ये जीवन तो तेरे लिए ही है
अन्तर्वासना के सभी पाठकों एवं पाठिकाओं को मेरा प्रणाम.
वैसे तो मैं कहानियां लिखने का इतना शौक नहीं रखता हूँ, पर अन्तर्वासना पर कहानियां पढ़कर मेरा भी मन किया कि मैं अपने जीवन में घटी कुछ घटनाओं का वर्णन कहानियों के में करूँ.
कहानी का शीर्षक मेरी जिंदगी के मकसद से मिलता जुलता है.
मेरा नाम संदीप है, मैं पंजाब के जिला मोगा का रहने वाला हूँ. मेरी उम्र 22 साल है, सामान्य शारीरिक संरचना है. मैं कई भाषाओं का ज्ञान रखने के कारण अपने स्कूल और कॉलेज में काफी मशहूर रहा हूँ. यह कहानी मेरी दोस्त से सम्बन्धित है, बचपन से ही हम साथ में पले बढ़े और एक-दूसरे को समझने वाले थे. उसका नाम ऋतु (बदला हुआ) है, उम्र 19 साल, मेरे ही गाँव के पास में रहने वाली, फैमिली रिलेशन्स के चलते हमें एक-दूसरे से मिलने की पूरी छूट थी.
उसकी तारीफ मैं लिखूँ तो 30-28-32 का फिगर, सुनहरी आँखें और हल्के काले बाल, उसकी खूबसूरती को बयान करते थे.
ये बात उस समय की है, जब हम 12वीं कक्षा में थे, पढ़ाई का सेशन लगभग खत्म हो चुका था, एग्जाम नजदीक थे. इस वजह से हमें फ्री कर दिया गया था.
फ्री होने के 2 दिन बाद मैंने देखा कि ऋतु किसी और लड़के से बात कर रही है. ये देख कर मुझे बहुत गुस्सा आया और अगले दिन मैंने उससे बात नहीं की और ना ही उसके घर पे गया. जिसके चलते वो खुद मेरे घर पे आई और बात न करने का कारण पूछने लगी.
मैंने कुछ नहीं बोला. उसके बहुत ज्यादा फ़ोर्स करने पर मैंने बस इतना बोला कि जा उससे बात कर, जिससे गार्डन में कर रही थी.
वो हँसी और बोली- पागल.. क्या सोच रहा है, मैं तो बचपन से सिर्फ तेरी हूँ और तेरी ही रहूँगी. वो मेरी सहेली का बॉयफ्रेंड है.. उन दोनों में झगड़ा हुआ है, तो मैं गई थी.
इस पर मुझे उस पर बहुत प्यार आया. मैंने उसको बोला कि अगर ऐसा है तो प्रूव कर!
उसने बस अपने लिप्स आगे कर दिए और फिर शुरुआत हुई हमारी सेक्स लाइफ की.
उस दिन की किस के बाद तो हमारी लाइफ बदल गई. उस दिन हमने 15 मिनट तक किस किया और इसी बीच प्रॉमिस किया कि हम हमेशा एक-दूसरे को ही पहल देंगे, हमारे बीच न कोई है, न कोई आएगा.
अब बारी आती है उस चीज की, जिसके लिए ये कहानी लिखी गई है मतलब सेक्स की.
इसके एक हफ्ते बाद हमें वो मौका भी मिल गया. एग्जाम के चलते हमने तय किया था कि हम एक साथ सोएंगे, साथ में पढ़ेंगे और ये सब मेरे घर पर होना था. तयशुदा दिन वो मेरे घर आ गई. उसने टाइट फिटिंग वाला रेड सूट पहना था, माँ कसम क़यामत लग रही थी. आते ही मैं उसे अपने कमरे में ले गया और किस करने लगा.
उसका कोई विरोध भी नहीं था, न ही वो साथ दे रही थी. बस जो मैं कर रहा था, करने दे रही थी.
मुझे लगा कि वो खुश नहीं है, तो मैंने पीछे हटकर पूछ लिया कि क्या वो खुश नहीं है?
उसने बोला- तेरी ख़ुशी के लिए… तुम कुछ भी कर लो, मुझे प्रॉब्लम नहीं है.
मैंने भी उसको हाथ नहीं लगाया क्योंकि मैं उसे दुखी करके खुश नहीं होना चाहता था. ये न तो कोई उसे इम्प्रेस करने की चाल थी, न ही कुछ और था. जो कुछ हुआ, सब नेचुरल था.
शायद मेरे इसी व्यवहार से उसने रात को मुझे वो तोहफा दिया जो एक पत्नी अपने पति को देती है.
आज के तय प्रोग्राम से हम दोनों को रात को पढ़ना था. तो खाना खाने के बाद हम लोग पढ़ने बैठ गए.
कुछ टाइम पढ़ने के बाद मैंने उससे कहा कि मुझे सोना है.
ऋतु- क्या हुआ, जनाब का मूड सही नहीं है क्या?
मैं- नहीं यार, बस मन नहीं है.. तुझे पढ़ना है तो पढ़..
ऋतु- मुझे पता है क्यों मन नहीं है, सब मेरी वजह से है न!
मैं- नहीं बाबा.. बस ऐसे ही तू ऐसा मत सोच, यार तेरी ख़ुशी में ही मैं खुश हूँ, सो भूल जा वो सब..
