हरिद्वार के सफ़र का हमसफ़र
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम प्रवीण है, 24 साल। मैंने हाल ही में अपनी इंजीनियरिंग के चार साल पूरे किये हैं और M.Tech का छात्र हूँ। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। बहुत सी कहानियाँ पढ़ीं आज सोच रहा हूँ, अपनी एक कहानी आप सभी के साथ शेयर कर लूँ।
तो दोस्तों बात 2011, जून की है, मैं किसी काम से देहली गया था, और वहाँ से मौसी के घर ऋषिकेश जाना था।
अचानक ही प्रोग्राम बन जाने के कारण ट्रेन से जाना मुश्किल था, सो मैंने बस से जाना ही ठीक समझा।
मुझे रात का सफ़र करना आरामदायक लगता है, इसलिए उस दिन भी रात में ही जाना ठीक समझा, पर नहीं मालूम था कि इतना आनन्ददायक होगा।
मैंने टिकट लिया और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया और हेडफोन लगा कर गाने सुनने लगा।
बस भर चुकी थी और कुछ ही देर में चलने वाली थी। केवल मेरे बाजू वाली सीट खाली थी। जैसे ही बस चलने लगी, एक सुन्दर सी लड़की बस पर चढ़ी और मेरे बाजू में आकर बैठ गई।
औरत की मैं हमेशा से ही इज्जत करता आया हूँ, उस वक़्त भी मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं आया, मैंने उसे खिड़की वाली सीट दे दी और खुद उसकी सीट पर बैठ गया।
बदले में मुझे प्यारी सी मुस्कराहट और ‘थेंक-यू’ मिल गया था।
रात के 9 बज चुके थे और बस चलने लगी थी। हम दोनों भी आपस में बात करने लग गए थे।
लड़की का नाम प्रिया था और वो किसी रिश्तेदार के घर ही जा रही थी।
लड़की का फिगर देखने लायक था। जब वो आई थी, मैं तो देखता ही रह गया था। लम्बे बाल, 5 फुट 5 इंच, वक्ष 34 इन्च, कमर 28 और नीचे से उसके उठे हुए नितम्ब, बहुत ही मस्त थी।
अब मेरा भी मन थोड़ा डगमगाने लगा था। हमने हँसी मजाक शुरू कर दिया और वो मेरे साथ खुद घुलमिल गई। अचानक हम दोनों के हाथ एक दूसरे के हाथ में आ गए और हमने चाहते हुए भी अलग नहीं किये।
मैं उसके करीब चिपक कर बैठ गया। वो भी सरक कर मेरे करीब आ गई। हम दोनों ही थके हुए थे, नींद भी हावी हो रही थी।
प्रिया मेरे कंधे पर सर रख कर सो गई और मैंने उसके पीछे से हाथ डाल कर उसे थाम लिया।
थोड़ी ही देर में प्रिया ने मुझे उसे अपनी गोद में सर रख कर सुलाने को कहा तो मैंने उसे अपनी गोद में सर रख कर लिटा लिया।
रात का करीब एक बज रहा था, बस के अन्दर की लाइट भी ऑफ हो चुकी थीं। अचानक मुझे महसूस हुआ कि मेरी पैंट में हलचल हो रही है। मेरा लण्ड धीरे-धीरे कड़क होता जा रहा था क्योंकि प्रिया मेरे लंड के ऊपर ही सर रख कर सोई थी।
मेरा मन प्रिया को जकड़ने का हुआ, पर हिम्मत नहीं हुई। फिर किसी तरह मैंने हिम्मत करके उसकी पीठ को सहलाना शुरू किया। शायद उसे अच्छा लगने लगा था, तो मैं अपने हाथ उसके पूरे बदन पर फेरने लगा। अब वो भी मेरे पैर को अपने हाथों से सहला रही थी।
मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी है, मैंने अपने हाथ उसकी छाती के ऊपर रख दिया।
