मुमताज की मुकम्मल चुदाई-2
संजय सिंह
जैसे ही वो दोनों गईं, मुमताज आकर मेरे से चिपक गई और मुझे चूमने लगी।
मैंने उसको बोला- मुमताज, पहले दरवाजा तो बंद कर दो, नहीं तो कोई देख लेगा।
वो गई और जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और वापस आकर मेरी गोद में बैठ गई, मुझे चूमने लगी।
मैंने भी उसका साथ दिया और माहौल गर्म होने लगा। मैंने उसके चूचों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया और उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।
साथ ही मेरा एक हाथ ऊपर से ही उसकी चूत सहला रहा था, जो बहुत गीली हो गई थी।
मैं उसके होंठों को भी खूब चूस रहा था।
वो अपनी आँखें बंद करके वासना के आनन्द में डूब चुकी थी।
इस तरह 15 मिनट तक हम मस्ती करते रहे और उसके हाथ मेरे लण्ड पर आ गए और वो जोर से मेरे लण्ड को सहला रही थी।
मैंने भी जोश में आकर उसके कुर्ता उतार दिया और उसकी सलवार का नाड़ा खींच कर उसकी सलवार भी उतार दी।
अब वो सिर्फ ब्रा और पैन्टी में रह गई और बहुत सेक्सी लग रही थी।
मैंने उसके चूचों को ब्रा के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया। उतने में उसने मेरी बेल्ट खोल के मेरी पैन्ट के हुक खोल दिए, साथ ही मेरी शर्ट भी उतार दी।
अब मैं सिर्फ अंडरवियर में रह गया।
उसकी नज़रें मेरे लण्ड का जायजा ले रही थीं।
अब मैंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया तो उसके दोनों कबूतर फडफड़ा कर बाहर आ गए।
मैं उसके एक चूचे को मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगा और उसने मेरी अंडरवियर उतार दी और मेरा 8 इंच लम्बा लण्ड बाहर निकाल कर प्यार से सहलाने लगी।
मैंने भी उसकी पैंटी उतार दी जो लगभग उसके चूत के पानी से पूरी भीग चुकी थी और उसकी चूत के दर्शन करने लगा, छोटी-छोटी झांट उसकी चूत पर सजी थीं।मुझे लगा कि कोई एक हफ्ता पहले उसने झांट काटी होंगीं।
उसकी चूत एकदम फूली हुई थी, जो लण्ड की बहुत प्यासी लग रही थी।
मैं उसकी चूत देख ही रहा था कि मुमताज ने घुटनों के बल बैठ कर मेरे लण्ड पर एक जोरदार चुम्मा दिया और उसको मुँह में भर लिया। वो मेरे लौड़े को जोर-जोर से चूसने लगी।
मुझे असीम आनन्द मिल रहा था। मैंने उसके चूचों की निप्पल पकड़ कर जोर से खींच दिए और उसने भी मेरे लण्ड को हल्के से काट दिया।
मेरे मुँह से ‘अआह्ह’ निकल गई।
वो जिस अंदाज़ में मेरा लण्ड चूस रही थी उससे मुझे लगा कि साली मेरे लण्ड को खा ही जाएगी।
वैसे तो मेरा लण्ड बहुत लड़कियों ने चूसा था, पर मुमताज का लण्ड चूसने का अंदाज़ गजब का था।
फिर मैंने उसको 69 अवस्था में आने को कहा और मेरे मुँह के सामने उसकी चूत आ गई और उसके मुँह के सामने मेरा लण्ड आ गया।
उसकी चूत से मस्त सुगन्ध आ रही थी और मैंने उसकी जाँघों से चाटना शुरू करते हुए मेरी जीभ उसकी चूत पर पहुँच गई। मेरी जीभ ने जैसे ही उसकी चूत की पंखुड़ियों को छुआ, उसके बदन में एक झनझनाहट सी हुई जो मैंने भी महसूस की और उसने मेरे लण्ड को मुँह में जोर से दबा के जबरदस्त चुसाई करनी शुरू कर दी।
मैंने उसकी चूत के दाने को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया और फिर पूरी जीभ उसकी चूत में उतार दी, साथ में एक उंगली उसकी चूत में डाल कर चोदना शुरू कर दिया।
वो मेरे लौड़े को ऐसे चूस रही थी, जैसे कोई उसका पसंदीदा लॉलीपॉप उसको मिल गया हो।
मैं भी जबरदस्त तरीके से उसकी चूत में उंगली डाल कर हिला रहा था और चूत चाट रहा था।
इतने में उसका बदन अकड़ने लगा और वो मेरे सिर को पकड़ कर चूत पर दबाने लगी और वो खुद भी मेरे लण्ड को जोर से मुँह में दबा कर चूसने लगी।
तभी अचानक उसकी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया।
दोस्तो, उसका इतना पानी निकला कि मेरा मुँह उस वक़्त किसी ने देख लिया होता, तो ऐसा लगता जैसे मैंने अपना मुँह पानी से धोया हो।
मैंने उसकी चूत का पानी जो खट्ठा व नमकीन सा था, उसे चाट-चाट कर साफ कर दिया।
वो अब मुझसे बोली- अब बर्दाश्त नहीं होता… बस अब मुझे जल्दी से चोद डालो…
मैंने भी उसकी बात मान कर उसको सीधा लेटा दिया और उसकी टांगों के बीच आ गया।
मेरा लण्ड चमक रहा था, एक तो मुमताज के जबरदस्त चुसाई की वजह से और दूसरा मुमताज की चिकनी चूत देख कर !
