मुन्नू की बहन नीलू-4
प्रेषक : अजय शर्मा
इतना चुदने के बाद तो एक कुतिया भी थक जाती है और फिर नीलू तो एक अट्टारह साल की नव-युवती थी। उसका पूरा जिस्म टूट रहा था। उसकी दोनों टांगें अभी भी फैली हुई थीं। एक हाथ कमर के पास और एक हाथ सर के ऊपर था। मैंने उसका एक मम्मा अपने मुँह में लिया और उसे चूसा।
नीलू बोली- तुम थकोगे नहीं? कब तक मेरी लेते रहोगे?
मैंने कहा- मेरी रानी, तू है ही इतनी मस्त लौंडिया कि बार बार तुझे चोदने का मन करता है। यह लंड है कि मानता ही नहीं।
उसने मेरे लंड को बड़े ध्यान से देखा- धीरे से हाथों में लिया और कहा- क्या सबके लंड इतने ही बड़े होते हैं? और इतने मोटे?
मैंने कहा- मेरी जान जिस तरह लौंडियों के मम्मे अलग अलग साइज़ के होते हैं, लंड भी अलग अलग साइज़ के होते हैं।
नीलू ने कहा- अब क्या करना है?
मैंने झट से कहा- नीलू, मुझे तुम्हारी गांड मारनी है।
नीलू बोली- बिल्कुल नहीं ! बहुत दर्द होगा।
मैंने कहा- बेबी, अगर ज्यादा दर्द होगा तो मैं निकाल दूंगा। तेरी गांड को मैं पहले खूब चिकना करूंगा और फिर धीरे से अपना मूसल उसमें डाल दूंगा। बस तुम्हें कुछ पता ही नहीं चलेगा।
नीलू असमंजस में थी।
मैंने पूछा- किसने कहा कि दर्द होता है?
वो बोली- अभी अभी माया की शादी हुई है। उसके पति ने उसे रात में तीन बार अलग अलग स्टाइल से उसकी चूत को चोदा और फिर गांड मारी। दूसरे दिन वो चल नहीं पा रही थी।
मैंने कहा- मेरी लाडो माया की गांड को उसके पति ने चिकना नहीं किया होगा। तुम देखो मैं कैसे क्या करता हूँ।
नीलू ने हारकर सहमति दे दी लेकिन इस शर्त पर कि अगर उसे दर्द हुआ तो मैं अपना लंड निकाल लूँगा।
मैंने कहा- ठीक है बाबा ! निकाल लूँगा। आप यह कहानी अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
नीलू अपने पेट पर लेट गई। दोनों बाहें उसने अपने सर के इर्द-गिर्द डाल दीं। मैंने उसके बालों को पीठ से अलग किया और उसकी नंगी पीठ देखता रहा। खूब हाथ फेरकर मैं उसके चूतड़ों पर पहुँचा। उन्हें खूब दबाया। कभी कभी उसकी चूत में भी ऊँगली घुसेड़ देता था तो वो उचक जाती। मुझे नीलू की झांटें बहुत पसंद आईं। काफी घनी और घुंघराली थीं। फिर मैंने उसकी गांड का मुआयना किया। छोटी सी गांड थी। गुलाबी रंग की। एक बार तो मुझे भी दया आ गई- कि मेरा लंड तो आज इसे फाड़ कर रख देगा। लेकिन साब ! छेद है तो लंड तो घुसेगा ही। अब घोड़ा घास से दोस्ती नहीं करता।
मैंने इधर उधर देखा- एक क्रीम की बोतल दिखाई दी। मैंने खूब सारी क्रीम अपने हाथों में ली और उसकी गांड में मलने लगा। गांड का छेद थोड़ा खोलकर मैंने उसमें क्रीम डाल दी। फिर एक और बोतल खोली और उसमे अपना लंड भिगो दिया। लंड साब को जब बाहर निकाला तो श्वेत हो चुका था। मैंने नीलू का हाथ लेकर अपने लंड पर रखा। उसने उसे धीरे धीरे सहलाया। अब पूरा क्रीम उसमे अच्छी तरह से लग गया था। अब लंड भी तैयार, गांड भी तैयार, मैं भी तैयार उधर नीलू भी तैयार ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
देख मुन्नू ! तेरी बहन की अब मैं गांड मारता हूँ।
मैंने अपना सुपारा धीरे से उसकी गांड पर रखा और एक झटका दिया। सुपारा अन्दर और उसके साथ ही नीलू की एक चीख।
चूंकि उसने अपना मुँह तकिये के अन्दर डाला था- ज्यादा आवाज़ नहीं आई। मैं उसकी बगलों में हाथ फेरने लगा।
एक और झटका- तीन इंच अन्दर।
नीलू हिलने लगी- एक और झटका- चार इंच और अन्दर।
और फिर आखिरी झटके में पूरा लंड अन्दर।
मैं नीलू के ऊपर गिर पड़ा। उसकी कमर के नीचे से दोनों हाथ को मैं उसके मम्मों तक ले गया और फिर अपना लंड अन्दर बाहर करने लगा। नीलू की आँखों में आँसू आ गए, बोली- अज्जू बस। चाहो तो मुझे पच्चीस बार और चोद लो, मेरे मुँह में अपना लंड भर दो लेकिन प्लीज़, मेरी गांड से इसे निकालो।
लेकिन चाहकर भी मैं निकाल नहीं पा रहा था। मेरे लंड को खूब मज़ा आ रहा था। मैं उसकी गांड मारता रहा और वो मरवाती रही। फिर मैंने अपने लंड को निकाला, उसको सीधा किया। उसके मम्मों को खूब दबाया और फिर उसकी टांगें चौड़ी कीं और फिर अपना लंड उसकी गांड में डाल दिया।
वो उचक गई और बोली- बाज़ नहीं आओगे?
