रिम्पी और उसका परिवार-1

रिम्पी और उसका परिवार-1

प्रेषक : रुबीन ग्रीन

यह मेरी सच्ची कहानी है। मैं पहली बार अपनी कहानी लिख रहा हूँ।

मैं एक उच्च परिवार से सम्बन्ध रखता हूँ, कोयम्बटूर का रहने वाला हूँ, वहाँ मैं एक बहुमंजिली इमारत में निचले मंजिल पर किराएदार था। मैं व्यापार के सिलसिले में वहाँ अकेले रहता था।

मेरी मंजिल पर ही एक जैन परिवार रहने आया। उस इमारत में जैन समाज के ऊँचे लोग की रहते हैं। उस परिवार में 35 साल की महिला, 42 साल का आदमी और उनके दो बच्चे एक लड़का और लड़की थी। दोनों बच्चे स्कूल में पढ़ते थे।

जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो मेरा लँड आँटी को चोदने के लिये खड़ा हो गया और मैंने आंटी पर लाइन मारना चालू कर दिया। अंकल नौकरी करते थे और उनके वेतन से घर का गुजारा काफी मुश्किल से होता था इसलिये आंटी भी छोटे-मोटे काम करती थी।

मैंने पैसे से उनकी मदद चालू की और उनके बच्चे जो दसवीं और नौवीं के छात्र थे, को चॉकलेट देकर पटा लिया। एक महीने में ही हम काफी घुल-मिल गए। उनकी बेटी रिम्पी मेरे यहाँ टीवी देखने आने लगी। मेरा ध्यान उस पर नहीं था, मैं तो आंटी को चोदना चाहता था क्योंकि वह नाटे कद की भरे बदन की 38 इंच की चूचियों वाली मेरे सपनों वाली औरत थी जिसके बारे में सोचकर मैंने अनेक बार मुठ मारी है।

अब मैं धीरे-धीर उसे इशारे करने लगा कि मैं क्या चाहता हूँ। कभी उसके सामने अपने लंड को सहलाता, तो कभी उसकी चूचियों को देखकर होंठों पर जीभ चलाता। पर वो सारी बातें समझ कर भी केवल मुस्कुरा देती और कहती- तुम जल्दी से शादी कर लो।

पर मैंने अपना काम चालू रखा। मैंने आंटी पर लाइन देना चालू रखा, पर वो सिर्फ अपना मतलब निकालती रही।

इसी बीच एक दिन आँटी और रिम्पी किसी फ़ंक्शन में जा रहे थे और उस दिन के बाद मैंने आन्टी के साथ रिम्पी को भी चोदने का मन बना लिया। उस दिन रिम्पी ने उजला टी-शर्ट और मिनी स्कर्ट पहना था। टी-शर्ट के अंदर उसने ब्रा भी पहनी थी जिस कारण से उसकी चूचियों से तंग टी-शर्ट को ऊपर उठ रही थी।

जिसे मैं बच्ची समझता था वो पूरी तरह से जवान थी और मेरा उसके लिये नजरिया बदल गया। अब मैं उसके साथ खेल में नजदीक आने और उसे छूने की ताक में रहने लगा और उसे बड़ी चॉकलेट देने लगा।

एक दिन जब हम छुपा-छुपी खेल रहे थे, रिम्पी चोर बनी और मुझे उसकी आँखें बंद करनी थी। वो मेरी तरफ पीठ कर खड़ी हो गई। उस दिन मेरा उसको पहला बड़ा स्पर्श था। मेरा लंड खड़ा हो गया। मैंने अपने को उससे सटाते हुए एक हाथ से उसकी आँख बंद की और एक हाथ इस तरह से उसकी चूचियों पर रखा कि उसे यह न लगे कि मैंने जानबूझ कर ऐसा किया है। मेरे हाथ का उसकी चूचियों से संपर्क होते ही मुझे लगा कि मैं स्वर्ग में पहुँच गया और मेरा लंड पैन्ट फाड़ने को तैयार हो गया। पर मैंने किसी तरह अपने पर काबू किया। यह दो मिनट तक चला और उसके बाद वो खेलने लगी और मैंने सीधा बाथरूम में घुस कर अपनी गर्मी शांत की। यह काम लगभग 10 दिनों तक चला और मैंने और भी बहानों से कभी उसकी चूचियों तो कभी उसके नितंबो को छूना चालू कर दिया। एक दिन मैंने एक उपाय सोचा। मैं उसको देने वाली टाफी कमरे के अंदर बनी टाण्ड पर रख दी। दोपहर जब वो स्कूल से आकर अपनी चॉकलेट मांगने आई तो मैंने उसे बोला- वहाँ से उतार लो।

वो कोशिश करने लगी पर ऊँचा होने के कारण उतार नहीं पाई।

तब उसने बोला- आप मुझे गोदी में उठाओ !

