अब प्यार न कर पाएँगे हम किसी से
सर्वप्रथम तो मैं आप सभी का आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि आप सबने मेरी कहानियों को अन्तर्वासना के माध्यम से पसंद किया और मुझे आप सभी असंख्य पाठकों से सीधा जुड़ने का मौका मिला। अन्तर्वासना के माध्यम से मेरे बहुत से मित्र बन गए हैं.. जिनसे मैं निजी तौर पर भी मिला हूँ और मिलता रहता हूँ। इस तरह मैंने अपनी मित्रता के दायरे को और अधिक बढ़ा पाया है। अन्तर्वासना द्वारा मुझे अपनी बात कहने के लिए यह मंच प्रदान करने हेतु मैं इस साईट का तहेदिल से धन्यवाद करता हूँ।
मेरे बहुत से नए पाठकों ने मुझसे इसके पहले की कहानियों के बारे में पूछने के लिए ईमेल किया.. जितना मुझसे बन पड़ा.. मैंने उन सबका जवाब दिया.. लेकिन आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इसके पहले की कहानियाँ अन्तर्वासना पर प्रकाशित की जा चुकी हैं। जिनके नाम हैं..
‘एक दूसरे में समाए’ के तीन भाग, ‘बेइन्तिहा मुहब्बत‘
एवम्
‘ख्वाहिश पूरी की‘ ..
इन सब कहानियों को आप अन्तर्वासना में ‘लेखक’ के लिंक पर क्लिक करके मेरे नाम में जाकर पढ़ सकते हैं।
मेरी पिछली कहानी ‘ख्वाहिश पूरी की’ को आप सबका बहुत प्यार मिला और मुझे आपके प्यार से ये प्रेरणा मिली कि मैं आपको उसके आगे की भी घटनाओं से अवगत कराऊँ।
तो लीजिए.. एक बार फिर मैं अर्पित सिंह ले चलता हूँ आपको.. अपने उन सुनहरे दिनों में.. जब मुझे पहली बार मेरी इशानी से प्यार हुआ था। उन दिनों में एक हिंदी मसाला फिल्म की तरह प्यार.. मोहब्बत.. आशिकी.. रोमांस.. इमोशन.. सेक्स.. कॉमेडी.. ड्रामा और ट्रेजेडी सब कुछ होता है.. जब आपको पहला प्यार होता है।
यह बात सिर्फ मुझ पर लागू नहीं होती.. यह हर उस नौजवान या नवयुवती की कहानी है.. जिसने उस उम्र में प्यार किया है।
आपको अपनी इस कहानी के माध्यम से आपके उन्हीं सुहाने दिनों में ले के चलता हूँ।
इशानी के साथ मेरे आगरा प्रवास के बाद हम दोनों एक-दूसरे से दोबारा मिलने का वादा कर विदा हो गए थे लेकिन आगरा में बिताए इन एक हफ्ते ने हमें एक-दूसरे की आदत सी लगा दी थी, हमें अब एक-दूसरे के साथ रहने की और अधिक आवश्यकता महसूस होने लगी थी।
हमारी फ़ोन पर तो बात हो जाया करती थी.. लेकिन एक-दूसरे को बाँहों में लेना और एक-दूसरे के सामीप्य का आनन्द नहीं मिल पाता था।
वो खामोश रह कर भी एक-दूसरे की सारी बातें समझ जाना.. सिर्फ हाथ भर थाम लेने से दिल के इरादे भांप लेना.. उसको बाँहों में लेते ही ऐसा लगता.. जैसे प्यार के समंदर में डुबकी लगा ली हो.. उसके शहदीले होंठों का मीठा स्वाद.. उसकी वो मखमली त्वचा.. उसका वो नाजुक बदन.. मेरे छूने भर से ही उसका सिहर उठना.. और वो सब कुछ जो मैं महसूस करता था उसके साथ होने पर… बस ख्वाब बन कर रह गए थे।
आगरा में बिताए उन सात दिनों के सहारे हमने जैसे-तैसे सात महीने अलग-अलग काट लिए.. लेकिन अब एक-एक पल उसके बिना एक-एक युग की तरह बीत रहा था।
अब दिल की सिर्फ एक ही इच्छा थी कि इशानी को अपनी बाँहों में भर कर अपना सारा प्यार एक बार में ही उसके ऊपर न्यौछावर कर दूँ।
इधर काफी दिनों से मैं घर नहीं जा पाया था और घर से बाहर भी हमारा मिलन नहीं हो पाया था। अब यूँ था कि बस जीने का आखिरी सहारा इशानी थी।
कहते हैं ना कि हर अँधेरी रात के बाद सवेरा आता है, मेरी मोहब्बत के ये काले बादल अब छंटने वाले थे।
आज मेरे पास एक फ़ोन आया था.. जो मेरे ताऊ जी का था। उन्होंने बताया कि उनके बड़े बेटे और मेरे भाई पुनीत की अगले महीने शादी है, यही कुछ 20 दिन ही बचे थे।
दोस्तो, जब आपको ये पता हो कि बस चंद दिनों में आपका महबूब आपकी बाँहों में होगा.. तो आपका क्या हाल होगा?
