किराये का घर-1
सहयोगी : रीता शर्मा
मेरा नाम पंकज है. मेरी उमर 24 साल है और मेरी शादी अभी नहीं हुई है. मैं आगरा में नौकरी करता हूँ. मैंने ऑफ़िस के पास ही एक कमरा किराये पर ले रखा है. मेरा कमरा ऊपर वाली मंजिल पर था. इस घर में नीचे बस एक परिवार रहता था. उसमें एक 18 साल की लड़की सोनल, उसकी मम्मी तनूजा और पापा कमल रहते थे.
सोनल बहुत शरारती थी… कभी कभी वो सेक्स सम्बंधी सवाल भी कर देती थी.
आज भी सवेरे सोनल चाय ले कर आई और मुझसे पूछने लगी- ‘अंकल… मम्मी पापा हमेशा साथ सोते है पर रात को वो लड़ते भी है…’
‘अरे नहीं… लड़ेगे क्यूँ… क्या वो एक दूसरे को बुरा भला कहते है…?’
‘नहीं, पापा मम्मी के ऊपर चढ़ कर…उनकी छातियों पर हाथ से मारते हैं…मम्मी नीचे हाय-हाय करके रोती हैं!’
‘अरे…अरे… चुप… ऐसे नहीं कहते…वो तो खेलते हैं, तुमने और क्या देखा?’ मेरी उत्सुकता बढ़ गई.
‘और बताऊँ… पापा मम्मी का पेटीकोट उतार देते है और खुद भी पायजामा उतार देते है, फिर और भी लड़ते हैं…मम्मी बहुत रोती है और हाय-हाय करती है!’
मैं ये सुन कर उत्तेजित होने लगा. कि ये इतनी बड़ी लड़की हो कर भी अन्जान है या जान करके मुझे छेड़ रही है.
‘अरे तुम्हारी मम्मी रोती नहीं है सोनल… वो एक खेल है जिसमें मजा आता है… तुम नहीं समझोगी…!’
‘अच्छा अंकल इसमें मजा आता है? आपको आता है ये खेल…?’
‘हाँ…हाँ… आता है…!’ मैं सोनल की बातों से से हैरान हो गया… क्या ये सच में अनजान है?
‘अंकल चलो न फिर हम भी खेलें…?’
‘अरे… चुप… ये बड़े लोगों का खेल है… जैसे तुम्हारी मम्मी जितनी बड़ी… तुम भी खेलना मगर शादी के बाद!’ मैंने भी असमंजस में था पर उसे इशारा दे दिया.
‘अंकल मैं भी 18 साल की हो गई हूँ अभी पिछले महीने… खेलो ना मेरे साथ…’ मैंने सोचा अब ये मस्ती कर रही है… चलो थोड़ा सा मजा कर लेते हैं…!
‘अच्छा बताओ कि पापा सबसे पहले क्या करते है…?’
‘वो तो पता नहीं पर वो चुम्मा लेते हैं…’ उसके बताने पर मैं हंस पड़ा और रोमांचित भी हो गया.
‘तो फिर आओ… हम भी यही करते हैं…’
मैंने सोनल को पास बैठा कर उसके होठो को चूम लिया. वो शरमा गई… मैं समझ गया था उसका बहाना.
‘अंकल ऐसे तो अच्छा लगता है… और करो!’
मुझे मजा आने लगा था… सोनल की मन्शा मैं समझ गया था. मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसके नरम नरम होन्ठों पर अपने होंठ रख दिये… सोनल के होन्ठ कांप रहे थे… मैंने अपने हाथों को उसकी छोटे छोटे निम्बू जैसे उरोज पर रख दिये… और सहलाने लगा… सोनल मेरे से और लिपटने लगी… उसकी धड़कन बढ़ गई थी… सांसे तेज हो चली थी.
‘अंकल ये तो और ज्यादा मजा आ रहा है…’ वो कुछ कुछ लड़खड़ाती जबान से बोली… मेरी आंखो में वासना के डोरे उभरने लगे थे.
अब मेरे हाथ सोनल की नरम नरम जांघो पर फ़िसल रहे थे… नया ताजा माल मिल रहा था… सारा बदन अनछुआ लग रहा था. मैंने अपने हाथ उसकी चूत तक पहुंचा दिये…. मेरे हाथ सोनल की चूत पर आ चुके थे… मैंने चूत सहलाते हुये उसे दबा दिया…सोनल ने भी अपनी चूत और खोल दी.
