योनि का दीपक- भाग 3
योनि का दीपक- भाग 2
में आपने पढ़ा कि
मैं गुस्से से खड़ी हो गई- तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? मेरे कपड़े मुझे दे दो!
वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया, टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।
“जस्ट एक मिनट रूक जाओ, मेरी बात सुनो।”
“बोलो?”
“कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।”“अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।”
वह कुछ आश्वस्त सा हुआ, बोला- देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता! आय लव यू!
मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी, मैंने कहा- मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया, मैं बाय कहकर निकल पड़ी।
बाहर मैंने टैक्सी रुकवाई और बैठ गई। मैंने ड्राइवर को तेज गाड़ी चलाने कहा। मैं आवेश में थी, क्या बोल गई। इतना बेशरम मैं कैसे हो सकती हूँ? क्या सोचकर आई थी और क्या हो गया। उसने मेरी भावनाओं और इतने सुंदर आर्ट की कद्र न की।
खिड़की से बाहर खंभे, मकान, पेड़ आदि तेजी से गुजर रहे थे। मैं भी इस गाड़ी की तरह आज कितनी ही चीजों को पीछे छोड़ते आगे बढ़ी जा रही थी। कहाँ तो एकदम परम्परागत लड़की थी – शादी से पहले नो किसिंग, न हगिंग, फकिंग तो बहुत दूर की ही बात थी। लेकिन आज एकबारगी न सिर्फ टैटू वाले के सामने टांगें खोलकर चूत पर चित्र बनावाया बल्कि अपने ब्वायफ्रेंड, जिसको लाख मनाने के बावजूद अपनी छातियों को महसूस भी न करने दिया था, उससे बूब्स और पुसी दोनों को चुमवा और चुसवा भी लिया।
लेकिन उसने मेरी हिम्मत और लगाव को किस रूप में लिया? मुझे बार-बार आँखें पौंछनी पड़ रही थी।
कलाकार की दुकान को देखकर मैं चौंकी कि मैं सचमुच यहीं आ गई। मैंने गुस्से में टैक्सी वाले को यहीं का पता दिया था।
मुझे देखते ही खड़ा हो गया- अरे तुम? इतनी जल्दी? वहाँ गई भी या नहीं?
“मैं वहीं से आ रही हूँ।”
“ओके, गुड” उसने मुझे इज्जत से बिठाया और बोला- “वेलकम अगेन!
“कैसा रहा?”
“वंडरफुल, फैंटास्टिक…”
“तुमने कर लिया?”
“हाँ।”
“लेकिन तुमने बहुत जल्दी निपटा लिया? मजा आया तुम्हें?”
इस सवाल में उसका अपना मतलब भी निकलता था। निकलने दो, कौन ये मेरा प्रेमी है। प्रेमी ने तो फूल बरसाए और फिर अपमानित किया। यह क्या करेगा? करने दो जो करता है। मेरी नजर उसकी पैंट में चेन के पास चली गई।
आज मैं अपने बॉयफ्रेंड का वो भी देखना चाहती थी, उसका मौका ही नहीं आया।
मैंने कहा- हाँ और नहीं दोनों।
“अरे! ऐसा कैसे?”
“तुम अब ये टैटू मिटा दो।” कह कर मैं उसी टेबल पर जा बैठी जिस पर गुदना बनवाया था।
“वहाँ नहीं, यहाँ बैठो” उसने मुझे अपनी सुंदर गद्देदार कुर्सी पर बैठाया।
“वो खास तौर पर दीवाली का गिफ्ट है। कम से कम आज भर तो रखो। वैसे भी मुझे अपने आर्ट को इतना जल्दी रिमूव करने में दुःख होगा।”
मैं उसके चेहरे को देखती रह गई; क्या बोल रहा है, इसको आज फिर से मेरी पुसी देखने का मौका मिल रहा है और यह उसे छोड़ रहा है। कह रहा है अपने आर्ट को रिमूव करने में दुख होगा। मेरे प्रेमी ने तो ठीक से देखा तक नहीं और तुरंत उस पर मुँह लगा दिया और यह उतनी देर तक देखकर भी अविचलित रहा। दुबारा आई हूँ तब भी फायदा उठाने की चिंता में नहीं है। आर्ट की कद्र करने को कह रहा है।
मैंने सिर झुका लिया, मेरी आँखें डबडबाने लगीं।
उसने मेरे कंधे थपथपाए, मेरे हाथ से आँसुओं से भींगा रुमाल लेकर सूखने के लिए फैला दिया।
“नैस हैंकी…” उसका इतना अधिकार दिखाना और अप्रत्यक्ष तारीफ करना मुझे अच्छा लगा।
“अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं पूछ सकता हूँ कि क्या हुआ? तुमने कहा कि एंजॉय किया भी और नहीं भी किया?”