मैंने अपना लण्ड उसकी चूत की पंखुड़ियों के बीच रखा और धीरे-धीरे उसकी चूत पर घिसना शुरू किया, सुपारे की रगड़ से उसकी चूत फिर से लपलपी सी हो गई।
मुमताज ने उत्तेजना में आकर थोड़ा सा चूत को ऊपर उठाया और लण्ड का अग्र-भाग उसकी चूत में उतर गया और मैंने उसकी चूचियों को मुँह में भर के चूसना और दबाना शुरू कर दिया, फिर थोड़ा सा चूत पर दबाव बनाया, तो लण्ड दो इंच अन्दर घुस गया।
मुमताज छटपटाने लगी और बोली- ढाई साल के बाद आज पहली बार लण्ड मेरी चूत में जा रहा है, थोड़ा धीरे-धीरे डालना।
मैं भी उसकी बात को ध्यान में रखते हुए धीरे-धीरे लण्ड को अन्दर सरकाता रहा।
मेरा आधा लण्ड उसकी चूत में उतर गया था लेकिन मुझे लगा कि दर्द के बिना चुदाई में मज़ा ही क्या है और मैं मुमताज के होंठों पर अपने होंठ लगा कर चूसने लगा, मैंने एक बार लण्ड बाहर खींच कर एक ही झटके में फिर से मुमताज की चूत में पूरा उतार दिया।
मुमताज की आँखों में आँसू निकल आए।
उसकी चीख मेरे उसके होंठ चूसने की वजह से उसके मुँह में ही दब कर रह गई।
मैं ऐसे ही थोड़ी देर उसके होंठ और उसके चूचे चूसता रहा और मुझे लगा कि मुमताज अपने कूल्हे धीरे-धीरे हिला रही है और मुझे लण्ड पर भी थोड़ी कसावट महसूस हुई तो फिर मैंने भी गाड़ी पहले गियर में डाल कर चुदाई शुरू की, फिर दूसरे, फिर तीसरे गियर में अपना ट्रक हाईवे पर दौड़ाता गया। फिर जब देखा कि मुमताज कुछ ज्यादा ही चूतड़ हिला-हिला कर चुद रही है तो मैंने भी टॉप गियर लगा कर दनादन पलंग तोड़, रजाई फाड़ चुदाई शुरू कर दी।
मुमताज की सिसकारियाँ इस चुदाई के माहौल को और भी ज्यादा उत्तेजक बना रही थीं।
दोस्तो, मुझे उसकी चुदाई में मज़ा तो तब आया, जब उसने चूत को सिकोड़ कर मेरे लण्ड को पूरा निगल लिया।
मुझे लण्ड को अन्दर-बाहर करते वक़्त उसकी चूत इतनी कसी हुई लगी कि जैसे मैं कोई छोटी बच्ची की चूत चोद रहा होऊँ।
कसम से बड़ा मज़ा आ रहा था।
करीब दस मिनट तक चुदाई चली होगी कि मुमताज मुझसे बोली- रुको..!
मैंने कहा- क्या हुआ?
