वीर्य बना रसायन
लकी मिश्रा
दोस्तो प्रणाम ! मैं अपनी कहानी भी भेजना चाहता हूँ लेकिन मेरे पास कंप्यूटर नहीं है, इसलिए आप प्लीज़ मेरी कहानी में कमियों को अनदेखा कर दीजिएगा। अगर आपने मेरी कहानी को पसंद और अपने दिल में जगह दी, तो मेरा उत्साह बढ़ेगा और मैं और भी सत्य घटनाओं को कहानी के रूप में आपके लिए भेजूँगा।
अब मैं अपनी कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
मैं छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले का रहने वाला हूँ। मेरा नाम लकी है, हमारा परिवार मध्यम वर्गीय श्रेणी में आता है। मेरी उम्र अभी मात्र 22 साल की है। मेरी लम्बाई 5 फिट 7 इन्च है, रंग गोरा और दिखने में बहुत सुन्दर दिखता हूँ।
जब मैं बाहर निकलता हूँ तो कई हसीन जवान लड़कियाँ अपनी चूत सहलाती रह जाती हैं। ऐसा लगता है मानो पतझड़ में भी फूल खिल गए हों!
यह बात उन दिनों की है जब मैं बी.एससी. के प्रथम वर्ष में पढ़ता था। सब लड़कियाँ मुझ पर लाइन मारती थीं, लेकिन मैं किसी को भाव नहीं देता था। मुझे देख कर लड़कियाँ अपनी चूत मसलती रह जाती थीं कि कब मैं उनके छेद में अपना हथियार घुसाऊँ।
एक लड़की थी जो मुझे जान से भी प्यारी थी। उसका नाम कविता है। वो मुझे कभी ध्यान नहीं देती थी। लेकिन उसकी याद में मैं रोज बाथरूम में जाकर मूठ मारता था।
मैं उसे देखकर मुस्कुराता तो था, लेकिन वो कुछ नहीं करती थी, क्योंकि उसका बॉयफ़्रेंड मेरे साथ पढ़ता है, जो उसके पड़ोस में ही रहता है। वो मेरा ‘बेस्ट-फ्रेंड’ भी है शायद इसी बात से वो मुझसे कन्नी काटती थी।
मैं उसके बॉयफ़्रेंड की गणित के सवाल हल करने में मदद करता था, जो वो जाकर अपनी गर्लफ्रेंड कविता को बताता था। मेरे ही कारण कविता उससे प्रभावित थी लेकिन मैं नहीं जानता था कि मेरा दोस्त मेरे पीठ पीछे ये गुल खिला रहा है।
अब इम्तिहान के दिन आए उस दिन हमारे रसायन की प्रायोगिक परीक्षा थी।
हमारे कॉलेज में छात्रों की संख्या बहुत अधिक थी इसलिए परीक्षा के लिए सबको अलग-अलग समय दिया गया था।
हमारे ग्रुप में 5 लड़कियाँ थीं जिनमें मैं अकेला ही लड़का था। सबको कॉपी दी गई और कहा गया कि प्रॅक्टिकल रूम में जाओ और अपना-अपना प्रॅक्टिकल करो।
हमारे बैच वाले अन्दर गए और अपना-अपना साल्ट लेकर प्रयोग करने लगे।
मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरे बैच में कविता थी। उस दिन तो वो कयामत ही लग रही थी। मेरा मन तो कर रहा था कि उसकी कुंवारी चूत में अभी लौड़ा पेल दूँ और उसकी कुंवारी चूत की सील तोड़ दूँ लेकिन मैंने फिर सोचा इतनी जल्दी भी क्या है.. अगर भगवान ने चाहा तो मेरे मन की ख्वाहिश भी जल्दी ही पूरी हो जाएगी।
मैंने अपना साल्ट लिया और प्रॅक्टिकल करके अपना निष्कर्ष जल्द ही निकाल कर टेबल पर रख दिया। सारी लड़कियाँ अभी प्रॅक्टिकल कर ही रही थीं, लेकिन किसी का भी निष्कर्ष नहीं निकल रहा था, सब परेशान थीं, आख़िर में समय पूरा होने वाला था।
अब परीक्षक के रूप में बाहर के कॉलेज की एक मैडम आने वाली थीं। वो देखने मे बड़ी सुन्दर थीं। उसे देख कर मेरा लण्ड पैन्ट फाड़ कर निकलने को बेताब हो रहा था। जी तो करता था कि साली को अभी पटक कर चोद डालूँ।
अब कविता रोने लगी।
मैंने कहा- चुप हो जाओ.. क्या हुआ जो निष्कर्ष नहीं निकला.. इसमें रोने की क्या बात है?
