नसीब से गांड की दम पर नौकरी मिली- 2
दोस्तो, मैं आपका प्यारा सा आजाद गांडू एक बार फिर से अपनी गांड मराने की सेक्स कहानी लेकर हाजिर हूँ.
अब तक की इस गे सेक्स कहानी के पिछले भाग
नसीब से गांड की दम पर नौकरी मिली- 1
में आपने पढ़ा था कि नसीम भाई ने अपना मशहूर हलब्बी लौड़ा मेरी कसी हुई गांड में पेल दिया था और मैं मीठे दर्द के साथ उनके पूरे लंड को अपनी गांड की जड़ तक लेकर पुरानी यादों में खोया हुआ था.
अब आगे:
मैं अपने मन में याद कर रहा था कि मेरे कस्बे के माशूक लौंडे, जो तब मेरे साथी थे, तब नसीम भाई से गांड मराने के बाद डींग हांकते थे.
मैंने नसीम का भी लंड ले लिया.
मुझे यह सोच कर हंसी आई कि आज छह-आठ साल बाद जाकर कस्बे में मैं भी उन दोस्तों से कहूंगा कि मैंने भी नसीम भाई का लंड ले लिया.
आज गांव का वह मशहूर लंड मेरी गांड में था.
ये अलग बात है अब मैं उस कम उम्र का माशूक चिकना नहीं, बल्कि चौबीस साल का जवान मर्द था.
वे दोस्त अब न जाने कहां होंगे, न जाने किससे मरा भी रहे होंगे … या नहीं.
नसीम भाईजान ने धीरे धीरे पूरा हथियार अन्दर करके तेजी से चलाना चालू कर दिया था.
मैं आ आ करने लगा.
वे बोले- बहुत टाईट है … कब से नहीं मराई?
मैंने कहा- छह सात साल से.
वे- तब किससे कराते थे!
मैंने कहा- जावेद भाई से.
वे हंसे- वो साला करना जानता भी था. भोसड़ी का दो चार झटकों में झड़ जाता होगा. उसने ठीक से खोली भी नहीं है … तभी तो इतनी टाईट है. दो चार दिन रूको, सब सही कर दूँगा. तुम्हें भी मजा आने लगेगा.
मैं हंस पड़ा.
मुझे जावेद भाई का मस्त लंड याद आ गया, जो मेरी गांड में खलबली मचा देता था … पर मैं चुप रहा.
नसीम भाईजान मुझसे हंसता देख कर बोले- मजाक समझ रहे हो … मैं सही कह रहा हूं. देखो प्रभात की कैसी ढीली है तुमसे कमजोर है पर्सनाल्टी में आधा भी नहीं है. नमकीन भी तुम्हीं हो, तुम पर लौंडियां मरती होंगी. मगर उसकी गांड तो एकदम मक्खन रखी है, घोड़े का भी डाल दो, तो पट्ठा चूं तक नहीं करेगा.
अब नसीम भाईजान धक्के देने लगे थे. अन्दर बाहर अन्दर बाहर धच्च पच्च धच्च पच्च होने लगी थी.
वाकयी गांड में दो चार झटकों के बाद मुझे दर्द होने लगा.
बहुत दिनों से कराई नहीं थी.
फिर नसीम भाई का लम्बा मोटा मस्त लंड लेने से मेरी गांड गर्म हो गई.
वे समझ गए और बोले- ज्यादा परेशान नहीं करूंगा … बस थोड़ा ठहरो, अपनी ढीली करे रखो.
मैंने कहा- ढीली करे तो हूं.
वे बोले- यार तुम्हारी है ही टाईट, बहुत दिनों बाद इतनी टाइट गांड मारने को मिली. मैं किस्मत वाला हूं कि अपने शहर के लौंडे की गांड में मजा आया. यहां तो साले ऐसे गांडू मिलते हैं कि पता ही नहीं चलता. न जाने भैन के लौड़े कितनों से मरा कर आते हैं. पता ही नहीं चलता कि लंड गांड में है … या भूसे में घुसेड़ा है.
