नादान उम्र में चुदाई की यादें
ये सब लौड़े और चुत आदि सब कामदेव के हाथ की कठपुतलियां ही हैं. न जाने कब किसी चुत को कब कौन सा लंड मिल जाए, ये तो कोई भी नहीं जानता.
पहली बार चुदवाने में हर लड़की या औरत नखरा जरूर करती है लेकिन एक बार चुदने के बाद तो कहती है..
आ लंड.. मुझे चोद बार बार,
मौका मिले तो चोद हज़ार बार..
ना जाने खुदा ने ये चुत क्यों बनाई, ना मिले तो रहा नहीं जाता, मिल जाए तो ज्यादा देर तक इनकी गर्मी को सहा नहीं जाता.
मतलब अमृत (वीर्य) की बरसात हो ही जाती है.
न जाने क्या था उसकी मुस्कान में.. बेबस होकर मैं खिंचा चला जाता था. जबसे उसको कोचिंग में देखा था. बस एक उसी का चेहरा मेरे सामने घूमता रहता था. कुदरत ने कितने जतन से खूबसूरत हुस्न ने नवाजा था उसको.
देखने वालों की नजरें बस वहीं पर जाम हो जाएं. वो शायद 18-19 साल की होगी पर है, एकदम बम पटाखा है समझो पूरा 7.5 किलो आर डी एक्स है.
ढाई किलो ऊपर और उम्मीद से दुगना यानि 5 किलो नीचे.. नहीं समझे, अरे यार उसके स्तन और नितम्ब.
क्या कयामत है साली.
एकदम गोरा सा रंग.. मानो कोई परी साक्षात स्वर्ग से उतरकर इस धरती पे आई हो. उसके लाल लाल होंठ मानो कि दूध में दो गुलाब की कोमल पंखुड़ियां हों. जैसे ही छू लें तो बस खून ही निकल आए.
गोरा रंग, मोटी मोटी आँखें, काले लंबे बाल, भरे पूरे उन्नत उरोज, भरी पूरी सुडौल जांघें, पतली कमर और सबसे बड़ी दौलत तो उसके मोटे मोटे मटकते कूल्हे थे.
आम तौर पर लड़कियों के नितम्ब भारी भरकम ही होते हैं पर अंजलि का तो जवाब ही नहीं है. माफ कीजिये.. मैं नाम बताना भूल गया था. अंजलि नाम था उसका.
अंजलि लड़कों को जला कर रख देती थी. बस उसके मटकते कूल्हे देख कर ही लड़कों का पप्पू खुशी के आँसू रोने लगता था. जिस दिन उसकी मटकती हुए चाल को देख लेता, उस रात को मुट्ठी मारे बिना नींद ही नहीं आती थी. अंजलि के मटकते हुए कूल्हों को देखकर आप सनी लियोनी को भी भूल जाओगे.
अब मैं आपको मेरा परिचय दे देता हूँ… मैं कल्पेश शर्मा हूँ. मैं अभी अपनी पढ़ाई कर रहा हूँ. मेरे लंड का साइज़ लगभग 7″ है.. लाल सुपाड़ा और ना गोरा… ना ज्यादा काला गजब का लंड.. सुंदर रंग रूप, हर रोज कसरत करने से शरीर भी फिट है. कोई भी लड़की देखे, तो पहली बार में फिदा हो जाए.
जब से मैं गुजरात में आया हूँ, मानो जन्नत में ही आ गया हूँ. यहां की सुंदरता का तो मैं दीवाना बन बैठा हूँ. लड़की की माँ और लड़की तो ऐसे लगता है कि बहन हो. मम्मी मेकअप के बाद तो अपनी जवान लड़की को भी पीछे छोड़ देती हैं. जितना मीठा यहां के लोग खाते हैं उतने ही मीठे भी हैं.
यहां की औरतों की गांड का तो कहना ही क्या.. ओह मेरे मालिक.. मेरा लंड तो बस किसी भी मटकती हुई गांड को देखकर ही खड़ा हो जाता है. हर औरत सुंदर मानो कामदेव ने खुद अपने हाथों फ्री टाइम में बनाई हो.
