कपड़े के साथ साथ चूत की भी धुलाई

कपड़े के साथ साथ चूत की भी धुलाई

मेरा नाम अमन है और पिछले दो वर्षों से मैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक कंपनी में इंजिनियर के पद पर कार्यरत हूँ।

छह वर्ष पहले जब मैं उन्नीस वर्ष का था तब मैंने भोपाल के ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था और पास ही की एक कॉलोनी में कमरा किराये पर ले कर रहने लगा था।
दिन और रात के खाने के लिए कमरे से कुछ दूर ही एक ढाबे वाले से अनुबंध कर लिया था और वह खाना इत्यादि मेरे कमरे पर ही भेज देता था।
सुबह और शाम के नाश्ते एवं चाय मैं कमरे के एक कोने में रखे बिजली के हीटर पर बना लिया करता था।
मेरे कमरे के साथ एक संलग्न बाथरूम और बालकनी भी थी जिसमें स्नान आदि के लिए अथवा धुले कपड़े आदि सुखाने के लिए सभी सुविधा उपलब्ध थी।

मैं उस बालकनी का प्रयोग नहीं करता था क्योंकि मुझे कपड़े धोने नहीं आते थे तथा एक माह तक तो मुझे कपड़ों की धुलाई एवं प्रेस करने की समस्या का कोई समाधान भी नहीं मिला था।
अधिकतर सप्ताह में एक बार मैं अपने सभी मैले कपड़े पास की एक लांड्री से धुलवा लेता लेकिन उसमें मेरे बहुत पैसे खर्च हो जाते थे।
किसी तरह इस मुश्किल से झूझते हुए मैंने एक माह व्यतीत करा और एक दिन जब मैं एक दोस्त के घर पर गया तब मैंने अपनी समस्या का उल्लेख उसकी माँ से किया।

दोस्त की माँ ने मुझे उसका समाधान करने का आश्वासन दिया और तीन दिनों के बाद एक शाम को मेरे कमरे में लगभग बीस वर्ष की आयु की एक हल्के गेहुंए रंग की सुंदर सी युवती भेज दी।
उस युवती ने मेरे उस दोस्त की माँ का हवाला देते हुए मुझसे धुलाई और प्रेस के लिए कपड़े मांगे।

मैंने जब उससे पूछताछ करी तो उसने बताया कि वह मेरे उस दोस्त के घर के सभी कपड़ों की भी प्रेस करती है और उन आंटी के कहने पर ही वह मुझसे कपड़े लेने आई है।

मैंने फ़ोन पर जब दोस्त से बात करी तो उसने बताया कि उस युवती का नाम प्रीति है और उसकी माँ ने ही उसे मेरे कमरे पर भेजा था तथा वही उनके घर के सभी कपड़े धुलाई एवं प्रेस करती है।
प्रीति की बात की पुष्टि हो जाने के बाद मैंने उसे अपने मैले कपड़े दे दिए।

दो दिनों के बाद प्रीति शाम के समय मेरे सभी धुले एवं प्रेस किये हुए कपड़े दे गई और दो दिनों में मैले हुए कपड़े धुलाई एवं प्रेस के लिए ले गई।

लगभग पूरे तीन माह तक सब ऐसे ही चलता रहा तभी एक दिन प्रीति कपड़े देने आई तो बहुत ही खुश दिखाई दी।
जब मैं उसे मैले कपड़े देने लगा तो उसने लेने से मना कर दिया और कहा– अमन जी, मैं अगले दो सप्ताह धुलाई एवं प्रेस के कपड़े लेने नहीं आऊँगी और आज भी मैं कपड़े नहीं ले जाऊँगी।

मैंने उससे जब नहीं आने का कारण पूछा तो उसने कहा– कल मेरे पति, जो की दुबई में काम करते है, वह दो वर्ष के बाद दो सप्ताह के लिए घर आ रहे हैं इसलिए मुझे कपड़े धोने और प्रेस करने का समय ही नहीं मिलेगा।

किसी तरह दो सप्ताह बीतने के बाद जब प्रीति धोने एवं प्रेस करने के लिए कपड़े लेने आई तो उसका उदास चेहरा देख कर मैंने कारण पूछा तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
उसकी आँखों में आँसू देखते ही मैं समझ गया कि उसे अपने पति के दुबई जाने का दुःख तथा उदासी थी इसलिए मैंने बात आगे नहीं बढ़ाई।

अगले दो दिनों के बाद जब वह धुले एवं प्रेस किये हुए कपड़े देने आई तब मैं चाय बना रहा था इसलिए उसे देखते ही मैंने उसके लिए भी चाय बना दी और उसे आग्रह करके बिठाया तथा चाय पीने के लिए दी।
जब मैंने उसे चाय दे रहा था तब उसकी नम आँखें देख कर उससे पूछा- प्रीति क्या बात है, आज भी तुम्हारी आँखें में आंसू हैं? क्या अभी भी पति की याद में रो रही हो?

