चूत चुदवाने की चाहत पड़ोसन की
मेरा नाम सुनील है, मैं पुणे का रहने वाला हूँ। अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है। मैं यहाँ पहली बार अपनी आपबीती बताने जा रहा हूँ.. जब मैंने पहली बार सेक्स किया था, तब मैं पढ़ता था।
मेरे घर के पास एक लड़की रहती है जिसका नाम संध्या है। देखने में वो थोड़ी सांवली है.. मगर उसका फ़िगर कमाल का है, मम्मे एकदम तने हुए.. पतली कमर.. कूल्हे बाहर को निकले हुए हैं।
ना जाने कितनी ही बार मैंने उसके नाम की मुठ्ठ मारी होगी.. मगर कभी उससे कहने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि मैं ज्यादातर लड़कियों से दूर ही रहता था.. उनसे बात भी नहीं करता था।
एक बार की बात है.. वो मेरे घर आई और उसने कहा- मेरी सामान का थैला घर पर पहुँचाने में तुम मेरी मदद कर दो..
मैंने सामान का थैला घर में रख दिया.. तो उसने मुझे धन्यवाद कहा और चाय के लिए रोक लिया।
उस वक्त शायद वो घर पर अकेली थी।
जब वो चाय देने के लिए नीचे झुकी.. तो उसके दोनों मम्मे साफ़ दिखाई दिए.. मैं उसके खजाने को ललचाई आँखों से अभी देख ही रहा था कि उसने मुझे ऐसा करते देख लिया।
मैंने उसकी आँखों में देखा.. उसकी आँखों में अजीब सा इशारा था। अभी मैं कुछ सोचता कि अचानक ही उसने मुझे आँख मार दी।
मैं बस देखता ही रह गया..
जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. तो बोली- बुद्धू हो.. मैं घर में अकेली लड़की हूँ.. तुझे आँख मार रही हूँ.. फ़िर भी तुम समझ नहीं पा रहे हो।
उसने खुद आगे बढ़ कर उसने मुझे किस किया.. थोड़ी देर बाद मुझे भी मजा आने लगा.. तो मैं भी उसका साथ देने लगा।
तभी संध्या उठ कर अपने कमरे में चली गई।
मैं भी उसके पीछे कमरे में घुस गया और उसको बिस्तर पर लिटाकर किस करने लगा।
हम दोनों के किस लगभग 5 मिनट तक चले.. फ़िर मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसकी टी-शर्ट और जीन्स उतार फेंकी।
अब मैं उसकी मदमस्त चूचियों को दबाता रहा.. उसकी सेक्सी आवाज से कमरा गूँजने लगा था।
मैं एक हाथ से चूची मसल रहा था और दूसरी को चाट रहा था।
संध्या कितनी ही बातें बोल रही थी.. मगर मैंने उसकी एक ना सुनी, वो चिल्ला रही थी।
मैंने उसके चूचे रगड़-रगड़ कर लाल कर दिए थे।
जैसे ही मैं थोड़ा ढीला पड़ गया तो संध्या झट से उठी और मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने वासना के वशीभूत होकर मेरी शर्ट को उतार फेंका और मेरे पैन्ट की जिप खोल कर मेरा लंड बाहर निकाल लिया।
अब वो उसे प्यार से सहला रही थी।
संध्या अब भी लाल ब्रा और पैन्टी में थी। जब उससे रहा नहीं गया तो उसने मेरे सारे कपड़े उतार फेंके और मेरा लंड पकड़ कर चूमने लगी.. पहले थोड़ी सी रुक गई.. शायद उसे उल्टी सी आ रही थी।
दो मिनट बाद उसने जो लण्ड चूसना चालू किया.. तो समझो मेरा पूरा लंड निगल गई।
अब सिसकारियाँ भरने की बारी मेरी थी.. मुझे इससे पहले इतनी खुशी कभी नहीं मिली।
सिर्फ 5 मिनट बाद ही मेरा निकल गया.. मेरा माल कुछ मुँह में गिरा.. कुछ उसकी ब्रा पर.. ज्यादातर चेहरे पर गिरा।
संध्या ने कहा- मजा आया जान? मुझे तो खूब तड़पाया.. और खुद इतनी जल्दी निकल लिए।
उसने हँस कर मेरा वीर्य चेहरे पर मल लिया और मुँह धोने चली गई।
जब वो लौटकर वापिस आई.. तब थोड़ा मुस्कुराती हुई मेरे साथ लेट गई।
फिर उसने मेरा लंड फ़िर से चूसना चालू किया.. और मेरे लंड ने फ़िर से सलामी दे दी।
अब बारी मेरी थी.. उसे तड़पाने की.. मैंने उसकी ब्रा और पैन्टी उतार फेंकी और उसको चूमते हुए पेट से होता हुआ अपने होंठों को उसकी चूत पर रख दिए।
संध्या ने बड़ी ही कामुक आवाज निकाली ‘आऊऊ ऊऊउह ऊऊऊ चच.. जान.. मेरी जान लोगे क्या..’
