पंखी पता नहीं बताते-2
प्रेषक : शकील फ़िरोज़
मैंने धीरे धीरे करके टीशर्ट और हाफपैंट खोल दिए। वो साली काली ब्रेज़ियर और काली पैंटी पहने थी। गोरा बदन और ये काले कपड़े ! साली मस्त लग रही थी।
मौका पाकर रुक्कू ने उसके गेंदों की बाजी उसके हाथ में ले ली। मैंने शब्बो को पलंग पर लिटा दिया और उसकी दुकान को चाटना शुरू किया।
शब्बो- रुक्कू, अब अपनी चूत मेरे मुँह में दे। आ स्साली ! तुझे भी सिखा दूं कि चुदवाते कैसे हैं !
अब उलटा होकर राकेश का लौड़ा चूसना शुरू कर ! और मैं तेरे कुंवारी चूत को रस से तैयार कर दूँ।
रुक्कू ने तो कमाल किया, झट से शब्बो के ऊपर आई और मेरा लौड़ा चूसने लगी।
और शब्बो ने उसकी चूत में आहिस्ता से दो उंगलियाँ घुसा दी। रुक्कू की एक सिसकी आई और फिर शब्बो ने उसके चूत का रसपान शुरू किया।
थोड़ी देर बाद शब्बो पलटी और रुक्कू को लिटा कर अब अपनी दुकान चटवाने लगी।
मैं- तुम्हारी तो चूत नही है ! भोसड़ा बन गया होगा।
शब्बो- हाँ रे राज्जा। मुझे नए और अनजान लौड़े बहुत पसंद हैं। पाकिस्तान से मेरी फूफी आई थी, साली क्या गजब की थी। उसने मुझे चुदवाना सिखाया और मैं रुक्कू को सिखा रही हूँ। ला अपना लौड़ा मुझे पूरी तरह चूसने दे।
इधर रुक्कू तो साली जैसे पुरानी रंडी हो, उस तरह से बारी-बारी शब्बो का भोसड़ा और मेरा लौड़ा चूसे जा रही थी।
शब्बो- रुक्कू, तू यार गजब की चुदक्कड़ बनेगी स्साली ! मेरा भोसड़ा क्या कमाल की चूसती है। बस अब हम दोनों के चूत-भोसड़े को बारी-बारी राकेश को चाटने दे।
मैंने दोनों को एक दूसरे के सामने खड़ा किया और नीचे बीच में बैठ कर दोनों की गांड पर हाथ फेरते-फेरते चाटना चालू किया। थोड़ी देर बाद दोनों की सिसकारियाँ शुरू हुई। रुक्कू तो सातवें आसमान पर पहुँच गई।
शब्बो- बस राकेश ! आओ अब हमें इसे दिखाना है कि कैसे चुदवाना है। रुक्कू तुम इस बीच मेरी गेंदों के साथ खेलो।
मैं- शब्बो, मेरे ऊपर तुम आओ और रुक्कू तुम इसकी गेंद मसलो और चूसो, साथ साथ मैं तुम्हारी चूत चूसता हूँ।
शब्बो ने बड़ी बेताबी से लौड़ा अपने भोसड़े में लिया और ऊपर-नीचे होना चालू किया। और शब्बो के वक्ष को भी मसला जा रहा था। इधर मैंने रुक्कू को चाट-चाट कर बेताब कर दिया। अब वो चाहती थी की उसकी चुदाई हो।
रुक्कू- शब्बो, मुझे लेने दो इसके लौड़े को।
शब्बो- रुक्कू, आराम से, पहले मैं चुदवा लूँ।
इतना कहकर शब्बो मेज़ के ऊपर बैठ गई,
शब्बो- राकेश, अब मुझे खड़े खड़े चोदो।
मैंने लौड़े को आराम से घुसा दिया। बहुत देर चुदवाने के बाद वो घोड़ी बन गई और गांड में लेने के लिए तैयार हो गई। मैंने भी देर न की और झट से डाल दिया लौड़ा उसकी गांड में !
वो चिल्ला उठी और मुझे धक्के बढ़ाने के लिए बोलने लगी, मेरे हर धक्के के साथ कहने लगी- राकेश यार ! मार मेरी गांड ! बहुत तड़प रही हूँ। ऐसे तो बहुत बार गांड मरवाई है ! मगर हमारे वाले मर्दों के लौड़े खतने वाले होते है और बिना खतने वाला पूरा लौड़ा आज तकदीर से मिला।
शब्बो को गाण्ड मरवाते देख कर रुक्कू बोली- छीः ! ऐसे कोई करवाते हैं क्या?
शब्बो- मेरी चुदाई के बाद जब तुझे भी ऐसा लौड़ा गांड में मिलेगा तो बड़ी खुश होगी।
मैंने गांड मार लेने के बाद शब्बो को सीधे से लिटाया और दोनों टांगो को उठाकर सही चोदना चालू किया।
थोड़ी देर बाद शब्बो बोली- राकेश, च च च च चोद न रे भड़वे ! क्यों तडपा रहा है ?