उसने आँखों को अपने साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए कहा- उनकी याद तो हमेशा आती रहती है लेकिन ये आँसू उदासी के नहीं, बल्कि ख़ुशी के आँसू है। असल में मैं जहाँ भी जाती हूँ, लोग मुझे छोटी जाति की समझ कर मेरा तिरस्कार करते हैं। चाय तो क्या कोई पानी भी नहीं पूछता लेकिन आपने तो मुझे बैठने के लिए आसन दे कर मेरा मान बढ़ाया है तथा अपने हाथ से चाय भी बना कर पिलाई है।

उसकी बात सुन कर मैंने कहा- अरे मैंने तो इंसानियत के नाते यह सब किया है। मैं अपने लिए चाय बना रहा था और तुम्हें देखा तो तुम्हारे लिए भी चाय बना दी। मेरे अनुसार कोई भी इंसान छोटा या बड़ा नहीं होता, हर इंसान बराबर होता है।

उस दिन के बाद से ही प्रीति मेरे साथ खुल कर बातें करने लगी थी और बातों बातों में उसने अपने बारे में भी कुछ कुछ बताया।
उसने बताया कि उसका जन्म एक अच्छे परिवार में हुआ था और दो वर्ष पहले उसने बीए का सेकंड इयर पास किया था।
तभी एक दुर्घटना में उसके माता पिता की मृत्यु हो गई और उसकी पढ़ाई छूट गई तथा उसे चाचा चाची के साथ रहना पड़ा।

माता पिता की मृत्यु के कुछ माह के बाद उसके चाचा ने उसकी सहमति के बिना उसकी शादी दुबई जा रहे उसके पति के साथ करवा दी थी और जब वह ससुराल पहुँची तब उसे पता चला कि वह एक धोबी परिवार है।

शादी के एक माह के बाद ही उसका पति दुबई चला गया और तब से उसके सास ससुर तथा देवर ने उसे धुलाई और प्रेस करने के काम में लगा दिया था।
सारा दिन काम करने के बाद उसे तीन वक्त की खाना मिल जाता था और सोने के लिए घर के एक कोने में बिस्तर मिल जाता है।

इसके बाद अगले एक माह तक सब सामान्य ही चलता रहा और प्रीति सप्ताह में दो या तीन दिन छोड़ कर धुलाई के कपड़े ले जाती और दे जाती।

फिर एक रविवार को प्रीति सुबह छह बजे ही मेरे घर पर आई और बोली- जहाँ मैं कपड़े धोने जाती हूँ वहाँ पिछले दो दिनों से पानी नहीं आ रहा है। क्या मैं धुलने वाले कपड़े यहाँ आपके कमरे पर धो कर ले जाऊँ।

पहले तो मुझे समझ नहीं आया कि उसे क्या कहूँ लेकिन जब उसका मासूम सुंदर चेहरा देखा तो मैंने उसे अनुमति दे दी।

मेरी अनुमति मिलते ही वह कपड़ों का गठ्ठर उठा कर बाथरूम में ले गई और कपड़े धोने लगी और मैं अपने बिस्तर पर सोने चला गया।

लगभग डेढ़ घंटे के बाद जब मैं नींद से उठा तब मैंने देखा की प्रीति बाथरूम में सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट पहने हुए थी और वह धुले हुए कपड़ों को इकट्ठा कर के एक कपड़े में बाँध रही थी।