‘अंकल मुझे कुछ हो रहा है…ये नीचे कड़ा कड़ा क्या है ‘ सोनल ने पज़ामे के उपर से मेरा लण्ड कस के पकड़ लिया.
‘बेबी हाय… पकड़ लो इसे…! देखो जोर से दबा कर पकड़ना…!’ मेरे मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. सोनल ने पज़ामे के ऊपर से मेरा तना हुआ कठोर लण्ड पकड़ कर मसल दिया.
‘पापा के भी ऐसा है,…मम्मी इसे चूसती भी है… मुझे भी इसे चूसने दो..’
‘जोर से मसल दे बेबी… फिर तुझे चूसने भी दूंगा…’
मैं तो मस्ती में बेहाल हो रहा था… खेल खेल में ये क्या हो गया हो गया. मैंने अपना लण्ड पाज़ामे में से बाहर निकाल लिया. लाल सुपाड़ा… चिकना फ़ूला हुआ…एक दम कड़क…
सोनल कहने लगी- अंकल ये तो बहुत बड़ा है… ये तो कैसे चूसूंगी…?
इतने में नीचे से सोनल की मम्मी ने आवाज लगाई.
‘बेबी थोड़ा सा चूस तो ले फिर चली जाना!’
सोनल जाते हुये और हंसते हुए बोली- अंकल बड़ा मजा आ रहा है, मैं अभी वापस आती हूं…
मैंने एक गहरी सांस भरी. मैंने सोचा ये तो अब गई. सोनल के जाने बाद मैं अपने रोज़ के कामों में लग गया और नहाने बाथ रूम में चला गया. नहाने के बाद मैं तौलिया लपेट कर जैसे ही बाहर आया तो सोनल की मम्मी तनूजा कमरे में बैठी थी. मुझे वो गहरी नजरों देखने लगी.
‘आप खाना खा कर जाना… मैंने बना दिया है…’
‘जी… भाभी जी…’
‘हाँ सोनल को आपने कौन सा खेल सिखा दिया है…’ मैं एकदम से घबरा गया… मेरा मुँह सूख गया. मेरी हालत देख कर तनूजा बोली- सोनल बहुत खुश नज़र आ रही थी?
‘न… न… नहीं… ऐसा कुछ नहीं ‘ मैंने बचने की कोशिश करने लगा.
‘मुझे भी सिखा दो ना…’
‘जी…जी… भाभी वो तो… खुद ही…’
‘बस बस… सोनल बता रही थी कि… आपने मुझे बुलाया है… ‘ वो और पास आ गई. उसकी मतलबी निगाहें मुझे कह रही थी.
‘नहीं भाभी… मैंने तो ये कहा था कि…ये खेल बड़ों का है… जैसे कि मम्मी…’
‘हाय… पंकज… मैं मम्मी ही तो हूं… सिखा दो ना…’ उसकी आवाज सेक्सी होती जा रही थी. मुझे लगा इन्हे सब पता है…वो सीधे ही लाईन मार रही थी और…मैंने भी ये जान कर अब वार किया
‘तनूजा जी… आप तो रोज़ ही खेलती है… क्या आप…’
‘हाँ पंकज जी… अपनी कहो…खेलोगे…’
मेरे से रहा नहीं नहीं गया. मैंने तनूजा को अपनी ओर धीरे से खींचा.
‘आपकी आज्ञा हो तो…श्री गणेश करूँ…?’ इतना सुनते ही वो मेरी छाती से ऐसे लिपट गई जैसे वो यही चाह रही हो…
अब उसकी आंखे मुझे चुदाई का निमन्त्रण दे रही थी. मैंने भी उसकी आंखों झांका…वासना के डोरे आंखों में थे. वो और मेरे पास आ गई और अपनी चूत को मेरे लण्ड से सटा दिया. मेरा तौलिया जाने कब नीचे फ़िसल गया, मुझे कुछ होश ही नहीं रहा…मैं नंगा खड़ा था… मुझे लगा किसी ने मेरा लण्ड पकड़ लिया है…
मैंने देखा सोनल थी.