पहली बार अंजलि से मेरी बात एक क्लास खत्म होने के बाद हुई. क्लास से निकल ही रहा था कि तभी पीछे से एक मधुर से आवाज मेरे कानों में पड़ी- कल्पेश.. कल्पेश… मुझे तुमसे कुछ पूछना था.
मेरी रसायन विज्ञान काफी अच्छी होने के कारण उसने मुझसे कुछ सवाल पूछे, बस फिर क्या था. सारी रात उसकी मीठी मीठी आवाज ने सोने ही नहीं दिया. इंसान का दिमाग पूरी ज़िंदगी भर काम करता है, लेकिन प्यार और परीक्षा के समय साला ना जाने क्यूँ बंद हो जाता है.
यहीं से शुरू हुई है मेरी ये प्रेम मिलन कथा.
अगले दिन जब वो आई, तो मैं उसके पीछे वाली बेंच पर ही बैठा था. उसके आने पर मैंने उसकी तरफ देखा और मैं मुस्कुरा दिया और वो भी.
गर्मी के दिन थे और वो पसीने से भीगी हुए आई थी. जैसे ही उसने बैठ कर अपनी बांहों को पसीना सुखाने के लिए ऊपर को किया. एक मादक पसीने की गंध ने मेरे अन्दर एक नई मदहोश कर देने वाली ऊर्जा को रोम रोम में भर दिया. जैसे शराब के बाद खुमारी होती है.
शराब उतरने के बाद जो मीठा मीठा नशा रहता है, उसे खुमारी कहते हैं. और ये तो जवान मादक हसीन लड़की के पसीने की गंध, जो किसी के पप्पू को भी खुदकुशी करने के लिए मजबूर कर दे.
शाम को जब वो पार्क में खेलने जाती तो उसकी चिकनी जांघें देख कर ऐसे लगता मानो संगमरमर के दो तराशे हुए बुलंद स्तम्भ हों. उसकी चिकनी जाँघों को देख कर मैं मुट्ठी मारने पर मजबूर हो उठता था.
मुझे तो यही बात याद आती कि
तेरी जांघों के सिवा,
दुनिया में क्या रखा है.
उसकी गुलाबी जाँघों को देख कर यह अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं था
कि बुर की फांक भी जरूर मोटी मोटी और गुलाबी रंग की ही होगी.
मैंने कई बार उसके ढीले टॉप के अन्दर से उसकी बगलों (कांख) के बाल देखे थे. आह.. क्या हल्के हल्के मुलायम और रेशमी रोएं थे.
मैं यह सोच कर तो झड़ते झड़ते बचता था कि अगर बगल के बाल इतने खूबसूरत हैं, तो नीचे चूत की रेशमी झांटों का क्या मस्त नजारा होगा.. मेरा पप्पू तो इस ख्याल से ही उछलने लगता था कि उसकी बुर पर उगे बालों पर हाथ फेरने का कैसा मजा होगा.
मेरा अंदाजा था कि उसने अपनी झांट बनानी शुरू ही नहीं की होगी. उसकी रेशमी, नर्म, मुलायम और घुंघराले झांटों के बीच उसकी बुर तो ऐसे लगती होगी, जैसे घास के बीच गुलाब का ताजा खिला हुए फूल हो.
धीरे धीरे मैं और वो आपस में बात करने लगे और दोस्ती अब प्यार का रूप ले चुकी थी. प्यार को बयान करना जितना मुश्किल है, महसूस करना उतना ही आसान. प्यार किस से, कब और कैसे हो जाए.. कोई नहीं जानता. वो पहली नज़र में भी हो सकता है और कुछ मुलाकातों के बाद भी हो सकता है.
बस अब इस प्यार में दो जिस्मों को एक जान में समाना बाकी था. जिस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार था.
उस दिन बारिश भी तेज आई और सड़कों पर पानी होने की वजह से ऑटो भी नहीं चल रहे थे. कुछ देर तो मैंने बारिश रुकने का इंतजार किया, पर फिर बातों ही बातों में न जाने मुझे क्या सूझी. मैंने अंजलि से पूछा- क्यों न मेरे रूम पे चला जाए. वैसे भी तुम इतनी बारिश में कहीं नहीं जा पाओगी. मेरा टिफिन भी आ गया होगा, तुम खाना भी खा लेना.