मैं कुछ नहीं बोला. मेरी गांड परपरा रही थी.
नसीम भाईजान समझ रहे थे इसलिए मुझे पुचकार रहे थे- बस हो गया … मैं धीरे धीरे करूंगा.
वे बहानेबाजी करते रहे, बातें बनाते रहे … पर अपना लंड बाहर नहीं निकाला.
इधर मेरी दर्द और जलन के मारे जान निकल रही थी.
नसीम भाईजान भी पूरे आधा घंटे तक मेरी गांड रगड़ कर माने.
फिर उन्होंने लंड बाहर निकाला, पौंछा और लेट गए.
इसके बाद जो हुआ, उसकी मैंने सोची न थी.
वे थोड़ी देर रूके … फिर तेल की शीशी मेरे हाथ में देकर बोले कि अब तू मेरी मारेगा.
मैं उन्हें देखने लगा.
तब तक उन्होंने अपना अंडरवियर नीचे खिसकाया और औंधे लेट गए.
मैं कुछ न कह सका. मैं नंगा तो था ही!
वे बार बार इशारा कर रहे थे. मैं उनके ऊपर चढ़ बैठा. तेल लंड पर चुपड़ कर उनकी गांड पर टिका दिया. उनके दोनों चूतड़ हाथ से अलग किए और छेद में लंड पेल दिया.
असल में मेरी उनकी मारते समय खुद फट रही थी. मैं धीरे धीरे धक्के लगा रहा था.
वे उत्साहित कर रहे थे- क्या मरे मरे कर रहे हो … जोर से पेलो न!
मैं जैसे जादू के जोर से बंधा उनकी बात मानता रहा. पूरा जोर लगा कर धक्के देने लगा.
उन्होंने शायद मोटे बड़े पेट वाले लस्सड़ बाबू अफसरों से कराई थी. मैं बड़ी देर तक लगा रहा, एक मजबूत मर्द था.
जब उनकी अच्छी तरह रगड़ गई, तो बोले- यार तेरा लंड है या हथौड़ा … साली गांड का कचूमर निकाल दिया.
फिर हाथ में लंड लेकर बोले- मोटा भी बहुत है … मेर जैसा ही है … वाह मेरे शेर.
मैं झड़ा नहीं था, पर उतर गया. शायद डर के मारे पानी निकला ही नहीं, मजा भी नहीं लिया … बस जैसे ड्यूटी की.
पर वे बहुत संतुष्ट थे और प्रसन्न थे. मैंने उनसे फारिग होकर बाथरूम में जाकर लंड धो-पौंछ लिया और लेट गया.
तब मुझे अपने दोस्त प्रभात की याद आई.
मैंने भाईजान से पूछा- भाईजान प्रभात कहां है?
वे बोले- बगल के कमरे में बाबू जी (भाई साहब) के पास है, सुबह आ जाएगा. बिजली ठीक करके वहीं सो गया होगा.
मैं सुनकर चुप गया मगर रात को सो नहीं पाया.
मेरी आशंका ठीक निकली. रात को बगल वाले बाबू (भाई साहब) ने प्रभात की रगड़ाई की.
इसीलिए साला बहाने बनाकर ले गया था.
सुबह पूछने पर प्रभात ने बताया कि मादरचोद ने रात भर रगड़ा.
सुबह बगल वाले भाई साहब फिर से आ धमके और प्रभात से बोले- हमारे साहब के बंगले का एसी खराब है, जरा चल कर देख लें.
हम डरे हुए थे, मगर साथ जाना पड़ा. वहां देखा तो उनके बेटे ने बताया कि मैकेनिक बुलाए थे, वे कह रहे थे वर्कशॉप पर ले जाना पड़ेगा.