तो बोली- मैं ऊपर आकर तुमको चोदूंगी।
और मैंने बिना लण्ड बाहर निकाले पलटी मार ली और वो अब मेरे ऊपर थी और मैं उसके नीचे चुद रहा था।
वैसे ही जैसे चाकू खरबूजे पर रहे या खरबूजा चाकू पर रहे… आप समझ गए न…!
किसी भी सूरत में चुदाई तो चूत की ही होनी है !
खैर… अब मुमताज अपने चूतड़ उठा-उठा कर चुद रही थी और मैं भी उसका साथ दे रहा था।
जैसे ही वो चूतड़ ऊपर उठाती, मैं भी कमर नीचे कर देता और जैसे ही वो वापस लण्ड पर बैठती, मैं भी नीचे से कमर थोडी ऊपर उठा देता और लण्ड महाराज उसकी बच्चेदानी को छू जाते और मुमताज के मुँह से एक मादक सिसकारी निकल जाती।
ऐसे ही करीब 5 मिनट की चुदाई के बाद मुमताज हाँफ़ने लग गई और मुझसे बोली- मैं थक गई हूँ, अब तुम चोदो।
मैंने फिर से कमान सँभालते हुए उसको बोला- मैं तेरे को पीछे से चोदूँगा।
तो वो तैयार हो गई। मैंने उसको डॉगी-स्टाइल में सैट करके पीछे से उसकी चूत में लण्ड डाल दिया और लगा चोदने। इस बार उसको भी कुछ ज्यादा ही मज़ा आ रहा था और मेरा लण्ड पूरा का पूरा उसकी चूत में फिट हो गया। थोड़ी देर के बाद मुझसे बोली- तुम रुको..!
और वो अपने से ही डॉगी-स्टाइल में ही चुद रही थी। फिर जैसे ही वो लण्ड को चूत में से थोड़ा बाहर निकालती, मैं थोड़ा पीछे हो जाता और वो जैसे ही वापस लण्ड चूत में फिर से डालती, मैं भी जोर से धक्का लगा देता। उसके मुँह से ‘आह्हा आह्हा’ की आवाज़ निकल जाती। थोड़ी देर ऐसे ही चुदती रही और फिर मैंने उसको वापस पीठ के बल लिटा दिया। फिर से उसकी टांगों के बीच आकर उसकी दोनों टांगें कंधे पर रख कर लण्ड उसकी चूत में डाल दिया और तूफानी गति से चुदाई शुरू कर दी।
दो मिनट में ही वो अकड़ने लगी और उसकी टांगें मेरे कंधे से हट कर मेरी कमर पर कस गईं।
अब वो सिसकार रही थी- जोर-जोर से करो..!
मुझे पता चल गया कि अब यह दुबारा झड़ने वाली है, तो मैंने भी अपना पूरा दम लगा कर जोर-जोर से चोदना जारी रखा और मुमताज ने मुझे कस कर जकड़ लिया और लण्ड उसकी चूत में गहराई तक उतर गया।
मैं भी अपने आप को झड़ने से नहीं रोक पा रहा था। मैंने कहा- मेरा निकलने वाला है, कहाँ निकालूँ?
वो बोली- अन्दर ही निकलने दो..!