मैं यही चाहता था। उसने हाथ ऊपर कर लिए, मैंने अपने दोनों हाथ आगे उसकी चूचियों के पास ले जाते हुए पकड़ कर उठाने की कोशिश करने लगा। मेरे दोनों हाथ उसकी चूचियों को दबाये हुए थे और मैंने उसे उठा रखा था परंतु तब भी वो चॉकलेट नहीं उतार पाई और उसने मुझे और ऊपर करने को कहा।

तब मैंने उसे नीचे उतारा और इस क्रम में मैंने उसकी चूचियों को अच्छी तरह मसल दिया और उसकी गांड में अपने खड़े लंड को भी रगड़ दिया।

उसने पूछा- उतार क्यों दिया?

तब मैंने उसके स्कर्ट पर से उसकी जांघों के पास पकड़ कर उठा लिया। तब भी वह चॉकलेट के पास पहुँच नहीं पा रही थी।

उसने बोला- थोड़ा सा और उठाओ।

तब मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट के अंदर घुसाते हुए अपनी एक हथेली को उसकी दोनों टांगों के बीच ले जाते हुए उसकी गांड और चूत के पास लगाते हुए हथेली से ऊपर उठा दिया।

तब उसने कहा- बस जरा सा और ऊपर अंकल !

और मैंने उठाने के क्रम में उसकी चूत को पैन्टी के ऊपर से सहला दिया।

अभी मैं इसमें खोया था कि उसने बोला- अंकल, नीचे उतारिये !

और फिर मैंने उतारते हुए उसकी चूचियों को रगड़ दिया पर उसने कुछ नहीं बोला और थैन्कयू बोल कर मुस्कुरा कर चली गई और मैं बाथरूम में घुस गया।

अब यह रोज का काम हो गया, वो आते ही बोलती- मुझे गोद में उठाइये।

10 दिनों में वो काफी खुल गई, खेल में भी मुझसे चिपकने लगी। मुझे लगा कि उसे भी मजा आ रहा है। तब मैंने अपना अगला कदम बढ़ाने की योजना बनाई। वो शाम को टीवी देख्नने आती थी, मैंने एक दिन डीवीडी पर ब्लू फ़िल्म लगा कर छोड दी ताकि जब वो आए तो चालू कर दूँ।

वो आई और टीवी देखने लगी। मैं टीवी और डीवीडी का रिमोट लेकर बाथरूम में चला गया और फिर फिल्म चालू कर दी। पहले तो उसे कुछ नहीं समझ में आया, फिर जब उसे समझ में आया, वो बाथरूम की ओर देखने लगी। दरवाजा बंद देख वो आराम से फिल्म देखने लगी। दस मिनट के बाद मैं बाथरूम से निकला और बोला- यह क्या चल रहा है?

और फ़िल्म बंद कर टीवी चालू कर दिया।

उसने बोला- यह फिल्म अपने-आप चालू हो गई।

तब मैंने बोला- ठीक है पर इसके बारे में किसी को बताना नहीं।

उसने पूछा- क्यों?

क्योंकि यह बड़ों के देखने वाली फिल्म है।

उसने कहा- ठीक है !

और मुस्कुराने लगी।

मैं समझ गया कि काम बन गया और फिर आगे की योजना बनाई। दूसरे दिन चॉकलेट उतारते समय फिर से मैंने उसकी चूचियों को मसल दिया। इस बार फिर वो मुस्कुरा दी और फिर टीवी देखने लगी। मैंने डीवीडी पर ब्लू फ़िल्म लगा रखी थी, जिसे मैं उसे बार-बार बदलकर दो-दो मिनट दिखला रहा था और वो काफी ध्यान से उसे देखती थी।

एक घंटे देखने के बाद वो मुस्कुराते हुए उठ कर चली गई।

दूसरे दिन फिर वो स्कूल से आने के बाद स्कूल ड्रेस,जिसका स्कर्ट मुश्किल से जांघो को ढक पाता था, में चॉकलेट लेने आई।इस बार मैंने जब उसे उठाया तो मैंने एक उँगली से उसकी चूत को रगड़ना चालू कर दिया और फिर उतारते हुए उसे कसकर दबा दिया पर ऐसे कि उसे लगे कि यह अनजाने में हुआ है। फिर वह टीवी देखने लगी।

दो मिनट के बाद ही वो बोली- कोई फ़िल्म लगाइये।

मैंने बोला- मेरे पास कोइ हिन्दी मूवी नहीं है।

तब वह बोली- जो है, वही लगाइये।

मैं बोला- बड़ों वाली है, देखोगी?