मैंने पूछा- मज़ा आ रहा है या नहीं?
नीलू बोली- आ तो रहा है लेकिन दर्द भी तो हो रहा है।
फिर वो थोड़ा उठकर देखने लगी कि यह लंड घुस कैसे रहा है।
वो बोली- क्या घुस रहा है तेरा लंड अज्जू। और कितना भयंकर दिख रहा है।
मैंने अपना लंड पूरा बहार निकालकर क्रीम के शीशी में घुसेड़ा और निकालकर फिर उसकी गांड में पेला। उसने भी खूब गांड मरवाई। मैंने आखिर में उसकी गांड में अपना सारा रायता डाल दिया। उसको एक गर्म एहसास हुआ।
उसने कहा- अज्ज..जज…ज्ज्जूऊउ मज़ा आ गया। अब मैं मर गई।
मैंने धीरे से अपना लंड निकालकर उसके हाथों पर रख दिया। उसने उसे एक बार दबाया और फिर मुझसे लिपट गई।
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अब तक साढ़े पांच बज चुके थे। मैंने कपड़े पहने और मुन्नू के घर से निकलने लगा। नीलू अभी भी नंगी लेटी हुई थी।
मैंने कहा- नीलू डार्लिंग ! कपड़े पहन लो, वरना कोई आ गया तो खैर नहीं।
नीलू उठी और मेरे ही सामने कपड़े पहनने लगी। जब वो पूरी तरह तैयार हो गई तो मेरे पास आई।
मैंने कहा- तुम बहुत सुन्दर हो नीलू और तुम्हारा दिल भी अच्छा है।
उसने कहा- और मेरी चूत?
मैंने कहा- अति सुन्दर।
वो बोली- और मेरे मम्मे?
मैंने कहा- स्वादिष्ट !
उसने पूछा- मेरी झांटें?
मैंने कहा- रेशमी।
मेरे चूतड़?
मैंने कहा- गुदगुदे।
इतना सब कहने सुनने पर मेरा फिर से खड़ा होने लगा। उसको एक अच्छी सी चुम्बन देकर मैं दरवाजे तक पहुंचा। पीछे घूमकर मैंने मुन्नू की फोटो देखी।
मैं बोल्यो- रे मुन्नू, तेरी जिज्जी की तो मैंने अग्गे-पिच्छे खूबई लाल की। मैन्ने तो मज्जा आ गयो। के चुद्तो है रे तेरी भैण।
मुन्नू मियां अभी तो यह शुरुआत है- उसकी शादी तक मैं उसकी चूत का बम भोसड़ा बना दूंगा।
मैं अपने घर पहुंचा और माँ से कहा- मैं बहुत थक गया हूँ- मुझे सोने दें।
फिर मैं तीन घंटे सोया।
रात के आठ बजे मैं बाहर निकला। नीलू और उसकी मम्मी बाहर बैठीं थीं। मैंने आंटी से नमस्ते की और नीलू से बोला- अरे नीलू, तू तो दिखती ही नहीं है आजकल? आंटी ! कहाँ रहती है यह?
आंटी बोली- बेटा जब तुम लोग बच्चे थे तब अच्छा था- कम से कम साथ खेल तो लेते थे। अब तुम अपनी पढ़ाई में व्यस्त और यह अपनी पढ़ाई में ! कभी कभी आ जाया करो।
मैंने नीलू को देखा और आँख मारी और बोला- हाँ आंटी मैं आऊँगा।
इतने में आंटी अन्दर गईं और मैं नीलू के पास जाकर बोला- कब दे रही हो फिर से?
नीलू बोली- मैं खड़ी नहीं हो पा रहीं हूँ ठीक से। चूत पर सूजन हो गई है। गरम पानी का सेंक लगाया है।
मैंने उसको टाटा किया और घर आ गया।
लिखियेगा कि यह कैसी लगी।
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