अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे -आह्ह्ह फाड़ दो मेरा भोंसड़ा पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो!

अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे -आह्ह्ह फाड़ दो मेरा भोंसड़ा पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो!

अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे -आह्ह्ह फाड़ दो मेरा भोंसड़ा पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो!

मेरा पहला सेक्स अनुभव मेरी विधवा माँ के साथ का है। हमें बच्चा जानकर वह हमारे एक अंकल जी के साथ खुलेआम नंगी होकर सेक्स कर लेती थी। जब अंकल जी रात को हमारे घर रुक जाते तो मम्मी मुझे बहन के बिस्तर में सुला देती; नहीं तो मैं उनके साथ ही उन्हीं के बेड पर सोता था। हमने उनको नंगी होकर अंकल के साथ मस्ती करते खूब देखा था। मम्मी अक्सर अन्य मर्दों के साथ भी दिन में ही नंगी गुथमगुत्था कर लेती थी। लेकिन तब हम इन बातों का मतलब नहीं जानते थे।
एक रात अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे और मैं बहन के बिस्तर में था। अचानक मेरे भीतर कोई एक अनोखी तरंग पैदा हो गयी। अपने कमरे के दरवाजे को थोड़ा सा खोल के मैं मम्मी की रासलीला देखने लगा। मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार फेंके और बहन को जगा लिया। मैंने कहा- चल मम्मी की तरह तू मुझसे लिपट जा। मैं अंकल की तरह तुझे ‘प्यार’ करूंगा।
बहन भी मम्मी की रास-लीला को मस्ती में देखने लगी। जब करंट बना तब मुझसे चिपट भी गयी। मेरा लंड पकड़ लिया। मैं उसके कपड़े उतारने लगा तो उसने  विरोध नहीं किया। हमें यह नहीं पता था मुझे मेरे खड़े लंड का क्या करना है? ना ही बहन को पता था की उसकी गीली हो रही चूत का राज क्या है! फिर भी लिपटा-चिपटी में ही बड़ा मजा आया और हम अक्सर ऐसा करने लगे।
एक रात, जब मैं कोई 18 साल का हो गया था, माँ के साथ लेटा हुआ था। रात के करीब डेढ़ बजे आँख खुली तो मैंने पाया कि मेरा लंड कड़क हो रहा है। कमरे में नाइट बल्ब का गहरा गुलाबी प्रकाश फैला हुआ था। माँ की तरफ देखा तो मेरे भीतर फिर वही तरंग जाग उठी- पेटीकोट के उघड़ जाने से मम्मी की मस्त जांघे नंगी चमक रही थी। बिना ब्रा के ब्लॉउज में भी उनके तगड़े उरोज मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे।
मैंने अंकल की तरह अपने कपड़े बड़ी तसल्ली से अपने कपड़े उतारे और बेफिकर हो मम्मी की चूत पर से रहा-सहा पेटीकोट का हिस्सा भी ऊपर को कर दिया। पूरी तसल्ली से उनकी चूत निहारते रहने के बाद मैंने उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मम्मी निश्चित रूप से नींद में थी लेकिन उन्हें उसी दशा में जाने कितना मजा आने लगा कि वे अपनी टांगों को फैलाते हुए मदमस्ती में बोल उठी- आह जानी, अब चूसो इसे!
मुझे सिखाने की जरूरत नहीं थी। मैंने अंकल को यह सब करते खूब देखा था। मैं बिना समय गँवाये उनकी चूत को चाटने लगा। मम्मी भी अब तरंग में आने लगी।  अपने पैरों को पूरा फैलाते हुए उन्होंने मेरे सिर को पकड़ के अपनी चूत पर दबाना शुरू कर दिया। साथ ही अपनी कमर को ऊँची करके चूत को मेरे मुंह में ठेलने लगीं। उनकी चूत अब तक इतनी गीली हो चुकी थी कि रस के मारे मेरा मुंह भरा जा था।
“अब डाल दो! जल्दी से डाल दो अपना गर्म लंड! फाड़ दो मेरा भोंसड़ा!” मम्मी तड़पने लगी थी।
मेरे कुछ समझ में नहीं आया तो मैं चूत चाटना छोड़ कर मम्मी के ऊपर पसर गया। उनके ब्लाउज के हुक खोल कर मस्त बूब्स को चूसने लगा। मम्मी ने आह-ऊऊऊह करते हुए टटोल कर मेरा लंड पकड़ लिया और उसे अपनी चूत पर सेट करके खुद ही नीचे से ऐसा धक्का दिया कि मेरा पूरा लंड सरसराते हुए अंदर चला गया। मजा तो मुझे बहुत आया और जैसा मैंने अंकल को पेलते हुए हुए देखा था उसी तरह मैं भी मम्मी को पेलने लगा। एक  बार कमर उठा के धक्का देते ही इतना मजा आया कि बता नहीं सकता। फिर तो मैंने धकापेल मचा दिया। झटके पर झटका देता चला गया। किसी मशीन की तरह अब मेरा लंड माँ की चूत में सटा-सट भीतर बाहर हो रहा था। अब तक मम्मी की नींद पूरी तरह टूट चुकी थी। शायद उन्हें शंका हुयी। मजे लेते हुए ही वे पूछने लगीं- कौन हो तुम? आअह्ह! कैसी गजब की चुदाई! आह्ह, कितना मजा रहा है! आह्ह, पहले किसी ने मुझे ऐसा नहीं चोदा! इतना मजा किसी ने नहीं दिया! आह्ह्ह! पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो! फाड़ दो मेरा भोंसड़ा!
मैंने उसे मजबूती से ऐसे पकड़ रखा था कि वह आस-पास देखने की स्थिति में भी नहीं थी। अचानक ही वह ईईईईईई करते हुए ढीली पड़ गयीं। लेकिन मैं पेलता रहा और तब अचानक मुझे ऐसा लगा मानो मेरा ‘पेशाब’  बेकाबू होकर उसकी चूत में निकला जा रहा हो। मैं चिल्लाया- ओह, मम्मी! मेरा पेशाब निकल गया!
मैंने गौर किया कि अवाक् मम्मी की आँखें पथरा सी गयीं और मुंह खुला-का-खुला ही रह गया। उन्होंने मुझे अब पहचाना कि उनकी चूत के रास्ते उनको ‘गजब का मजा’ देनेवाला लंड कभी उन्हीं की चूत से निकला था।

अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे -आह्ह्ह फाड़ दो मेरा भोंसड़ा पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो!

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अंकल मम्मी पर चढ़े हुए थे -आह्ह्ह फाड़ दो मेरा भोंसड़ा पेलो, मुझे और भी जोर से पेलो!