहे। तन्हाई मन को कचोटती तो मैं उसके नाम का मुठ मार लेता था पर फिर भी हम ज्यादा बात नहीं करते थे इस आस में कि कभी हमारा मिलन होगा।
हमारा मिलन हुआ पर दुर्भाग्य से अस्पताल में, वो I.C.U वार्ड में थी और मैं वेटिंग रूम में, पता चला उसका कार दुर्घटना में ये हाल हुआ।
उसके चाचा और वो कलकत्ता से आ रहे थे, चाचाजी ने दुर्घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया। मुझे पांच मिनट के लिए प्रवेश मिला पर मैं उसके चेहरे पर आंसू के सिवाय कुछ नहीं देख पाया।
उसकी आँखें मुझसे कुछ कहना चाहती थी पर कम्बख्त दिल अनुवाद नहीं कर नहीं पाया।
मैंने अपना हाथ उसके हाथों में दिया पर उसके हाथ ने उसका साथ छोड़ दिया था और सिर्फ चार घंटे के बाद उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया।
मैं वहाँ से तुरंत बाहर आया और जितनी जोर से रो सकता था रोने लगा।
उस वक़्त मेरा हाल ऐसा था जैसे एक बच्चे के हाथों से उसका पसंदीदा खिलौना छीना जा रहा हो।
मैं भगवान को कोस रहा था कि मुझे क्यूँ अकेला छोड़ दिया गया।
खैर होनी को कौन टाल सकता है।
उसकी वजह से मेरे दिल में प्यार का बीज फूटा वरना इससे पहले तो मेरा दिल हवस का पुजारी था।
दोस्तो, अब पता चला कि प्यार सच में दुनिया में है और हवस उसका साथी है। प्यार और हवस एक साथ ही अच्छे लगते हैं।
हवस को कभी अकेला मत छोड़ना नहीं तो वो दैहिक शोषण जैसे अपराधों का कारण बनेगा। प्यार अकेला हो तो चलता है क्योंकि माँ, भाई-बहन और पिताजी के प्यार में हवस नहीं होता, सेक्स की भूख नहीं होती।
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