वो जोर जोर से सांसें लेने लगी, जिससे उसकी छाती का फूलना मैं महसूस कर सकता था। मैं अब उसके उरोज मसलने लगा।
उसके चूचों के क्या कहने मैंने अन्दर दूध भरा हो, एकदम मुलायम! मैं जोर से दबाने लगा। तभी वो अपने हाथ से मेरे लंड को छेड़ने लगी।
हम दोनों ही अब एक दूसरे में खो जाना चाहते थे पर बस में होने की वजह से कुछ नहीं कर पा रहे थे।
हम दिल्ली से 9 बजे चले थे, तो ऋषिकेश 3 बजे करीब पहुँच जाते, इसलिए मैंने सोचा क्यों न हरिद्वार रुक लिया जाये।
करीब 2.15 पर बस हरिद्वार पहुँची और हम दोनों बस से उतर गए, दोनों ही एक-दूसरे को देखे जा रहे थे। मैंने पास में ही एक होटल बुक किया और हम दोनों वहाँ चल दिए।
अब हम दोनों के बीच कोई नहीं था। जैसे ही हम रूम में पहुँचे, एक-दूसरे पर टूट पड़े। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने उसे कस कर पकड़ लिया और उसके होंठ चूसने लगा। वो मुझे कस कर पकड़े हुई थी, मेरे दोनों हाथ उसके चूतड़ों पर थे और उसकी चूत से अपने लंड को रगड़ रहा था।
मैंने जोश में आकर उसका टॉप उतारा और ब्रा खींच कर उतार दी। जोश इतना अधिक था कि उसकी ब्रा फट गई और पेंटी भी फाड़ डाली।
उसने भी मुझे पूरा नंगा कर डाला। हम दोनों अब पूरी तरह नंगे हो चुके थे। मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसके दूध चूसने लगा। एक हाथ से उसकी चूत रगड़ने लगा, तो वो मेरा लंड खींच कर अपनी चूत पर लगाने लगी।
तभी मैंने अचानक अपना लंड पकड़ कर उसकी चूत के ऊपर रखा और एक जोर का धक्का मारा।
मैं एकदम नई चूत को फाड़ रहा था, जिस वजह से प्रिय चीख पड़ी और मुझे धक्का मार कर किनारे करने की कोशिश करने लगी। पर मैं कहाँ रुकने वाला था, इसलिए उसके मुँह को अपने मुँह से बंद कर दिया और उसकी चूत को भी उसकी ब्रा-पेंटी की तरह फाड़ कर रख दिया।
कभी मैं उसके ऊपर आकर उससे चोदता तो कभी वो मेरे ऊपर आकर मुझे चोदती।
करीब 4 बजे तक हम एक दूसरे को चोदते रहे। अब हम थक चुके थे, इसलिए एक-दूसरे से लिपट कर सो गए और एक-दूसरे के बदन को जकड़ कर रखा।
करीब 6 बजे हम दोनों की नींद पता नहीं कब खुली और हम दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे। सुबह का वक़्त था, ठण्ड लग रही थी। इसलिए गर्मी चाहिए थी और हम फिर वो ही सिलसिला शुरू करने लगे।
अब वो मेरे लंड को पकड़ कर चूसने लगी। जब लंड कड़क हो गया तो मैंने उसकी टाँगें चौड़ी कर के फिर उसको जन्नत की सैर करवा दी।
फिर एक बार बाथरूम में भी चुदाई का कार्यक्रम चला, और 10 बजे हम होटल से निकल गए।
उसके बाद हम अपने अपने रिश्तेदार के घर चले गए और बीच में कभी-कभी मिल लिया करते थे वापस जाते टाइम भी हम साथ में ही गए।
और अब जब भी मौका मिलता है, तो एक दूसरे को चुदाई से खुश कर देते है।
तो दोस्तो, यह थी मेरी पहली चुदाई! आपको कहानी कैसी लगी, जरूर लिखना! फिर आपको प्रिया की सहेली की कहानी भी तो बतानी है।
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