पिछ्ली खिड़की में माइक्रोसॉफ़्ट
प्रेषिका : नीलिमा पाण्डेय
प्यारे मित्रो, बहुत हिम्मत जुटाने के बाद ही मैं आज मैं अपनी बात आपके सामने रखने जा रही हूँ। मैं गोरखपुर की रहने वाली नायाब हुस्न की मल्लिका तथा बी ए द्वितीय वर्ष मे अध्ययनरत हूँ।
मैं अपनी सच्ची कहानी शुरू करती हूँ आशा है कि आपको मेरी पहली कहानी पसन्द आयेगी।
सर्व प्रथम मेरे प्रेरणास्रोत गुरु जी को साष्टांग प्रणाम !
सोलहवां सावन आते-आते मैंने अपना कौमार्य खो दिया और सेक्स जीवन का आनन्द उठाना मेरे लिये जैसे रोज़ रोज़ की बात हो गई। मुझे अब बुर चुदवाने में बोरियत सी होने लगी। एक बार मैं अपने कम्प्यूटर में ब्ल्यू फ़िल्म देख रही थी। तभी मुझे एक गाण्ड मरवाने का दृश्य दिखाई दिया। यों तो ब्ल्यू फ़िल्म देख्नना मेरे लिये सामान्य बात थी लेकिन मुझे वो गाण्ड मरवाने का दृश्य जिसमे नायक नायिका की गाण्ड मारता है और नायिका अपने पिछ्ले दरवाजे से स्वर्ग का आनन्द लेती हुई प्रतीत होती है, पता नहीं क्यों बार-बार मुझे उत्तेजित एवं आकर्षित कर रहा था।
मैंने ब्ल्यू फ़िल्म वाली बात अपनी सहेली श्वेता को बताई तो उसने कहा- वाह नीलू रानी ! अब तुम्हें भी अपनी पिछ्ली खिडकी में ऐन्ट्री चाहिये?
मैंने कहा- मैं कुछ समझी नहीं?
श्वेता ने कहा- अब तुम्हें अपनी कुंवारी गाण्ड का उदघाटन करवा ही लेना चाहिये।
मैंने कहा- देख श्वेता ! अगर बात सिर्फ़ गाण्ड मरवाने की रही होती तो मैं पहले ही मरवा लेती ! मगर अब तुझसे क्या छिपाना ! मैं अधिक मसालेदार खाना खाती हूँ इसलिये मुझे बवासीर (पाइल्स) की बीमारी हो गई है।
मेरी बात सुन कर श्वेता ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी और कहने लगी- तुम न ! एक नम्बर की बेवकूफ़ हो ! अगर तुम पहले ही गाण्ड मरवा लेती तो शायद तुम्हें यह बीमारी नहीं होती !
मैं हतप्रभ सी उसे देखे जा रही थी।
उसने आगे जोड़ा- देख नीलू, गाण्ड मराने से कई फ़ायदे हैं : कब्ज नहीं होता, बवासीर नहीं होता, पेट भी साफ़ रहता है, और जो मज़ा मिलता है सो अलग !
“तुझे क्या लगता है? ये बिमारियाँ किसी बाबा के योग या नुस्खे से सही हो जाएँगी? अरे पगली ! सेक्स भी एक प्रकार का योग ही है ! तुझे पता है कि सेक्स एक प्रकार का व्यायाम भी है जिससे लगभग पाँच मील चलने के बराबर कैलोरी जलती हैं।” उसने आगे जोड़ा।
पता नहीं क्यों श्वेता की बातें मेरे मन में घर कर गई और मैंने अपनी गाण्ड मराने का फ़ैसला कर लिया। पर मेरे सामने एक दुविधा थी : लण्ड किसका लूँ – अन्चल का, राजू का, सचिन का, कमल का, बन्टी का या वीरू का…?
असल में मेरे सभी बुरचोदों का लण्ड इतना विविधता भरा था कि मैं एक दम से भ्रमित सी हो गई। किसी की लम्बाई मुझे अच्छी लगती तो किसी की मोटाई।
अन्त में मैंने सबसे मराने का फ़ैसला किया लेकिन अलग अलग दिन !
क्योंकि मैं सम्पूर्ण आनन्द लेना चाहती थी।
सबसे पहले मैंने कमल को चुना क्योंकि वह माइक्रोसोफ़्ट लण्ड का मालिक है।
दरअसल मैं उसे माइक्रोसोफ़्ट कह कर चिढ़ाती हूँ क्योंकि उसका लण्ड माइक्रो(छोटा)+सोफ़्ट(नरम) है और मैं अपनी बीमार गाण्ड को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती थी।
कमल मेरा पुराना साथी स्कूल के दिनों से ही था और वो मुझे मन ही मन चाहता था। यह बात मुझे बाद में पता चली थी।
मैंने मौका देखकर उसे अपने घर बुलाया और उसे अपनी गाण्ड मारने का न्योता दिया।
सबसे पहले मैंने अपने दोनों के कपड़े उतारे और फिर अपनी गाण्ड और उसके लण्ड पर वैसलीन लगाई।
उसका साढ़े पाँच इन्च का लेकिन तीन इन्च की मोटाई वाला लण्ड आज कमाल का लग रहा था।
कमल ने पहले मुझे गर्म करने के लिए मेरी 32″ की चूचियों को 15 मिनट तक चूसा, फिर पीछे से मेरी कमर को पकड़ कर मेरी गाण्ड की दरार में अपना लण्ड एक झटके में लगभग दो इन्च तक घुसेड़ दिया।
मेरी तो चीख ही निकल गई।
कमल ने मुझे शान्त रहने को कहा और यह भी कहा कि अपनी गाण्ड में मैं कोई तनाव ना रखूँ।
फिर उसने धीरे धीरे गति बनाते हुए अपना पूरा लण्ड कब मेरी गाण्ड में उतार दिया मुझे पता ही नहीं चला………
अब मुझे मज़ा आ रहा था- अरे वाह…… हाय ….. मेरे माइक्रोसोफ़्ट …. खूब चोदो…….. म्मजा आ रहा है……. आह…… वोह… और जोर से….चोद ऐसी आवाज़ें मेरे मुँह से अपने आप ही निकलती जा रही थी।
मैंने कुल तीन बार कमल से गाण्ड मरवाई।
आगे की कहानी अगली बार ……………॥
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