प्रीति को उस वेश में देख कर मैं उसके चेहरे के साथ साथ उसके शरीर की मनमोहक सुन्दरता से पहली बार अवगत हुआ।
क्योंकि उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी इसलिए पानी के छींटों से गीले ब्लाउज में से उसके ठोस, गोल, उठे हुए उरोजों एवं चुचूक बिल्कुल साफ़ साफ़ नजर आ रहे थे।
उसकी नग्न कमर बहुत ही पतली थी और उसकी नाभि के आसपास पानी की बूँदें मोतियों की तरह चमक कर उसका शृंगार कर रही थी।
प्रीति के नितम्ब गोल, कसे हुए और सामान्य से कुछ बड़े थे तथा उसका गीला पेटीकोट उसके उन नितम्बों से चिपका हुआ था।
उसके दोनों नितम्बों के बीच की दरार का साफ़ साफ़ दिखना इस बात का पुष्टीकरण था कि प्रीति ने पेटीकोट नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी।
धुलाई का काम करते हुए जब प्रीति मेरे ओर मुड़ी और मुझे उसके अर्ध-नग्न शरीर की घूरते हुए देखा तो वह शर्मा गई और जल्दी में उसके पास की खूंटी पर टंगती हुई साड़ी से अपने बदन को ढांपने की असफल कोशिश करने लगी।
प्रीति के संकोच एवं असुविधा को ध्यान में रखते हुए मैं वहाँ से हट कर अपने लिए नाश्ता और चाय बनाने लगा।

कुछ देर के बाद प्रीति गीले ब्लाउज एवं पेटीकोट के उपर ही अपनी साड़ी पहन कर और सभी धुले कपड़े को एक गठरी में बाँध कर चली गयी।
तीन दिनों के बाद प्रीति कपड़े ले कर आई तो मुझे वह कुछ उदास भी दिखाई दी तथा उसके चेहरे पर चोट के निशान दिखे तब मैंने उससे पूछा- क्या बात है आज तुम बहुत उदास और चिंतित दिख रही हो। तुम्हारे चेहरे पर चोट के निशान कैसे है?

प्रीति ने उत्तर दिया- बात यह है कि कपड़े धोबी-घाट पर साफ़ पानी की कमी के कारण कपड़ों की धुलाई में बहुत दिक्कत आ रही है। सास और असुर भी इसी कारण चिड़चिड़े हो गए हैं और दिन भर छोटी छोटी बातों पर मुझे ही डांट देते हैं।

उसकी बात सुन कर मैंने पूछा- इस समस्या से सुलटने के लिए तुम्हारे सास-ससुर और तुमने क्या सोचा है?ो

इस पर प्रीति बोली- पिछले रविवार को मैंने एक गलती कर दी थी और अब वह कहते है कि उसी गलती को दोहराती रहूँ।
मैंने पूछा- रविवार को तुमने क्या गलती कर दी थी जिसे वह दोहराने के लिए कह रहे हैं?

उसने कहा- रविवार को पानी की समस्या से परेशान होकर मैंने बिना उन्हें बताये ही आप के कमरे में आ कर कपड़े धो लिए थे। बाद में जब मैंने उन्हें इस बारे में बताया तब से मुझे आपके घर में कपड़े धोकर लाने के लिए कह रहे थे। मेरे मना करने पर मेरी सास मुझे दो थप्पड़ भी जड़ दिए थे, ये उसी के निशान हैं।

उसकी बात सुन कर मुझे उसके सास-ससुर पर बहुत गुस्सा आया तथा प्रीति के प्रति सहानभूति एवं बहुत दया भी आई।

मैंने प्रीति से पूछा- तुमने अपने सास-ससुर को मेरे कमरे पर कपड़े धोने से मना क्यों कर दिया था।

वह बोली- पहली बात यह है कि हर रोज़ आपके घर पर कपड़े धोकर मैं आपको असुविधा में नहीं डालना चाहती थी। दूसरी बात यह है की मैंने आपसे इस बारे में ना तो कोई बात करी थी और ना ही आपसे अनुमति ली थी। तीसरी बात यह है कि मैं नहीं चाहती हूँ कि आपके अड़ोस पड़ोस तथा मकान मालिक को पता चलने पर आप पर कोई आपति आ जाये। चौथी बात यह है कि जब आप कॉलेज गए हुए होंगे तब मेरा बंद कमरे में कपड़े धोना कैसे संभव होगा?

प्रीति के सुलझे हुए तर्क सुन कर मैं कुछ सोच में पड़ गया और उसे अगले दिन सुबह आकर कपड़े ले जाने के लिए कह कर भेज दिया।
अगले दिन सुबह सात बजे जब प्रीति आई तब मैंने उसे कहा- प्रीति मैंने तुम्हारी समस्या और दशा पर रात भर सोच कर निर्णय कर लिया है कि तुम जब भी चाहो मेरे घर में कपड़े धो सकती हो।

प्रीति ने कहा- यह कैसे हो सकता है, जब आप कॉलेज गए हुए होंगे तब मैं घर में कपड़े कैसे धो सकती हूँ।

मैंने तुरंत घर की दूसरी चाबी निकाल कर देते हुए कहा- यह घर की दूसरी चाबी अपने पास रख लो और जब भी चाहो तुम आकर कपड़े धो सकती हो।