और ना जाने कामदेव ने कौन सा तीर मारा कि वो झट से तैयार हो गई. मेरा कमरा पास होने की वजह से ज्यादा समय नहीं लगा.
रूम पर आकर मैंने उसको तौलिया दिया, उसने अपने बाल साफ किए; मैं उसे निहारता रहा. इस तेज बारिश ने ठंड बढ़ा दी और पंखा तेज होने की वजह से वो थोड़ा सा सर्दी महसूस कर रही थी. हम दोनों मेरे बेड पर कंबल में पाँव डाल कर बैठे हुए थे. बस बादलों की गर्जना और ठंडी हवा ने पूरे माहौल को रोमांटिक बना दिया था. मैं कंबल के अन्दर उसके पाँव सहला रहा था जिससे उसकी आँखों में छा रही मदहोशी साफ दिख रही थी. धीरे धीरे में उसके करीब हो गया और प्यार से उसको बांहों में भरने को हुआ.
उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने उसे बांहों में भर लिया. उसके गुंदाज बदन का वो पहला स्पर्श तो मुझे जैसे जन्नत में ही पहुंचा गया. उसने अपने जलते हुए होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.
आह… उन प्रेम रस में डूबे, कांपते होंठों की लज्जत तो किसी फ़रिश्ते का ईमान भी खराब कर दे.
मैंने भी कस कर उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उन पंखुड़ियों को अपने जलते होंठों में भर लिया. वाह.. क्या रसीले होंठ थे. उस लज्जत को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा. मेरे लिए क्या शायद अंजलि के लिए भी यह किसी जवान लड़के का यह पहला चुम्बन ही था.
आह.. प्रेम का वो पहला चुम्बन तो जैसे हमारे अगाध प्रेम का एक प्रतीक ही था.
पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते रहे. मैं कभी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता और कभी वो अपनी नम रसीली जीभ मेरे मुँह में डाल देती. इस अनोखे स्वाद से हम दोनों पहली बार परिचित हुए थे वर्ना तो बस पॉर्न वीडियो और कहानियों में ही इसको पढ़ा था.
वो मुझसे इस कदर लिपटी थी, जैसे कोई बेल किसी पेड़ से लिपटी हो या फिर कोई बल खाती नागिन किसी चन्दन के पेड़ से लिपटी हो. मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते, कभी उसके नितम्ब पर.. ओह.. उसके खरबूजे जैसे गोल गोल कसे हुए गुंदाज नितम्ब तो जैसे कहर ही ढा रहे थे. उसके उरोज तो मेरे सीने से लगे जैसे पिसे ही जा रहे थे.
नीचे मेरा पप्पू (लंड) तो किसी अड़ियल घोड़े की तरह हिनहिना रहा था. मेरे हाथ अब उसकी पीठ सहला रहे थे.
कोई 15 मिनट तो हमने ये चूसा चुसाई की होगी. फिर हम अपने होंठों पर जुबान फेरते हुए अलग हुए. क्या ही सुखद और असीम आनन्द वाले पल थे ये.
उसकी आंखें मानो पूछ रही थीं कि हट क्यों गए?
फिर उसके टॉप को मैंने अपने हाथों से उतारा और काले रंग की ब्रा भी उतार दी. अब तो अमृत कलश मेरे आंखों के ठीक सामने थे.
आह.. गोल गोल संतरे हों जैसे.. एरोला कैरम की गोटी जितना बड़ा लाल सुर्ख.. इन घुंडियों को निप्पल तो नहीं कहा जा सकता, बस चने के दाने के समान एकदम गुलाबी रंगत लिए हुए थे. मैंने जैसे ही उनको छुआ तो उसकी एक हल्की सी सीत्कार निकल गई. मैं अपने आपको भला कैसे रोक पाता. मैंने अपने होंठों को उन पर लगा दिए. उसने मेरा सर अपने हाथ से पकड़ कर अपनी छाती की ओर दबा दिया, तो मैंने एक उरोज अपने मुँह में भर लिया.