मेरा भी यही हाल था.. या सच कहूँ तो बड़ा बुरा हाल था। पहले तो सोचा करता था कि मैं इशानी से कब मिलूँगा और फिर अपने दिल को समझा लिया करता था कि जल्दी ही मिलने का मौका मिलेगा।
अब तो मैं यह सोच रहा था कि मैं इशानी से अब मिलूँगा और उससे.. बिना उसके बिताए हर एक पल का हिसाब लूँगा।
फिर वो दिन भी आ गया.. रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों की खुशबू के बीच सफ़ेद और सुनहरे रंग के कपड़ों में सजी एक परी मेरे सामने थी.. और मेरी उम्मीद से परे वो मेरे सीने से लग चुकी थी।
उफ्फ.. कितना सुकून था.. मेरी इशानी की बाँहों में..!
काश.. कि वक़्त यहीं थम जाता और मैं हमेशा के लिए इशानी की बाँहों में खो जाता।
तभी ताऊ जी की आवाज़ पर मैं इशानी से अलग हुआ।
सारे रिश्तेदारों से मिलने के बाद मैं उस कमरे में गया.. जो मेरे माँ-पिता जी और इशानी के लिए था।
शादी का घर आप तो जानते ही हो.. सब लोग कहीं न कहीं व्यस्त ही होते हैं और फिर कमरा तो सिर्फ नींद में ही याद आता है।
लम्बी दूरी की यात्रा की वजह से मैं काफी थक गया था, मैंने इशानी को फोन से कमरे में बुलाया। इशानी के आते ही मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और इशानी से लिपट गया।
मेरी आँखें बंद थीं लेकिन फिर भी मैं इशानी को अपनी बाँहों में भर कर उसके अंग-अंग को छू कर महसूस कर रहा था हम दोनों ही अपने प्रेम की उत्तेजना से सराबोर थे। यह वो कामोत्तेजना थी.. जो युग-युग से प्यासे प्रेमियों पर आज जी भर कर बरसने वाली थी।
चूँकि कमरे में कोई भी कभी भी आ सकता था.. इसलिए हमने सोचा कि क्यों न बाथरूम में चलकर युगल स्नान का आनन्द लिया जाए।
बाथरूम में जाते ही हमने दरवाजा बंद किया और हमारे कपड़े उतरने लगे। ताऊ जी के यहाँ बाथरूम में बाथटब या शावर नहीं था। हमने नल खोल दिया और बाल्टी में पानी भरने दिया।
अब तक मैं और इशानी एक-दूसरे को पूरी तरह निर्वस्त्र कर चुके थे। मेरा लिंग अपने पूरे उफ़ान पर था और इशानी की जाँघों के अंदरूनी हिस्से से उसका योनि रस रिस-रिस कर मिलन का आमंत्रण दे रहा था।
इतने में इशानी ने मेरे ऊपर पानी डाल दिया.. बस फिर क्या था.. मैंने इशानी को नीचे बिठा दिया और उसके ऊपर मग से पानी गिराने लगा, इशानी मेरे लिंग को अपने हाथों में लेकर अपने चेहरे से रगड़ने लगी।
मैंने इशानी से कहा- जान.. जैसे हमने एक-दूसरे को आगरा में नहलाया था.. वैसे ही आज भी एक-दूसरे को नहलाते हैं।
उसने इशारों में ही अपनी सहमति दे दी।
मैंने अपने हाथों में शैम्पू की बोतल से शैम्पू उड़ेला और इशानी के बालों में लगाने लगा। फिर मैंने साबुन लिया और सबसे पहले इशानी के चेहरे को अपने हाथों में लेकर साबुन लगाया। साबुन की वजह से अब उसने आँखें बंद कर ली थीं।