प्रभात ने एसी देखा, तो उसे सब ठीक लग रहा था. कुछ पीछे के तार गड़बड़ थे. अब वहां कैसे पहुंचा जाए, वर्कशॉप वाले सही कह रहे थे.
तभी मैंने पूछा- रस्सी है!
साहब का लड़का बोला- हां है.
उनका नौकर रस्सी ले आया. खतरा तो था, पर प्रभात की कमर में रस्सी बांध कर उसे एसी के पीछे दूसरी मंजिल से उतारा. उसने कनेक्शन ठीक किए. मैं रस्सी का दूसरा सिरा अपनी कमर से बांध कर उसे साधे रहा. सभी चिन्तित तो रहे, पर एसी चालू हो गया.
जब अफसर साहब आए तो उनके बच्चों व घर के नौकरों ने हमारे पराक्रम की नमक मिर्च लगा कर साहब से चर्चा की.
जो भाई साहब हमें ले गए थे, वे हमें साहब के सामने ले गए.
साहब ने परिचय पूछा.
प्रभात तो चुप रहा पर मैंने कहा- सर हम दोनों बच्चे दूर मध्य प्रदेश से रेलवे का टेस्ट देने आए थे. परसों टेस्ट हो गया, तो भाई साहब के पास उनके आग्रह पर मुंबई देखने रूक गए, कल इनकी बिजली सुधारी, तो आज ये आपके यहां ले आए. आपका एसी ठीक हो गया.
साहब मुस्कराए.
तब भाई साहब बोले- साहब को जानते हो?
दोनों ने कहा- नहीं, हम साहब को नहीं जानते.
हम साहब के सामने पहली बार उपस्थित हुए थे.
साहब बोले- बच्चे स्मार्ट हैं भाई. आपका नाम क्या है … कहां से हो?
हमने अपना नाम व परिचय दिया.
साहब बोले- अरे हम भी तो बुदेलखंड के हैं, अपने बच्चों का भला नहीं करेंगे, तो किसका करेंगे. चलो समझो ये दोनों तो परीक्षा में पास हुए.
तब भाई साहब बोले- अरे साहब ही आपकी परीक्षा लेने वाले सबसे बड़े अफसर हैं.
हम दोनों ने उनके चरण छुए. साहब ने आशीवाद दिया और कहा- लिस्ट में इनका नाम देखो.
फाइल में हमारा नाम देखा गया, तो था तो सही, पर बहुत नीचे. साहब के आदेश से हमारे नामों को ऊपर किया गया.
साहब ने कहा- तुमने मेरे घर में अपनी काबिलियत का प्रमाण दिया तुम लोग बहुत काबिल हो … तुम्हारा आदेश पहुंच जाएगा.
साहब की बात सुनकर हम दोनों बहुत खुश हुए. साहब लंच में घर आए थे. हमें व भाई साहब को भी खाने का आग्रह हुआ.
वहीं भोजन करके रूम पर लौटे.
मन अब प्रसन्न था. भाई साहब, साहब के खास थे.
शाम को भाई साहब ने एक टीटीआई को पकड़ा और झांसी जाने वाली गाड़ी में हमें बिठा दिया.
टीटीआई ने हमें एक प्रथम श्रेणी के कूपे में बिठा दिया और कहा- मैं साथ चल रहा हूं कोई पूछे, तो मेरा नाम ले देना.
रात को हम दोनों आमने सामने लोअर बर्थ पर कूपे में थे … बाकी कूपे खाली थे.
न जाने कब प्रभात मेरी बर्थ पर आकर बैठ गया.
वो मेरी तरफ देख कर बोला- साली इतनी लग्जरी जगह है कि नींद ही नहीं आ रही.
मैं हंस दिया, तो वो मेरे से लिपटने लगा.
मैंने कहा- यार अपन दोनों की खूब रगड़ाई हुई … मेरी तो अभी तक चिनमिना रही है.