मेरी बात सुन कर प्रीति अवाक सी मेरी ओर देखते हुए बोली- मैं यह नहीं करना चाहती हूँ लेकिन मेरी मजबूरी के कारण मुझे आपकी बात मानना पड़ रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आपके इस उपकार को कैसे उतारूँगी।

अनायास ही मेरे मुख से निकल गया- प्रीति, मेरी गैर हाजिरी में तुम मेरे कमरे की सफाई आदि करके अपने पर हुए उपकार को उतार देना। दूसरा अड़ोस पड़ोस और मकान मालिक भी यही समझेंगे कि मैंने तुम्हें कमरे की सफाई के लिए रखा है।

मेरी बात सुन कर प्रीति ने चुपचाप मेरे हाथ से कमरे की चाभी ले ली और मुझे धन्यवाद करके चली गई।
मैं भी तैयार हो कर कॉलेज चला गया और जब शाम को कमरे पर आया तो…

अगले दिन सुबह सात बजे जब प्रीति आई तब मैंने उसे कहा- प्रीति मैंने तुम्हारी समस्या और दशा पर रात भर सोच कर निर्णय कर लिया है कि तुम जब भी चाहो मेरे घर में कपड़े धो सकती हो।

प्रीति ने कहा- यह कैसे हो सकता है, जब आप कॉलेज गए हुए होंगे तब मैं घर में कपड़े कैसे धो सकती हूँ।

मैंने तुरंत घर की दूसरी चाबी निकाल कर देते हुए कहा- यह घर की दूसरी चाबी अपने पास रख लो और जब भी चाहो तुम आकर कपड़े धो सकती हो।

मेरी बात सुन कर प्रीति अवाक सी मेरी ओर देखते हुए बोली- मैं यह नहीं करना चाहती हूँ लेकिन मेरी मजबूरी के कारण मुझे आपकी बात मानना पड़ रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आपके इस उपकार को कैसे उतारूँगी।

अनायास ही मेरे मुख से निकल गया- प्रीति, मेरी गैर हाजिरी में तुम मेरे कमरे की सफाई आदि करके अपने पर हुए उपकार को उतार देना। दूसरा अड़ोस पड़ोस और मकान मालिक भी यही समझेंगे कि मैंने तुम्हें कमरे की सफाई के लिए रखा है।

मेरी बात सुन कर प्रीति ने चुपचाप मेरे हाथ से कमरे की चाभी ले ली और मुझे धन्यवाद करके चली गई।

मैं भी तैयार हो कर कॉलेज चला गया और जब शाम को कमरे पर आया तो… उसकी रूप रेखा देख कर हैरान हो गया।
मेरा पूरा कमरा बता रहा था कि उसे किसी स्त्री का हाथ लग चुका था क्योंकि हर वस्तु चमकती हुई अपने यथा स्थान पर रखी हुई थी और मेरे धुले एवं प्रेस लिए हुए कपड़े मेरे बिस्तर पर रखे हुए थे।

मैं कपड़े उठा कर अलमारी में रखने लगा तो देखा कि प्रीति ने बाथरूम में टंगे मेरे सभी बनियान और अंडरवियर भी धो डाले थे और जब मैं चाय बनाने लगा तो देखा कि उसने सभी बर्तन भी मांज कर साफ़ कर दिए थे।

अगला दिन शनिवार था और उस दिन कॉलेज सिर्फ आधा दिन ही होता था इसलिए दोपहर के दो बजे लेक्चर समाप्त होने के बाद जब मैं कमरे पर पहुँचा तो दरवाज़ा भिड़ा हुआ पाया।

मैं दरवाजे को धकेलता हुआ कमरे के अंदर गया तो मुझे बाथरूम से पानी के चलने की ध्वनि सुनाई दी।

मेरा अनुमान था कि बाथरूम में प्रीति कपड़े धो रही होगी लेकिन कौतुहलवश जब मैं बाथरूम के द्वार के अंदर झाँका तो वहीं जड़ हो कर खड़ा रह गया क्योंकि प्रीति को मेरे जल्दी वापिस आने की सम्भावना नहीं थी इसलिए कपड़े धोने के बाद वह अपने सभी कपड़े उतार कर पूर्ण नग्न हो कर बाथरूम में नहा रही थी।
वह नहाने में इतनी मग्न थी कि उसे न तो मेरे आने की आहट सुनी और ना ही उसने मुझे बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ा देखा।

