निगोड़ी जवानी-5

निगोड़ी जवानी-5

मैं रोनी सलूजा, अन्तर्वासना कहानियों के भण्डार में आप सभी पाठक पाठिकाओं का स्वागत करता हूँ, मुझे ख़ुशी है कि आप सभी मेरे द्वारा लिखी कहानी ‘निगोड़ी जवानी’ का भरपूर मजा ले रहे हैं। यह कहानी विनीता की है जिसे मैं रोनी सलूजा अपने शब्दों में संशोधित एवं सुसज्जित करके आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस कहानी के चार भाग आप पढ़ चुके हैं। भाग 5 आप सभी के लिए पेश कर रहा हूँ।

मैंने उनके लंड को एक बार फिर पप्पी लेकर छोड़ दिया, सोचने लगी कि कल का दिन मेरे लिए यादगार दिन रहेगा जब मैंने दो अलग अलग लोगों के साथ सम्भोग करके अपनी वासना की आग बुझाई।

निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है।

आज अपने नर्सिंग ट्रेनिग सेंटर के बाद अस्पताल गई, कमरे पर लौटते वक्त पता चला कि मेडम को आज आना था मगर वो अब गंगाजली और तेरहवीं पूजन करके ही लौटेंगी।

मेरी तो बांछें खिल गई यानि अभी दस दिन में कभी भी मस्ती करने का मौका मिल सकता है। फिर यह सोच कर कि वो लुत्फ़ दिन में उठाऊँगी, रात को आज फिर राकेश के लौड़े का मजा लूटना है ! इस समय मेरे दोनों हाथों में लड्डू आ गए थे।

सर को बोला- आप फिकर मत करना, सुबह आकर खाना मैं बना दूँगी।

उन्होंने तो मना किया पर मैंने मुस्कुराते हुए एक आँख दबा दी। वैसे भी उन पर मेरे हुस्न का जादू तो मैं चला ही चुकी थी।

फिर अपने घर जाकर बिना कपड़े बदले खाना बनाने लगी। थोड़ी देर बाद राकेश आ गए, मैंने कहा- मुँह हाथ धो लो, मैं खाना लगा रही हूँ।

वो लुंगी बनियान पहन कर खाने के लिए बैठ गए, बोले- विनी तुमने कपड़े क्यों नहीं बदले?

यह तो मेरे को मालूम था कि क्यों नहीं बदले? बहाने बनाते हुए मैंने कहा- तुम्हारे आने का समय हो गया था इसलिए सोचा, बाद में बदल लूंगी और आप आ भी गए !

दोनों ने साथ खाना खाया, दस बजने वाले थे, सारे बर्तन सुबह धोने के लिए रख दिए, दरवाजे बंद करके पर्दा खीच दिया। राकेश

बिस्तर पर लेटे थे, अब मैंने उनकी ओर पीठ करके कपड़े बदलने शुरू किए। ज बब्रा पेंटी में रह गई तो उनके ओर इतना मुड़ी कि उनको मेरे चुच्चे दिखाई दे जायें लेकिन वो तो ललचाई नजरों से पहले ही मुझे घूर रहे थे, उनसे कहा- मेरी मेक्सी दे दो !

वो मेक्सी लेकर आये तब तक मैंने अपने भरे पूरे मांसल चूतड़ों को थोड़ा उभार लिया।

मैंने देखा कि मेक्सी देते समय राकेश मेरी गांड को ऐसे देख रहे थे वो जैसे कि आज तो इसी को बजा डालेंगे ! मतलब तरसाने वाला मेरा जादू चल रहा था।

मेक्सी लेकर मैंने कहा- मेरा ब्रा का हुक नहीं खुल रहा, खोलना जरा ! जैसे ही ब्रा का हुक खुला, उसे नीचे गिरने को रास्ता देकर शरमाते हुए अपने हथेलियों से अपने रसीले दूधों को ढक लिया मगर वो शरारत पर उतर आए और फिर मुझे मेक्सी नहीं पहनने दी, खींचकर सीधा बिस्तर में ले लिया, फिर कसकर मुझे सब तरफ से मसल डाला।