वह हंसने लगा और अपना पैंट ढीला करके बोला- वह उनकी इच्छा से था. आज तुम मेरी मर्जी से कर लो, नसीम भाई तुम्हारे हथियार की चर्चा भाईसाहब से कर रहे थे.
मैं- अरे यार अब छोड़.
प्रभात- इस बार अपने दोस्त के साथ, मेरी मर्जी से.
बस वह गांड खोल कर लेट गया.
मैंने लंड निकाल कर थूक लगाया और उसकी गांड पर टिका कर धीरे से अन्दर कर दिया.
हम दोनों चिपक कर लेट गए. वह खुद ही गांड चलाने लगा … मस्ती के मूड में था.
जब थक गया तो उसे औंधा करके मैं चालू हो गया.
फिर मैं रूक गया और लंड डाले हुए पड़ा रहा. गाड़ी हिलने से वैसे ही धक्के लग रहे थे.
हम दोनों बातें करते रहे और वैसे ही चादर ओढ़े सो गए. सुबह नींद खुली फ्रेश हुए, ब्रश किया.
प्रभात बोला- तुम गांड मारते समय मेरी गांड का ज्यादा ख्याल रख रहे थे. आपने हथियार का मजा कम लिया. अपने पर बहुत कन्ट्रोल किया, आधा घंटे लगे रहे. दस मिनट तो केवल डाले ही पड़े रहे. वाह … कोई इतनी देर तक कर ही नहीं पाता.
मैं- तुम्हें मजा आया कि नहीं … लगी तो नहीं … कोई तकलीफ तो नहीं हुई?
प्रभात- नहीं मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई. पर तुम्हारा बड़ा था, तो गांड में दर्द तो हुआ. साली अभी भी चिनमिना रही है मगर चलता है. इतना बड़ा झेलना भी तो बड़े गर्व की बात है. तेरा बिल्कुल नसीम भाई जैसा ही लम्बा मोटा है, बल्कि उनसे ज्यादा सख्त भी है. गांड को भी पता लगा कि बेटा कोई लंड मिला. ऐसे खेल तो कम लोग ही कर पाते हैं. तुमने बहुत ख्याल रखा, मेरी बड़े प्रेम से मारी.
मैं- अरे प्रभात भाई, तुम्हें पता नहीं लौंडे पटाने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. बेकार लौंडे भी कैसे कैसे नाटक नौटंकी करते हैं. मराने में भी कैसे नखरे झेलने पड़ते हैं. तुम इतने नमकीन हो और तुमने ऐसे दिल से कराई, बिल्कुल ढीली छोड़ दी … लंड के हवाले कर दी. मेरे मोटे जैसे हथियार से फट भी सकती थी, ज्यादा रगड़ भी सकती थी. कुछ भी हो सकता था मगर तुमने खतरा उठाया. ऐसा कोई नहीं करता. तुम्हारे मेरे लिए प्यार और लगाव को थैंक्स बहुत बहुत थैंक्स.
वह हंसने लगा- मैं भी वह सब करता हूं … फालतू में झूठा चिल्लाने भी लगता हूं. गांड सिकोड़ लेता हूं, चूतड़ टेढ़े कर लंड बीच में ही निकाल देता हूं. जब मौका मिलता है तो कई लौंडों की कसके रगड़ भी दी … लाल कर दी. मुझे सब आता है. पर तुमसे दो साल से दोस्ती है, पता है ऐसा कुछ नहीं होगा. ये मैं नहीं कह रहा हूँ, तुम शहर में जिनकी मारते हो, उनकी रिपोर्ट है यह. मेरी तरफ से भी तुमको थैंक्स.
मैं- अरे तुम्हें पता था? मैं नहीं जानता था शौकीन हो, तुम्हारे बारे में बिल्कुल भी नहीं.
वह जोर से हंसने लगा- तुम मुझे जितना चूतिया समझते थे, उतना मैं हूं नहीं.