‘मम्मी ये देखो… कितना मोटा है… पापा से भी लम्बा है..’
‘अरे सोनल ये क्या कह रही है… पापा का लण्ड…?’ मैं फिर से हैरान रह गया.
तभी तनूजा बोल उठी…’हम जब चुदाई करते हैं…तो ये रोज़ सोने का बहाना करके हमें देखती है… इसे सब पता है…!’
‘पर ये तो कह रही थी कि…’
‘नहीं… बस करो ना…अब भी नहीं समझे, मैंने इसे सिखा कर आपके पास भेजा था.. कि लाईन साफ़ हो तो मैं फिर…’
मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया…’अच्छा जी… सब समझ में आ रहा है… आपकी इज़ाज़त हो तो आगे बढ़ें?’
तनूजा के कपड़े भी एक एक करके कम होते जा रहे थे. सोनल को तो मेरा कड़क लण्ड मसलने में आनन्द आ रहा था. मुझे भी उसके नरम हाथों का आनन्द आ रहा था.
मैंने सोनल के उरोज दबाते हुये कहा- शैतान मुझे बेवकूफ़ बनाया तूने…!
‘अंकल…मुझे तो मम्मी ने कहा था… और मसलो ना अंकल!’
‘नहीं…बस अभी नहीं… पहले मम्मी… पहले वो चुदेंगी… ‘ मैंने मम्मी की तरफ़ इशारा किया.
‘पंकज… पहले इसे हाथ से कर दो… पर देखो इसे चोदना नहीं…’ तनूजा ने सोनल की तड़प देख ली थी.
सोनल ने तुरन्त अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये… उसकी उभरती जवानी… वाह… मैं तो देखता रह गया…उभरी हुई चूत उसकी झीनी पेंटी से झांक रही थी…क्या चीज़ छुपा रखी थी उसने अपनी गुलाबी पेंटी में!
पेंटी के हटते ही पाव रोटी की तरह फ़ूली हुई चूत मेरे सामने थी बिल्कुल गोरी चिट्टी,
झाँटों के नाम पर हल्के हल्के से रौएँ ही थे,
चूत की फ़ांकें संतरे की फ़ांकों जैसी रस भरी,
अन्दर के होंठ हल्के गुलाबी और कॉफ़ी रंग के आपस में जुड़े हुए,
चूत कोई चार इन्च की गहरी पतली खाई जैसे,
चूत का दाना बड़ा सुर्ख लाल बिल्कुल अनार के दाने जैसा,
गोरी जांघें संगमरमर की तरह चिकनी, उरोज छोटे छोटे मगर सीधे तने हुए… अनछुए…
मेरा लण्ड बैचेन हो उठा मैंने उसे अपनी गोदी में बैठा लिया. दोनों नंगे बदन आपस में चिपक गये. धीरे धीरे उसके निम्बू जैसे स्तनों को सहलाने लगा…
‘देखो वो अभी जवान हुई है… उसे बहुत मजा आता है ऐसे करने में… वो सब जानती है… करते रहो…पर रगड़ कर!’ तनूजा मुझे बताती जा रही थी और उत्तेजित भी हो रही थी… उसने अपनी चूत में अंगुली डाल ली थी.
मैंने सोनल की चूत को भी सहलाना चालू कर दिया था. सोनल तड़प उठी थी… वो मेरे लण्ड को खींचने लगी थी… मेरे लण्ड के मुँह पर चिकनाई आने लगी थी. उसकी चूत भीग उठी थी. सोनल ने मम्मी की तरफ़ देखा. वो चूत में अंगुली डाले अन्दर बाहर करने में व्यस्त थी. सोनल ने मेरा तना लण्ड अपनी चूत पर रख दिया और अपनी चूत को लण्ड पर दबाने लगी.
मेरे से रहा नहीं गया. मैंने भी धीरे से जोर लगा कर सुपाड़ा उसकी चूत में घुसा दिया. सोनल के मुख से सिसकारी निकल पड़ी. इसी सिसकारी ने तनूजा की तन्मयता को तोड़ दिया.