मैं दरवाज़े के ओट से वहीं खड़ा हो कर प्रीति के शरीर की वास्तविक सुन्दरता को निहारने लगा।

उसका रंग हल्का गेहुँवा ज़रूर था लेकिन शरीर के बनावट तो एक अप्सरा जैसी थी। उसका कद पांच फुट छह इंच था और उसके लम्बे बाल काले थे जो उसके नितम्बों तक पहुँच रहे थे। उसका चेहरा अंडाकार था, लाल गाल उठे हुए थे, ठोड़ी नुकीली थी, उसकी हिरनी जैसी बड़ी बड़ी काली आँखे थी, नाक पतली एवं लम्बी थी, और गर्दन सुराहीदार थी। उसके गठे हुए कंधे सीधे थे, 34 इंच के उरोज बहुत कसे हुए थे, उस पर गहरे भूरे रंग की चुचूक एकदम सख्त और खड़े हुए थे।

उसकी पेट सपाट था और उसकी 26 इंच की कमर के बीचों बीच स्थित नाभि एक शृंगार की तरह चमक रही थी। उसके 36 इन्च के उभरे हुए कूल्हे गोल एवं कसे हुए थे और उसकी भरी भरी जांघें मांसल थी। उसकी टांगों की पिंडलियाँ बहुत ही सुडौल थी और बहुत ही आकर्षक और सेक्सी लग रही थी।

सोने पर सुहागा तो उसके छोटे छोटे पैर थे जो निहायत सुन्दर थे और लगता था कि जैसे वे किसी नृत्यांगना के पैर हों।

मैं दरवाज़े की ओट से प्रीति के नग्न शरीर की सुन्दरता का रसपान कर रहा था कि तभी वह नहाना बंद करके उठ कर खड़ी हो गई और अपने साथ लाई एक कपड़े से अपने बदन को सुखाने लगी।

उसके खड़े होते ही मुझे उसके जघन-स्थल के दर्शन हुए जहाँ बहुत ही थोड़े से गहरे भूरे रंग के छोटे छोटे बाल उगे हुए थे।
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उन बालों के बीच में उसकी योनि की दरार की रेखा दिखते ही मेरा अर्ध चेतना की अवस्था में खड़ा लिंग एकदम से अकड़ गया और बाहर से मेरी जीन्स में उभार की तरह दिखने लगा।

इसके बाद जब वह मेरी ओर पीठ करके झुकी कर अपनी जांघें और टाँगें से पानी सुखाने लगी तब मुझे उसके जाँघों तथा नितम्बों के बीच की दरार में से उसकी छोटी सी योनि के दर्शन भी हो गए।

क्योंकि अब मेरे लिए सहन करना बहुत ही मुश्किल हो गया था इसलिए मैं वहाँ से हट कर अपने बिस्तर के पास जा कर अपने जूते, पैंट और कमीज़ उतारे।

मैं हाथ में लोअर को पकड़े हुए अंडरवियर और बनियान में खड़ा हुआ था जब प्रीति ब्लाउज एवं पेटीकोट पहन कर बाथरूम से बाहर आई और मुझे देखते ही बोली- अरे, अमन जी आप कब आये? मुझे तो आपके आने का पता ही नहीं चला।

मैंने उत्तर दिया- बस अभी आया हूँ।

मैं जब उसकी ओर मुड़ा तो देखा कि वह मेरे उत्तेजित लिंग के कारण मेरे अंडरवियर में हुए उभार को बड़े गौर से देख रही थी।

मैंने तुरंत अपने को सम्भाला और अपना लोअर और टी-शर्ट पहन लिया और उसकी ओर देखा तो वह साड़ी पहन रही थी।

क्योंकि उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए उसके उरोजों एवं चुचुक का उभार उसके ब्लाउज में से बाहर की ओर साफ़ साफ़ दिख रहा था।

उस समय जब मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी तब मेरा दिल कह रहा था कि मैं प्रीति को पकड़ कर उससे प्यार कर लूँ लेकिन उधर दिमाग कह रहा था यह ठीक नहीं होगा।

दिल और दिमाग के इस द्वंद-युद्ध में दिमाग की विजय हुई और मैंने अपनी नज़रें प्रीति से हटा ली और अपने लिंग को शांत करने के लिए बाथरूम में घुस गया।

अपने लिंग को शांत करने के लिए जब मैं हस्तमैथुन करके बाथरूम से बाहर निकला तब देखा की प्रीति बाथरूम के दरवाज़े के पास खड़ी मुस्करा रही थी।