आह.. रसीले आम की तरह लगभग आधा उरोज मेरे मुँह में समा गया. अंजलि की तो जैसे किलकारी ही निकल गई. मैंने एक उरोज को चूसना और दूसरे उरोज को हाथ से दबाना चालू कर दिया.
मेरे लिए तो यह स्वर्ग से कम नहीं था. अब मैं कभी एक को चूस रहा था, कभी दूसरे को चूस रहा था. वो मेरी पीठ सहलाती हुए ज़ोर से सी सी कर रही थी. धीरे धीरे मैं नीचे बढ़ने लगा. उसके हर एक अंग को मैं चूमना चाहता था. मैंने उसके पेट और नाभि को चूमना चालू किया. उसकी नाभि में मानो सारी कायनात ही समा जाए. जैसे ही मैंने चारों और जीभ फेरी, उसकी एक मादक सीत्कार ने मेरा जोश और बढ़ा दिया.
उसका शरीर अब कांपने लगा था मेरे दोनों हाथ उसके उरोज को सहला रहे थे और मेरी जीभ उसके पेट पे फिरे जा रही थी. उसकी घुंडियां इतनी सख्त हो गई थीं, जैसे मूँगफली का दाना हों.
फिर अंजलि ने अपना हाथ मेरे पप्पू पे फेरा जो पैन्ट के अन्दर घुट रहा था. उसका हाथ क्या फिरा.. ऐसा लग रहा था मानो पैंट में से ही अभी बाहर आ जाएगा. उसने अपने हाथों से मेरी पैन्ट उतारी और मैंने उसकी जीन्स.
अब तो बस उसके शरीर पर एक पैन्टी बची हुई थी, वो भी आगे से पूरी भीगी हुई थी. पैंटी उसकी फूली हुए फाँकों के बीच फंसी हुई थी. मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसको उतारना शुरू किया. अंजलि तो यूं शरमाई मानो शरम के मारे मर ही जाएगी. उसके गाल एकदम लाल टमाटर की तरह हो गए. दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाते हुए वो साक्षात काम की देवी ही लग रही थी.
अब दिल्ली लुटने को तैयार थी.
हल्के रोयों के एक इंच नीचे जन्नत का दरवाजा था. जिसके लिए बड़े बड़े ऋषि मुनियों का ईमान डोल गया था, आज वही मंजर मेरे सामने था. जब विश्वामित्र ने मेनका की पायल की आवाज सुनी तो उनका ध्यान भंग हो गया था. आज मेरे सामने तो मेनका से भी सुंदर अप्सरा पड़ी थी. मेरा क्या हाल होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं.
तिकोने आकार की छोटी सी बुर जैसे कोई फूली हुए पाव रोटी हो.. दो गहरे सुर्ख लाल रंग की पतली सी लकीरें और केवल 3 इंच के आसपास का चीरा.. जिसके चारों और हल्के हल्के मखमली रोएं.
मेरे मुँह से बस यही शब्द निकले वाह, लाजबाब, सुंदर, बेशकीमती.. शायद शब्द ही कम पड़ जाएं तारीफ करते करते.
इस हालत में तो किसी नामर्द का लंड भी खड़ा हो जाए. मेरा पप्पू 150 डिग्री पे खड़ा होकर सलामी दे रहा था.
उसकी बुर की तेज गंध मेरे नथुनों में भर गई और मैं अनायास ही उसकी तरफ बढ़ गया. जैसे ही मैंने अपने होंठ उसकी पंखुड़ियों पे लगाए, एक मादक सीत्कार पूरे कमरे में फ़ैल गई- आआआ आ आ ईई ई उम्म्ह… अहह… हय… याह… ई ई ई!
उसका पूरा शरीर रोमांच और उत्तेजना से कांपने लगा था. उसका चीरा थोड़ा सा खोला तो गुलाबी रंग झलकने लगा.
ओहह… गुलाबी रंगत लिए उसकी चुत में कामरस की बाढ़ आ चुकी थी. एक छोटे से चुकंदर की सी लालिमा, जिसे बीच में से चीर दिया हो. पतले पतले बाल जितनी हल्की नीले रंग की रक्त शिराएं. सबसे ऊपर एक चने के दाने जितना मुकुट मणि.. 1.5 इंच नीचे बुर का छोटा सा छेद.. आह.. सारी कल्पनाएं साकार होने लगीं.
