मेरी चुदाई के कुछ सुनहरी पल-2
मेरी चुदाई के कुछ सुनहरी पल-1
उसका लंड जो कड़क था, वो कुछ ढीला होकर सिकुड़ सा गया।
जल्दी उसने अपना लंड खड़ा कर लिया। इस बार उसने मेरी टांगें फैला कर बीच में बैठ चूत पर रख दिया, घिसा, मुझे स्वर्ग दिखने लगा लेकिन जब झटका सा लगा मेरी चीखें निकल गई। कमरा बंद था, उसने मेरा मुँह बंद नहीं किया।
बोला- एक बार दर्द होगा ही होगा।
“देख, कुछ देर रुक जा!”
लेकिन जब हाथ नीचे लेजा उसको रोका, जब हाथ ऊपर किया, खून देख मैं रोने लगी, “तुमने तो मुझे चोट लगा दी, खून कैसे बंद होगा?”
“बंद हो चुका है।” कह उसने झटके लगाने चालू किए।
कुछ ही देर में मुझे फिर से वो ही स्वर्ग दिखने लगा, कूल्हे उठने लगे। बीस मिनट की चुदाई के बाद वो रुका, उसने मुझे कली से फूल बना डाला था।
मेरी जवानी का सबसे पहले वाला रस उसने पिया था। उसकी चुदाई ने मुझे बदल दिया। मैं उससे मिलने का मौका देखती रहती। कभी स्कूल टाइम में, कभी स्कूल के बाद में ! मुझ पर बहुत निखार आ चुका था।
आठ महीने के अंदर-अंदर में बदल चुकी थी। कई लड़के मेरे पीछे आते थे, पर बबलू मेरे तन के संग मेरे शौक पूरे करता था। मेरे इस चक्कर के बारे दीदी को मालूम पड़ गया लेकिन मुझे कुछ ख़ास नहीं कहा क्यूंकि मेरी चीज़ें वो भी प्रयोग करती थीं।
एक दिन बबलू ने बताया कि उसके पापा की पोस्टिंग होने वाली है और वो यह शहर छोड़ देंगे।
मेरी नींद उड़ गई थी, लेकिन सिर्फ कुछ दिन के लिए। राहुल, वो राहुल जो कबसे मेरे पीछे था, उसके बाप का बहुत बड़ा बिज़नेस था। मैंने उसको लाइन देनी चालू कर दी।
और एक दिन बिना वक़्त लगाए जैसे ही उसने मेरे करीब आकर अपनी गाड़ी का दरवाज़ा खोला मैं बैठ गई। उसने प्रपोज किया।
मैंने कहा- मैंने बहुत सोचा और आखिर में तेरे आगे दिल हार गई राहुल।
हम लोंग ड्राईव के लिए निकल जाते, कार में ही हम मिलते थे, वो मुझे चूमता, सहलाता, दबाता था।
मैंने नोट किया था कि वो चालाक नहीं था। थोड़ा लल्लू टाइप का था लेकिन उसके पास बहुत पैसा था। वो ठरकी किस्म का लड़का था।
उसके साथ चक्कर चलते ही मैंने एक झूठ बोला, मैंने कहा- बीस जून को मेरा बर्थ-डे है।
वैसे मेरा बर्थ-डे सितम्बर में था।
उसने मेरे लिए पार्टी रखी। हमने मिलकर केक काटा और उसने मुझे एक हीरे की अंगूठी गिफ्ट की और मेरे होंठ चूम लिए। हम एक फाईव स्टार होटल के आलीशान कमरे में थे। मैंने उसकी दी हुई ड्रेस पहनी, जिसमे मैं कयामत दिख रही थी।
मेरे दोनों मम्मे और उनके बीच की दरार, किसी भी मर्द का भी लंड खड़ा कर सकता था।
उसने दो मग बियर के बनाए, मैंने मना किया लेकिन उसने तो प्यार का वास्ता दे कर पिला दिया।
बोला- आँखें बंद करो।
मैंने आँखें बन्द कर लीं।
फिर बोला- खोल दो।
सामने एक महंगा मोबाइल फ़ोन था।
“यह तेरे लिए, इस पर नेट भी चलेगा, जिससे हम अपने-अपने घर रह कर भी करीब रहेंगे।”
एक-एक पैग और बियर का पिया। वो मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे रसीले होंठ चूसने लगा, जिससे मैं गर्म होने लगी क्यूंकि मेरे दोनों मम्मे कड़क होकर उसके सीने से दब रहे थे।
उसने मेरी ड्रेस को उतारा और खुद की शर्ट भी उसका सीना चौड़ा था, लेकिन फौलाद नहीं था। बाल बहुत कम थे, जबकि बबलू का सीना बहुत मरदाना था। मुझे टू पीस में देख उसने अपनी जींस खोली उसके पूरे बदन पर बाल कम थे। उसका अंडरवियर फूल चुका था।
मैं नशे में थी। मैंने उसके सामने अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। स्ट्रिप्स गिरते ही मेरे सेक्सी तने हुए मम्मे सामने देख उसका लंड ने उबाल खाया। और उसके खड़े लौड़े को देखा कर चूसने से मैंने खुद को रोका क्यूंकि मुझे लगा कि मैं पूरी जिंदगी उसकी रानी बनकर उसके घर आ सकती हूँ, एक ख्वाव सा देख लिया, वो भी कुछ पलों में।
मैंने दोनों बाँहों से सीने को छुपाया। मैं पहल नहीं कर सकती थी।
उसने कहा- हाथ हटा लो मेरी जान ! अब कैसा पर्दा !