उसकी बात सुनकर मैं झेंप गया.
मैं भी उसकी हंसी में साथ देने लगा.
फिर स्टेशन आने को था. हम एक दूसरे से लिपट गए. वह मेरा चुम्बन ले रहा था या मैं उसका, कुछ पता ही नहीं.
मैंने एकदम नीचे खिसक कर उसके पैंट की चैन खोल कर उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा.
वह एकदम से हड़बड़ा कर बोला- अरे यह क्या!
पर मैंने उसकी कमर कस के जकड़ ली और अपने मुँह से लंड नहीं निकलने दिया.
वह मुस्कराने लगा- बस हो गया छोड़ो.
पर मैं उसका लंड चूसता रहा. वह मेरे मुँह में झड़ गया.
मैंने मुँह धोया, उसने लंड धोया.
मैं बोला- यार तुम करते नहीं, तो यही सही. यह मेरी तरफ से!
वह मुस्कराया- तुम यार किसी का अहसान उधार रखते नहीं.
बस फिर हम दोनों झांसी में उतर गए.
तीन साल बाद उन्हीं साहब की कृपा से हम दोनों की जॉब लग गई.
अहसान चुकाने के लिए मैं और प्रभात दोनों ही साहब की सेवा में उपस्थित हुए.
गांड मरवाई.
साहब बॉटम भी थे, तो उन्होंने मेरे लंड की सेवा ली. वो मुझसे कुछ ज्यादा ही खुश थे.
फिर मैंने डिपार्टमेंटल टेस्ट दिए और अपनी मेहनत के दम पर एक ऑफिसर बन गया.
अब मैं अपने स्टेशन पर जॉब में आ गया था. असल में यह एक झांसी के नजदीक का छोटा स्टेशन था. मैं पास के कस्बे से अप-डाउन करता था.
एक दिन मैं अपने ऑफिस में बैठा था.
तभी मुझे बताया गया कि कोई आपसे मिलने आए हैं और बाहर बैठे हैं.
मैं आश्चर्य चकित था कि यहां कौन मिलने आया है.
बाहर जाकर देखा, तो वे एक पचास साल के लगभग के व्यक्ति थे. उनके साथ में प्रभात भी था. प्रभात अब पहले से ज्यादा स्वस्थ हो गया था. उसके गाल भर गए थे. सीना व बांहें मजबूत दिख रहीं थीं.
वो अच्छे कपड़े पहने था और वेल ड्रेस्ड था. उसकी पर्सनालिटी आकर्षक हो गई थी.
वे दोनों मेरे करीब आए. मैंने प्रभात को देखा तो उसे गले से लगाया. उसने दूसरे व्यक्ति से मेरा परिचय कराया.
मैंने परिचय जानकर उनके चरण छुए.
वे बोले- अरे आप ऑफिसर, मैं स्टाफ.
मैं बोला- आप यहां मेरे दोस्त के पिताजी हैं, मेरे आदरणीय हैं … बैठिए.
वे बोले- प्रभात आपकी बहुत याद करता है … आपने उसको नौकरी दिलवा दी. हमारी कोई पहुंच सिफारिश नहीं थी.
मैं- अरे दादा नहीं, सबका अपना अपना भाग्य है. वह होशियार है, संयोग से हम दोनों ही लग गए थे. उस दिन नसीम भाई मिल गए और सब बातें बनती चली गईं.
वे बोले- प्रभात झांसी में पोस्टेड है उसकी शादी झांसी में ही हो रही है. आप जरूर आएं.
मैं- प्रभात को लड़की दिखाई? मैं लेन-देन की बात तो नहीं करूंगा, पर लड़की प्रभात की टक्कर की होना चाहिए.
मेरी बात सुनकर वे सकपका गए और कहने लगे- उसकी मां ने पसंद की है. मां बेटे जाने, हमारे समाज में लड़कियां पढ़ी लिखी अभी कम हैं.