अब मैंने इशानी के कन्धों पर साबुन लगाना शुरू किया और अपने मज़बूत हाथों से उसके कन्धों पर लगे साबुन से ही मसाज सा करने लगा, इससे होने वाली इशानी की सिहरन मैं साफ़ महसूस करने लगा था, मेरी हर छुअन पर इशानी थिरकने सी लगी थी।
अब मैं थोड़ा और साबुन लेकर इशानी के स्तनों पर लगाने लगा। ठन्डे पानी और उत्तेजना से इशानी के स्तन बिल्कुल कड़े हो गए थे। उसके निप्पल किसी सख्त खंजर से लग रहे थे.. जो मेरे सीने से लग कर मेरी जान लेने की कोशिश में थे।
मैं अपने साबुन लगे हाथों से इशानी के स्तनों को हल्के-हल्के से मसलने लगा और उसके निप्पलों को सहलाने लगा।
इस सब से इशानी की सिसकारियाँ निकलने लगी थीं।
अब मैंने इशानी को घुमा दिया और उसकी पीठ पर साबुन लगाने लगा। पीठ पर साबुन लगाते हुए मैं झुकता गया और इशानी के नितम्बों से होता हुआ उसकी जांघों पर भी पीछे से साबुन लगा दिया।
फिर मैं इशानी की पीठ से बिल्कुल सट कर खड़ा हो गया था और मेरा लिंग इशानी के नितम्बों में धंसा जा रहा था। मैं इशानी के स्तनों को जोर से मसलने लगा, इशानी की सिसकारियाँ अब कराहों में बदलने लगी थीं।
उसकी आवाज़ में मुझे उसका प्रणय निवेदन साफ़ झलक रहा था। मैंने अपने हाथों को नीचे करके इशानी की योनि पर साबुन मलने लगा था।
योनि पर हाथ लगते ही इशानी चिहुंक उठी और उत्तेजना में उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
मैं अब अपने हाथों से इशानी की योनि को साफ़ करने लगा था। इशानी को मैंने अपनी ओर घुमा लिया और खुद घुटनों के बल बैठ गया। मेरे साबुन लगे हाथ इशानी की योनि रस से सनी योनि पर फिसलने लगा। मैं अपने साबुन लगे हाथों से ईशानी की योनि-कलिका को सहलाने लगा तो मेरी इस हरकत पर इशानी के मुख से ‘आह..’ निकल गई।
अन्दर-बाहर अच्छी तरह साबुन लगाने के बाद मैंने जैसे ही अपनी उंगली को ईशानी की योनि में प्रवेश कराया.. इशानी उत्तेजना से पागल हो गई।
मैंने कुछ देर तक उसकी योनि को अन्दर से भी साफ किया और फिर उसकी जांघों से होते हुए उसके पैरों तक पर अच्छे से साबुन लगा दिया। साबुन लगाने के बाद मैंने इशानी को बैठा दिया और उस पर पानी गिराने लगा।
इशानी की उत्तेजना की आग में सारा पानी उसके बदन से भाप बनकर उड़ने लगा था। मैंने फिर उसको खड़ा कराया और अच्छे से उसके बदन से सारा साबुन धो डाला।
अब मुझसे भी अपनी उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैं इशानी के पैरों के बीच बैठ गया और साबुन से धुली उसकी योनि पर अपने होंठ रख दिए। ईशानी मेरी इस हरकत से काँप उठी.. और मेरा सर पकड़ कर अपनी योनि पर दबा दिया…