“यह सब ठीक नहीं है राहुल, लव-रोमांस करना ठीक है लेकिन सारी हदें पार करना, बिना किसी रिश्ते के सही नहीं होगा।
“तुम मेरी हो सदा के लिए, इसी रिश्ते से।
“यह जुबानी रिश्ता है।”
“हाँ, पर एक साल तक में तेरे साथ शादी नहीं कर सकता।”
“मंदिर में कर लो, गरीब घर से हूँ। इस गरीबी में यह ख़ूबसूरती ही इज्ज़त है और दूसरी बात घर के हालात बहुत ख़राब हैं।”
“मैं सब सही कर दूँगा।”
“माँ कहती रहती है, कोई छोटी-मोटी नौकरी कर। उसने मेरी पढ़ाई तक रोक देने को कहा है।”
“उसकी तुझे ज़रूरत नहीं।”
मेरा तीर सही जगह लगता दिखा। यह सब चीज़ें मेरी गुरु मतलब मेरी सहेलियों ने आजमाई थी।
“नौकरी और मेरी जान को ! कभी नहीं ! मैं हूँ ना ! माँ को कह दे तुझे नौकरी मिल गई।” वो मुस्कुराने लगा। मुझे बाँहों में लेकर बिस्तर पर जा गिरा।
“हाय, आपके इरादे तो मुझे नेक नहीं लग रहे।”
“आज मैं सब कुछ सही-सही कर दूंगा। एक इसकी तंगी जो पैंट में मुझे तंग कर रहा है और दूसरी तेरी आर्थिक तंगी, जो तेरे घर वालों को परेशान कर रही है।”
“सच्ची कह रहे हो?” बहुत मासूम सा चेहरा बना कर मैंने कहा।
“हाँ मेरी किरण, सच्ची कहता हूँ।” उसने अपना खड़ा हुआ औज़ार मेरे हाथ में थमाते हुए कहा।
मैंने ड्रामा सा किया, मानो पहले कभी लंड देखा तक ना हो।
“क्या हुआ जान? इसको मुझे क्यूँ पकड़ा रहे हैं?”
“यह तेरे लिए ही है।” उसने मेरी चूत पर हाथ फेरा और बोला।
“यह मेरे लिए !” मैंने चेहरा छुपा लिया।
“तुम तो बहुत शर्माती हो रानी !” उसने नंगी को बाँहों में लिया।
उसका लंड मेरी जाँघों के बीच घिसने लगा। जब चूत पर लगा, तो चूत की लालच सामने आई और उसने गप से लौड़े को भीतर बुला लिया।
मैंने एक झूठी चीख मारी, सिसकारी ली और हाय तौबा मचने लगी। दूसरी तरफ उसको अपनी बांहों में जकड़े भी रही। कुछ देर की ‘नूरा-कुश्ती’ के बाद उसका लंड मुर्दा हो गया।
उसने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया। कुछ देर बाद उसने मुझसे वादा किया कि वो मुझसे मंदिर में शादी करेगा। अपना बटुआ खाली करके मेरा बैग भर दिया।
इस सबके चलते चलते मैंने राहुल की मदद से अपनी तीनों बहनों की जिन्दगी संवार दी और बाद में राहुल के घर वालों को हमारे रिश्ते के बारे में पता चला तो उनने राहुल से मेरी शादी नहीं होने दी। हार कर मैंने गुप्ता जी जो उम्रदराज तो थे लेकिन दौलत-मंद थे। उनसे मैंने शादी कर ली और अपने धन की जरूरत को पूरा कर लिया।
यह थी मेरी ‘दास्तान-ए-बदनसीबी’ !
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