उसकी मुस्कराहट देख कर मैं समझ गया कि उसने मेरे द्वारा बाथरूम के अंदर करी गई हर क्रिया को देख लिया था।

उसके बाद प्रीति ने धुले हुए कपड़ों की गठरी उठाई और अगले दिन आने के लिए कह कर चली गई।

पने लिंग को शांत करने के लिए जब मैं हस्तमैथुन करके बाथरूम से बाहर निकला तब देखा की प्रीति बाथरूम के दरवाज़े के पास खड़ी मुस्करा रही थी।

उसकी मुस्कराहट देख कर मैं समझ गया कि उसने मेरे द्वारा बाथरूम के अंदर करी गई हर क्रिया को देख लिया था।
उसके बाद प्रीति ने धुले हुए कपड़ों की गठरी उठाई और अगले दिन आने के लिए कह कर चली गई।

शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ सिनेमा देखने चला गया और रात को दस बजे जब कमरे पर पहुँचा तो देखा की प्रीति मैले कपड़ों की एक गठरी के साथ अन्दर बैठी हुई थी।
इतनी रात गए प्रीति को अपने कमरे देख कर मैं थोड़ा हैरान और परेशान हो गया और उससे पूछा- क्या बात है इस समय तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुमने तो कल आने के लिए कहा था?

मेरे प्रश्न के उत्तर में उसने कहा- मेरे सास-ससुर और देवर शाम की गाड़ी से एक सम्बन्धी के अंतिम संस्कार के लिए बाहर चले गए है। घर पर कपड़ों की धुलाई एवं प्रेस करने के लिए मुझे अकेली छोड़ गए हैं।

मैंने उससे प्रश्न किया- फिर तुम्हें अपने घर में ही रहना चाहिए था, तुम मेरे कमरे में क्यों आई हो?इ

उसने तुरंत उत्तर दिया- मुझे उस बस्ती में अकेले रहते हुए डर लगता रहा था और मुझे सुबह तो यहाँ आना ही था इसलिए सोचा कि रात को ही यहीं सो जाऊँगी। यहाँ आप हैं इसलिए मुझे रात में अकेले रहने का डर भी नहीं लगेगा।

मैंने कहा- तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें अपने कमरे में सोने दूंगा? और यहाँ सिर्फ एक ही बिस्तर है तो तुम कहाँ पर सोओगी?
प्रीति का उत्तर था- मुझे विशवास है कि आप दयावान दिल के हैं इसलिए मुझे ज़रूर अपने कमरे में सोने देंगे। जहाँ तक सोने की बात है मैं कमरे के किसी भी कोने में अपने साथ लाई चादर बिछा कर सो जाऊँगी।

मैंने कहा- प्रीति मुझे यह ठीक नहीं लगता कि तुम रात के समय मेरे साथ अकेले में इस कमरे में रहो।
पलट कर प्रीति ने उत्तर दिया- तो क्या किसी नग्न नहाती हुई युवती को छुप छुप कर देखना ठीक होता है?

उसकी इस बात पर मैं निरुत्तर हो गया और उस बात को वहीं समाप्त करते हुए उससे पूछा- अच्छा यह बताओ कि तुमने कुछ खाया भी है या नहीं?

मेरी इस बात पर उसने झट से उठ कर गठरी में से एक पोटली निकाली जिसमे कुछ रोटी और अचार था और बोली- मैं तो घर से रोटी बना कर लाई थी। लेकिन जब तक यहाँ पर रहने की अनुमति नहीं मिलेगी तब तक खा नहीं पाऊँगी।
मैंने उसे कहा- अब तो तुम्हे यहाँ पर रात के लिए सोने की अनुमति मिल गई है अब तो तुम रोटी खा लो।

तब वह उठी और हीटर के पास मेरे लिए ढाबे से आया खाना उठा कर ले आई और कहा- आपने भी तो अभी तक रात का खाना नहीं खाया है इसलिए जब आप खायेंगे तब ही मैं भी खाऊँगी।

इसके बाद उसने हीटर जला कर उस पर मेरे लिए खाना गर्म करना शुरू कर दिया तब मैंने उसे उसकी रोटी भी गर्म कर लेने के लिए कहा।

प्रीति ने बिस्तर पर एक अखबार बिछा कर उस पर मेरे लिए गर्म खाना लगा दिया तथा अपना खाना नीचे लेकर खाने के लिए बैठ गई।
मैंने उसे ऐसे करते हुए देख कर विरोध किया और अनजाने में उसे पकड़ कर बिस्तर पर बिठा दिया।