मैं- मैं कुछ नहीं जानता, प्रभात नहीं बोलेगा … इसलिए मैं बोल रहा हूं. लड़की देखने में उसकी टक्कर की हो पढ़ी-लिखी हो, लेन-देन आप देख लें.
वे बोले- मैं इसकी मां से बात करूंगा.
वे एक मिठाई का डिब्बा लाए थे. उन्होंने मुझे दिया.
फिर बताया कि वे अपनी नौकरी में दस वर्ष पहले इसी स्टेशन पर रहे थे.
कुछ रुक कर बोले- अभी भी कुछ साथी होंगे.
मैं समझ गया- आप बैठें. मैं और प्रभात बांटे देते हैं. यही उन सबको आमंत्रित करेगा.
वे हंसे और बोले- ठीक है.
कुछ देर बाद प्रभात सबसे निवेदन कर रहा था, उन्हें आमंत्रण दे रहा था.
मैंने गौर किया कि प्रभात अब व्यावहारिक हो गया था, स्मार्ट हो गया. अब वो ज्यादा कॉन्फीडेन्ट लग रहा था.
मैं रूक नहीं पाया और मैंने उससे कह ही दिया- यार अब तुम पटाखा हो गए हो … चालू भी.
वह बोला- अरे आपका वही पुराना यार हूँ. असल में जब पिताजी यहां थे, तब गर्मियों में यहां आया करता था. हम बेर तोड़ते, आम के पेड़ों पर चढ़ कर कैरी तोड़ते, यूं ही घूमते, आवारागर्दी करते, क्रिकेट खेलते बदमाशी करते. यहां मेरे कई दोस्त थे … स्टाफ के बच्चे व गांव के बच्चे. ये जो स्टाफ है, बहुत से तब नए लगे थे. जब मेरी आज की उम्र के रहे होंगे, यही कोई बीस बाईस के. मैं कई को जानता हूं. तब मैं छोटा था.
मैं प्रभात से पूछना चाहता था, पर नहीं पूछ पाया कि यार वह कौन किस्मत वाला है, जिसने तुम जैसे चिकने माशूक की गुलाबी गांड का मजा सबसे पहले लिया था. वो स्टाफ में से ही था या गांव का कोई दोस्त था.
फिर हमने सबको स्टाफ में मिठाई बांटी. सारी मिठाई बंट गई, डिब्बा खाली हो गया.
मैं लौटने लगा, तो प्लेटफॉर्म के कोने में एक छोटे कमरे के पास रुक कर प्रभात बोला- मेरे पास आपके लिए और मिठाई है.
मैं आश्चर्यचकित होते हुए उसकी तरफ देखने लगा.
उसने एक कमरे की ओर इशारा करके मेरी कमर में हाथ डाल दिया और मुझे उसमें ले गया.
अन्दर आते ही वो एकदम मेरे से चिपक गया. उसने अपनी बांहों में मुझे बुरी तरह कस कर जकड़ लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
उसने अगले ही पल मेरे होंठ एकदम से चबा लिए.
प्रभात- आपके लिए मेरे पास यही मिठाई है.
वह एकदम एग्रेसिव हो गया था. उसने मेरे होंठ, आंखें, गाल, गर्दन सब चूम डाले.
मैं- बस यार बस कर. अब चलें, वे सब इन्तजार कर रहे होंगे.
पर वह बड़ी देर तक मुझसे चिपका रहा. फिर मुश्किल से रूका. न जाने क्या भूत सवार था उस पर.
साथ ही मैं अपने इस दोस्त के साथ अपने जागे हुए नसीब को भी याद कर रहा था.
दोस्तों, ये गे सेक्स कहानी के एक हिस्सा है. इसके बाद क्या हुआ, वो मैं अगली बार लिखूंगा.
आपको मेरी सच्ची गे सेक्स कहानी कैसी लगी?
आपका आजाद गांडू
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