तो वह बोली- ठीक है।मामला फिट हो गया और मैंने ब्लू फ़िल्म चालू कर दी। दस मिनट देखने के बाद मैंने पूछा- क्या तू जानती है कि यह क्या हो रहा है?

तो रिम्पी बोली- ये गंदा काम कर रहे हैं।

तब मैंने उससे बोला- यह गंदा काम नहीं है, सभी औरत और मर्द यह काम करते हैं, जिसको चोदना कहते हैं और इसमें दोनों को खूब मजा आता है।

यह रोज का काम हो गया, वो खुल कर सेक्स पर बातें करने लगी। मैंने उसे चुदाई की कहानी की किताब दिखाई और पढ़वाई। पर मैं उसे सहलाने और मसलने से आगे नहीं बढ़ा। मैं चाहता था कि यह खुद इतनी गर्म हो जाए कि वो खुद चोदने को कहे।

उसके जन्मदिन पर वो स्कूल नहीं गई। उस दिन उसने लोकट टीशर्ट और लम्बी स्कर्ट पहनी थी। जब उसकी मम्मी काम से चली गई तो वो मेरे पास आई।

मैंने उसके गालों पर चूम कर विश किया, तो उसने मेरा गिफ्ट कहते हुए हाथ बढ़ा दिया। तब मैंने कहा- मुझे मालूम नहीं था, इसलिये मैं नहीं लाया।

फिर मैंने जेब से 1000 का नोट निकाल कर उसे गिफ्ट दिया।

वो बोली- नहीं लूगी, मम्मी डांटेगी।

मैंने वापस लेने से इनकार कर दिया।

तब वह बोली- अभी आप रखो, जब नुझे जरूरत होगी, मैं ले लूंगी।

ठीक है ! पर थोड़ी देर अपने पास रखो, मैंने बोला।

तो वो बोली- मेरे पास जेब थोड़े ना है।

तब मैंने नोट को उसकी टीशर्ट के गले में से उसके अंदर डाल दिया और कहा- लड़कियों का सबसे बडा पर्स उसका ब्लाऊज होता है।

वो शरमा कर मुस्कुराने लगी।

इसी बीच मैंने उसकी चूचियों को भी मसल दिया था।

फिर वह बोली- मेरी चॉकलेट?

मैंने उसे उठा लिया और जैसे ही हाथ को चूत के पास ले गया, मुझे एक जोर का झटका लगा। आज उसने पैन्टी नहीं पहनी थी। मेरा हाथ सीधे उसकी बिना बालों वाली चूत को सहलाने लगा।

दो मिनट में ही वो बोली- अंकल मुझे नीचे उतारिये !

और नीचे उतर गई।

मैंने पूछा- क्या हुआ? चॉकलेट क्यों नहीं उतारी?

वो बोली- मैं अभी आती हूँ।

मैं समझ गया।

दो मिनट में वो वापस मुस्कुराते हुए आई और बोली- अब उठाइये।

मैंने उसे फिर से उठा लिया, मेरा हाथ उसकी स्कर्ट में घुस गया, मैंने देखा कि उसने पैन्टी पहन ली थी। मैंने फिर पैन्टी के उपर से उसकी चूत सहलाई और फिर उतारते समय चूचियों को मसल दिया। फिर वो टीवी देखने लगी।

मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा- बीच में कहाँ उतर कर गई थी?

वो मुस्कुरा दी पर जवाब नहीं दिया। मैंने भी जोर नहीं डाला।

फिर उसी दिन शाम के समय फिर से उसकी चूचियों को मसल दिया।

उसने कहा- छोड़िये ! दर्द हो रहा है।

मैंने छोड़ दिया पर उस दिन खेल-खेल 8-9 बार उसकी चूचियों और गाँड को मसल दिया, उसने कुछ नहीं बोला।

दूसरे दिन शाम को टीवी पर ब्लू फिल्म देखते हुए मैंने उससे पूछा- यह देखने के बाद तुम्हारा मन नहीं करता है?

उसने पूछा- क्या?

मैंने बोला- जो मूवी में हो रहा है।

वो शर्मा गई और बोली नहीं।

तो मैं पहली बार जानबूझ कर उसकी चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए बोला- क्यों ! तुम भी तो बड़ी हो गई हो और तुम्हारी ये तो काफी बड़ी हो गई हैं।

उसने अपनी चूचियो को छुड़ाते हुए कहा- यह क्या कर रहे हैं?

मैंने कहा- क्या तुम्हें मेरा पकड़ना अच्छा नहीं लगा?

और मैंने फिर से एक बार उसकी चूचियों को पकड़ लिया।

शेष आगे जारी रहेगा।

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