मेरी सुप्रिया डार्लिंग-3
सुप्रिया को लंड-चटोरी बनाया
लेखक : रोहित
अपनी कहानी के पिछले भागों ‘सुप्रिया डार्लिंग’ और ‘सुप्रिया का उद्घाटन’ में मैंने बताया कि मैंने सुप्रिया को कैसे पटा कर चोदा और अपने घर में किरायेदार बनाकर रख लिया ताकि नियमित रूप से उसकी जवानी का रस चूस सकूँ।
अब आगे-
अपनी चूत की सील मुझसे तुड़वाने के बाद सुप्रिया का मेरे प्रति लगाव बढ़ गया। अब हम दोनों रोज रात को चुदाई का मजा लेते थे। रात को वह मेरे पास आ जाती थी और हम उसी मुलायम बिस्तर पर जवानी के मजे लेते जो मैंने खास तौर पर उसे पेलने के लिए ही तैयार किया था। रात को चुदाई के बाद हम चिपक कर सोते और फिर भोर में नींद खुलने पर फिर मजा लेते।
हफ्ता भर बीत गया। इस बीच सुप्रिया को मेरे लौड़े का चस्का लग गया और वो मेरे लंड की दीवानी बन गई। अब तक मैं उसे अपना लंड चुसवा या चटवा नहीं पाया था। जब तक लड़की के तीनों छेदों का मजा न ले लूँ तब तक मुझे संतोष न होता है। सुप्रिया की गाण्ड मारना मेरा प्रमुख लक्ष्य था लेकिन उसके पहले उसका दूसरा छेद यानि मुँह में लण्ड देना था।
सुप्रिया मेरी नियमित चुदाई से मस्त थी और मुझे दिल से प्यार करने लगी। प्यार तो मुझे भी उससे होने लगा था लेकिन हमें पता था कि हमारा साथ स्थायी नहीं हो सकता लिहाजा जब तक हमारे पास समय था तब तक हम अपने यौन जीवन का भरपूर आनन्द लेना चाहते थे। मुझे लगता था कि मैं उससे सीधे अपना लंड चाटने या चूसने को कहूँगा तो वो मना कर देगी।
हालांकि कभी-कभी वो मजाक में मेरा लंड दाँत से काटने को कहती तो मैं यही कहता कि तू इसे काटेगी नहीं चाटेगी, तो वह हँस देती।
फिर मैं कहता कि काटने पर तो तेरा ही नुकसान होगा तो वो कहती कि क्यों नुकसान होगा? गुस्साया रहेगा तभी तो और तेज हमला करेगा।
धीरे-धीरे मैंने उसे चुदाई, लंड और चूत जैसे शब्द बुलवाना शुरु कर दिया। एक दिन रात को हम चुदाई के पहले फोरप्ले का मजा ले रहे थे। मैं उसके साथ लेटा हुआ अपने बाएँ हाथ पर उसका सिर रख कर उसकी दाई चूची अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और अपने दाहिने हाथ से उसकी रेशमी जाँघों को सहलाते हुए उसकी चूत छेड़ रहा था।
वह बुरी तरह गर्म हो गई थी।
फिर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उससे कुछ करने को कहा। वो उठ कर बैठ गई, मैंने उससे कहा- मेरे कपड़े उतारो।
उसने मेरे कपड़े उतारे। जब उसने मेरी ब्रीफ उतारी तो मेरा टनटनाया हुआ लंड उसके सामने था। मैंने कहा- जरा इसे प्यार कर दो। सुप्रिया ने मेरे लंड कर चार-पाँच चुम्बन जड़ दिये और मेरी तरफ देखने लगी।
फिर मैंने उससे कहा- जरा इसे अपने मुँह में लेकर चूस लो।
सुप्रिया इतनी गर्म थी कि उस वक्त कुछ भी करती।
उसने मेरा लंड तुरंत मुँह में लिया और चूसने लगी। मुझे जन्नत का आनन्द आ गया। थोड़ी देर में उसने मेरा लंड मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे फिर चूसने को कहा तो वो फिर चूसने लगी। मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था कि इतनी मस्त लौंडिया मेरा लंड चूस रही है।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड फिर मुँह से निकाल दिया तो मैंने उससे कहा- वाह मेरी जान ! तूने तो मेरा लंड चूस कर मुझे मस्त कर दिया।
फिर मैंने उसके होठ चूमते हुए कहा- अब कभी कुल्फी खाना तो समझना कि रोहित का लंड तुम्हारे मुँह में है।
वो कुछ नहीं बोली।
फिर मैंने दूने उत्साह से उसकी चुदाई की। अगले दिन फिर मैंने फिर उसे गर्म करने के बाद कुछ करने को कहा तो उसने मेरे होंठ, गाल, माथे और सीने पर चुम्बन लिया मेरी आँखों में देखने लगी।
मैंने उससे कहा- कुछ और करो मेरी जान !
उसने पूछा- रोहित, क्या करूँ?
मैंने कहा- लंड चाटो !
और सुप्रिया मेरा लंड चाटने लगी। मजा आ गया मुझे। बाद में मैंने उसे समझाया कि लंड को मुँह में लेने से हिचकिचाया मत करो। इसी से तो लड़कियों को मोक्ष मिलता है, यही लिंग है जिसकी तुम पूजा करती हो। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
इसके बाद मैंने सुप्रिया को बताया कि पहले लंड को हाथ में लेकर सहलाओ फिर उसे चूमो और अंत में उसे में लेकर चूसो या चाटो। आगे से सुप्रिया यही करने लगी। उसे भी लंड चूसने और चाटने में मजा आने लगा। अब अक्सर वो मेरा लंड निकाल कर चूसने लगती भले चुदाई हो या न हो।
आम तौर पर मैं सवेरे जब अपने काम पर निकलने को होता तो सुप्रिया आकर मेरे सामने अपने घुटने पर बैठकर मेरे पैंट से लंड निकाल कर मेरी आँखों में देखते हुए शानदार ब्लोजॉब देती। वह अब लण्ड-चट बन चुकी थी लेकिन मैंने उसे ‘लण्ड-चटोरी’ नाम दिया।
सुप्रिया के दो छेदों की मरम्मत करने के बाद अब मेरा अगला और सबसे प्रमुख लक्ष्य था उसकी गाण्ड मारना।
मैं जानता था कि यह भी मुश्किल नहीं होगा क्योंकि सुप्रिया मेरी किसी बात को मना नहीं करती थी। फिर भी किसी लौंडिया को गाण्ड मरवाने के लिए तैयार करने में मुश्किल तो आती ही है।
अब मैं पूरी तरह उसकी गाण्ड के पीछे पड़ गया और 26 जनवरी को उसकी गांड़ मारकर गणतंत्र दिवस मनाया।
ये कैसे हुआ? जानने के लिए मेरी अगली कहानी पढ़ें- ‘सुप्रिया का गणतंत्र’
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