अब मैं इशानी की योनि का स्वाद लेने लगा था.. मैं इशानी की योनि-कलिका को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था और इशानी का योनि रस रिस-रिस कर मेरे मुँह में भरता चला जा रहा था।
इशानी की योनि चूसते हुए मैं अपनी जीभ योनि के मुहाने पर ले गया और अपनी जीभ इशानी की योनि में डाल दी। मेरी इस हरकत से इशानी चिंहुक गई और उत्तेजना में अपनी कमर को हिलाने लगी।
मैं इशानी को मुख-मैथुन का सुख दे रहा था और वो इस सुख का पूरा उपभोग कर रही थी। कभी मैं उसकी पूरी योनि अपने मुँह में भर कर चूसता और कभी अपनी जीभ उसकी योनि में डाल कर अन्दर-बाहर करता।
इशानी अपने मुँह से उत्तेजक आवाजें निकालने लगी थी और उसकी कमर मेरे मुँह पर हल्के-हल्के धक्के से लगाने लगी थी।
अचानक इशानी ने मेरा चेहरा खींच कर योनि से हटा दिया और बोली- ओह्ह.. जान.. बस अभी रुको.. अब आपको नहलाने की मेरी बारी है..। इतने दिनों बाद का ये मिलन.. सिर्फ मुख-मैथुन नहीं.. मुझे आपको अपने अन्दर लेना है।
इशानी ने पहले मेरे बालों में शैम्पू लगाया और फिर साबुन लेकर मेरे कंधे से होते हुए मेरे बदन पर लगाने लगी। इतनी देर में मैं उत्तेजना से भर चुका था और पूरे संभोग के मूड में आ चुका था.. जबकि इशानी का पूरा ध्यान मेरे लिंग पर था।
वह मेरे लिंग को अपने हाथों में लेकर साबुन लगाने लगी और साबुन के झाग में ही हस्त-मैथुन सा करने लगी। उसके ऐसा करते ही मेरी उत्तेजना अपने चरम पर पहुँच गई। मैंने उसको ऐसा करने से रोका और कहा- जान.. रुको.. वरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगा और तुम्हारे हाथों में ही धराशाई हो जाऊँगा।
इशानी समझ चुकी थी और फिर उसने जल्दी से मेरे पैरों में भी साबुन लगा कर.. मुझ पर पानी गिराने लगी।
अब हम दोनों एक-दूसरे के सीने से लग कर खड़े थे और एक-दूसरे पर पानी गिरा रहे थे.. जहाँ एक तरफ पानी की शीतलता हमारी उत्तेजना को विराम दे रही थी.. वहीं हमारे बदन की गर्मी हमारी उत्तेजना को नए आयाम दे रही थी।
अब मेरा अपने ऊपर से कंट्रोल खत्म हो रहा था। मैंने इशानी को बाथरूम के फर्श पर लिटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया।
मैंने उससे कहा- जान.. जैसे पहली बार तुमने मेरे लिंग को अपनी योनि का रास्ता दिखाया था.. वैसे ही आज भी मेरे लिंग को खुद अपनी योनि में डाल लो..
ईशानी के हाथ मेरे लिंग की ओर बढ़ते चले गए और अपनी योनि के मुहाने पर मेरा लिंग ले जाकर अपनी आँखों से ही लिंग प्रवेश की अनुमति दे दी।
एक हल्के से धक्के में ही लिंग इशानी की योनि में प्रवेश कर गया और इशानी की एक भिंची सी चीख निकल गई, उसकी गरम और गीली योनि में जाकर मेरा लिंग और भी कड़ा सा लग रहा था।
तभी इशानी की फुसफुसाहट मेरे कानों में पड़ी- जान.. फक मी..!