मैं तो स्स्स्स.. हाय… बस.. यार.. करती रही, उन्हें ये सब करने से दिखावे के तौर पर रोक रही थी तो उनकी इच्छा और बढ़ रही थी।

इन्होंने आज मेरे कूल्हों को ज्यादा सहलाया, फिर सीधा करके मेरी जांघों को चूमते हुए पेंटी के ऊपर से बुर को भी चूम लिया। मेरी चूत तो ख़ुशी के आंसू बहाने लगी थी।

दिखावे के लिए मैंने कहा- नहीं राकेश्ह..आह्ह्ह..कल ही तो किया था ! दुखता है नो …प्लीज़…आह्ह्ह छोड़ दो ना !

पर उनका तो अन्दर का जानवर जाग चुका था।

अब वो भी बोले- विनी प्लीज़ एक बार ! प्लीज़ !

वो लुंगी और कच्छी निकाल कर बोले- देखो, इसका मुँह लाल हो रहा है !

और उसने अपने कड़क लौड़े का लाल होता सुपारा मुझे दिखाया और फिर मुझे दबोच लिया।

अपने पति से मेरे को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी घुड़सवार बन जायेंगे।

जैसा उन्होंने किया, कल वाली पोजीशन को दोहराते हुए मुझे घोड़ी बनाकर पीछे से चूत की चुदाई करते हुए जो घुड़सवारी की तो मैं

तो कुछ बयां ही नहीं सकती कि मेरी क्या हालत हुई, फिर वही सांसों का तूफान, फिर वही ज्वालामुखी !

फिर तूफान थमा और शांति व्याप्त हो गई, हम दोनों नींद के आगोश में चले गए। सुबह जल्दी नींद खुली तो दिन में डॉक्टर से चुदाई कराने की योजना तैयार करने लगी। पूरी योजना सोच विचार कर तैयार की, तब तक राकेश भी उठ गए।

मैंने नहा कर खाना बनाया और अपने समय पर राकेश ड्यूटी चले गए।

मैंने बड़े गले के ब्लाउज के साथ झीनी सी साड़ी पहनी, उसी रंग की लिपस्टिक लगा कर नौ बजे मैं डॉक्टर के यहाँ पहुँच गई तो वहाँ झाड़ू पोंछा करने वाली बाई बाहर ही बैठी थी, बोली- सिस्टर नमस्ते, आप आ गई हो, मैं जा रही हूँ। आज बहुत लेट हो गई।

मैंने कहा- सर कहाँ हैं?

बोली- सो रहे हैं। रात में कोई इमरजेंसी वाला मरीज था तो तीन बजे सोये हैं इसलिए मैंने नहीं जगाया, अब मैं चली।

मेरी यजना तो सब गुड़गोबर हो गई। खैर मैं दबे पांव सर के कमरे में गई तो सर बेसुध से सो रहे थे, शरीर पर सिर्फ जांघिया ही था

दोनों टांगों के बीच तकिया दबा रखा था उन्होंने। उनका हथियार मुझे दिखाई नहीं दे रहा था जिसे देखने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी, मैंने पढ़ा था कि सुबह सोकर उठने के समय लंड में खून का संचार ज्यादा होने के कारण लंड खड़ा रहता है पर इनका तो लंड दिख ही नहीं रहा, क्या करूँ, खड़ा तो जरुर होगा।

सोचते हुए मैंने पंखा बंद कर दिया, पाँच मिनट में ही उन्हें गर्मी के कारण करवट बदलना पड़ी, तो मैंने देखा उनके कच्छे में पूर्ण उत्थान लिए उनका लंड सिर उठाये खड़ा था।

मैंने बाहर आकर देखा, वहाँ कोई नहीं था, मैंने मुख्यद्वार को बंद किया, फिर डॉक्टर के बेडरूम में जाकर अपनी ब्लाउज और साड़ी उतार दी, सिर्फ ब्रा और पेटीकोट पहने रही, फिर अपने बालों को खोल दिया और जाकर सर की बगल में लेट गई, उनका हाथ उठा कर अपने गगनचुम्बी स्तनों पर रख लिया, फिर अपनी एक टांग को उनकी जांघ पर रख लिया और उनके खड़े लिंग को अपनी मुट्ठी में भर लिया और ऊपर नीचे चलाने लगी।