अब पलंग के ऊपर बेजोड़ हुस्न की मलिका का अछूता और कमिसन बदन मेरे सामने बिखरा पड़ा था. वो अपनी आंख बंद किए लेटी थी. उसका कुंवारा बदन दिन की हल्की रोशनी में चमक रहा था.
मैं तो बस मुँह बाए उसे देखता ही रह गया. उसके गुलाबी होंठ, तनी हुई गोल गोल चुचियां, सपाट चिकना पेट, पेट के बीच गहरी नाभि, पतली कमर, उभरा हुआ सा पेडू और उसके नीचे दो पुष्ट जंघाओं के बीच फंसी पाव रोटी की तरह फूली छोटी सी बुर, जिसके ऊपर छोटे छोटे घुंघराले काले रेशमी रोएं, मैं तो टकटकी लगाए देखता ही रह गया.
माफ़ कीजिये दोस्तो, इस वक्त मैं एक शेर सुनाने से अपने आपको नहीं रोक पा रहा हूँ.
क्या यही है शर्म तेरे भोलेपन में.
क्या यही है शर्म तेरे भोलेपन में..
मुँह पे दोनों हाथ रख लेने से पर्दा हो गया!
अब देर करना सही नहीं था; मैंने अंजलि की चुत पर अपने होंठ टिका दिए. अंजलि एकदम से चिहुंक उठी, उसने अपनी चुत को मेरे मुँह से हटाने की कोशिश की, लेकिन मैंने उसकी चुत को अपने चंगुल से छूटने ही नहीं दिया.
मैं बेतहाशा उस कली का रस चूसने में लग गया और कुछ ही पलों में अंजलि ने अपनी चुत को उठा कर मेरे मुँह के लिए समर्पित कर दिया. अब तो वो खुद ही अपनी चुत को चुसवाने को आतुर थी.
मुझे मालूम था कि यदि ये स्खलित हो गई तो शायद मेरे लंड को मायूस होना पड़ सकता है, इसलिए मैंने उसकी चुत से मुँह हटा लिया.
वो एकदम से बेकाबू हो गई और मेरी आँखों प्यासी निगाहों से देखने लगी.मैंने अपने लंड को उसकी आँखों के सामने लहराया तो उसकी आँखें फ़ैल गईं. मेरा लंड शायद उसको भयातुर करने लगा था.
मैंने उसकी मुसम्मियों को सहला कर उसे मूक दिलासा दी और अपना लंड उसकी कमसिन बुर के मुहाने पर लगा दिया. उसकी बुर काफी लपलपा रही थी, उसमें से प्रीकम निकल रहा था, जो चुदाई के लिए चिकनाहट बना रहा था.
मैंने जरा सा दबाव दिया और इससे पहले वो चीखती, मेरे होंठों का ढक्कन उसके होंठों पर लग चुका था.
नीचे मैंने जोर बढ़ाया और अपना मूसल लंड उसकी बुर को चीरते हुए अंदर तक पेल दिया.
उसको बेहद दर्द हो रहा था, वो छटपटा रही थी मुझे अपने नाखूनों से नोंच रही थी, लेकिन मुझे मालूम था कि ये तो नारी का प्रारब्ध ही होता है.
कुछ पलों की पीढ़ा के बाद सम्भोग का सुख मिलने लगा और वो नीचे से अपने नितम्ब उठा कर मेरे मूसल लंड से लिपटने लगी.
बीस मिनट में वो दो बार स्खलित हुई और मैं भी झड़ गया.
बाद में उठ कर देखा तो इस चुदाई के दौरान उसकी मुनिया लाल आंसू से भी भर भर के रोई थी. उसने अपना कौमार्य मुझे समर्पित कर दिया था, इस बात से मुझे बड़ी प्रसन्नता थी.
इसके बाद मेरा उसका प्यार और भी गहरा हो गया.
मेरी इस लव रोमांस इरोटिक रियल सेक्स स्टोरी आप सभी के कमेंट्स के लिए मुझे मेरी मेल पर इन्तजार रहेगा.
धन्यवाद.
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