और दोनों साथ में ही झड़ गए। मुमताज की चूत लबालब भर गई, मेरा वीर्य और उसकी चूत का पानी दोनों के मिश्रण ने मेरे लण्ड को पूरा भिगो दिया।
मैं मुमताज के ऊपर ऐसे ही पड़ा-पड़ा अपनी सांसें नियंत्रित करने लगा। मुमताज भी मेरे बालों में और मेरी पीठ पर हाथ घुमाती हुई, उसकी सांसें नियंत्रित करने लगी।
लण्ड अपने आप ढीला होकर उसकी चूत में से बाहर निकलने लगा। करीब 5 मिनट बाद मैं मुमताज के ऊपर से उठा, तो मुमताज ने उठ कर मेरे लण्ड को चूस कर साफ कर दिया।
फिर मैंने भी उसी सलवार से उसकी चूत साफ़ कर दी। सफाई के वक़्त देखा की मेरा लण्ड और उसकी चूत दोनों भी एकदम टमाटर के जैसे लाल हो गए हैं।
मुमताज भी ढाई साल के बाद आज चुदी थी और मुझे भी करीब डेढ़ साल बाद कोई शानदार चूत की चुदाई करने मिली थी। इसीलिए जोश में दर्द का अहसास ही नहीं हुआ।
मुमताज मुझे गोद में लेकर प्यार कर रही थी और मैं भी उसके चूचों के साथ खेल रहा था कि तभी उसके घर के कॉल-बेल बजी।हमने जल्दी-जल्दी कपड़े पहन लिए।
मुमताज ने दरवाजा खोल कर देखा, तो रेशमा और सलमा थीं। मुझ से अर्थ-पूर्ण तरीके से ‘हैलो’ बोलीं और कपड़े बदल कर आती हैं, बोल कर दोनों रूम में चली गईं। साथ ही सलमा बाज़ार से कुछ खाने को लाई थी।
वो मुमताज को देकर बोली- प्लेट में डाल कर लाओ।
मैं अकेला ही हॉल में बैठा था और दो मिनट में ही रेशमा बाहर आ गई और मेरे पास बैठ गई। अचानक मेरा ध्यान मुमताज की ब्रा-पैन्टी पर गया, जो हॉल में एक कोने में पड़ी थी। डोर-बेल बजते ही उसने जल्दी-जल्दी में सिर्फ सलवार और कुरता ही पहना था। मेरी नज़र बार-बार ब्रा-पैन्टी की तरफ जा रही थी। जिसे रेशमा ने भाँप लिया और मुझे देख कर मुस्कुराने लगी।
और मुझसे बोली- आप बार-बार यहाँ-वहाँ क्या देख रहे हो…?
मैंने कहा- कुछ नहीं..!
रेशमा ने एक बार रूम की तरफ देखा और एक बार रसोई की तरफ देखा, कोई नहीं आ रहा, देख कर मुझे धीरे से बोली- आप क्या देख रहे हैं, मुझे पता है !
मैं- क्या पता है तुमको?
रेशमा- आपने ही निकालें है ना..!
और मुस्कुराने लगी।
मैं- तुम क्या बोल रही हो…? मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैंने क्या निकाला..?
मैं जानबूझ कर अनजान बनने लगा।
रेशमा- जब निकाल दिया तो पहना भी देते न मुमताज को..!
मैं- क्या निकाला… जो पहना देता..?
मैं उसको मेरे सामने खुल कर बात करवाना चाहता था, इसलिए अनजान बनता रहा।
रेशमा- मुमताज दीदी की ब्रा-पैन्टी आपने ही निकाली है, तो पहना भी देते।
वो इतना बोली और शरमा गई पर मुस्कुरा रही थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर सहलाता हुआ बोला- रेशमा प्लीज तुम वो ब्रा-पैन्टी उठा कर छुपा दो न..! नहीं तो अभी सलमा को भी पता चल जाएगा।
रेशमा मुझे कहने लगी- जब मज़ा तुम दोनों ने लिया है, तो तुम लोग ही उठाओ… मैं क्यों उठाऊँ..? मैंने मज़ा नहीं लिया जो मुझे कह रहे हो।
मैंने उसके हाथ को थोड़ा दबा दिया और कहा- तेरे को मज़ा चाहिए, तो बता न… कब मज़ा लेना है तुझे?
वो कुछ बोली नहीं और मेरा मोबाइल जो टेबल पर रखा था, उठा कर खुद का नम्बर डायल किया और उसके फ़ोन में रिंग किया और फिर काट दिया।
मेरे मोबाइल में भी उसका नम्बर आ गया और उसके पास मेरा नम्बर।
उसके बाद उसने मुझे हाथ से इशारा किया कि मैं उसको कॉल करूँ और रसोई में चली गई।
थोड़ी देर में सलमा भी कपड़े बदल कर बाहर आ गई और मुमताज और रेशमा भी प्लेट में नाश्ता लेकर हॉल में आ गईं।
फिर हम लोगों ने साथ में नाश्ता किया और फिर मैंने भी मुमताज से इजाजत ली।
मुमताज ने मुझे कॉल करने को कहा, क्योंकि रेशमा और सलमा के सामने हम कुछ बात नहीं कर पाए, फिर मैं निकल गया।
फिर रेशमा के साथ कैसे, क्या हुआ, उसको फिर कभी लिखूँगा।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, प्लीज मुझे मेल करके जरूर बताइए।
आपके मेल का इंतजार करूँगा।
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