वो चौंक गई ‘अरे… ये नहीं… हटो… हटो…’ तनूजा ने जल्दी से उठ कर सोनल की चूत से मेरा लण्ड निकाल दिया…
‘मम्मी… करने दो ना…’ सोनल तड़प उठी…
तनूजा ने सोनल को प्यार किया और बोली- अभी नहीं… सोनल… देख झिल्ली फ़ट जायेगी…! बस बहुत मजे ले लिये…! अब हट जा..!’
सोनल सब समझती थी… उसे तनूजा ने बिस्तर पर लेटा दिया और मुझे इशारा किया… मैंने उसकी चूत चाटनी शुरू कर दी और तनूजा उसके चूचुक मसलने लगी… कुछ ही देर सोनल का पानी निकल गया… पर वो मुझे ही निहार रही थी…
‘पंकज… मैं हूँ ना… अब मेरी बारी है.. प्लीज़ मुझे चोदो ना!’ और मुझसे लिपट गई. मुझे बिस्तर पर धक्का मार कर लेटा दिया.
मेरा लण्ड तो पहले ही चूत के लिये तरस रहा था. जैसे ही वो मेरे ऊपर चढ़ी, मैंने उसे अपने ऊपर लेटा लिया. उसकी चूत पर मेरा लण्ड ठोकर मारने लगा था. कुछ ही देर में मेरे लण्ड को चूत का छेद मिल ही गया. मैंने धीरे से लण्ड अन्दर ठेल दिया.
तनूजा के मुख से एक प्यारी सी सिसकारी निकल पड़ी. लण्ड अपना काम कर चुका था, और उसकी चूत की गहराईयों में उतरता जा रहा था. लगा कि अन्दर नरम सी चूत के अन्तिम छोर को छू गया था.
वो मेरे लण्ड पर अब बैठ गई थी. तनूजा ने अपने चूतड़ ऊपर किए ओर अच्छी तरह से एक धक्का नीचे मार दिया. लण्ड पूरा जड़ तक गड़ गया. तनूजा के दोनों बोबे सोनल ने दबा के मसलने चालू कर दिये. अब तनूजा इत्मिनान से धीरे धीरे अपने चूतड़ हिला हिला कर चुदाई कर रही थी और आनन्द ले रही थी.
सोनल ने अपनी एक अंगुली तनूजा की गाण्ड में डाल दी और घुमाने लगी. तनूजा मस्ती में सिसकारियाँ भर रही थी और मस्ती में कुछ बोल भी रही थी. तनूजा के कोमल धक्के बरकरार थे, वो ज्यादा देर तक मजा लेना चाहती थी पर मैं तो प्यासा था.. मुझसे रहा नहीं गया… मैंने तनूजा को अपने से चिपका लिया और एक पलटी मार कर उसे अपने नीचे दबोच लिया.
वो फ़ड़फ़ड़ा उठी… मैंने अपना सीना ऊपर उठा कर, अपने दोनों हाथ बिस्तर पर जमा कर चूतड़ का जोर उसकी चूत पर डाल दिया. लन्ड उसकी चूत में अन्दर सरकता चला गया.
तनूजा आनन्द से सिसक उठी और उसने अपनी चूत लण्ड से भिड़ा दी… उसका जिस्म मचल रहा था… उसके तन का तनाव… कसमसाना… शरीर की ऐंठन… उसकी उत्तेजना दर्शा रही थी….मुझे स्वर्ग जैसा आनन्द आने लगा. मेरे धक्के अब तेज होने लगे थे.
‘हाय रे मेरी रानी कितनी तंग चूत है…रगड़ के जा रहा है…कितना मजा आ रहा है..!’
‘हाय चोद दो मेरे राजा… मोटे लण्ड का स्वाद अच्छा लग रहा है हाय रे…!’
‘हाय… आहऽऽऽ… ओहऽऽऽ चुद ले मेरी रानी… हाय ले… और ले…’ मैं उत्तेजना में धक्के लगाये जा रहा था. चूत का पानी फ़च फ़च की आवाज कर रहा था.
‘मेरे राजा… ईऽऽऽह्ह… और जोर से… और भी…’
वो अपनी चूत उछाल रही थी और मेरे चूतड़ भी दनादन चल रहे थे…मीठी मीठी सी गुदगुदी तन में भरती जा रही थी. तनूजा मुझे बार बार भींच रही थी.