मैं उन्हें जगाना चाहती थी, वैसा ही हुआ, वो नींद से जागकर हड़बड़ा कर उठ गए, मुझे इस अधनंगी हालत में देख वो हतप्रभ रह गए।

मैंने उन्हें दिलासा दिलाया- सब ठीक है, चिंता न करें आप।

तो वे बोले- विनीता, ये सब ठीक नहीं है, उस दिन तुम्हारे साथ तुम्हारे मन की कर दी थी पर ये सब चाहे जब नहीं हो सकता !

मैंने कहा- सर आपके साथ मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, पहले आपने मुझे तरसाया, तड़पाया जो मुझे सबक के रूप में मिला, मेरे काम आया। फिर आपको मैंने रिझाया, आपको अपने हुस्न के लिए ललचाया, वो भी मेरे लिए सबक के रूप में मेरे काम आया। यही सब मैंने राकेश पर आजमाकर देखा, मैं पूरी तरह सफ़ल रही। राकेश अब अच्छे से मेरे साथ सेक्स कर रहे हैं। अब मैं फिर नए नए हथकंडे आप पर आजमाकर आपको सेक्स के लिए उत्प्रेरित करुँगी, आप जब मजबूर होकर सम्भोग करेंगे तो मुझे लगेगा कि मेरे लिए फिर एक नया सबक मिल गया। नहीं करेंगे तो मैं उस हद तक प्रयास करुँगी कि आपको मेरे साथ सम्भोग करना ही पड़ेगा।

कहते हुए मैंने अपनी ब्रा को निकल फेंका और सर का खड़ा लंड अपनी हथेली में पकड़कर अपने मुँह में भर लिया।

उन्होंने लाख कोशिश की मगर मेरे हाथ से और मुँह से अपना लंड न छुड़ा सके। मैं उसे लॉलीपोप की तरह चूसने लगी, उनकी गोलियों को भी सहलाती जा रही थी।

सर के मुँह से पहली सिसकारी स्सस्सस्सस… बस… करो विनीता ! नहीं तो मेरा माल निकलने लगेगा !

प्रीकम की बूंदें तो आने ही लगी थी, बड़ी ही नमकीन लग रही थी।

सर ने मेरे झूलते स्तनों को थाम लिया और बड़े ही प्यार से सहलाने लगे, मुझे बड़ा सुकून मिलने लगा, अब मैं उनके लंड को छोड़कर उनके सीने पर अपने होंठ से चूमते हुए जीभ लगा लगा कर उत्तेजित करने लगी, फिर उनके होंठ चूमते हुए उन्हें चूस लिया।

उनके मुँह से आह्ह… ओह्ह… की आवाज सुनकर मैंने अपनी गीली हो चली चूत को पेटीकोट और पेंटी के आवरण से मुक्त किया और सर की कमर के ऊपर दोनों और टांगें घुटनों से मोड़कर उनके तन्नाये लंड को अपनी चूत के द्वार पर लगाकर धीरे धीरे अन्दर करते हुए बैठने लगी, कठोर लंड की रगड़ के साथ मीठे दर्द का अहसास मुझे बड़ा सुख दे रहा था, लंड बच्चेदानी तक जाकर रुक गया, अब और अन्दर नहीं जा रहा था जबकि अभी उनका एक इंच लंड चूत के बाहर ही था, बहुत कोशिश की मगर सब बेकार।

अब मैंने अपने दोनों हाथों को सर के कंधे के बगल में बेड पर टिका दिए तो मेरे स्तन सर के मुँह के पास आ गए। उन्होंने बड़े ही प्यार से उन्हें सहलाते दबाते हुए मुँह में ले लिया और चूसने लगे जिसका असर मेरी योनि पर सीधा हो रहा था, मेरी योनि में गुदगुदी सी महसूस हो रही थी, चूत की ग्रंथियों ने योनि को चिकना करने वाला रस तेजी छोड़ना शुरु कर दिया, मेरी योनि चिकनी होकर अपना रस सर के लौड़े पर बहाने लगी।