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मैंने उसको अपनी बाँहों में कस लिया और धक्के लगाने लगा.. मेरे हर धक्के का जवाब वो अपनी कमर को ऊपर उठाकर दे रही थी.. उत्तेजना में हम दोनों की आंखे बंद थीं और हम दोनों एक-दूसरे के शरीर को नोंच-खसोट रहे थे।
इशानी के नाखून मेरी पीठ पर आड़ी-तिरछी लाइनें बना रहे थे और मेरे होंठ उसके सीने और स्तनों पर मेरे नाम की मुहर लगा रहे थे। हम दोनों अपने इस मिलन का पूरा आनन्द ले रहे थे.. हमारे धक्कों की गति अब बढ़ने लगी थी और हमारे मुँह से अब ‘ऊहह.. आहह..’ की आवाज़ें निकलने लगी थीं।
अब मैं अपनी पूरी ताकत से उसकी योनि में अपना लिंग अन्दर-बाहर कर रहा था। उसके दोनों पैर अब मेरे पीठ पर बंध से गए थे.. हम दोनों को यह एहसास भी हो रहा था कि अब हम दोनों के पास ज्यादा वक़्त नहीं है, हम दोनों कभी भी स्खलित हो सकते हैं..
तभी अचानक इशानी ने अपनी कमर ऊपर उठा ली और कहा- जान.. और तेज जान.. और तेज.. आहह बेबी.. फक मी हार्डर जान.. जान ले लो मेरी.. आहह ऊहह.. ऊहह आहह… ऊईऊई.. आई एम कमिंग जान.. आहह उहह.. मैं गई बेबी..
मेरी इशानी के इस कामुक स्खलन को क्या मेरा लिंग बर्दाश्त कर लेता.. मैंने भी इशानी की योनि में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
दोस्तो.. यह मेरा इशानी के साथ किया हुआ आखिरी संभोग था.. या यूँ कह लीजिए कि हमारे प्यार के वो आखिरी पल थे.. क्यूंकि अगले दिन बारात जाते हुए एक गाड़ी का बहुत बुरा एक्सिडेंट हो गया, गाड़ी में जितने भी लोग थे.. कोई नहीं बचा और उन ना बच पाने वाले लोगों में मेरी इशानी भी थी..
एक्सिडेंट के बाद जैसे-तैसे बिलकुल सादे तरीके से पुनीत भैया की शादी हुई और मैं एक गहरे मानसिक आघात में चला गया.. मेरे अन्दर से जीने की इच्छा ही खत्म हो गई थी.. उस दुर्घटना के बाद मेरी हालत और मेरे डॉक्टर से मेरे माँ और पिता जी को भी हमारे प्यार का पता चल गया।
लेकिन अफसोस.. उस प्यार को पूरा करने के लिए इशानी अब इस दुनिया में नहीं थी। दवाइयों और डाक्टरों की मदद से उस मानसिक आघात से उबरने में मुझे करीब सोलह महीने लगे और इशानी को भुलाने में… जी हाँ.. आज तक नहीं भूला हूँ मैं अपनी इशानी को…!
इस घटना को तो अब कई साल बीत गए.. लेकिन फिर भी लगता है कि कल की ही बात है… जब ईशानी से प्यार हुआ था.. तो बस कॉलेज शुरू किया था और अब तो नौकरी में भी कुछ साल गुज़र गए।
हर एक वो लड़की.. जो मुझे थोड़ी सी भी अच्छी लगती है.. मैं उसमें अपनी इशानी को ही ढूंढता हूँ। अब तो लगता है कि ज़िंदगी इशानी की मीठी यादों में ही कट जाए। बस… प्यार करने से डर लगता है कि कहीं वो भी मुझसे इशानी की तरह दूर न चली जाए.. और प्यार होगा भी कैसे.. जबकि मैं अभी भी इशानी से बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ।
यह थी मेरी और इशानी की कहानी.. जो बस इतनी सी ही थी.. लेकिन मेरे लिए ये प्यार मेरी ज़िंदगी है। क्या ऐसा हो सकता है कि कभी कहीं कोई मिल जाए मुझे.. और वो मेरी इशानी बन जाए..!
क्योंकि किसी और से प्यार करना.. अब इस जनम में तो मुझसे नहीं होगा..।
आप सबकी प्रतिक्रिया का मुझे इंतज़ार रहेगा.. मुझे मेल करिए और अपनी राय लिख भेजिए.. आइए हम और आप मिलकर अपनी बातों में इशानी को हमेशा के लिए ज़िंदा कर देते हैं।
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