मैं संध्या की चूत चूस रहा था। जब मैंने पहली बार उसकी बुर में अपनी जीभ लगाई.. तब मुझे बहुत घिन सी आई.. मुझे उल्टी सी होने लगी.. पर बाद में मुझे उसके कामरस का स्वाद बहुत ही पसन्द आने लगा।
अब मैंने अपनी जीभ संध्या की चूत में डाल दी.. वो बड़ी ही सेक्सी आवाजें निकाल रही थी और कह रही थी- अब मत तड़पाओ.. प्लीज़.. अपना लन्ड मेरी चूत में डाल दो.. आआ.. ऊऊऊअह.. आऊच.. ओह..
मैंने संध्या से कहा- थोड़ी देर पहले तो बड़ी हँस रही थी.. अब भुगतो।
‘आह आ आ आ उउउउ च..’
मैं लगातार संध्या की चूत चूसता रहा। उसके दाने को चूसता रहा और जीभ से ही उसकी चूत चोदता रहा। आखिर संध्या एक बार जोर से चिल्लाई और मेरा मुँह चूत पर जोर से दबा डाला और झड़ गई। मैं बस थोड़ा ही पी पाया.. बाकी पानी से मेरा मुँह धुल गया।
तब तक मेरा लंड भी खड़ा हो चुका था.. अब बारी थी असली मजे की।
मैं अपना लंड संध्या की चूत पर ले गया और चूत से रगड़ने लगा।
कुछ देर बाद संध्या भी फ़िर से सेक्सी आवाजें निकालने लगी, मैं समझ गया कि संध्या फिर से गरम हो गई है।
मैंने लंड को चूत पर रखा और धक्का दिया। पहले तो चिकनाई के लंड फ़िसल गया.. फ़िर संध्या ने लंड को हाथ से पकड़ कर चूत के मुँह पर रखा और कहा- अब मुझे कली से फूल बना दो.. मेरी जान।
मैंने संध्या की अनुमति मिलते ही एक जोरदार धक्का लगाया, संध्या जोर से चिल्लाई- ऊऊऊ.. ऊऊऊऊ.. ईई अईईई.. मर गई रे..
मैं तो डर गया और रुक गया.. डर के मारे लंड बाहर निकालने की कोशिश करने लगा। तभी संध्या ने मुझे रोका और थोड़ा रुकने को कहा।
मैंने तब तक संध्या के चूचे दबाने चालू कर दिए और साथ ही संध्या के होंठ चूसने लगा।
जब संध्या मस्त हो गई तब धक्के मारने चालू कर दिए। अब कमरे में संध्या की सेक्सी आवाजें गूँज रही थीं।
‘आह्ह.. और जोर से.. आह्ह.. ऊऊऊउ..’
बीस मिनट ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा और बाद में हम एक साथ ही झड़ गए।
तब संध्या ने बताया कि आज उसका जन्मदिन है।
फिर हमारी चुदाई का एक और दौर हुआ, इस बार हमने बहुत देर तक चुदाई की।
उस दिन से अब तक हम जब भी मौका मिलता है खुल कर चुदाई करते हैं। संध्या ने मुझे और भी कुंवारी चूतें दिलवाई हैं.. वो कहानियाँ फ़िर कभी लिखूंगा।
आप को मेरी कहानी कैसी लगी.. जरूर बताइएगा..
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