‘मेरे बोबे दबा डालो राजा… मचका दो इसे… चूंचियाँ खींच डालो मेरे राजा…’
मैंने उसके उरोजो को बुरी तरह से भींचने चालू कर दिये, मुझे आनन्द की चरमसीमा नजर आने लगी थी… तनूजा निहाल हो उठी थी- आऽऽऽह ओऽऽऽह मेरे राजा… चोद डालो… हाऽऽऽय… जोर से…!’
वो मुझे जकड़े जा रही थी… मुझे लगा कि अब तनूजा झड़ने वाली है…मैंने उसकी चूंचियों से हाथ हटा दिया…
‘क्या कर रहे हो…! मसल डालो ना… जल्दी… आऽऽऽह… मैं गई… आह रे…! मेरा निकला…! मैं गई…राजा… मुझे कस लो…’
‘हाँ रानी… निकाल दो अपना पानी… आऽऽऽह…!’
‘मैं मर गई… राजा… हाय रे… ओऽऽऽह ऊऊऽऽऽह्ह्ह… गईऽऽऽ… झड़ गई रे… हाय… हाय…!’
वो अब झड़ने लगी थी… सिसकारियाँ भरती जा रही थी.. तेज सांस चल रही थी…आंखे बंद थी…
उसकी चूत की दीवारें लण्ड को जकड़ रही थी… उसका झड़ना मुझे महसूस होने लगा था…और फिर मेरा बान्ध भी टूटने लगा… मैंने तुरन्त लण्ड बाहर निकाल लिया… मैं लण्ड पकड़ कर मुठ मारने लगा… कुछ ही पलों में तनूजा का चेहरा मेरे वीर्य की पिचकारियों से भर उठा. पिचकारी निकलती रही… उसने अपनी आंखे बन्द कर ली.
मैं शान्त हो चुका था…तनूजा मेरे वीर्य को चेहरे पर क्रीम की तरह मल लिया. अब वो मुस्कुरा उठी और मेरा लण्ड अपने मुँह में भर लिया. सारा वीर्य चूस कर मेरे ढीले लण्ड को छोड़ दिया. सोनल ने कुर्सी पर बैठे बैठे ही मेरा गीला तौलिया हमारी तरफ़ उछाल दिया. तनूजा ने अपना चेहरा साफ़ किया…और मेरा झूलता हुआ लण्ड भी रगड़ कर पोंछ डाला.
अब मैं और तनूजा साथ साथ ही नंगे बिस्तर पर लेट गये थे सोनल भी नंगी ही मेरे साथ चिपक कर लेट गई… मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ हो रहा था… भले ही वो मां बेटी हो…पर आज दो दो हसीनाएँ मेरी दोनों बगल में लेटी थी…
‘अंकल मेरी मम्मी अच्छी है ना…’
‘हाँ सोनल बहुत अच्छी… और तुम भी प्यारी प्यारी हो…’
‘अंकल अब दूसरा खेल सिखाओ ना…’
‘चुप शैतान…!!!’
हम तीनो ही हंस पड़े… पर सोनल उसका हाथ मेरे लण्ड पर बार बार जा रहा था… मैं सब समझ रहा था उसकी बेचैनी… वो तो मेरे लौड़े का आनन्द पाने को बेकरार हो रही थी… उसकी चूत की गर्मी मुझ तक आ रही थी… मैं भी एक हाथ से तनूजा का नंगा बदन सहला रहा था.
वो आंखे बन्द किये सुस्ता रही थी और दूसरी और मेरे दूसरे हाथ की एक अंगुली सोनल की चूत में घुस चुकी थी और मैं उसका योनि-पटल अपनी उंगली से टकराता हुआ महसूस कर रहा था और मेरा मन सोनल की कुंवारी चूत का उदघाटन करने के लिए मचल रहा था.
सोनल का हाथ मेरे लण्ड पर चल रहा था, उसकी मनोदशा भी मुझ से छिपी नहीं थी.
सोनल और मेरी आंखों में इशारे हो चुके थे. यानि चुपके से शाम को…सोनल की एक नई शुरूआत… और मेरे लिए एक नई अनछुई सौगात…
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कहानी का दूसरा भाग: किराये का घर-2
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