ऋतु- हां, वो तो दिख ही रहा है. आजा मेरी गोद में.. तेरा सर दबा दूँ बाबू!
मैं- नहीं यार.. मैं ठीक हूँ.
ऋतु ने कहा- अब नखरे मत कर.. आजा बोल तो रही हूँ.
मैं मुस्कुराते हुए उसकी गोद में सर रख कर लेट गया
‘बाबू तुझे पता है.. हर लड़की की तरह मेरी भी एक ख्वाहिश है कि मैं जिसको भी प्यार करूँ, अपनी पूरी ईमानदारी से करूँ.. और उसके लिए जो भी बेस्ट पॉसिबल हो.. वो करूँ.’
मैं- ह्म्म्म पता है.
ऋतु- चल एक किस दे दे.
उस टाइम मेरा मूड नहीं था, मैंने एक लाइट सी किस दी.
ऋतु- कितने मतलबी हो यार, जब खुद को चाहिए होता है, तो मुझे कसके पकड़ के करते हो और अब.. जाओ मैं नहीं बोलती.
मैंने उससे पकड़ कर ज़ोर की किस करना शुरू किया और साथ ही उसके बदन पे हाथ फेरना शुरू कर दिया.
बस फिर वो पल आया जब मैंने पहली बार उसको बिना कपड़े के देखा.
उफ़.. उसका वो संगमरमरी बदन, दूध जैसे और गोलगोल मम्मे.. मैंने पहली बार दूध पकड़ा तो वो सिहर सी गई. एकदम रुई के माफिक मुलायम स्तन, पेट पर उसकी नाभि उसके बदन की सुंदरता को चार चाँद लगा रही थी.
मैंने धीरे-धीरे उसके कपड़े अलग किए. इस बार वो साथ दे रही थी. उसके बदन की हर चीज एक से बढ़कर एक थी. उसके बदन को चूमने का ये मौका मैं खोना नहीं चाहता था. तो उसके कान से लेकर उसकी पीठ, गले से लेकर पाँव तक.. हर जगह मैंने अपनी छाप छोड़ी. इस बीच वो बहुत गर्म हो चुकी थी, जिसका अनुमान उसकी साँसों के फूलने और पैरों के फैलने से लगाया जा सकता था.
अब बारी थी उस अंतिम चरण की, जब हम एक होने वाले थे. उसको इशारे से पूछने के बाद मैं उसकी टांगों के बीच आ कर बैठ गया और अपना लिंग उसकी योनि पर लगा कर उसके ऊपर लेट गया.
एक हाथ से अपने लिंग को योनि द्वार पर लगा के जब हल्का सा अन्दर को धकेला, तो उसके हाथ अपने आप ही मेरे पीठ पर आ टिके. शायद उससे दर्द हो रहा था. थोड़ा दबाव देने पर लिंग का ऊपरी हिस्सा उसकी योनि में प्रवेश कर गया और उसके नाखून मेरी पीठ में गड़ गए. जिससे मुझे पता चल गया कि उसको कितनी पीड़ा हो रही है. वो उसको सहन करने के लिए मुझे खरोंच रही है.
अब मैं चाहता था कि ये पीड़ा जल्द खत्म की जाए, जिसका इलाज था लिंग का योनि में पूरा प्रवेश. तो मैंने एक तगड़ी हिट से ये काम भी कर दिया और उसके सामान्य होने तक उसके ऊपर लेट गया और उसके अंगों को चूमने में लग गया.
इस समय मेरे मन में उसके लिए इज्जत और स्नेह और बढ़ गया कि वो मुझे खुश करने के लिए ये पीड़ा सहन कर रही है.
कुछ समय बाद जब वो सामान्य हुई तो मैंने लिंग को आगे-पीछे करना शुरू किया. जिसकी रफ़्तार स्ट्रोक दर स्ट्रोक बढ़ती गई. उसकी पीड़ा अब आनन्द का रूप ले चुकी थी, इसीलिए शायद उसके होंठ अब अपने आप मेरे होंठों से जुड़ने लगे थे.
मैं इस समय की तौहीन नहीं करना चाहता तो पाठकों से माफ़ी चाहूँगा कि ‘आह ऊओह..’ जैसी आवाजें, मैं इसमें नहीं डाल रहा हूँ, क्योंकि सेक्स हमेशा लंड और चूत का खेल नहीं होता, कभी-कभी प्यार का प्रतीक भी होता है.
इस बीच न जाने कितनी बार हमारे होंठ मिले, कितनी बार हमने एक-दूसरे के बदन को निचोड़ा और कितना बार एक-दूसरे की आँखों में देखकर उसके मन का हाल पढ़ने की कोशिश करते रहे.
करीब 15 मिनट के इस परिश्रम के बाद अब मैं थकने लगा था और शायद मेरी संगिनी भी चरम पाने की कगार पर थी.
सो हमने इस पल को धीरे और प्यार से जीना शुरू किया. हर एक शॉट पर अब हम एक-दूसरे को कस लेते और किस करते. कुछ देर बाद उसका.. और फिर मेरा स्खलन हुआ और मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा.
इसके बाद की कहानी अगली बार लिखूंगा. मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको पसंद आई होगी. आपकी ईमेल के हिसाब से ही इस प्रेम से भरपूर सेक्स स्टोरी का अगला भाग लिखूँगा.
आपका अपना संदीप
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