खाना खा कर जब मैं हाथ धोने के लिए बाथरूम में गया तब उसने सभी बर्तन उठा कर बाहर बालकनी में रख दिए और अपनी चादर को कमरे के एक कोने में बिछा दिया।

मैंने बाथरूम अपने सभी कपड़े उतार कर रात के सोने के कपड़े पहने और कमरे में आया तो देखा की प्रीति ब्लाउज एवं पेटीकोट में खड़ी अपनी उतारी हुई साड़ी को लपेट रही थी।

मैंने अधिक बात न करते हुए अपने बिस्तर पर लेट गया और उसे कह दिया कि बत्ती बंद कर के सो जाए।

एक सुन्दर युवती, जिसे दिन में मैंने पूर्ण नग्न देखा था, के कमरे में होने के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं बार बार सिर ऊँचा कर उसे देख रहा था।
करीब एक घंटे के बाद मुझे प्रीति की हल्की सी चीख सुनाई दी तब मैंने बत्ती जला कर देखा तो उठ कर अपनी चादर उठा कर झाड़ रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ, तुम चीखी क्यों थी और यह चादर क्यों झाड़ रही हो?

प्रीति ने उत्तर दिया- पता नहीं… मेरे ऊपर कोई कीड़ा चढ़ आया था और डर के मारे मेरी चीख निकल गई।

तब मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि प्रीति ने अपनी चादर नाली के पास बिछा रखी थी इसलिए उसमें से आने जाने वाले कीड़े उसके ऊपर से चढ़ रहे थे।

मैंने प्रीति को यह बात समझाई और कहा- अब अगर तुम चाहती हो की हम दोनों आराम से सो जाए तो एक ही रास्ता है। तुम्हें मेरे साथ बिस्तर पर ही सोना पड़ेगा, नहीं तो सारी रात ऐसे ही नाचती रहोगी और मुझे भी नचाती रहोगी।

प्रीति ने पहले तो ना कर दी लेकिन जब मैं बत्ती बंद करके बिस्तर पर लेट गया तब वह बहुत ही आहिस्ता से आकर मेरे बगल में मेरी ओर पीठ करके लेट गई।

उसके मेरे साथ लेटते ही मेरे लिंग महाराज में चेतना जागृत हो गई और नीचे अंडरवियर नहीं पहने होने के कारण उसने मेरी कैपरी को तम्बू बना दिया।

आधे घंटे के बाद जब मैं अपनी उत्तेजित वासना पर नियंत्रण खो बैठा और मैं प्रीति की ओर करवट ली और उसके नितम्बों की दरार में अपने लिंग को दबाना शुरू कर दिया तथा अपनी हाथ से उसके उरोजों को सहलाने लगा।

मैं डर रहा था कि कहीं प्रीति मेरी इस हरकत का विरोध न करे लेकिन अचम्भा तब हुआ जब उसने अपने ब्लाउज के बटन खोल कर मेरे हाथ में अपने नग्न उरोजों को मसलने का न्योता दे दिया।

प्रीति की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद मैंने उसे खींचा तो वह मेरी ओर करवट करके लेट गई और मुझे अपने उरोजों को मसलने एवं चूसने दिए।

दस मिनट के बाद मैंने उसके उरोजों को छोड़ कर उसके होंठों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें चूसने लगा तब प्रीति ने मेरा पूरा साथ दिया और वह भी मेरे होंठों और जीभ को चूसने लगी।

मुझे प्रीति के सम्पूर्ण सहयोग एवं सहमति की पुष्टि तब हुई जब उसने मेरी कैपरी में हाथ डाल कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।

मैंने जब उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला तब उसने अपने कूल्हे उठा दिया ताकि मैं उसको नीच सरका कर उसके बदन से अलग कर सकूँ।
जब पेटीकोट उतर गया तब प्रीति ने मेरे कान को चूमते हुए धीरे से फुसफसाया- मेरा ब्लाउज तंग कर रहा है उसे भी निकाल दो और अपने सभी कपड़े भी उतार दो तो अच्छा रहेगा।

उसकी बात मानते हुए मैं उठ कर बैठ गया और उसे थोड़ा ऊँचा कर के उसकी बाजुओं में फसे हुए ब्लाउज को निकाल कर पेटीकोट के पास फेंक दिया।
फिर अपनी बनियान उतार दी और अपने कूल्हों को थोड़ा ऊंचा कर के प्रीति को मेरी कैपरी नीचे सरकाने के लिए कहा।