उसने कहा- अगर यह हालत तुम्हारी होती तब तुम्हें पता चलता!
और ऐसा कह कर वो और रोने लगी। मेरे को भी उस पर तरस आने लगा। एक तो वो प्रॅक्टिकल के दिन नहीं आ पाई थी, ऊपर से उसका साल्ट भी खत्म हो गया था और हमें सफेद अवक्षेप या तलछट (प्रेसिपिटेट) लाना था।
वो झुक कर रोने लगी ताकि दूसरे लोगों को पता न चले। तब मैंने उसके मम्मे देखे.. क्या मस्त लग रहे थे.. 34 या 36 के हों.. ऐसे लग रहे थे, मेरा मन हो रहा था कि इनको अभी पी जाऊँ।
अब मेरा लौड़ा भी हिचकोले खाने लगा।
तब मैंने उसकी परखनली ली और कहा- देखो मैं अब निष्कर्ष निकलता हूँ।
मैंने अपना पैन्ट नीचे किया और बैठ गया क्योंकि हमें आखिरी के कोने की टेबल मिली थी, जिसमें हम दोनों के सिवाय और कोई नहीं था। मेरा हथियार देख कर वो पहले तो शर्मा गई फिर नाराज़ हो गई और बोली- यह क्या कर रहे हो? शर्म नहीं आती नंगे होते हुए!
मैंने कुछ नहीं कहा और सड़का मारने लगा।
मेरे लण्ड को देख कर वो भी ‘सिसकारी’ भरने लगी। अब मैं झड़ने वाला था। मैंने अपना वीर्य उसकी परखनली में गिरा दिया। वो उससे देख कर कुछ समझ नहीं पाई कि मैं क्या कर रहा हूँ क्योंकि उसने आज तक किसी को ऐसा करते हुए नहीं देखा था और उसने अभी तक वीर्य भी नहीं देखा था।
अब सब लड़कियाँ जो हमारे समूह में थीं और मैं, खड़े हो गए। मैडम हमारे टेबल के पास आईं और हमसे सवाल पूछने लगीं और प्रॅक्टिकल की परखनली देखने लगीं।
कविता तो कुछ नहीं बता पाई लेकिन मैडम ने पूछा- यह परखनली तुम्हारी है?
उसने कहा- हाँ!
मैडम ने कहा- ठीक है, वेरी गुड..!
मैडम ने मेरी ओर देख कर ‘स्माइल’ दी। मैं समझ गया कि मैडम सफेद अवक्षेप को समझ गई हैं। बाद में रिज़ल्ट आया, तब पता चला कि कविता को सबसे ज़यादा नम्बर मिले हैं। उसने मुझे शुक्रिया कहा और स्माइल दी।
मैंने तुरंत कहा- कविता आई लव यू..!
उसने फिर स्माइल दी मैंने उसका नम्बर माँगा जो मुझे मिल गया और मैंने उसे अपना नम्बर दे दिया।
एक हफ्ते के बाद उसने मुझे कॉल किया- मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ, आज हमारे घर में कोई नहीं है!
मैंने ‘हाँ’ कर दी और मैं ठीक समय पर पहुँच गया।
उसने दरवाजा खोला।
क्या कयामत लग रही थी..!
उसने मुझे अन्दर बुला कर मुझसे चाय-कॉफ़ी के लिए पूछा, मैंने कहा- नहीं..!
उसने कहा- तुम तो बहुत स्मार्ट हो..!
मैं उसका इशारा समझ गया और उसके गालों पर एक चुम्बन दे दिया और हाथों से उसके मम्मे दबा दिए, वो सिसकार उठी।
उसने कहा- दरवाजा तो बंद करो।
हम दोनों ने जल्द ही अपनी काम-क्रियाएँ आरम्भ कर दीं। फिर मैं उसे 69 की स्थिति में भोगने लगा। कुछ देर बाद ही उसको सीधा लिटा कर उसकी चूत में अपना हथियार ठोक दिया।
पहली बार था इसलिए काफ़ी दर्द हुआ। लेकिन थोड़ी देर बाद उसे भी मज़ा आने लगा।
हम दोनों ने अपनी प्यास बुझा ली और अब मौका मिलते हो मुझसे चुदवाती है।
मेरी कहानी आपको कैसी लगी अपनी राय जरूर भेजिए।
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