दस मिनट बाद उसके भोसड़े ने पानी छोड़ दिया और उसने अपनी टांगों से मेरे गांड को पकड़ लिया। थोड़ी देर उस पर लेटने के बाद मैं ऊपर से हट गया तो रुक्कू ने मेरे लौड़े को पानी से साफ़ किया और चूसना फिर शुरू किया।
मैंने उसे 69 की अवस्था में आने को कहा। बीस मिनट तक वो मुझे और मैं उसे चाटते रहे !
दुबारा लौड़ा तैयार हुआ तो शब्बो ने मुझे एक दवाई पिलाई और बोली- राकेश, इसकी पहली चुदाई है थोड़ा लम्बा चलने दो !
रुक्कू- क्या पिलाया ? कोई ऐसा वैसा नहीं कर रही है न।
शब्बो- चुप साली ! अरे यह ऐसी दवा है जिससे लौड़ा बहुत देर तक तुझे चोदेगा।
रुक्कू- हाँ बरोबर है, क्या मालूम कि ऐसा मौका कब मिलेगा?
मैंने थोड़ी देर बाद उसे उठा कर मेज़ के पास ले गया और उसे एक टांग मेज़ पर रख कर खड़ा होने के लिए कहा।
जैसे ही मैंने उसकी चूत में लौड़ा घुसेड़ा, रुक्कू बोली- राकेश ! मेरे राज्जा ! अह अह अह ! छोड़ना मत मुझे ! हर तरह से चोद !
मैंने दस मिनट बाद उसे घोड़ी की तरह खड़ी करके पीछे से उसके चूत में धक्के देना चालू किया।
रुक्कू चिल्ला उठी और डर गई क्योंकि उसकी चूत अब फट चुकी थी, खून देखकर वो डर गई।
शब्बो- रुक्कू, डर मत ! तेरी सील टूट चुकी ! अब तेरी चूत भोसड़ा बन गई ! राकेश चोदो इस साली को ! पूरा रस लेने दो और बना दो मेरी तरह रांड साली को ! बहुत चुदवाना चाहती थी, रोज दिमाग चाटती थी।
रुक्कू- राकेश, हाँ मुझे भी शब्बो के जैसे चुदक्कड़ रांड बनना है। बहुत लौड़े लेने है चूत में।
शब्बो- चुप रांड बन गई तू ! अब कहाँ से आई तेरी चूत ! वो तो भोसड़ा बन गई है।
मैंने रुक्कू को अब मेरी गोद में बैठने के लिए कहा जिससे एक दूसरे का मुँह देख सकें। मैं गांड पर हाथ फेरता रहा और उसके चुचूक चूसता रहा और गेंद दबाता रहा। मेरा लौड़ा चोदने के तैयार नहीं था। मैंने रुक्कू को लौड़े के साथ खेलने के लिए कहा।
शब्बो- राकेश क्या गोद में ले के बैठा है उसे ऊपर उठाकर लौड़ा उसके भोसड़े में डाल दे।
जैसे ही मैंने रुक्कू को उपर उठाया और उसकी चूत में सॉरी, अब भोसड़ा बन चुकी थी उसमें लौड़ा डाल दिया तो बड़ी खुशी से उसने अपने भोसड़े मे लौड़े को खुद के हाथों से डलवा दिया, उसने शब्बो की भान्ति लौड़े पर कूदना चालू कर दिया।
शब्बो- राकेश अब इसे दुबारा घोड़ी बना, इसकी कुँवारी गाण्ड को भी लौड़े का मज़ा दे।
मैंने रुक्कू को बिस्तर पर घोड़ी बनने को कहा, शब्बो ने मुझे क्रीम दी और कहा- थोड़ी क्रीम उसकी गांड में ऊँगली से लगा दे और थोड़ी अपने लौड़े पर लगा ले जिससे चिकना लौड़ा गांड में जाने से नखरे नहीं करेगा।
मैंने वैसे ही किया।
रुक्कू- राकेश आस्ते-आस्ते डालना ! मुझे आदत नहीं है।
शब्बो- चुप साली ! तुझे चुदवाना था और तड़प रही थी और जब अब मिल रहा है तो नखरे मत कर। राकेश एक ही झटके में डाल दे साली की गांड में जिससे गांड चौड़ी हो जाए।
मैंने भी फट से डाल दिया लौड़ा उसकी गांड में।
रुक्कू- अह मर गई रे। क्या ऐसा भी कोई चोदता है ? चल अब धीरे धीरे !