उसने तुरंत दोनों हाथों से कैपरी को खींच कर नीचे कर दी और जब मैंने टांगें उठाई तो उसने उसको मेरे शरीर से अलग करते हुए अपने पेटीकोट और ब्लाउज के ऊपर फेंक दी।

अब हम दोनों बिल्कुल नग्न एक दूसरे से लिपटे हुए होंठों पर चुम्बन ले रहे थे और प्रीति के उरोज मेरी छाती के साथ चिपके हुए थे तथा मेरा लिंग उसकी दोनों जाँघों के बीच में उसकी योनि का मुख चूम रहा था।

पांच मिनट के बाद प्रीति उठ कर पलटी हो कर मेरे लिंग को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी तथा अपनी योनि को मेरे मुँह पर चाटने के लिए लगा दी।
मैं भी अपनी जीभ से उसकी योनि के होंठों को चाटने लगा और बीच बीच में उसके भगनासा को जीभ से ही मसल देता।
जब जब मैं उसके भगनासा पर वार करता तब तब वह सिस्कारियाँ लेते हुए उछलती और मेरी जीभ उसकी योनि के अंदर तक घुस जाती।

प्रीति भी बहुत ही प्यार से मेरे मेरे लिंग को चूसती रही और बीच बीच में जब वह अपनी जीभ की नोक को लिंग के छिद्र में डालने की कोशिश करती तब मुझ झुरझुरी होती और मेरे पूर्व-रस की दो बूँद की एक किश्त उसके मुँह में टपक पड़ती।

वह बड़े प्यार से उन दो बूंदों की किश्त को अमृत समझ कर निगल जाती और फिर अगली दो बूंदों की किश्त के लिए लिंग को चूसने लगती।
दस मिनट तक की चुसाई के बाद प्रीति ने ऊँचे स्वर में एक लम्बी सिसकारी ली और अपनी टांगें सिकोड़ ली जिसके कारण मेरा सिर उसकी जाँघों में फंस गया।
मैं अपने को उसकी जाँघों के बीच से छुड़ाने की कोशिश कर रहा था तभी प्रीति ने अपनी योनि में से स्वादिष्ट योनि-रस की बौछार कर दी जिसे पीने से मेरी उत्तेजना को आग लग गई।

मैंने एक बार फिर प्रीति के भगनासा को जीभ से मसलने लगा और देखते ही देखते उसने ऊँचे स्वर में एक लम्बी सिसकारी ली और एक बार फिर स्वादिष्ट योनि-रस की बौछार कर दी।

इसके बाद उसने मेरे लिंग को बहुत ही जोर से चूसा और उसमें से सारा पूर्व-रस खींच कर पी लिया और फिर अपने को मुझसे अलग कर के अपनी टांगें चौड़ी करके लेट गई।
मैं समझ गया की अब वह सम्भोग के लिए तैयार थी इसलिए मैंने फुर्ती से उठ कर उसकी टांगों के बीच में बैठ गया और अपने लिंग को उसकी योनि के होंठों के बीच में फसा कर धक्का लगाया।
लेकिन मेरा लिंग उसकी योनि में नहीं घुसा और एक तरफ फिसल गया।

फिर मैंने प्रीति के हाथ में अपना लिंग दे दिया और उसे योनि के मुँह पर रखने के लिए कहा।
जैसे ही प्रीति ने मेरे लिंग को अपनी योनि के होंठों में फसाया मैंने जोर से धक्का दे दिया और लिंग-मुंड को उसकी योनि के अंदर डाल दिया।
प्रीति के मुँह से जोर की एक चीख निकली तथा सिर हिलाते हुए सिस्कारियाँ भरते हुए तड़पने लगी।
मैं कुछ देर के लिए वहीँ रुक गया और उसके होंठों को चूमने एवं चूसने लगा।
जैसे ही प्रीति की तड़प एवं सिस्कारियाँ बंद हुई में अपने लिंग का दबाव बढ़ाया और धीरे धीरे वह लिंग उसकी योनि-रस से गीली योनि में घुसने लगा।

अगले पांच मिनट में मैंने अपना साढ़े छह इंच लम्बा लिंग प्रीति की तंग योनि में जड़ तक डाल ही दिया।

तब मैंने प्रीति के उरोजों को चूसते हुए पूछा- प्रीति, तुम इतना चिल्लाई क्यों? क्या पहली बार सम्भोग कर रही हो? क्या बहुत दर्द हुआ जो तुम्हारी आँखों से आंसू निकल आये?

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कपड़े के साथ साथ चूत की भी धुलाई