अब मैंने उठक-बैठक शुरू कर दी, बड़ा ही मजा आ रहा था, पूरा लंड चूत के अन्दर तक जा रहा था। यह अभूतपूर्व आनन्द इस पोजीशन में मुझे पहली बार मिला था। यह आसन मैंने अन्तर्वासना की कहानी में पढ़ा था।

अब मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और गपागप मेरी बुर लंड को लीलने लगी, जैसे लंड को खाकर ही दम लेगी। सर चूत में घुसते लंड को देख रहे थे जिसे देख उनकी उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी।

तभी मेरी नजर बेड के सिरहाने पर लगे दर्पण पर गई, मैं अपना प्रतिबिम्ब देख लजा सी गई। कितना सुन्दर दृश्य था, मेरे मचलते चुच्चे, खुले बाल जिनमें हिलते चुच्चे आँख-मिचौली खेल रहे थे, सर के दोनों हाथ मेरी कमर पर हरकत कर रहे थे, वो अपने पुटठों को उछालते हुए मेरी कमर को अपने लंड पर ज्यादा से ज्यादा दबाने का प्रयास कर रहे थे।

यह अदभुत नजारा, वो भी अपनी चुदाई का, इतने बड़े दर्पण में पहली बार देख कर मैं उत्तेजनावश चरम पर पहुँच गई, मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी तो सर का लंड भी फूलने लगा, दोनों ने ही बिल्कुल एक ही समय में अपना अपना माल निकाल दिया। मैं सर के सीने पर लेट गई तो उन्होंने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया, उनका लंड बड़े इत्मीनान से पूरा माल चूत छोड़कर बाहर आ गया।

मैंने तत्काल अपनी पेंटी को चूत पर लगाया और वीर्य को बेड पर नहीं गिरने दिया। फिर धीरे धीरे बाथरूम में जाकर जो पेंटी हटाई तो चूत से बहुत सा वीर्य मिश्रित रस बाहर आ गया।

मैंने अपनी बुर को पानी से साफ करके वहाँ से तौलिया लाकर सर के लंड को अच्छी तरह से साफ कर दिया, फिर अच्छे से अपनी सफाई करके अपने कपड़े पहने।

फिर सर को चाय नाश्ता बनाकर दिया, उसके बाद खाना बनाकर रख दिया और ट्रेनिंग सेंटर जाने लगी तो सर से माफ़ी मांगते हुए कहा- सर बेवफा न हम होंगे, न आपको होने देंगे, मेडम के आने के बाद मैं कभी आपसे सम्भोग जैसा काम करने को नहीं कहूँगी, न ही मैं कभी किसी अन्य पुरुष से सम्भोग करुँगी, मैं आप पर और अपने आप पर प्रेक्टिकल करके अपनी कलाओं को आजमा रही हूँ जिन्हें मैंने अब तक पढ़ा औरसुना ही था, जिससे मेरे और राकेश के बीच सेक्स सम्बन्ध दुरुस्त कर सकूँ ! मैंने आपसे बहुत कुछ सीखा।

शाम को मैं घर पहुँची, राकेश आये तो उन्होंने सोते समय फिर मुझे दबोच लिया, अपना खड़ा लंड मेरे हाथों में थमा दिया।

मैं जानती थी कि उन्हें चुसवाने में बड़ा मजा आने लगा है, मैंने भी चूस चूस कर उन्हें मस्त कर दिया, फिर उनके ऊपर चढ़ कर उनका लंड अपनी बुर में ठूंस कर अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाकर जो झटके पर झटके लगाये तो हम दोनों ही स्वर्ग का मजा ले रहे थे पर मेरी चूत चुसवाने की तमन्ना दिल में ही रह गई।

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इस कहानी का अगला और अन्तिम भाग भी अवश्य पढ़ें !

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