मैंने शब्दों के लिए अटकते अटकते उसे संक्षेप में घटना कह सुनाई।
घटना ही ऐसी थी।
मैंने उसको ब्वायफ्रेंड को बोली हुई अंतिम बात नहीं बताई कि उसी कलाकार के पास फिर से जा रही हूँ ‘टू गेट प्रोपरली फक्ड…’
मेरी बात सुनता हुआ वह नॉर्मल रहा। लेकिन साथ ही मैंने नोटिस किया कि उसकी पैंट में उभार लगातार बना रहा था, उसे अपने मनोभावों पर नियंत्रण करना आता था।
“तुम कितनी अच्छी लड़की हो… उसने तुम्हारी कद्र नहीं की!”
“अब क्या फायदा… मिटा दो इसे!”
“ना.. नहीं… बल्कि मैं तो इसे और सुधारना चाहता हूँ!”
“वो क्यों?”
“यह तुम्हारा फैसला था, तुम्हारी उसके लिए वेल विशिंग थी… यू लव्ड हिम, इसलिए तुमको सॉरी फील नहीं करना चाहिए। बल्कि तुम्हें इसकी खुशी मनानी चाहिए.”
मुझे लग रहा था कि यह मुझे फिर से वहाँ पर देखना करना चाहता है, मैं सोचने लगी।
“क्या तुम फिर से मुझे वहाँ पर देखना चाहते हो?” मैंने पूछ ही लिया।
वह हँस पड़ा, “यू आर सो इन्नोसेंट!”
इसका मतलब क्या हुआ? मैं सोच में पड़ गई। क्या मैं बेवकूफ हूँ? ऐसे काम करने वाली लड़की बेवकूफ न होगी तो क्या होगी।
वह गया और अपनी पेंसिलें कूचियाँ ले आया। मेरे पैरों के पास एक पिढ़िया रखकर बैठ गया। इस बार उसका नीचे बैठना भी खास मकसद का लगा।
उसने मेरे पैर उठाकर कुर्सी की सीट पर ही मेरे नितम्बों के पास रख दिए।
मैंने अपना मोबाइल चेक किया। स्क्रीन पर कोई मिस्ड कॉल का नोटिफिकेशन नहीं था। कहीं साइलेंट तो नहीं है? नहीं, रिंग का वॉल्यूम फुल था।
कलाकार मेरी ‘उस’ जगह को गौर से देख रहा था। मैंने कुर्सी की बैकरेस्ट पर सिर रख दिया। होने दो जो होता है। आज दीपावली है। मैरी कैसी दीपावली मन रही है! मुझे पेंसिल की चुभन महसूस हुई। मैंने आँखें मूंद लीं। माता लक्ष्मी, मुझे माफ करना।
पेंसिल की नोक की चुभनें, ब्रश की सरसराहटें, कभी कभी कुछ रगड़ना मैं इन सबको महसूस करके भी जैसे नहीं कर रही थी।
चित्रकार ने ज्यादा समय नहीं लिया।
“ये रही तुम्हारी तस्वीर!” उसने मुझे आइना दिया. मैंने देखा, ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ शब्दों के नीचे उसने एक एक कलश और स्वस्तिक का निशान बना दिया था।
मुझे लगा, यह भी ज्यादा हो गया। मैं इतनी शुभ कहाँ थी- तुम मुझे ओवररेट कर रहे हो! आय एम ए चीप गर्ल!
“नेवर से सो (ऐसा हरगिज मत कहना)”
मेरे मोबाइल की घंटी बजी, लपककर मैंने उठाया, उसी का फोन था। इतनी देर लगी उसे फिर से फोन करने में! मैंने फोन काट दिया।
वह मुझे देख रहा था- मेरी पुसी से लेकर चेहरे तक, एक सीध में। जलती हुई लौ के अंदर मेरी योनि। उसके दोनों तरफ स्वस्तिक और कलश के शुभ के प्रतीक।
“इसे एक दो दिन तक जरूर रखना!” कहता हुआ वह उठने लगा।
मैंने उसके कन्धे दबा दिये, वह पुनः बैठ गया।
कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: योनि का दीपक- भाग 4
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