शब्बो- चुप री साली ! तू अब रांड बन चुकी है, अनजान लौड़ा ले के अब चुदवा ले बिना चूँ-चा किये।
रुक्कू- हाँ री, हाँ ! पर जरा धीरे से ! मुझे तेरे जैसी आदत नहीं है।
इस बात से मुझे रहम आया और मैंने पहले धीरे-धीरे उसकी गांड में धक्के देना चालू किया और थोड़ी देर में चमत्कार हुआ।
रुक्कू- राकेश भड़वे ! क्या जादू किया लौड़े से ? अब चोद डाल अख्खी गांड ! बहुत मज़ा आ रहा है ! सही में अब पता चला कि लोग औरत की गांड के दीवाने क्यों होते है ?
जिन औरतो ने गांड नहीं मरवाई वो इसे पढ़कर जरूर जान लें कि सारे छेद चुदवाने के लिए होते हैं।
शब्बो ने उसके नीचे झुक कर जैसे-कैसे- रुक्कू की गेंदों को कसकर पकड़ लिया और अपना भोसड़ा उससे चटवाने लगी। रुक्कू अब तेज सिसकियाँ भरने लगी क्योंकि मुँह में भोसड़ा और गांड में लौड़ा। उससे वो संतुष्ट हुई।
रुक्कू- अब कोई और तरीका ?
मैंने अब रुक्कू को दीवाल के साथ टिका कर खड़ा किया और उसकी एक टांग हाथ मैं पकड़कर भोसड़े में अपना लौड़ा डाल दिया और धक्के चालू किये। और एक आखरी धक्के से मेरे लौड़े ने ख़ुशी के आँसू बहाते हुए अपना सारा पानी उसके भोंसड़े में डाल दिया। बस रुक्कू ने झट से सारा वजन मेरे पर डालते हुए अपनी टांगों से मेरी गांड को लपेट लिया। मैंने उसी अवस्था में उसे उठाकर मेज़ पर बिठा दिया और लण्ड अपना काम तमाम करके भोसड़े से बाहर आ गया।
रुक्कू- राकेश साले ! क्या जादू है रे गांड मरवाने में और चुदवाने में ? दुबारा कब मिलेगा रे ?
शब्बो- अरे फिक्र मत कर ! सफर मैं ऐसे लौड़े बहोत मिलते है। एक ही लौड़े से खुश हुई क्या ?
मैं भी देखता रह गया।
शब्बो अब हट गई और पानी लेकर अपना भोंसड़ा धोने लगी और कपडे पहनकर तैयार हुई। अभी भी वो हाफ-पैंट और टीशर्ट में बहुत सेक्सी लग रही थी।
रुक्कू और शब्बो ने पूरे बुरके ओढ़ लिए ताकि कोई पहचान न हो।
शब्बो- देखा राकेश, बुरके का कमाल ! सारा काम तमाम और कोई पहचान ही नहीं। चलो देखते हैं कि बस तैयार हुई क्या ?
अभी मिस्त्री काम कर रहा था, बीस मिनट बाद बस ठीक हुई, इस बीच मैंने अपना टिफिन खा लिया वो दोनों तो चुदवाकर ही खुश थी।
कंडक्टर ने सिटी बजाकर सारे यात्रियों को बुला लिया। बहुत कम लोग रह गए थे। हम बस में एकदम पिछली सीट पर जा बैठे। शब्बो और रुक्कू ने मुझे बीच में बिठाया और चालू बस में भी उनका मकाम आने तक मेरे हाथो से अपनी गेंदों को दबवाया और मेरे लौड़े को सहलाया। बहुत आनंद दिया भी और लिया भी !
उनका स्टॉप आने की कंडक्टर की आवाज से दोनों ने अपना सामान उठाया और चलने लगी।
तो मैंने पूछा- अपना पता भी दे जाओ कभी मौका मिला तो जरूर चोदने आयेंगे।
रुक्कू लिखने को तैयार हुई तो शब्बो बोली- राकेश, उड़ते पंछियों का कोई पता नहीं होता और फुल पेड़ पौधे पता नहीं पूछते।
और बोली-
रहेंगे चमन तो फ़ूल खिलते रहेंगे
रही जिंदगी तो चुदवाने के लिए तुझ जैसे लौड़े मिलते रहेंगे।
बाय बाय कहते हुए दोनों पंखी उड़ गए और यादें छोड़ गए।
तो शकील ऐसा भी होता है सफ़र में !
ये तो तुम मिले और सारी सच्चाइयाँ तुम्हें बता दी। इधर राकेश की कहानी ख़त्म हुई और उधर ट्रेन को सूरत से आया इंजन लग कर होर्न बजाने लगा। हमने झट से ट्रेन में अपनी सीट पकड़ ली और गार्ड के सीटी बजाते ही ट्रेन चालू हुई। वापी आते ही वो उतर गया न उसने मुझे पता दिया न नम्बर दिया।
यह है उड़ते पंखियों की कहानी !
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